College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
11-26-2017, 02:01 PM,
#85
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --45

हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा हाजिर हूँ नेक्स्ट पार्ट लेकर

टफ जैसे ही वापस ऑफीस में आया, मुरारी की हालत देखकर वो अपनी हँसी नही रोक पाया.. वो मुरारी को बैठने को बोलकर गया था.. और मुरारी ठीक उसी जगह जाकर नीचे बैठा हुआ था जिस जगह पर कुच्छ मिनिट पहले वो दो आदमी बैठे थे.. बिल्कुल उसी अंदाज में.. शरीफ आदमियों की तरह... उसके दोनो हाथ घुटनो पर रखे हुए थे..

" यहाँ आ जाओ.. उपर.. कुर्सी पर.." टफ ने अपनी कुर्सी पर जमाते हुए कहा....

मुरारी की जान में जान आई.. वो तो ये सोच रहा था कि उसके साथ भी अब कुच्छ ऐसा ही होने वाला है.. पर अभी भी उसके दिल को पूरी तसल्ली नही हुई थी..," आप कहो तो मैं तो नीचे भी बैठ जाउन्गा.. इनस्पेक्टर........ साहब! मैं तो ज़मीन से जुड़ा हुआ आदमी हूँ.." मुरारी ने थूक गटका....

"हां.. तुम्हारी ज़मीन कल देख ली थी.. रही सही.. आज रात को देख लेंगे.." टफ ने मुस्कुराते हुए कहा..

"कककक.. क्या मतलब...?" मुरारी सिहर उठा...

"कुच्छ नही.. किसी आदमी का फोन आया था.. कह रहा था..."

मुरारी की आँखें चमक उठी..," देल्ही से आया था क्या फोन????"

"देल्ही वालों को भूल जाओ मुरारी.. दरअसल उनके कहने पर ही आपकी हवा टाइट की गयी है.. पार्टी आपकी वजह से अपनी छवि बदनाम नही करना चाहती.. खैर जिसका भी फोन आया था.. कह रहा था की उसको पता है की इस वक़्त तुम्हारी बेटी कहाँ है..?" टफ ने वहाँ रखे एक गिलास पानी से अपना गला तर किया.. .

"प्लीज़ इनस्पेक्टर साहब.. मुझे उस आदमी से मिलवा देजिये.. मैं भी परेशान हूँ.. अपनी बेटी के लिए... चाहे आप जो भी खर्चा पानी कहें.. मैं देने को तैयार हूँ...

टफ ने उसकी बात को नज़रअंदाज करके अपनी बात जारी रखी...," उसका नाम विकी है.. मैने उसको बुलवाया है.. वो बस आने ही वाला होगा..."

"विकी कौन.. रोहतक वाला.. जो विरोधी पार्टी में वहाँ से टिकेट का दावेदार है..?" मुरारी के दिमाग़ में खलबली मच गयी...

"वो मुझे नही पता.. पर हां.. है वो रोहतक से ही.." टफ ने अंजान बनते हुए कहा..

"वही होगा ज़रूर.. उसकी ही साजिस है ये.. किसी ने मेरी बेटी को उसके साथ देखा भी था.. वारदात वाले दिन.. इनस्पेक्टर साहब.. उसने मेरी बेटी को बहला रखा है.. आप यकीन कीजिए..." मुरारी कुर्सी पर बैठा बैठा हाँफने लगा.. एक ही साँस में वो ये सब बोल गया था....

"मैं तो यकीन कर भी लूँ.. पर कोर्ट तो सबूत माँगेगा.. और तुम्हारी बेटी के बयान तुम्हारे खिलाफ है.. फिर भी चलो.. आने दो.. देखते हैं बात करके..." टफ ने कहा ही था की दरवाजे पर राजेश प्रकट हुआ," जनाब.. कोई विकी आया है.. कह रहा है.. आपसे मिलने का टाइम माँगा है...

"भेज दो उसको अंदर...!" टफ ने कहा... मुरारी का चेहरा तमतमा उठा...

--------------------------------------------------------------

"नमस्कार जनाब!" विकी ने ऑफीस में दाखिल होते हुए कहा...

"नमस्कार! क्या तुम ही...."

