College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
11-26-2017, 02:04 PM,
#96
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --54

बस ने मोहन नगर टी-जंक्षन से दायें मुड़कर गाज़ियाबाद ट्रॅफिक लाइट की और हाइवे नंबर. 24 की और बायें टर्न लिया....

" मानसी.. तू मनु को अपने पास बुला ले ना.. मैं पिछे चली जाती हूँ..!" जल भुन कर रख हो गयी वाणी ने अपने साथ बैठी मानसी से कहा...

" क्यूँ क्या हुआ..?" मानसी को वाणी की बात अटपटी सी लगी.. उसने पीछे मुड़कर मनु को देखा.. वाणी की नज़रों की भाषा समझ कर मनु की हालत ऐसी हो गयी थी जैसे बिना जहर वाले साँप को किसी ने बिल में घुसते देख उसकी पूंच्छ से पकड़ लिया हो.. शकल तो उसकी शरीफ पहले ही थी..

" क्यूँ कह रही है तू ऐसा.. क्या हुआ.. बताओ ना..?" मानसी ने फिर से वाणी पर नज़रें जमाकर कहा...

" कुच्छ नही.. बस तू उसको यहाँ बुला ले.. अगर मेरी बात माननी है तो.." कहकर वाणी उठकर पिच्छली सीट पर चली गयी.. वहाँ दिव्या अकेली बैठी हुई थी...

कुच्छ देर सोचने के बाद मानसी ने मनु को आवाज़ दी," भैया.. इधर आना.."

" ले मैं कह रहा था ना सा.. तू मेरी बॅंड बजवाएगा.. बाजवा दी ना.." बड़बड़ाता हुआ मनु वहाँ से उठकर अँगारे बरसाती हुई वाणी से महज एक सेकेंड के लिए नज़रे मिलाता हुआ मानसी के पास जा बैठा..," क्या हुआ मानी?"

" कुच्छ नही.. आप यहीं बैठे रहो.. बस!" मानसी ने धीरे से मनु से कहा..

" आख़िर कुच्छ हुआ भी होगा? मैं वहाँ ठीक तो बैठा था.. आराम से.. मैं तो कुच्छ बोल भी नही रहा था किसी से..!" मनु ने ये सफाई मानसी को नही बुल्की उसके पिछे बैठकर उसकी शर्ट खींच रही वाणी को देनी ज़रूरी समझी...

"वाणी खाँसी तो मनु ने पिछे मुड़कर देखा.. वाणी उसकी और आँखें निकाले हुए दाँत पीस रही थी.. बेचारा मनु मन मार कर रह गया.. ये टाइम उस'से ज़्यादा खुलकर सफाई देने का था भी तो नही...

" मैं वापस जाउ?" मनु की एक आँख मानसी पर और दूसरी वाणी पर थी..

मानसी ने पिछे मुड़कर वाणी को देखा.....

" मेरी तरफ क्यूँ देख रही हो.. मेरी तरफ से तो चाहे कोई भाड़ में जाए.. मुझे क्या..?" वाणी अब भी उसकी शर्ट को पकड़ कर खींचे हुए थी...

"ठीक है.. मैं यहीं बैठ जाता हूँ.. वैसे भी पीछे नही बैठना चाह रहा मैं..." और बेचारा मनु.....

-------------------------------------------

विकी काफ़ी देर से शमशेर को कुच्छ कहने का सोच रहा था.. पर वासू के पास 3 घंटे से ज़्यादा बैठने के बाद उसको ऐसा लग रहा था जैसे किसी आश्रम में बैठा हो... उसके प्रवचन सुन सुन कर उसके कान पक गये थे... आख़िरकार उस'से रहा ना गया..," शमशेर भाई.. एक मिनिट पिछे आओगे..!"

" हां.. बता ना.. क्या बात है? यहीं बोल दे...!" शमशेर ने पिछे घूमते हुए कहा...

" नही यार.. एक बार पिछे आ जा...!"

"चल!" शमशेर खड़ा हो गया और दोनो जाकर बस की पिच्छली सीटो पर बैठ गये..," क्या बात है..?"

" बात क्या है यार.. तुमने सुना नही क्या?" ये कैसे कैसे अध्यापक.. ओह माइ गॉड! मैं भी उसकी भाषा बोलने लग गया.. ये कैसे टीचर को साथ ले आया तू भी.. लगता है जैसे मौज मस्ती के लिए नही.. तीर्थ यात्रा पर जा रहे हों... सारे.. तीर्थ.. सारे श्लोक.. सारे मन्त्र.. मुझे सुना दिए इसने.. कुच्छ कुच्छ तो मुझे याद हो भी गया.. सुनाऊं.. ओम विश्वाणी देव: सवीतूर, दुरीतानी परा शुव: यद भद्रम आसुव:...."

