RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--10
गतान्क से आगे.
उस बहुत बड़े खाली मैदान मे बस जंगंग्ली झाड़िया & पेड़ उगे हुए थे.उस मैदान के कच्चे रास्ते पे 2 मर्सिडीस आके रुकी.आगे वाली कार से विजयंत & समीर मेहरा प्रणव के साथ उतरे & पीछे वाली से ट्रस्ट ग्रूप के कुच्छ ऊँचे अफ़सर,"डॅड,ये जगह डेवाले से बस 20 किमी की दूरी पे है & हमारी फिल्म सिटी के लिए बिल्कुल पर्फेक्ट है.वो देखिए,उधर 1 छ्होटी सी झील भी है.इधर पहाड़ियाँ भी हैं.इस सपाट मैदान मे दफ़्तर,स्टूडियोस पर्मनेंट & टेंपोररी सेट्स बन जाएँगे.डेवाले के स्टूडियोस पुराने हैं फिर उनकी लोकेशन ऐसी है कि बिना ट्रॅफिक जाम मे फँसे ना वाहा पहुँचा जा सकता है ना निकला जा सकता है.मानपुर एक्सप्रेसवे से जुड़ा है तो ट्रॅफिक की प्राब्लम तो है ही नही फिर इस जगह हम बिल्कुल मॉडर्न सुविधाएँ मुहैय्या करा सकते हैं."
"1 बात और,सर.",प्रणव घर के अलावा विजयंत को कभी डॅडी नही बुलाता था,उसने कार के बॉनेट पे फैले अपने साले के प्लान के 1 कोने पे उंगली रखी,"ये ज़मीन जो यहा से बस 4 किमी के फ़ासले पे है,हमारी है & यहा हम अपना रेसिडेन्षियल प्रॉजेक्ट शुरू कर रहे हैं.इस प्रॉजेक्ट के सामने सड़क के इस दूसरी तरफ हमारा होटेल भी बनाने का प्लान है.ये तीनो जगहें यानी कि ये ज़मीन जहा हम खड़े हैं & हमारे ये दोनो प्रॉजेक्ट्स मानपुर मे आते हैं & यहा डेवाले के रोड टॅक्स रेट्स नही लगेंगे & ये सारी जगह एरपोर्ट से बस 6 किमी की दूरी पे है."
"यानी ये प्रॉजेक्ट हमे मिल गया तो फायडा ही फायडा है.",विजय्न्त ने गहरे नीले रंग का सूट पहना था & आँखो पे काला चश्मा था.वो मैदान मे दूर तक देख रहा था.सामने उसे 1 छ्होटा सा बिंदु हिलता दिखा,वो 1 कार थी.वो मुस्कुराया,वो जानता था कि वो किसकी कार है.
"आउच!",मर्सिडीस का कमाल का सस्पेन्षन भी उस ऊबड़-खाबड़ रास्ते के हचको से सोनिया को नही बचा पाया था,"ये कहा आ गये हैं हम,डार्लिंग?",उसने ब्रिज कोठारी के कंधे पे सर रख उसके सीने पे हाथ फिराया.
"सोने की ख़ान मे.",वो अपनी बीवी को देख मुस्कराया.
"क्या?!"
"हां,बाकी बातें फ्लाइट पे बताउन्गा.",वो यहा से सीधा एरपोर्ट जा रहे थे जहा से वो अपने हनिमून के लिए रवाना हो रहे थे.कार रुकी & दोनो उतरे.उसके पीछे भी दूसरी कार मे उसकी कंपनी के अफ़सर आए थे & ब्रिज उनके साथ ज़मीन के बारे मे बातें करने लगा.सोनिया उनसे अलग अपनी कार के सहारे खड़ी थी.उसने छ्होटे बाज़ू का गुलाबी टॉप & पॅंट पहनी थी.उसने दूर देखा,कोई आदमी चला आ रहा था,उसने अपनी आँखो पे लगा काला चस्मा उपर अपने सर पे किया & उधर देखने लगी.चमकती धूप मे सामने से विजयंत लंबे-2 डॅग भरता अकेला चला आ रहा था.लंबा-चौड़ा डील-डौल,आँखो पे काला चस्मा,गोरे,हसीन चेहरे पे सुनेहरी दाढ़ी & विश्वास से भरे कदम..सोनिया तो उसे देखती ही रह गयी.
