RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--2
गतान्क से आगे.
"75 लाख..और कोई है जो इस से बड़ी बोली लगाना चाहता है?",उसने उमीद से दाई क़तार मे बैठे शख्स को देखा मगर उसने अपना हाथ नही उठाया,"..75 लाख..1....75 लाख..2..75 लाख....3!",उसने हात्ोड़ा अपने सामने रखे डेस्क पे मारा,"..ये बेहतरीन पैंटिंग 75 लाख रुपयो मे यहा सामने बाई क़तार मे बैठे ग्रे सूट वाले साहब की हुई.",वो शख्स विजयंत का ही 1 आदमी था जो उसके लिए यहा बोली लगा रहा था.उसे सख़्त हिदायत थी कि चाहे जो भी हो उसे ये पैटिंग ख़रीदनी ही है.उसे ताक़ीद की गयी थी कि जो शख्स दाई क़तार मे बैठा था उसका मालिक भी उस पैंटिंग को खरीदने की हर मुमकिन कोशिश करेगा मगर उसे किसी भी कीमत पे कामयाब नही होने देना है.विजयंत के आदमी ने खुशी से भी ज़्यादा चैन की सांस ली & अपने मोबाइल से अपने बॉस की सेक्रेटरी का नंबर मिलाया.बोली यहा तक पहुँचेगी ये किसी को उम्मीद नही थी.उसे समझ नही आ रहा था कि उस पैंटिंग मे ऐसा था क्या जो उसका मालिक उसकी इतनी बड़ी कीमत दे रहा था.
दाई क़तार मे बैठा शख्स थोड़ा मायूस दिख रहा था.नीलामी ख़त्म होते ही वो उठा & फ़ौरन कमरे से बाहर चला गया.बाकी लोग आए तो थे नीलामी मे शरीक होने मगर जब इन दो लोगो ने बोलिया लगानी शुरू की तो वो बस दर्शक ही बन गये थे.उन्हे बड़ा मज़ा आया था ये खेल देख के जिसमे 1 बार फिर विजयंत मेहरा जीत गया था.
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"आआअन्न्न्णनह......!",1 लंबी चीख मार नीशी झाड़ते हुए अपने बॉस के आगोश से छिटक उसके उपर से उतरते हुए करवट बदल लेट गयी & सुबकने लगी.झड़ने की शिद्दत उसका दिल बर्दाश्त नही कर पाया था & जज़्बातो का सैलाब उसकी आँखो से फुट पड़ा था.विजयंत प्यार से उसके बाल सहला रहा था.काफ़ी देर तक वो वैसी ही पड़ी रही.उसकी सिसकियाँ बंद हो गयी थी मगर वो घूम नही रही थी.विजयंत भी उसे घूमने को नही कह रहा था.कुच्छ पल बाद नीशी घूमी & अपने बॉस को देखा.विजयंत को उसकी आँखो मे सुकून & वासना का अजीब संगम दिखा.वो लेटे-2 ही आगे सर्की & अपने बॉस के लंड को थाम लिया.विजयंत अभी दाई करवट से लेटा था.नीशी के लंड पकड़ते ही वो पीठ के बल लेट गया.उसके लंड को हिलाते हुए नीशी उसके सीने को चूमने लगी & चूमते-2 लंड तक पहुँच गयी.उसके बाद कोई 5-7 मिनिट तक विजयंत उसके कोमल मुँह के ज़रिए जन्नत की सैर करता रहा.
नीशी जी भर के लंड से खेलने के बाद 1 बार फिर बिस्तर पे लेट गयी & अपने बॉस को अपने उपर खींचा & उसके बालो मे उंगलिया फिराते हुए सर उठा उसके चेहरे & होंठो को चूमने लगी.कुच्छ देर चूमने के बाद विजयंत ने उसकी टाँगे फैला के लंड को दोबारा उसकी चूत मे घुसाना शुरू किया तो नीशी ने खुद ही अपनी बाई टाँग उठा के उसके दाए कंधे पे रख दी.वो चाहती थी कि लंड जड तक उसकी चूत मे उतरे & जब विजयंत झाडे तो वो उसके गर्म वीर्य को अपनी चूत की आख़िरी गहराई मे अपनी कोख मे महसूस करे.विजयंत ने उसकी दूसरी टांग भी अपने कंधे पे चढ़ाई & उसकी चुदाई शुरू कर दी.