" यार ये क्या पागलपन है.. मुझे क्यूँ सुना रहा है ये सब.. बात क्या है.. वो बता ना..." शमशेर ने हंसते हुए कहा..

" देख ले.. तुझसे एक छन भी नही सुना गया.. तू सोच.. मैने पूरे हवन के मन्त्र कैसे झेले होंगे यार.. कैसे झेला होगा इस.. इसको 3 घंटे से ज़्यादा..." विकी ने बेचारा सा मुँह बनाते हुए कहा," अच्च्छा भला.. स्नेहा के पास बैठ रहा था.. वहाँ से भी मना कर दिया.." विकी रो तो नही रहा था.. पर हालत उस'से भी कहीं ज़्यादा गयी गुज़री थी.....

" तो क्या करना है.. स्नेहा के साथ बैठना है अभी...!" शमशेर ने मतलब की बात पर आते हुए कहा...

" नही भाई... अब.. स्नेहा के पास बैठने से भी क्या होगा.. इस कम्बख़त ने तो बातों ही बातों में मेरी इज़्ज़त सी लूट ली है.. मुझे कुच्छ भी याद नही.. सिवाय उसके प्रवचनो के..!" विकी का बुरा हाल था...

" हा हा हा हा.. नही यार.. वो मस्त आदमी है.. बस बातें कुच्छ ज़्यादा करता है.. तू बता.. क्या चाहिए तुझे अब..?" शमशेर हँसना तो और भी चाहता था.. पर विकी की रोनी सूरत देख कर उसको रहम आ गया...

" दारू! दारू चाहिए भाई.. अभी के अभी.. वरना मैं पागल हो जाउन्गा..!"

" यहाँ तो ठीक नही है विकी.. समझा कर...!" शमशेर ने उसको समझाने की कोशिश की..

" तो ऐसा करो.. मुझे यहीं उतार दो.. मैं वापस चला जवँगा.. ये उपकार तो कर ही सकते हो.. मेरे भाई.." विकी की शकल सच में ही देखने लायक थी...

" चल.. मैं देखता हूँ.. थोड़ा आगे चलकर खाना खाएँगे.. तब देखते हैं.. ओके?"

"कितनी दूर और चलना पड़ेगा...?" विकी के चेहरे पर हल्की सी रौनक लौट आई..

" यहाँ से बाबुगारह करीब 15 काइलामीटर और है.. वहाँ से 50 काइलामीटर है गजरौला.. वहाँ पर खाएँगे......" शमशेर ने उसको थपकी देते हुए कहा...

"ठीक है भाई.. पर मैं वापस उसके पास नही जाउन्गा.. यहीं बैठा रहूँगा तब तक...." विकी ने मुरझाए हुए चेहरे से कहा..

" तू चल ना यार.. आ.. मैं स्नेहा को तेरे साथ बैठवाने का जुगाड़ करता हूँ.. दिशा से कहकर.... आजा!"

"आ रिया! देख ना, राज स्लीवलेशस टी-शर्ट में कितना क्यूट लग रहा है!" प्रिया ने नज़रें घूमाकर एक बार फिर से राज पर निगाह डाली...

" और वीरू? वो जाग रहा है क्या?" रिया ने पिछे नही देखा.. बस उसी से पूच्छ लिया..

"हूंम्म.. मुझसे क्यूँ पूच्छ रही है.. तुझे आँखें नही दी क्या भगवान ने?" प्रिया ने चटखारे लेते हुए कहा...

" मुझे नही देखना उसको! मचकर्चॅड!" रिया ने कहते हुए अपनी आँखें बंद कर ली.. कहीं आँखों से उसके दिल की बात ना पता चल जाए..

" उम्म? क्या बोला तूने? मचकर्चॅड? हा हा हा!" प्रिया पिछे मुड़कर वीरू के चेहरे पर उग्ग रही हुल्की मूँछहों पर गौर करते हुए हंस पड़ी.. वीरू ने एक पल को उस'से नज़रें मिलाई और फिर अपना चेहरा दूसरी और कर लिया..

" और क्या? जब ये मुझसे बात नही करता तो दिल करता है अपने नाखूनओ से इसकी मून्छे उखाड़ डालूं.. पता नही क्या समझता है अपने आपको.. तूने भी तो प्रोमिस किया था ना.. मेरे लिए बात करेगी.. अब तो भूल गयी होगी तू.. तेरा काम तो बन ही गया है..." रिया ने मुँह फुलाते हुए कहा..