"हेलो,मेहरा.",ब्रिज मुस्कुराया,"शहर बसा नही लूटेरे पहले आ गये!",उसके & उसके आदमियो के साथ विजयंत भी हंसा & अपना चश्मा उतार अपनी कोट की जेब मे डाला.
"तुम शायद अपनी बात कर रहे हो,कोठारी.मैं तो मालिक हू..वैसे मैं तुम्हे मुबारकबाद देने आया था.",उसने हाथ बढ़ाया जिसे कोठारी ने थाम लिया,"..शादी मुबारक हो."
"थॅंक्स."
"& ये शायद मसेज.कोठारी हैं.",विजयंत ने उसका हाथ छ्चोड़ा & सोनिया के सामने आ खड़ा हुआ.सोनिया का दिल बहुत ज़ोरो से धड़क रहा था & उसे उसका कारण समझ नही आ रहा था.
"शादी मुबारक हो,मिसेज़.कोठारी.",उसने अपनी आँखे सोनिया की आँखो मे डाल दी & अपना हाथ आगे बढ़ाया तो सोनिया ने भी अपना कांपता दाया हाथ आगे कर दिया.विजयंत ने उसे थामा & उसे चूम लिया.इस सब के दौरान 1 पल को भी उसकी नज़रो ने सोनिया की निगाहो को देखना नही छ्चोड़ा था.उसकी पीठ ब्रिज की तरफ थी इसलिए ब्रिज उसके चेहरे & आँखो को देख नही पा रहा था.विजयंत के होंठो से हाथ सटाते ही सोनिया ने हाथ पीछे खींच लिया.ब्रिज मुस्कुराया,उसे लगा उसकी बीवी को विजयंत की ये हरकत बदतमीज़ी लगी है & उसने अपना हाथ झटक लिया है जबकि सोनिया के जिस्म मे विजयंत के होंठो की च्छुअन से बिजली दौड़ गयी थी & उसने आहत हो हाथ खींचा था.
"थॅंक्स.",उसकी आँखे उसके दिल का हाल बयान कर रही थी.उसने झट से उन्हे काले चश्मे के पीछे च्छुपाया & कार मे बैठ गयी.विजयंत मुस्कुराया & वहाँ से जाने लगा.
"मेहरा,ये ज़मीन तुम्हारे लिए सपना ही रहेगी."
"देखेंगे,कोठारी.",जाते हुए विजयंत ने पीछे खड़े ब्रिज की बात सुन बस हवा मे अलविदा का इशारा करते हुए हाथ हिलाया.
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प्लेन हवा मे था,एर होस्टेसेस सभी को ड्रिंक्स सर्व कर रही थी.बिज़्नेस क्लास मे बैठा ब्रिज अपनी बीवी को उस ज़मीन के बारे मे बता रहा था मगर वो सुन कहा रही थी.उसे अभी भी विजयंत की गहरी निगाहे खुद को देखती हुई लग रही थी.अपने हाथ पे उसके होंठो की गर्माहट वो अभी भी महसूस कर रही थी..क्या था ये सब?..उसका दिल ऐसे क्यू धड़का था उस इंसान की मौजूदगी से?..वो ब्रिज की किसी बात पे मुस्कुराइ & फिर उसकी बाँह मे अपनी बाँह फँसा खिड़की से बाहर देखा.खिड़की के शीशे मे उसे अपना धुँधला सा अक्स दिखा....विजयंत ने तुम्हारा दिल धड़का दिया इसका तो 1 ही मतलब है!..उसका अक्स फिर उसे परेशान कर रहा था..नही!..ऐसी कोई बात नही है..मैं ब्रिज की बीवी हू & केवल उसी की हू..उसने मन ही मन कहा..वो बस 1 पल की बात थी..& वैसे भी मैं अब उस इंसान से फिर कभी नही मिलने वाली..उसने खिड़की से मुँह फेरा & बोलते हुए ब्रिज के होंठ चूम लिए.वो चौंक उठा.