"जी हां जनाब.. मैं ही विकी हूँ.. ये मुझे अच्छि तरह से जानते हैं..! क्यूँ नेता जी..?" विकी ने मुरारी की और आँख दबा दी..

"इनस्पेक्टर साहब..! मुझे 100 प्रतिशत विस्वास है कि यही आदमी मेरी बर्बादी के पिछे ही है.. आप इसको अभी गिरफ्तार कर लीजिए.. मैं बेकसूर हूँ.." रो ही तो पड़ा था मुरारी....

"तुम फ़ैसला सुना रहे हो की राय दे रहे हो...?" टफ ने दीवार के साथ कुर्सी सरकाते हुए कहा.....

"नही इनस्पेक्टर साहब.. मैं फ़ैसला कैसे सुना सकता हूँ.. फ़ैसला करने वाले तो आप हैं.. फिर भी मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ की इसके पीछे इसीका हाथ है.. इसने मेरी बेटी बहका ली.. मुझे बदनाम कर दिया...." मुरारी को टफ ने बीच में ही टोक दिया...

"और शालिनी.. उसके कपड़े भी इसी ने फ़ाडे थे क्या?"

"ववो.. मैं बहक गया था.. गुस्से मैं था मैं.. मुझे माफ़ कर दो इनस्पेक्टर साहेब.. मैं शालिनी बिटिया से भी माफी माँग लूँगा.." मुरारी ने कहा..

विकी मुरारी का ये दब्बु रूप देखकर मुश्किल से अपनी हँसी रोक पा रहा था.. इनस्पेक्टर साहिब को इज़्ज़त जो बख्सनि थी..

"हाँ तो विकी जी.. क्या कहना है आपका..?" टफ विकी से मुखातिब हुआ...

"यही की मुझे पता है की इसकी लड़की इस वक़्त कहाँ है.. वो पोलीस के पास और कोर्ट में अपने बयान देना चाहती है.. इसी सिलसिले में किसी ने मुझसे कॉंटॅक्ट किया था..." विकी बोल ही रहा था की मुरारी बीच में टपक पड़ा..

"नही इनस्पेक्टर साहब.. इसकी सारी बातें झूठी हैं.. इसने खुद ये ड्रामा रचा है और अब यहाँ मुझे ब्लॅकमेल करने आया है..."

"तुम चुप हो जाओगे या मुझे तुम्हे हवालात में भेजना पड़ेगा...?" टफ ने रूखी आवाज़ में मुरारी से कहा," मैं कोई पागल तो नही हूँ.. मैं पूच्छ रहा हूँ ना सब कुच्छ.."

"जी!" मुरारी भीगी बिल्ली बन गया...

"हां तो विकी जी... ये ब्लॅकमेलिंग का क्या फंडा है.." टफ ने विकी से पूचछा...

"कुच्छ नही है जनाब! मैं इसको ब्लॅकमेल क्यूँ करूँगा.. इस जैसे लोगों की तो मैं शकल भी देखना नही चाहता.. मैं तो सिर्फ़ आपको जानकारी देने आया था.. वो भी इसीलिए की खुद इसकी बेटी ऐसा चाहती है..." विकी ने सहज भाव से कहा...

"हूंम्म.. तो कहाँ है लड़की.. चलिए उसके बयान लेकर कोर्ट में पेश कर देते हैं.. ये अपने आप भुगतेगा..!" टफ ने विकी से कहा.. कार्य वाही एक तरफ़ा चल रही थी.. हर तरफ से मुरारी को दबाया और डराया जा रहा था..

"चलिए.. मैं तो इसी काम से आया हूँ..!" विकी खड़ा हो गया...

"एक मिनिट.. दारोगा जी.. क्या मैं विकी से अकेले में बात कर सकता हूँ.." मुरारी को कुच्छ समझ नही आ रहा था.... उसका दिमाग़ खिसक चुका था...

"कर लीजिए.. मुझे क्या है.. हम तो दिलों को जोड़ने का ही काम करते हैं.. बशर्ते.. विकी जी को कोई ऐतराज ना हो तो..." कहकर टफ ने विकी की और देखा...

"नही.. मुझे इस घटिया इंसान से कोई बात नही करनी.. मैं तो रोज दुआ करता था की इसका असली चेहरा दुनिया के सामने आए... इसको 10 साल से कम तो क्या सज़ा होगी अब.. है ना जनाब?" विकी ने तिर्छि नज़रों से मुरारी का चेहरा देखते हुए कहा...