" नही यार.. ऐसी बात नही है... तेरी तरह मुझे भी उस'से बात करते हुए डर लगता है.. पर मैं राज को बोलकर देखूँगी.. मौका मिलने दे..!" प्रिया ने रिया को शंतवना दी..

" देख ले.. तेरी मर्ज़ी है.. वरना मैने तो ऐसा प्लान सोच रखा है कि बस.. बाद में मुझे मत कहना ये क्या कर दिया...!" रिया ने भी उसको अलटिमेटम दे डाला..

" क्या? ऐसा क्या करेगी तू?" प्रिया ने संभावित आसचर्या में पहले ही अपना मुँह खोल लिया...

" वो तो बस तभी पता चलेगा.. अगर तूने उसके मुझसे ढंग से बात करने के लिए राज़ी नही किया तो.. अब तू देख ले..." रिया ने राज को राज ही रखा..

" देख रिया.. कुच्छ उल्टा सीधा करने की मत सोचना.. मैं कह रही हूँ ना.. मैं बात करूँगी..... आ.. वो देख.. स्नेहा विकी वाली सीट पर चली गयी.. हाए.. काश! मैं भी राज के साथ बैठ सकती..." प्रिया ने बोलते बोलते अचानक रिया का ध्यान आगे की और खींचा..

" और देख.. वो 'सर' उस लड़की के साथ बैठ गये.. उनका भी कुच्छ चक्कर है क्या?" रिया ने वासू की और इशारा किया...

" धात! पागल.. अब स्नेहा उसकी सीट पर जाएगी तो वो क्या वहीं बैठे रहेंगे.. इसीलिए नीरू के पास जाकर बैठ गये होंगे.. 'वो' तो 'सर' हैं उसके!" प्रिया ने रिया के मन का 'मैल' निकालने की कोशिश की...

" बेशक सर हों.. पर तू चाहे शर्त लगा ले.. कुच्छ ना कुच्छ बात ज़रूर है.. अभी देखा नही तूने.. दोनो एक दूसरे से नज़रें मिलकर कैसे खिल उठे थे.. हां.. कुच्छ ना कुच्छ चक्कर ज़रूर मिलगे इनका भी!" रिया अपनी बात पर अड़ गयी..

"चल ना.. तू तो पागल है.. अब चुप कर ये बातें.. कोई सुन लेगा!" कहते हुए प्रिया ने एक बार और राज को और वीरू की 'मूँछहों' को देखा और सीधी बैठ गयी...

--------------------------------

"तुम ठीक तो हो ना.. नीरू! उल्टियाँ वग़ैरह तो नही आने वाली हैं ना...!" अपने वासू ने क्या टॉपिक ढूँढा था.. बात शुरू करने के लिए.. वा!

नीरू ने गर्दन नीचे करके अपना सिर 'ना' में हिला दिया.. वासू की जांघें उसकी जांघों के साथ सटा'ते ही उसके बदन में वासनात्मक सुगबुगाहट सी शुरू हो गयी थी... इस 'मस्ती' को और बढ़ाने के लिए उसने अपनी जांघें थोड़ी सी खोल कर वासू से और ज़्यादा चिपका दी...

" श.. क्षमा करना! मैने जान-बूझ कर ऐसा नही किया.." कहते हुए वासू ने सरकते हुए अपने को नीरू से थोड़ा अलग कर लिया.. उस लल्लू को ये लगा की नीरू का भरी बस में उसके साथ साथ कर बैठना अच्च्छा नही लगा होगा...

बेचारी नीरू क्या बोलती! खून का घूँट पीकर रह गयी.. अब ऐसे 'दिलजले' से यारी की है तो भुगतना तो पड़ेगा ही..

-----------------------------------------

"थॅंक्स विकी!" स्नेहा ने चुपके से विकी के कान में कहते हुए अपना सिर उसके कंधे पर टीका दिया...

विकी ने अपना हाथ स्नेहा की गर्दन के पिछे से ले जाते हुए दूसरी तरफ उसके कंधे पर रख लिया..

" तुम मुझसे अभी भी प्यार करती हो ना.. सानू!" विकी ने हौले से ये बात स्नेहा के कान में कहकर उसको अंदर तक गुदगुदा दिया..

" पता नही.." कहकर स्नेहा ने उसको कोहनी मारी..