"मुझे नही जानना उस ज़मीन के बारे मे!",वो उसके और करीब हो गयी,"..बस अपने बारे मे बताओ.",वो उसके कंधे पे सर रख के उस से आड़ गयी.ब्रिज खुशी से मुस्कुराया & उसके सर को चूम लिया.
सोमवार की सुबह रंभा बाकी 4 लड़कियो के साथ ट्रस्ट ग्रूप के दफ़्तर की इमारत की 12वी मंज़िल पे 1 कमरे मे बैठी थी.इंटरव्यू से पहले की नर्वुसनेस ने उसे आ घेरा था.थोड़ी देर पहले कंपनी के 1 आदमी ने उन्हे आके बताया था कि बस थोड़ी ही देर मे खुद विजयंत मेहरा 1-1 करके सबका इंटरव्यू लेंगे.रंभा ने आँखो के कोने से सोनम रौत को देखा.साँवली सी लड़की खूबसूरत तो थी & इस वक़्त बड़ी विश्वास से भरी भी लग रही थी.
विजयंत अपने दफ़्तर पहुँचा & जहा सारी लड़किया बैठी थी उस कमरे मे झाँका.कमरे मे 1 शीशा लगा था जिसके पार कमरे मे बैठे लोगो को तो दिखाई नही देता मगर शीशे के उस पार खड़ा इंसान सब देख सकता था.विजयंत की नज़रे सभी लड़कियो से होती हुई रंभा पे आके टिक गयी.रंभा शीशे के बिल्कुल करीब बैठी थी & विजयंत उसे उसकी बाई तरफ से देख रहा था.उसके हुस्न को देख वो हैरान रह गया था.
रंभा ने आधे बाज़ू की सफेद शर्ट & घुटनो से थोड़ी उपर की काली स्कर्ट पहनी थी & पैरो मे हाइ हील सॅंडल्ज़ थे.विजय्न्त ने स्कर्ट से निकलती उसकी गोरी,मखमली जाँघो & लंबी टाँगो पे नज़रे दौड़ाई.शर्ट की बाजुओ से निकलती उसकी गुदाज़ बाहो को देख उसके दिल मे उन्हे थाम उस हसीना को बाहो मे भर उसके गुलाबी होंठो को चखने की बहुत तेज़ ख्वाहिश पैदा हुई और जब कमीज़ मे काफ़ी बड़ा उभार बनाते उसके सीने पे उसकी नज़र गयी तो उसने मन ही मन ये तय कर लिया की चाहे जैसे भी हो इस रूप की रानी की जवानी के समंदर मे वो ज़रूर गोते लगाएगा.रंभा को ऐसा लगा जैसे कोई उसे घूर रहा है & उसने गर्दन घुमाई मगर वाहा तो 1 शीशा लगा था जिसमे उसे अपना अक्स दिखाई दिया.
वो शीशे मे देख अपने खुले बालो को हाथो से सँवारने लगी & अपना चेहरा देखने लगी.विजयंत अब सीधा उसकी आँखो मे देख रहा था.कितना मासूम चेहरा था & कैसी बड़ी-2 काली आँखें.उसका दिल अब बिल्कुल बेचैन हो गया था & जैसे ही रंभा ने शीशे मे खुद को निहरना बंद किया,वो वाहा से अपने कॅबिन मे चला गया.