"हां.. अगर इसकी बेटी ने और शालिनी ने कोर्ट में इसके खिलाफ बयान दे दिए तो ये नही बच सकता.. हाँ अगर...!" टफ ने बात अधूरी छ्चोड़ दी...

"अगर क्या.. इनस्पेक्टर साहब.. मैं कुच्छ भी करने को तैयार हूँ.. मुझे बचा लीजिए प्लीज़.. मैं आपके पाँव पड़ता हूँ.. मैं कोई भी कीमत देने को तैयार हूँ..!" मुरारी कुर्सी से उठ गया...

"मैं ना तो आपको सज़ा से बचा सकता हूँ और ना ही सज़ा दिलवा सकता हूँ.. वैसे मेरी आपसे पूरी हुम्दर्दि है.. आख़िर आपके नीचे रहकर ही तो हमें काम करना है सारी उमर.. पर सब कुच्छ उन्न लड़कियों के ही हाथों में है..." टफ ने नकली सहानुभूति दर्शाते हुए कहा...

"पर एक तो आपके पास ही है ना.. कम से कम उसको तो समझा दीजिए.." मुरारी गिड़गिदा उठा था..

"एक से क्या होगा.. सज़ा तो दोनो की एक साथ ही मिलनी है.. अगर तुम्हारी लड़की वाला मामला सुलझता है तो मैं कोशिश कर सकता हूँ.. पर वो मामला तभी सुधार सकता है जब आपकी लड़की बयान ना दे.. या मीडीया को दिए बयानो से मुकर जाए.." टफ ने उसको इस उलझन से बाहर निकालने का रास्ता सुझाया.. और बाहर निकालने की चाबी सिर्फ़ विकी के पास ही थी..

"मैं अपनी बेटी को कैसे भी करके चुप करा दूँगा.. आप मुझे उस'से मिलवा दीजिए.." मुरारी हाथ जोड़कर गिड़गिडया..

"मिलवा दीजिए विकी जी.. अगर आप ठीक समझे.. बेचारे का भला हो जाएगा.. वैसे मुझे कोई दिक्कत नही है...." टफ ने चुटकी ली...

इस'से पहले विकी कुच्छ बोलता.. मुरारी उसके पैरों में गिर पड़ा..," विकी भाई.. एक बार बात कर लो प्लीज़.. मैं तुम्हे कभी हुल्के मैं नज़र नही आउन्गा.. और बोलो..."

विकी अपना मन सा बनाने की आक्टिंग करता हुआ टफ से बोला," ठीक है जनाब.. अगर आपको भी यही सही लगता है तो मैं बात कर लेता हूँ.. अकेले में...!"

"ठीक है.. तुम यहीं बैठो.. मुझे किसी काम से बाहर जाना है.. मैं आधे घंटे में आता हूँ.. " कहकर टफ बाहर निकल गया..

मुरारी भिखारी की तरह विकी के चेहरे को ताकने लगा...

"हां.. बोल मुरारी!" विकी ने मुरारी को घूरा...

"तू तो मुझसे भी बड़ा कमीना निकला रे.. सीधे मतलब की बात पर आजा.. बता.. मेरी बेटी मुझे सौंपने का क्या लेगा?" मुरारी की आवाज़ में गुस्सा और बेबसी सॉफ झलक रही थी...

"वो मल्टिपलेक्स!" विकी ने दो टुक जवाब दिया..

" जा ले ले... बदले में स्नेहा मुझे मिल जाएगी ना...." मुरारी ने कहा..

"मैने क्या उसका आचार डालना है? जहाँ चाहे चली जाए.. मुझे क्या? वैसे भी मैं तो लड़की को एक बार ही यूज़ करता हूँ...." विकी ने सिगरेट्टी निकाल कर सुलगा ली...

"ना.. ना.. मुझे चाहिए.. वो हरम्जदि... मंजूर हो तो बोलो..." मुरारी का चेहरा नफ़रत और कड़वाहट से भर उठा...

" तुझे मैं बता दूँ कि वो तेरे पास रहना नही चाहती.. नफ़रत करती है तुझसे.. तेरी शकल भी देखना नही चाहती... .. बयान में नही होने दूँगा.. मेरी गॅरेंटी..फिर तू क्या करेगा उसका ?" विकी ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा..