" बता ना.. मैं सीरियस्ली पूच्छ रहा हूँ.." विकी ने फिर से उसके कान में कहा..

" सीरियस्ली?" स्नेहा ने सवाल किया..

" हां.. यार सीरियस्ली.."

स्नेहा ने अपना चेहरा थोड़ा सा उपर उठाया और उसके कान के पास अपने होंठ ले गयी..," मेरा 'प्यार' करने का बहुत दिल कर रहा है.. मैं मरी जा रही हूँ.. तुम्हारी बाहों में आने के लिए.. कब पहुँचेंगे नैनीताल?"

विकी को जवाब मिल गया.. वा और उसका दिल, दोनो झूम उठे..," थॅंक्स सानू! मैं भी तुम्हारे लिए अब उतना ही तड़प रहा हून.." कहते हुए विकी ने स्नेहा के कंधे को दबाकर अपने से सटा लिया..

" मैं.. तुम्हारी गोद में सिर रख लूँ..?" स्नेहा ने अपनी गरम साँसें विकी के कानो के पास छ्चोड़ी तो विकी का 'सब कुच्छ' अकड़ गया..

" यहाँ? अभी? सबके सामने? सबको अजीब नही लगेगा क्या?"

" लगने दो.. यहाँ मुझे कौन जानता है.. और जो जानते हैं.. उनका पता ही है कि मैं तुम्हारी ही हूँ.. क्या फ़र्क़ पड़ता है..?" स्नेहा उसके थोड़ा और करीब आकर बोली..

" ठीक है.. आ जाओ.. मुझे भी कोई प्राब्लम नही है..?" विकी ने उस'से थोड़ा दूर हटकर स्नेहा के उसकी गोद में सिर रखने का रास्ता सॉफ कर दिया..

स्नेहा ने एक पल को झिझकते हुए अपने बायें देखा और फिर आँखें बंद करके विकी की गोद में सिर टीका दिया...

पर उनको देखने की फ़ुर्सत किसके पास थी.. सब या तो 'अपने अपनों' पर नज़र रखे हुए थे या फिर सो चुके थे... सिवाय आरज़ू को छ्चोड़कर.. उसका कोई ऐसा 'अपना' तो बस में था नही.. और नींद उसकी उड़ा ही दी थी.. अमित ने.. 'बंदर और कुतिया' वाली बात कहकर.. जाने अंजाने.. काफ़ी देर तक उसका ध्यान इसी बात पर टीका रहा.. और जब उस बात से ध्यान हटा तो 'विकी' पर आकर टिक गया...

विकी और स्नेहा की चुहलबाज़ियाँ उसके तन-मन में गुदगुदी सी पैदा कर रही थी.. और जैसे ही स्नेहा झुक कर विकी की गोद में लेटी.. 'कल्पना शक्ति' की डोर उसको विकी की जांघों के बीच ले गयी..और अनायास ही उसकी जांघें कसकर एक दूसरी से सॅट गयी.. जाने कैसा अहसास था.. पर जो भी था.. आरज़ू के चेहरे पर बड़े ही कामुक भाव उजागर हो गये.. 'इस्स्श्ह्ह'

" ये क्या है? तुम तो अभी से तैयार हो?" स्नेहा ने जैसे ही विकी की गोद में सिर रखा.. एक 'जानी-पहचानी 'चीज़' उसके गालों से आकर सॅट गयी.. वो कहते हुए शरारत से मुस्कुरा पड़ी..

विकी कुच्छ नही बोला.. बस मुस्कुराया और उसके चेहरे पर प्यार से हाथ फेरने लगा...

" मुझे नही पता.. मुझे सिर रखने में दिक्कत हो रही है.. इसको ठीक करो पहले.." स्नेहा ने शरारती तरीके से अपने गाल और उस 'चीज़' के बीच अपना हाथ रखते हुए धीरे से कहा.. हाथ का स्पर्श जीन के उपर से पाते ही 'वो' और भी अकड़ गया.. और भी सीधा हो गया.. और भी लंबा..

" देखो.. मैं पहले ही बोल रही हूँ... वरना...!" स्नेहा ने जैसे कुच्छ ठान ही लिया था..

"मैं क्या करूँ.. अयाया" बोलते बोलते विकी की सिसकी निकल गयी.. स्नेहा ने अपने दाँतों से जीन का वो उभरा हुआ भाग काट खाया था..

विकी की सिसकी सुनकर स्नेहा की हँसी छ्छूट गयी.. वो कहते हैं ना.. 'चोरी चोरी प्यार में है जो मज़ा!'