नीशी अब अपने आपे मे नही थी.उसे सिर्फ़ खुद के मज़े की परवाह थी.उसने विजयंत के गले मे बाहे डाल उसे नीचे झुकाया & खुद भी उचक के उसके चेहरे को चूमने लगी.उसकी आहे 1 बार फिर तेज़ हो रही थी.विजयंत अब उसके उपर पूरा झुक गया था & नीशी की चूचियाँ उसकी खुद की जाँघो से दब गयी थी.विजयंत काफ़ी देर तक उसे चूमते हुए चोद्ता रहा.अब उसकी भी मस्ती बहुत बढ़ गयी थी.उसने नीशी की टाँगो को कंधो से सरकाया तो उसने उन्हे उसकी कमर पे बाँध दिया.विजयंत ने अपना मुँह नीशी के भूरे निपल्स से लगाया & उन्हे चूसने लगा.नीशी के बेसबरा हाथ विजयंत की पीठ & गंद पे घूम रहे थे & वो उसकी छातियो को चूस रहा था.उसका हर धक्का नीशी की कोख पे चोट कर रहा था & अब वो मस्ती मे चीखे जा रही थी.विजयंत काफ़ी देर से उसे बिना झाडे चोद रहा था & अब उसका लंड भी झड़ने को बेकरार था.उसने नीशी के सीने से सर उठाया & अपने धक्के & तेज़ कर दिए.उसके नीचे अपने सर को बेचैनी से झटकती उस से चिपटि नीशी भी अपनी मंज़िल के करीब थी.विजयंत ने अपने लंड को उसकी कोख के दरवाज़े पे आख़िरी बार मारा & अपने बदन को उपर की ओर मोडते,चीखती नीशी झाड़ गयी.ठीक उसी वक़्त उसकी हसरत को पूरा करते हुए उसकी कोख को अपने वीर्य से भरता हुआ विजयंत भी झाड़ गया.
"ऊऊवन्न्न्नह......हाआऐययईईईईईईईईईईई..!",वो खूबसूरत लड़की झाड़ रही थी & उसे चोद्ता उसके उपर झुका मर्द भी उसकी चूत मे अपना वीर्या भर रहा था.तभी बिस्तरे के किनारे रखी साइड-टेबल पे रखा 1 मोबाइल बजा.
"हूँ.",उस मर्द ने पहले अपने नीचे पड़ी लड़की को चूमा & फिर वैसे ही उसके उपर पड़े हुए मोबाइल कान से लगाया.
"सर,वो विजयंत मेहरा ने पैंटिंग खरीद ली."
"वेरी गुड.कितने मे?",लड़की के चेहरे पे 1 अजीब भाव था.झड़ने का सुकून & उसके बाद की चमक उसके चेहरे पे सॉफ दिख रही थी मगर साथ ही वो थोड़ी खफा भी लग रही थी & अपना चेहरा बाई तरफ घुमा रखा था & मर्द को नही देख रही थी जो अभी भी उसके गाल को चूम रहा था.
"75 लाख मे,सर."
"अरे यार!कम से कम करोड़ तो खर्च करवाते!खैर,चलो.ये भी ठीक है.",उसने फोन किनारे रखा & उस लड़की का चेहरा अपनी ओर घुमा उसके होंठ चूमने चाहे मगर उस लड़की ने झल्ला के उसे परे धकेला & उसे खुद के उपर से हटाते हुए बिस्तर से उतर बाथरूम मे चली गयी.मर्द हंसा & बिस्तर से उतर कमरे की खिड़की पे आ गया & वाहा का परदा हटा के बाहर देखने लगा.