मुरारी की आँखें लाल हो गयी.. नथुने फूल गये और किसी भेड़िए की तरह गुर्राने लगा," उसका वही करूँगा जो उसकी मा का किया था.. साली कुतिया... बेहन चोद.. उसको नंगी करके अपने सामने चुदवाउन्गा... फिर जंगली कुत्तों के आगे डाल दूँगा.. उसने सारी दुनिया को बता ही दिया की वो मेरी औलाद नही है... एक बार मुझे सौंप दे बस.. बोल मंजूर है की नही...?"

विकी के जहाँ से एक लंबी साँस आह के रूप में निकली.. कैसा है मुरारी? आदमी है या भेड़िया.. कुच्छ मिनिट के मौन के बाद बोला..," मजूर है.. लड़की तुम्हे मिल जाएगी.. मुझे मल्टिपलेक्स के कागज मिलने के बाद..."

"तो फिर मिलाओ हाथ.. तुम अपना फोन दो.. मैं अभी उसके मलिक को फोन करता हूँ.. तुम चाहो तो कल ही उसको पैसे देकर मल्टिपलेक्स अपने नाम करवा सकते हो..." मुरारी ने विकी का हाथ अपने हाथ मैं पकड़ लिया...

विकी ने अपना हाथ च्छुडवाया और ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा...," तू क्या समझता है.. मैने इतनी मेहनत सिर्फ़ तुझसे नो ऑब्जेक्षन सर्टिफिकेट लेने के लिए की है.. नही! वो तो मैं कभी भी उसकी कनपटी पर रिवॉल्वेर रखकर खरीद सकता था... अब वो मल्टिपलेक्स तू खरीद कर मुझे देगा.. यानी पैसे तेरे होंगे.. और माल मुझे मिलेगा..!"

"मतलब तू समझता है की मैं अपने पास से तुझे 8 करोड़ रुपैया दूँगा... ?" मुरारी ने हैरत से उसकी और देखा...

"8 नही 10 करोड़.. और मुझे पता है की तू देगा.. क्यूंकी 10 करोड़ गँवाने 10 साल जैल में काटने से कहीं ज़्यादा आसान है तेरे लिए.. 10 सालों में तो तू पता नही कितने 10 करोड़ कमा लेगा...!" विकी ने कातिल मुस्कान मुरारी की और फैंकी...

मुरारी ने अपना सिर टेबल पर रख लिया और कुच्छ देर उधेड़बुन में पड़ा रहा... फिर अचानक उठकर बोला," मैं सिर्फ़ 8 करोड़ दूँगा.. और मुझे वो लौंडिया हाथ के हाथ चाहिए.. बोल कब दे सकता है...?"

"जब तुम चाहो.. पर अभी तो तुम्हारी 14 दिन की पोलीस कस्टडी है ना?" विकी ने मुरारी से सवाल किया...

"तुम्हे जब चाहे पैसे मिल जाएँगे.. तुम बताओ.. कब ला सकते हो स्नेहा को..?" मुरारी ने सवाल पर सवाल मारा...

" मैं बांके को बता दूँगा...! सोचकर.." विकी ने अजीब से अंदाज में बांके का नाम लिया...

"बांके... तुम बांके को कैसे जानते हो?" मुरारी चौंक कर उच्छल पड़ा....

"क्यूँ हैरानी हुई ना... मुझे किडनॅप करने कुच्छ चूजो को साथ लेकर आया था.. अभी मेरे गुसलखाने में क़ैद हैं तीनो.. अगर तुम आज नही मानते तो तुम पर एक केस और लगना था.. " विकी ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा....

तभी टफ ने ऑफीस में प्रवेश किया..," लगता है कुच्छ सौदेबाज़ी हो गयी तुम दोनो की...?"

"नही.. इनस्पेक्टर साहब.. हम दोनो में कुच्छ ग़लतफ़हमियाँ थी.. जो आज साथ बैठने से दूर हो गयी.. वैसे विकी जी कह रहे हैं की ये स्नेहा को मनाने की कोशिश करेंगे... अपने बयान वापस लेने के लिए.. क्यूँ विकी जी?" मुरारी ने बात सपस्ट की...