गर्ल'स स्कूल--55

बस ने मोहन नगर टी-जंक्षन से दायें मुड़कर गाज़ियाबाद ट्रॅफिक लाइट की और हाइवे नंबर. 24 की और बायें टर्न लिया....

" मानसी.. तू मनु को अपने पास बुला ले ना.. मैं पिछे चली जाती हूँ..!" जल भुन कर रख हो गयी वाणी ने अपने साथ बैठी मानसी से कहा...

" क्यूँ क्या हुआ..?" मानसी को वाणी की बात अटपटी सी लगी.. उसने पीछे मुड़कर मनु को देखा.. वाणी की नज़रों की भाषा समझ कर मनु की हालत ऐसी हो गयी थी जैसे बिना जहर वाले साँप को किसी ने बिल में घुसते देख उसकी पूंच्छ से पकड़ लिया हो.. शकल तो उसकी शरीफ पहले ही थी..

" क्यूँ कह रही है तू ऐसा.. क्या हुआ.. बताओ ना..?" मानसी ने फिर से वाणी पर नज़रें जमाकर कहा...

" कुच्छ नही.. बस तू उसको यहाँ बुला ले.. अगर मेरी बात माननी है तो.." कहकर वाणी उठकर पिच्छली सीट पर चली गयी.. वहाँ दिव्या अकेली बैठी हुई थी...

कुच्छ देर सोचने के बाद मानसी ने मनु को आवाज़ दी," भैया.. इधर आना.."

" ले मैं कह रहा था ना सा.. तू मेरी बॅंड बजवाएगा.. बाजवा दी ना.." बड़बड़ाता हुआ मनु वहाँ से उठकर अँगारे बरसाती हुई वाणी से महज एक सेकेंड के लिए नज़रे मिलाता हुआ मानसी के पास जा बैठा..," क्या हुआ मानी?"

" कुच्छ नही.. आप यहीं बैठे रहो.. बस!" मानसी ने धीरे से मनु से कहा..

" आख़िर कुच्छ हुआ भी होगा? मैं वहाँ ठीक तो बैठा था.. आराम से.. मैं तो कुच्छ बोल भी नही रहा था किसी से..!" मनु ने ये सफाई मानसी को नही बुल्की उसके पिछे बैठकर उसकी शर्ट खींच रही वाणी को देनी ज़रूरी समझी...

"वाणी खाँसी तो मनु ने पिछे मुड़कर देखा.. वाणी उसकी और आँखें निकाले हुए दाँत पीस रही थी.. बेचारा मनु मन मार कर रह गया.. ये टाइम उस'से ज़्यादा खुलकर सफाई देने का था भी तो नही...

" मैं वापस जाउ?" मनु की एक आँख मानसी पर और दूसरी वाणी पर थी..

मानसी ने पिछे मुड़कर वाणी को देखा.....

" मेरी तरफ क्यूँ देख रही हो.. मेरी तरफ से तो चाहे कोई भाड़ में जाए.. मुझे क्या..?" वाणी अब भी उसकी शर्ट को पकड़ कर खींचे हुए थी...

"ठीक है.. मैं यहीं बैठ जाता हूँ.. वैसे भी पीछे नही बैठना चाह रहा मैं..." और बेचारा मनु.....

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विकी काफ़ी देर से शमशेर को कुच्छ कहने का सोच रहा था.. पर वासू के पास 3 घंटे से ज़्यादा बैठने के बाद उसको ऐसा लग रहा था जैसे किसी आश्रम में बैठा हो... उसके प्रवचन सुन सुन कर उसके कान पक गये थे... आख़िरकार उस'से रहा ना गया..," शमशेर भाई.. एक मिनिट पिछे आओगे..!"

" हां.. बता ना.. क्या बात है? यहीं बोल दे...!" शमशेर ने पिछे घूमते हुए कहा...

" नही यार.. एक बार पिछे आ जा...!"

"चल!" शमशेर खड़ा हो गया और दोनो जाकर बस की पिच्छली सीटो पर बैठ गये..," क्या बात है..?"

" बात क्या है यार.. तुमने सुना नही क्या?" ये कैसे कैसे अध्यापक.. ओह माइ गॉड! मैं भी उसकी भाषा बोलने लग गया.. ये कैसे टीचर को साथ ले आया तू भी.. लगता है जैसे मौज मस्ती के लिए नही.. तीर्थ यात्रा पर जा रहे हों... सारे.. तीर्थ.. सारे श्लोक.. सारे मन्त्र.. मुझे सुना दिए इसने.. कुच्छ कुच्छ तो मुझे याद हो भी गया.. सुनाऊं.. ओम विश्वाणी देव: सवीतूर, दुरीतानी परा शुव: यद भद्रम आसुव:...."