1-1 करके सभी लड़कियो को अंदर बुलाया जाने लगा.रंभा ने देखा जो भी लड़की कमरे से बाहर जाती वो वापस कमरे मे नही आती.उसके साथ जो लड़की बैठी थी,उस से उसने बात की थी & दोनो ने तय किया था कि जो भी पहले अंदर जाएगी वो दूसरी को पुछे गये सवालो के बारे मे ज़रूर बताएगी लेकिन वो लड़की तो वापस कमरे मे आई ही नही.थोड़ी देर बाद कमरे मे बस सोनम & रंभा बचे थे & फिर सोनम का नाम पुकारा गया.
"मिस.रौत,इतनी कम उम्र मे भी काफ़ी तजुर्बा है आपको?",ब्रिज कोठारी ने सोनम की तैय्यरी मे कोई कसर नही छ्चोड़ी थी.वो जानता था कि यहा इंटरव्यू देने वाली हर लड़की के CV मे लिखी 1-1 बात की सच्चाई परखने के बाद ही विजयंत उन्हे इंटरव्यू के लिए बुलाता & उसने इस बात को मद्देनज़र रखते सोनम का CV बनाया था.यहा आने से पहले सोनम को भी बहुत ज़्यादा घबराहट नही हो रही थी लेकिन विजयंत की ज़ोरदार शख्शियत & रोबिली आवाज़ ने उसके कदम लड़खड़ा दिए थे 7 उसका दिल बहुत ज़ोरो से धड़क रहा था.
"सर,मैं जिस कंपनी मे काम कर रही थी वो थी तो छ्होटी मगर उसके ऑपरेशन्स काफ़ी फैले थे इसलिए मेरे बॉस की मदद करते हुए मैने वाहा ये तजुर्बा हासिल किया.
"हूँ.",विजयंत कुच्छ सोच रहा था,"..हमारे यहा दफ़्तर आने का वक़्त तो है मगर जाने का नही,इस बात से आपको तकलीफ़ हो सकती है."
"सर,मैं यहा काम करने आना चाहती हू & मुझे काम करने मे कोई तकलीफ़ नही होती."
"हूँ.",विजयंत मुस्कुराया,"..आप बाहर इंतेज़ार कीजिए."
"थॅंक यू,सर.",सोनम कॅबिन से बाहर निकली तो उसे 1 दूसरे कमरे मे बिठा दिया गया.उसने अपने माथे पे आया पसीना पोंच्छा..इस आदमी के साथ काम करना पड़ेगा उसे!..इसे कोई कैसे धोखा दे सकता है?..ये तो इतना..इतना..उसे समझ मे नही आ रहा था कि विजयंत के रोब,उसकी चुंबकिया शख्सियत के लिए वो कौन्से लफ्ज़ इस्तेमाल करे..अरे पहले वो तुम्हे रखे तो यहा!..उसके दिल ने उसे समझाया & वो बगल मे रखे कूलर से पानी लेके गतगत पीने लगी.
"मे आइ कम इन,सर?",रंभा ने विजयंत के कॅबिन मे कदम रखा.उसे कॅबिन कहना ग़लत होगा,वो 1 बड़ा सा हॉल था.सामने 1 बड़ी डेस्क के पीछे विजयंत मेहरा बैठा था.उस हॉल के 1 कोने मे 1 सोफा सेट लगा था,1 दीवार पे बड़ा सा एलसीडी टीवी & पूरे फर्श पे मोटा कालीन बिच्छा था.कॅबिन मे रोशनी बहुत मद्धम थी विजयंत के डेस्क पे 1 लॅंप जल रहा था & पूरे हॉल मे जो कन्सील्ड लाइट्स थी उन्हे विजयंत ने जानबूझ के बहुत हल्का कर रखा था.