"हां मुरारी जी.. " और कहते हुए विकी ने टफ की और आँख मारी...

"राजेश!" टफ ने आवाज़ लगाई....

"जी जनाब.."

"नेता जी को पूरी इज़्ज़त से हवालात में छ्चोड़ आओ.. सुबह मिलते हैं इनसे.. इनका ख़याल रखना..." टफ ने व्यंग्य किया...

"इनस्पेक्टर साहब.. अगर बुरा ना मानो तो.. मैं यहीं सो जाऊं... वहाँ मच्छर और गर्मी जान निकल देते हैं..."

"आप चिंता ना करें नेता जी.. सरकार कुच्छ ही दिनों में हवालात में भी एसी लगवाने पर विचार कर रही है... तब तक प्लीज़.. किसी तरह से काट लें...!" टफ ने मुस्कुराते हुए कहा...

"कब.. ये कैसे हो सकता है..? मुरारी को विस्वास नही हुआ..

"हो क्यूँ नही सकता नेता जी.. आजकल हवालात में आते ही नेता लोग हैं.. फिर कुच्छ ना कुच्छ तो सरकार को सोचना ही पड़ेगा.." टफ ने कहा और राजेश को उसे वहाँ से ले जाने को कहा....

"तू बुरा फँसेगा किसी दिन..!" मुरारी के जाते ही टफ ने विकी को आगे बढ़कर गले लगा लिया...," हो गया तुम्हारा काम?"

विकी कुच्छ ना बोला.. आँख बंद होते ही उसको स्नेहा का मासूम सा चेहरा दिखाई दिया.. वो बिल्कुल नंगी पड़ी थी.. जंगली कुत्तों के बीच.....

टफ और विकी दोनो थाने से निकल कर टफ के घर की और चल पड़े.. लगभग सारे रास्ते विकी चुप ही रहा...

"क्या बात है.. तुम्हे मल्टिपलेक्स मिल तो गया ना? या कुच्छ अड़चन है.. ?" टफ ने उसको गुम्सुम बैठे देख कहा....

"हूंम्म... हां.. मिल जाएगा!.......... कोई अड़चन नही है..अब!" विकी ने लंबी गहरी साँस छ्चोड़ी...

"फिर भी तू परेशान लग रहा है.. क्या बात है यार...? बता तो!" टफ ने उसका चेहरा देखते हुए पूचछा...

"नही... कुच्छ नही है... कुच्छ भी तो नही.. बस मुरारी का चेहरा देखकर ही उल्टियाँ सी आने लगती हैं.. बहुत कमीना है साला.. सौ कुत्ते मारकर ये 'एक' पैदा हुआ होगा..." विकी के जबड़े भिच गये.. पर वो आधी बात मन में ही पी गया.. कैसे बताता की वो भी इस बार 'उसके' कामीनेपन में हिस्सेदार होने वाला है... स्नेहा को उसे सौंपकर...'" बस! बहुत हो गया.. ये आख़िरी बार है..!" अचानक विकी के मुँह से निकला...

"क्या बहुत हो गया? क्या आख़िरी बार है? कहाँ अटका हुआ है भाई...?" टफ ने गाड़ी रोक दी...

"बस यार.. ये पॉलिटिक्स.. बहुत ही कुत्ति चीज़ है.. सोच रहा हूँ.. छ्चोड़ दूं.. जाने क्या क्या करवाती है साली... बस ये मल्टिपलेक्स मिल जाए.. उसके बाद में अपने बारे में सोचूँगा..." विकी की तबीयत सी खराब हो गयी थी.. उसको अपना शरीर टूट'ता हुआ लग रहा था...

"एक बात तो बता यार.. स्नेहा बयान नही देती ... ठीक है... पर क्या तू उसको सच्चाई बताएगा? क्यूंकी आज नही तो कल उसको वापस जाने पर पता लग ही जाएगा.. सच्चाई का... फिर क्या वो तुझ पर उल्टा केस नही ठोंक देगी....?" टफ को पूरी बात का ज्ञान नही था...

"तू छ्चोड़ ना यार.. स्नेहा को.. गाड़ी चला.. मेरे सिर में दर्द है..." विकी का सिर पहले ही स्नेहा के बारे में सोचकर फटा जा रहा था...