" यार ये क्या पागलपन है.. मुझे क्यूँ सुना रहा है ये सब.. बात क्या है.. वो बता ना..." शमशेर ने हंसते हुए कहा..

" देख ले.. तुझसे एक छन भी नही सुना गया.. तू सोच.. मैने पूरे हवन के मन्त्र कैसे झेले होंगे यार.. कैसे झेला होगा इस.. इसको 3 घंटे से ज़्यादा..." विकी ने बेचारा सा मुँह बनाते हुए कहा," अच्च्छा भला.. स्नेहा के पास बैठ रहा था.. वहाँ से भी मना कर दिया.." विकी रो तो नही रहा था.. पर हालत उस'से भी कहीं ज़्यादा गयी गुज़री थी.....

" तो क्या करना है.. स्नेहा के साथ बैठना है अभी...!" शमशेर ने मतलब की बात पर आते हुए कहा...

" नही भाई... अब.. स्नेहा के पास बैठने से भी क्या होगा.. इस कम्बख़त ने तो बातों ही बातों में मेरी इज़्ज़त सी लूट ली है.. मुझे कुच्छ भी याद नही.. सिवाय उसके प्रवचनो के..!" विकी का बुरा हाल था...

" हा हा हा हा.. नही यार.. वो मस्त आदमी है.. बस बातें कुच्छ ज़्यादा करता है.. तू बता.. क्या चाहिए तुझे अब..?" शमशेर हँसना तो और भी चाहता था.. पर विकी की रोनी सूरत देख कर उसको रहम आ गया...

" दारू! दारू चाहिए भाई.. अभी के अभी.. वरना मैं पागल हो जाउन्गा..!"

" यहाँ तो ठीक नही है विकी.. समझा कर...!" शमशेर ने उसको समझाने की कोशिश की..

" तो ऐसा करो.. मुझे यहीं उतार दो.. मैं वापस चला जवँगा.. ये उपकार तो कर ही सकते हो.. मेरे भाई.." विकी की शकल सच में ही देखने लायक थी...

" चल.. मैं देखता हूँ.. थोड़ा आगे चलकर खाना खाएँगे.. तब देखते हैं.. ओके?"

"कितनी दूर और चलना पड़ेगा...?" विकी के चेहरे पर हल्की सी रौनक लौट आई..

" यहाँ से बाबुगारह करीब 15 काइलामीटर और है.. वहाँ से 50 काइलामीटर है गजरौला.. वहाँ पर खाएँगे......" शमशेर ने उसको थपकी देते हुए कहा...

"ठीक है भाई.. पर मैं वापस उसके पास नही जाउन्गा.. यहीं बैठा रहूँगा तब तक...." विकी ने मुरझाए हुए चेहरे से कहा..

" तू चल ना यार.. आ.. मैं स्नेहा को तेरे साथ बैठवाने का जुगाड़ करता हूँ.. दिशा से कहकर.... आजा!"

"आ रिया! देख ना, राज स्लीवलेशस टी-शर्ट में कितना क्यूट लग रहा है!" प्रिया ने नज़रें घूमाकर एक बार फिर से राज पर निगाह डाली...

" और वीरू? वो जाग रहा है क्या?" रिया ने पिछे नही देखा.. बस उसी से पूच्छ लिया..

"हूंम्म.. मुझसे क्यूँ पूच्छ रही है.. तुझे आँखें नही दी क्या भगवान ने?" प्रिया ने चटखारे लेते हुए कहा...

" मुझे नही देखना उसको! मचकर्चॅड!" रिया ने कहते हुए अपनी आँखें बंद कर ली.. कहीं आँखों से उसके दिल की बात ना पता चल जाए..

" उम्म? क्या बोला तूने? मचकर्चॅड? हा हा हा!" प्रिया पिछे मुड़कर वीरू के चेहरे पर उग्ग रही हुल्की मूँछहों पर गौर करते हुए हंस पड़ी.. वीरू ने एक पल को उस'से नज़रें मिलाई और फिर अपना चेहरा दूसरी और कर लिया..

" और क्या? जब ये मुझसे बात नही करता तो दिल करता है अपने नाखूनओ से इसकी मून्छे उखाड़ डालूं.. पता नही क्या समझता है अपने आपको.. तूने भी तो प्रोमिस किया था ना.. मेरे लिए बात करेगी.. अब तो भूल गयी होगी तू.. तेरा काम तो बन ही गया है..." रिया ने मुँह फुलाते हुए कहा..