"तुम समझते हो तुम जीत गये,मेहरा!",वो दूर सामने दिखाई देते होटेल वाय्लेट की इमारत को देख मन ही मन हंसा,"..कितने ग़लत हो तुम!मैने तुम्हे जीतने दिया है,मेहरा.जीता तो मैं ही हू!",ये शख्स था ब्रिज कोठारी,कोठारी ग्रूप का मालिक.मेहरा के ट्रस्ट ग्रूप की तरह ये भी इनफ्रास्ट्रक्चर के धंधे मे था & फिर ट्रस्ट के पीछे-2 ये भी होटेल के बिज़्नेस मे आया था.पिच्छले 10 सालो मे इनके धंधे से जुड़ा जब भी कोई ठेका या टेंडर निकलता तो ज़्यादातर मुक़ाबला इन्ही दोनो के बीच होता.नतीजा ये था कि दोनो मे 1 दुश्मनी पैदा हो गयी थी.दोनो को अपनी तरक्की से ज़्यादा सामने वाले के गिरने की ज़्यादा फ़िक्र रहती थी.
ब्रिज कोठारी & विजयंत मेहरा मे काई चीज़े 1 जैसी थी.जैसे की बिज़्नेस करने का हुनर & हार ना मानने की ख़ासियत.दोनो की उम्र भी बराबर थी & कद भी.दोनो ही अपनी असल उम्र से कम के दिखते थे.ब्रिज भी 1 फौलादी जिस्म वाला शख्स था & मेहरा की तरह ही चुदाई का शौकीन भी मगर जहा विजयंत 1 गोरा & हॅंडसम शख्स था वही ब्रिज 1 साधारण शक्लोसुरत वाला सांवला इंसान था.
दोनो की ये दुश्मनी अब डेवाले मे मशहूर थी & जब भी इन दोनो की टक्कर होती सभी दम साधे ये देखते की कौन जीतता है.ट्रस्ट ग्रूप कोठारी ग्रूप से बड़ा था & लाख कोशिशो के बावजूद ब्रिज विजयंत को उतनी बार नही हरा पाया था जितना की वो चाहता था लेकिन अब शायद ये बदलने वाला था.
ब्रिज खिड़की पे खड़ा इसी बारे मे सोच रहा था..उसका प्लान कामयाब होगा या नही?..तभी दरवाज़ा खुला & वो लड़की बाहर आई.उसके चेहरे की नाराज़गी बरकरार थी.वो सीधा बिस्तर के पास फर्श पे पड़े अपने कपड़ो को उठाने लगी.
"अरे सोनम,इतनी जल्दी क्या है?",ब्रिज भले ही 53 साल का था मगर अभी भी किस जवान की तरफ फुर्तीला था.वो पलक झपकते ही लड़की के करीब पहुँचा & उसे बाहो मे भर लिया,"मेहरा ने पैंटिंग खरीद ली,मैने उसके 75 लाख पानी मे डूबा दिए!",वो हंसा,"..वो सोच रहा था कि मुझे भी वो पैंटिंग चाहिए.बस,लगवाता रहा बोलियाँ & मेरा आदमी तो बस यू ही बोलिया लगा रहा था.उसका तो मक़सद ही यही था कि मेहरा का आदमी बड़ी से बड़ी बोली लगाए & उसके पैसे बर्बाद हों!",लड़की ने उसकी बात पे कोई ध्यान नही दिया & उसकी बाहो से निकलने की कोशिश करने लगी.
"आख़िर बात क्या है,सोनम?",ब्रिज ने उस लड़की का चेहरा अपनी ओर घुमाया.लड़की की उम्र 26 बरस की थी,रंग सांवला था & जिस्म बिल्कुल कसा हुआ था.लड़की ने कुच्छ जवाब नही दिया मगर काफ़ी देर से रोकी रुलाई अब वो और ना रोक सकी.
"अरे..रो क्यू रही हो?..क्या बात है?"
"कुच्छ नही!",उसने उसे परे धकेला.
"अरे बताओ तो..ऐसा क्या हो गया?"
"आप बस मुझे इस्तेमाल कर रहे हैं..",वो अब फूट-2 के रो रही थी,"..मैं बस 1` खिलोना हू आपके लिए..रखैल बनाके रखा है आपने मुझे!",ब्रिज शांत खड़ा सुन रहा था.लड़की कुच्छ देर तक अपनी भादास निकालती रही.