"ऐसे सिर दर्द करने से काम थोड़े ही चलेगा..? आगे का सोचकर तो चलना ही पड़ेगा... तूने सोचा है की अगर उसके बयानो का मुँह तेरी तरफ घूम गया तो क्या होगा? मुरारी की जगह तू मेरे थाने में बैठा होगा.. और मैं कुच्छ कर भी नही पाउन्गा......." टफ ने पते की बात कही थी...

"ऐसा नही होगा याआआर.. तू समझता क्यूँ नही है.... वो कभी ऐसा नही करेगी..?" विकी झल्लाते हुए बोला.. टफ उसको बार बार अंजाने में ही याद दिला रहा था की स्नेहा के साथ क्या होने वाला है...

"क्यूँ.. क्यूँ नही करेगी..?" टफ ने फिर उसके दिल के तारों को छेड़ा..

"हेययय भग्वाआअन... वो मुझसे प्यार करती है.. मेरे लिए मर सकती है.. मर जाएगी...! प्लीज़ तू ये बात बंद कर दे यार..." विकी का अंतर्मन उसको कचोट रहा था...

"और तू..??? तू नही करता क्या उस'से प्यार? तुझे अच्छि नही लगती क्या वो...? अगर तू जिंदगी के बारे में सोच ही रहा है तो वो क्यूँ तेरी जिंदगी का हिस्सा नही हो सकती...? तू ही तो कह रहा था भाई के सामने.. कि ऐसी लड़की तूने आज तक देखी ही नही..." टफ टॉपिक बंद करने को तैयार ही नही था.. उल्टा बात को और ज़्यादा कुरेद रहा था..

विकी झल्लाते हुए गाड़ी से उतर गया.. टफ भी उतर कर उसके पास चला गया...," किस'से भागने की कोशिश कर रहा है तू.. मुझसे? या अपने आप से..? कहाँ तक भाग सकता है भाग ले..

"विकी प्यार नही करता.. बस! मेरी लाइफ में प्यार के कोई मायने नही हैं.. मैं अपने लिए जीता था.. जीता हूँ.. और जियूंगा... ! मुझे वापस छ्चोड़ दे.. मुझे गाड़ी लेकर कहीं जाना है.. अभी.." विकी बिफर उठा.. अपने आप से ही..

"ठीक है.. नो प्राब्लम! चल आ.. वापस छ्चोड़ देता हूँ.." टफ ने उसको एक बार भी रुकने के लिए नही बोला... गाड़ी में बैठे और वापस थाने पहुँच गये..

" एक बात मानेगा?" विकी ने टफ से कहा..

"हां बोल!"

"मुझे एक बार और मुरारी से मिलने दे... अकेले में.. मुझे कुच्छ ज़रूरी बात करनी हैं.. आख़िरी बार.." विकी ने कहा..

"तू एक मिनिट यहीं ठहर.. मैं आता हूँ.." कहकर टफ ऑफीस में गया और कुच्छ देर बाद वापस आया," चल तू ऑफीस में बैठ.. मैं मुरारी को वहीं भेजता हूँ.."

"ठीक है.." कहकर विकी ऑफीस में जाकर बैठ गया...

कुच्छ देर बाद बदहाल मुरारी भी वहीं आ पहुँचा," क्या यार.. तूने मेरी मा चुदवा दी.. देख कितने मच्च्छार काट चुके हैं.."

"काम की बात कर.. स्नेहा तुझे कल ही मिल जाएगी.. बोल पैसे कहाँ दे रहा है..?" विकी ने कहा...

"जहाँ तू मुझे स्नेहा देगा.. वहीं.. टाइम भी तेरा.. जगह भी तेरी..." मुरारी ने दाँत पीसते हुए कहा....

"ठीक है.. कल शाम 6 बजे.. पानीपत से देल्ही की और जो दो नहरें जाती हैं.. बवाना से कुच्छ पहले उन्न दोनो नहरों के बीच मिलते हैं... कैसे करना है.. ये तुम बता दो.." विकी ने कहा..

"ओके! मेरे पास ऐसा प्लान है जिसमें हम में से कोई चीटिंग नही कर सकता.." और मुरारी प्लान बताने लगा...