" नही यार.. ऐसी बात नही है... तेरी तरह मुझे भी उस'से बात करते हुए डर लगता है.. पर मैं राज को बोलकर देखूँगी.. मौका मिलने दे..!" प्रिया ने रिया को शंतवना दी..

" देख ले.. तेरी मर्ज़ी है.. वरना मैने तो ऐसा प्लान सोच रखा है कि बस.. बाद में मुझे मत कहना ये क्या कर दिया...!" रिया ने भी उसको अलटिमेटम दे डाला..

" क्या? ऐसा क्या करेगी तू?" प्रिया ने संभावित आसचर्या में पहले ही अपना मुँह खोल लिया...

" वो तो बस तभी पता चलेगा.. अगर तूने उसके मुझसे ढंग से बात करने के लिए राज़ी नही किया तो.. अब तू देख ले..." रिया ने राज को राज ही रखा..

" देख रिया.. कुच्छ उल्टा सीधा करने की मत सोचना.. मैं कह रही हूँ ना.. मैं बात करूँगी..... आ.. वो देख.. स्नेहा विकी वाली सीट पर चली गयी.. हाए.. काश! मैं भी राज के साथ बैठ सकती..." प्रिया ने बोलते बोलते अचानक रिया का ध्यान आगे की और खींचा..

" और देख.. वो 'सर' उस लड़की के साथ बैठ गये.. उनका भी कुच्छ चक्कर है क्या?" रिया ने वासू की और इशारा किया...

" धात! पागल.. अब स्नेहा उसकी सीट पर जाएगी तो वो क्या वहीं बैठे रहेंगे.. इसीलिए नीरू के पास जाकर बैठ गये होंगे.. 'वो' तो 'सर' हैं उसके!" प्रिया ने रिया के मन का 'मैल' निकालने की कोशिश की...

" बेशक सर हों.. पर तू चाहे शर्त लगा ले.. कुच्छ ना कुच्छ बात ज़रूर है.. अभी देखा नही तूने.. दोनो एक दूसरे से नज़रें मिलकर कैसे खिल उठे थे.. हां.. कुच्छ ना कुच्छ चक्कर ज़रूर मिलगे इनका भी!" रिया अपनी बात पर अड़ गयी..

"चल ना.. तू तो पागल है.. अब चुप कर ये बातें.. कोई सुन लेगा!" कहते हुए प्रिया ने एक बार और राज को और वीरू की 'मूँछहों' को देखा और सीधी बैठ गयी...

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"तुम ठीक तो हो ना.. नीरू! उल्टियाँ वग़ैरह तो नही आने वाली हैं ना...!" अपने वासू ने क्या टॉपिक ढूँढा था.. बात शुरू करने के लिए.. वा!

नीरू ने गर्दन नीचे करके अपना सिर 'ना' में हिला दिया.. वासू की जांघें उसकी जांघों के साथ सटा'ते ही उसके बदन में वासनात्मक सुगबुगाहट सी शुरू हो गयी थी... इस 'मस्ती' को और बढ़ाने के लिए उसने अपनी जांघें थोड़ी सी खोल कर वासू से और ज़्यादा चिपका दी...

" श.. क्षमा करना! मैने जान-बूझ कर ऐसा नही किया.." कहते हुए वासू ने सरकते हुए अपने को नीरू से थोड़ा अलग कर लिया.. उस लल्लू को ये लगा की नीरू का भरी बस में उसके साथ साथ कर बैठना अच्च्छा नही लगा होगा...

बेचारी नीरू क्या बोलती! खून का घूँट पीकर रह गयी.. अब ऐसे 'दिलजले' से यारी की है तो भुगतना तो पड़ेगा ही..

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"थॅंक्स विकी!" स्नेहा ने चुपके से विकी के कान में कहते हुए अपना सिर उसके कंधे पर टीका दिया...

विकी ने अपना हाथ स्नेहा की गर्दन के पिछे से ले जाते हुए दूसरी तरफ उसके कंधे पर रख लिया..

" तुम मुझसे अभी भी प्यार करती हो ना.. सानू!" विकी ने हौले से ये बात स्नेहा के कान में कहकर उसको अंदर तक गुदगुदा दिया..

" पता नही.." कहकर स्नेहा ने उसको कोहनी मारी..

" बता ना.. मैं सीरियस्ली पूच्छ रहा हूँ.." विकी ने फिर से उसके कान में कहा..