"हो गया?",ब्रिज ने उसके चुप होने पे उसके कंधो पे हाथ रखा & उसे बिस्तर पे बिठा दिया,"..तुम्हे याद है आज से 3 महीने पहले जब मैने तुम्हारा इंटरव्यू लिया था तब मैने तुमसे क्या कहा था?"
"हां,यही की मुझे आप 1 बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपना चाहते हैं..मुझे क्या पता था कि वो ज़िम्मेदारी ये है!"
"नही..",ब्रिज हंसा,"..सोनम,तुम मुझे बहुत हसीन लगी & मैने तय कर लिया था कि मुझे तुम्हारे हुस्न को करीब से देखना ही है लेकिन इसका ये मतलब नही कि मुझे तुम्हारी बाकी खूबिया नही दिखी.",वो उसके बाई तरफ बैठा था,उसने अपनी दाई बाँह उसकी पीठ पे डाली थी & बाए मे उसका दाया हाथ थामे था.
"मैं हर रोज़ तुमसे मिलता हू,बातें करता हू..& तुम्हे कुच्छ बातें बताता भी हू."
"हां..",सोनम अब ये समझने की कोशिश कर रही थी कि ब्रिज कहना क्या चाह रहा था,"..आप विजयंत मेहरा के बारे मे बातें करते रहते हैं लेकिन वो तो कोई ऐसी बात नही."
"क्यू?..क्यूकी वो मेरा दुश्मन है & मैं दीवाना हू इस दुश्मनी को लेके?..सोनम,सारा शहर यही समझता है कि हम दोनो दुश्मनी मे पागल हैं लेकिन उन बेवकूफो को ये नही पता कि हम दोनो उन सब से ज़्यादा समझदार हैं.हम लड़ते हैं मगर दिमाग़ से & चाहे कुच्छ हो जाए इस दुश्मनी की आग मे खुद को आग नही लगाएँगे..हां दूसरे को जलाने की पूरी कोशिश करेंगे..आगे उपरवाले की मर्ज़ी!"
"..तुम जब मेरे दफ़्तर मे आई थी तो मैने समझ लिया था कि तुम बहुत होशियार हो & मेरा 1 खास काम कर सकती हो."
"कैसा काम?"
"तुम विजयंत की सेक्रेटरी बनोगी."
"क्या?!",सोनम की आँखे हैरत से फॅट गयी,"..आपका मतलब है कि मैं उसके यहा नौकरी करूँगी & वाहा की सारी बातें आपको बताउन्गि?"
"हां & बदले मे तुम्हे मैं अपने यहा वो पोज़िशन & पैसे दूँगा जिसकी तुम हक़दार हो.",ब्रिज ने उसका हाथ अपने लंड पे रखा & उसके कान मे जो रकम बोली वो सुन सोनम की आँखे अब तो बिल्कुल फॅट गयी.
"मगर ये बहुत मुश्किल है..कही पकड़ी गयी तो?",ब्रिज ने उसे अपने करीब खींचा तो बाहो से भिंचे जाने की वजह से उसकी छातियाँ & उभर गयी.सोनम ने उसके लंड को हिलाना शुरू किया.पिच्छले 3 महीनो मे उसे ये ज़रूर लगा था कि ब्रिज उसके जिस्म से खेल रहा था लेकिन उसे भी कम मज़ा नही आया था.वो उस जैसे मर्द से पहले कभी नही मिली थी.शुरू मे उसे लगा था की कोठारी की उम्र चुदाई मे रुकावट बनेगी मगर कितना ग़लत थी वो.ब्रिज मे किसी नौजवान से ज़्यादा जोश & माद्दा था.हर बार वो उसे पूरी तरह थका देता था & भरपूर मज़ा देता था....& उसका लंड..ओफफफफ्फ़..उसके लंड ने तो उसे पागल ही कर दिया था!..उसके हाथ मे 1 बार फिर वो अपनी 9 इंच की पूरी लंबाई तक पहुँच गया था.
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क्रमशः.......
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