सच में ही प्लान फुलप्रूफ था.. कहीं चीटिंग करने की गुंजाइश ना थी.. या तो दोनो पार्टियों को अपना अपना 'माल' मिल जाएगा.. या किसी को भी कुच्छ नही...," लाओ.. तुम्हारे फोन से अभी फोन कर दूं.. अपने किसी खास को.. बांके को तो तुम छ्चोड़ ही दोगे ना..." मुरारी ने कहा...

"हां.. जाते ही.."

विकी ने फोन ऑन करके मुरारी को दे दिया......

मुरारी ने फोन करके अपने किसी आदमी को सबकुच्छ समझा दिया.. और बाद में कहा," याद रखना.. मेरी जमानत होने तक किसी को भी खबर नही होनी चाहिए की स्नेहा हमारे पास है.. उसको क़ैद करके रखना है... समझ गये ना...!"

"यस सर..!"

"लो.. हो गयी बात!" मुरारी ने विकी को फोन दे दिया....

विकी बिना कोई शब्द बोले ऑफीस से बाहर निकल गया.. वह जाते हुए टफ से भी नही मिला....

विकी मुश्किल से 5 मिनिट ही चला था की उसका फोन बज उठा..

"ओह! फोन ऑफ करना तो भूल ही गया था.. उसने फोन उठाकर देखा.. कोई अंजान नंबर. था.. विकी ने फोन वापस डॅशबोर्ड पर रख दिया... कॉल स्नेहा की हो सकती थी...

बेल बंद हो जाने के बाद वह फोन को उठाकर ऑफ करने ही वाला था कि फिर से उसी नंबर. से कॉल आ गयी... कुच्छ सोचते हुए उसने फोन उठा लिया," हेलो!"

स्नेहा फोन लेकर बाहर भाग आई," जान! कहाँ रह गये तुम? मैं मर जाती तो?"

अचानक विकी को कुच्छ सूझा ही नही," मैं आकर बतौन्गा सानू.. तुम्हे नही पता मेरे साथ क्या हुआ..?"

"है राम! क्या हुआ.. तुम ठीक तो हो ना..?" स्नेहा ने अपने दिल पर हाथ रखकर पूछा... उसकी धड़कने बढ़ गयी थी...

"हां, अभी मैं बिल्कुल ठीक हूँ.. तुम चिंता ना करो..!"

"अब आ रहे हो ना मेरे पास..?" स्नेहा का दिल खुशी के मारे धड़क रहा था...

" तुम ठीक तो हो ना..?" विकी को ताज्जुब हुआ.. यूँही उसकी आँखें नम हो गयी थी..

"हां मैं बिल्कुल ठीक हूँ.. वीरू और राज भैया बहुत अच्छे हैं.. पता है.. मैने अपनी जिंदगी मैं पहली बार रक्षाबन्धन मनाया है.. मैने दोनो को राखी बँधी..... कितनी देर में आ रहे हो...?" स्नेहा फूली नही समा रही थी..

"अब नही आ सकता मैं.. कल आउन्गा.. बहुत दूर हूं.. और गाड़ी भी नही है मेरे पास..." विकी ने झूठ बोला..

स्नेहा मायूस हो गयी," हां.. गाड़ी तो मेडिकल में ही खड़ी है ना..?"

"हां.. अब रखूं..?" विकी ने कहा..

"नआईईई.. कुच्छ देर और बात करो ना... प्लीज़.. तुम्हे पता है.. तुमसे बात करते ही 'तुम्हारी चिड़िया' उच्छलने लगी है.. इसका क्या करूँ..?"

"मेरी चिड़िया..? क्या मतलब?? " विकी की कुच्छ समझ में नही आया..

"इसको तुमने चिड़िया ही तो कहा था.. छ्होटी सी..?" स्नेहा ने अपनी जांघें कस ली और उस 'चिड़िया' को फुदकने से रोकने की कोशिश करने लगी..

"श.. अच्च्छा.. हा हा हा" विकी फीकी सी हँसी हंसते हुए बोला..," कल आ रहा हूँ. ना.. अब फोन रख दो... मैं बहुत परेशान हूँ.. इस वक़्त.."

"अच्च्छा.." स्नेहा ने मुँह बना लिया... पर अचानक उसके चेहरे की रौनाक़ लौट आई," याद है ना तुमने क्या वादा किया था..?"

विकी का चेहरा मुरझा गया," हां याद है.. अब रख दो फोन.."