" सीरियस्ली?" स्नेहा ने सवाल किया..

" हां.. यार सीरियस्ली.."

स्नेहा ने अपना चेहरा थोड़ा सा उपर उठाया और उसके कान के पास अपने होंठ ले गयी..," मेरा 'प्यार' करने का बहुत दिल कर रहा है.. मैं मरी जा रही हूँ.. तुम्हारी बाहों में आने के लिए.. कब पहुँचेंगे नैनीताल?"

विकी को जवाब मिल गया.. वा और उसका दिल, दोनो झूम उठे..," थॅंक्स सानू! मैं भी तुम्हारे लिए अब उतना ही तड़प रहा हून.." कहते हुए विकी ने स्नेहा के कंधे को दबाकर अपने से सटा लिया..

" मैं.. तुम्हारी गोद में सिर रख लूँ..?" स्नेहा ने अपनी गरम साँसें विकी के कानो के पास छ्चोड़ी तो विकी का 'सब कुच्छ' अकड़ गया..

" यहाँ? अभी? सबके सामने? सबको अजीब नही लगेगा क्या?"

" लगने दो.. यहाँ मुझे कौन जानता है.. और जो जानते हैं.. उनका पता ही है कि मैं तुम्हारी ही हूँ.. क्या फ़र्क़ पड़ता है..?" स्नेहा उसके थोड़ा और करीब आकर बोली..

" ठीक है.. आ जाओ.. मुझे भी कोई प्राब्लम नही है..?" विकी ने उस'से थोड़ा दूर हटकर स्नेहा के उसकी गोद में सिर रखने का रास्ता सॉफ कर दिया..

स्नेहा ने एक पल को झिझकते हुए अपने बायें देखा और फिर आँखें बंद करके विकी की गोद में सिर टीका दिया...

पर उनको देखने की फ़ुर्सत किसके पास थी.. सब या तो 'अपने अपनों' पर नज़र रखे हुए थे या फिर सो चुके थे... सिवाय आरज़ू को छ्चोड़कर.. उसका कोई ऐसा 'अपना' तो बस में था नही.. और नींद उसकी उड़ा ही दी थी.. अमित ने.. 'बंदर और कुतिया' वाली बात कहकर.. जाने अंजाने.. काफ़ी देर तक उसका ध्यान इसी बात पर टीका रहा.. और जब उस बात से ध्यान हटा तो 'विकी' पर आकर टिक गया...

विकी और स्नेहा की चुहलबाज़ियाँ उसके तन-मन में गुदगुदी सी पैदा कर रही थी.. और जैसे ही स्नेहा झुक कर विकी की गोद में लेटी.. 'कल्पना शक्ति' की डोर उसको विकी की जांघों के बीच ले गयी..और अनायास ही उसकी जांघें कसकर एक दूसरी से सॅट गयी.. जाने कैसा अहसास था.. पर जो भी था.. आरज़ू के चेहरे पर बड़े ही कामुक भाव उजागर हो गये.. 'इस्स्श्ह्ह'

" ये क्या है? तुम तो अभी से तैयार हो?" स्नेहा ने जैसे ही विकी की गोद में सिर रखा.. एक 'जानी-पहचानी 'चीज़' उसके गालों से आकर सॅट गयी.. वो कहते हुए शरारत से मुस्कुरा पड़ी..

विकी कुच्छ नही बोला.. बस मुस्कुराया और उसके चेहरे पर प्यार से हाथ फेरने लगा...

" मुझे नही पता.. मुझे सिर रखने में दिक्कत हो रही है.. इसको ठीक करो पहले.." स्नेहा ने शरारती तरीके से अपने गाल और उस 'चीज़' के बीच अपना हाथ रखते हुए धीरे से कहा.. हाथ का स्पर्श जीन के उपर से पाते ही 'वो' और भी अकड़ गया.. और भी सीधा हो गया.. और भी लंबा..

" देखो.. मैं पहले ही बोल रही हूँ... वरना...!" स्नेहा ने जैसे कुच्छ ठान ही लिया था..

"मैं क्या करूँ.. अयाया" बोलते बोलते विकी की सिसकी निकल गयी.. स्नेहा ने अपने दाँतों से जीन का वो उभरा हुआ भाग काट खाया था..

विकी की सिसकी सुनकर स्नेहा की हँसी छ्छूट गयी.. वो कहते हैं ना.. 'चोरी चोरी प्यार में है जो मज़ा!'
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RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल - by sexstories - 11-26-2017, 02:04 PM

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