"यस.",उसकी रोबदार,भरी आवाज़ ने रंभा को थोड़ा और नर्वस कर दिया फिर भी वो हल्के से मुस्कुराते हुए नपे-तुले कदमो से आगे बढ़ी.उसने विजयंत की शक्ल पहली बार देखी थी & उसकी मर्दाना खूबसूरती ने उसपे गहरा असर छ्चोड़ा.विजयंत भी उसके हुस्न को आँखो से पी रहा था.जब वो लड़की उसके सामने आके बैठी तो उसका लंड उसके जिस्म की नज़दीकी & उस से आती मदमाती खुश्बू के असर से फ़ौरन खड़ा हो गया.
रंभा विजयंत के हर सवाल का जवाब दे रही थी & अब उसकी घबराहट थोड़ी कम भी हो गयी थी,"मिस.रंभा,यहा आई पाँचो लड़कियो मे से आपका तजुर्बा सबसे कम है,आप ये बात जानती हैं?"
"यस,सर."
"तो मेरी समझ मे ये नही आता कि एजेन्सी ने आपको यहा कैसे भेज दिया?",वो इस लड़की की मज़बूती को परखना चाहता था.
"क्यूकी मैने उनकी नाक मे दम कर दिया था.",रंभा ने विजयंत की आँखो मे आँखे डाल के कहा.
"क्या?!",विजयंत हंसा.उसे लड़की का जवाब पसंद आया था,"लेकिन क्यू?"
"सर,आपके लिए काम करना बहुत फख्र की बात है & फिर इतने रिप्यूटेड ग्रूप मे कौन नही काम करना चाहेगा खास कर के जब काम ग्रूप के चेअरमेन के लिए करना हो.",रंभा बहुत शालीन ढंग से मुस्कुराइ & विजयंत के ज़हन मे उस मुस्कान ने धमाका कर दिया.उसका दिमाग़ कल्पना के घोड़े दौड़ाने लगा..ये मासूम चेहरा हवस मे अँधा हो कैसा लगता होगा?..ये मस्ती मे कैसे मुस्कुराती होगी?..ये रसीले,गुलाबी होंठ मेरे लंड के गिर्द कैसे लगेंगे?..इस गोरे,तराशे जिस्म की हरारत मुझपे क्या असर करेगी?..इसका नंगा जिस्म मेरे नंगे जिस्म से टकराएगा तो..
"आप बाहर वेट करिए.",उसने खुद पे काबू किया.
"थॅंक यू,सर.",रंभा भी उसी दूसरे कमरे मे आ गयी जहा बाकी लड़किया बैठी थी.
विजयंत पशोपेश मे पड़ा था.उसने अपनी कुर्सी के पीछे लगे पर्दे को रिमोट से खोला & सामने धूप मे चमकती डेवाले की ऊँची इमारतो को देखने लगा जिनमे से ज़्यादातर उसी की थी.वो लड़कियो का शौकीन था,जो लड़की उसके दिल को भा जाए उसे वो अपने बिस्तर की शोभा ज़रूर बनाता था लेकिन आज उसके सामने 1 अजीब सी उलझन थी.उसने अपने बिज़्नेस के रास्ते मे कभी अपने शौक को आने नही दिया था मगर आज जैसे उसका इम्तिहान लिया जा रहा था कि वो किसे तवज्जो देता है-अपने बिज़्नेस को या अपने शौक को.सोनम यक़ीनन तजुर्बे मे रंभा से कही आगे थी लेकिन उसे चुनने का मतलब रंभा को खोना था.
अपने हाथो को जोड़ अपनी नाक से लगा आँखे बंद कर वो इस परेशानी का हाल सोचने लगा कि उसका इंटरकम बजा,उसने उसे ऑन किया,"सर,समीर सर आ गये हैं.आपने बोला था उनके आने पे आपको बता दू.",अगली सेक्रेटरी के चुने जाने तक 1 टेंपोररी असिस्टेंट उसने रखी थी,ये वही थी.
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क्रमशः.......
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