"हां हां रखती हूँ.. पहले बोलो.. आइ लव यू!" स्नेहा फोने रखना ही नही चाह रही थी...

" रखो ना यार फोन.. कह तो रहा हूँ.. कल आ जाउन्गा.." कहकर विकी ने फोन काट दिया....

स्नेहा कुच्छ देर यूँही फोन को देखती रही.. फिर अंदर जाते ही बोली," मोहन बहुत परेशान है.. वो किसी प्राब्लम में है.. अच्छे से बात भी नही कर पाया... आज आएगा भी नही..."

"तुम्हे यहाँ कोई दिक्कत है?" वीरू ने पूचछा...

"नही तो.. मैं तो यहाँ बहुत खुश हूँ.." स्नेहा ने चहकते हुए कहा..

"फिर क्यूँ चपर चपर लगा रखी है... चल आजा शतरंज खेलते हैं.." वीरू ने कहा.. एक ही दिन में वो कितना घुलमिल गये थे...

"अभी लाई.. दिन वाली बाज़ी का बदला भी लेना है मुझे.." कहते हुए स्नेहा ने चेस-बोर्ड उठाया और वीरू के पास बेड पर बाज़ी जमा दी... उसका अहसास तक नही था.. कि कोई उसको भी ऐसे ही चल चुका है.. जिंदगी की बिसात पर.. और वहाँ हारते ही मौत है.. सिर्फ़ मौत...

"जब से मैं स्कूल से आया हूँ.. तुम लोगों ने एक भी अक्षर पढ़ने नही दिया है.. तुम दोनो चाहते क्या हो आख़िर?" राज अपने बिस्तेर पर खीजा हुआ बैठा था.. स्कूल से आने के बाद दोनो ने उसके खूब मज़े लिए थे... प्रिया का जिकर कर कर के!

"ओहो.. राज भैया.. हमें पता है.. आजकल आप पढ़ तो यूँ भी नही रहे.. यहाँ आकर मेरी मदद करो ना.. आपका दिल भी लग जाएगा.." स्नेहा के साथ मिलकर वीरू ने भी ज़ोर का ठहाका लगाया...

"आख़िर तुम लोग चाहते क्या हो यार..? ठीक है.. लो! बंद कर दी किताब.." राज ने किताब बंद करके टेबल पर रखी और उनके साथ ही बेड पर आ बैठा," चल घोड़ा चल... घोड़ाआ चल चुहिया.. मरवाएगी क्या रानी को!!!!!"

स्नेहा को ग़लती का अहसास हो गया," थॅंक यू भैया.. तुम कितने अच्छे हो.. तुम साथ बैठे रहे तो मैं जीत ही जाउन्गि.. पर अपना ध्यान सामने वाली खिड़की मैं मत लगा लेना.." राज को छेड़ने का कोई मौका दोनो हाथ से नही जाने दे रहे थे...

"मैं तुम्हे कितनी बार बता चुका हूँ कि ऐसा कुच्छ नही है... अगर थोडा बहुत कुच्छ था भी तो वो कल ख़तम हो गया.. अब बंद करो यार इश्स टॉपिक को.. और कुच्छ नही है क्या बात करने को..?" राज ने कहा..

"जब तक तुम सच सच नही बता देते की कल रात तुम्हारी कितनी पिटाई हुई, हम तुम्हारा पीछा नही छ्चोड़ने वाले.. क्यूँ स्नेहा?" वीरू ने कहा...

"सही बात है भाई.. बिल्कुल सही बात है ये तो हो हो... हा हा.. और ये गयी तुम्हारी रानी... मैं जीत गयी.. वाउ.." स्नेहा खड़ी होकर कूदने लगी...

"जा मुँह धोकर आ पहले.. हाथी भी कभी टेढ़ा चलता है..?" वीरू ने हंसते हुए कहा...

"मैं नही खेलती.. बकवास गेम है..!" कहते हुए स्नेहा ने सारे प्यादे बिखरा दिए," बताओ ना राज.. क्या हुआ तुम्हारे साथ कल.. प्लीज़ बता दो.. हम हँसेंगे नही.. प्रोमिस! है ना भैया!" स्नेहा ने वीरू की और देखा और दोनो एक बार फिर खिलखिला पड़े...
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