RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --44
"शुक्र है फ्रॅक्चर नही है! माँस फटने से सूजन आ गयी है.. ठीक होने में 10-15 दिन लग जाएँगे.. मैं कुच्छ दवाइयाँ लिख देती हून.. टाइम से लेते रहना और नेक्स्ट मंडे एक बार आकर चेक करा जाना... ओके?" हॉस्पिटल में लेडी डॉक्टर वीरेंदर और राज के पास खड़ी थी..," करते क्या हो तुम?"
"जी, पढ़ते हैं..10+2 में" दोनो एक साथ बोल पड़े...
"तुम्हारा दोस्त शरमाता बहुत है.." डॉक्टर ने राज को प्रिस्क्रिप्षन पेपर दिया और मुस्कुराते हुए वहाँ से दूसरे पेशेंट के पास चली गयी...
"क्या बात थी.. तू शर्मा क्यूँ रहा था ओये?" राज ने वीरू के कान के पास मुँह लेजाकार कहा...
"मेरी पॅंट निकलवा ली थी यार.. शरम नही आएगी क्या?" वीरू मुस्कुराया और अचानक बात पलट दी..," चलें.. सुबह होने को है.."
"एक मिनिट.. मैं भाई साहब को देखकर आता हूँ... तू यहीं लेटा रह तब तक.." राज ने वीरू से कहा..
"कहाँ गये वो..?"
"पता नही.. अभी 20 मिनिट पहले यहीं थे.. एक फोन करने की बात कहकर निकले थे.. बाहर ही होंगे.. मैं बुलाकर लाता हूँ.." कहकर राज बाहर निकल गया...
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करीब 10-15 मिनिट बाद राज वापस आया," यार वो तो कहीं दिखाई नही दिए... मैं हर जगह देख आया.."
"चले तो नही गये हैं.. स्नेहा रूम पर अकेली है ना.. वो उसको बोल भी रहे थे की देर लगी तो मैं आ जाउन्गा..!" वीरू ने राज से कहा..
"पर मैं पार्किंग में गाड़ी भी देख आया हूँ... वहीं खड़ी है.. गये होते तो गाड़ी लेकर नही जाते क्या?" राज ने सवाल किया...
"फिर तो यहीं होंगे.. इंतजार करते हैं.. और क्या?" वीरू ने राज की और देखते हुए कहा...
राज ने सहमति में सिर हिलाया और वीरेंदर के पास ही बैठ गया.....
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सवेरा हो गया था.. स्नेहा को सारी रात नींद नही आई.. यूँही करवटें बदलती हुई विकी के बारे में सोचती रही...कितना प्यारा है मोहन.. कितना अपना सा है.. 3 दिन में ही वो उस'से किस कदर जुड़ गयी थी.. उसके दूर जाते ही उसको लगता था की वो फिर से नितांत अकेली हो गयी है... मोहन ने एक साथ ही उसको कितनी सारी खुशियाँ दे दी... मोहन के लिए ही जियूंगी अब... उसके लिए मर भी जाउन्गि... स्नेहा ने मन ही मन सोचा और अंगड़ाई लेते हुए उल्टी लेट गयी.. उसका रूप निखर आया था.. अब हर अंग हर पल जैसे 'मोहन मोहन' ही पुकारता रहता था.. आज गाड़ी में ही उन्होने कितनी मस्ती की थी.. स्नेहा रह रह कर विकी से लिपट जा रही थी.. 'पल' भर की बेचैनी भी स्नेहा से सहन नही हो रही थी... मोहन ने वादा किया था.. रोहतक जाकर एक दोस्त के फ्लॅट पर रुकेंगे और वो उस'से वहाँ पहले दिन वाला ही प्यार फिर से करेगा... जी भर कर.. वो रोहतक आ भी गये थे.. पर स्नेहा से 2 पल का भी इंतज़ार नही हो रहा था.. वो रह रह कर मोहन से लिपटी जा रही थी.....
और शायद इसीलिए 'वो' हादसा हुआ.. अगर वो मोहन को इस तरह 'तंग' ना करती तो शायद मोहन हादसे को टाल भी लेता.. सोचते हुए स्नेहा ने एक लंबी आह भारी.. और करवट बदलकर फिर से सीधी हो गयी...
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करीब 10 मिनिट बाद दरवाजे पर दस्तक हुई.. स्नेहा एक दम से उठी और दरवाजे के पास जाकर पूचछा," कौन है?"
"हम हैं.. दरवाजा खोलो"
आवाज़ वीरू की थी.. स्नेहा ने झट से दरवाजा खोल दिया..," आ गये.. क्या रहा?"
"भैया यहाँ नही आए हैं क्या..?" राज ने उल्टा उसी से सवाल किया..
"क्या मतलब?" स्नेहा का दिल धक से रह गया..," कहाँ हैं वो? यहाँ तो नही आए..
"गाड़ी तो उनकी वहीं पर खड़ी है... फोन करने की कहकर निकले थे.. हमने करीब 1:30 घंटे उनका इंतज़ार किया.. फिर सोचा क्या पता यहीं आ गये हों.. इसीलिए हम आ गये..." राज ने चिंतित स्वर में उत्तर दिया...
स्नेहा बिना कुच्छ सोचे समझे ही रोने लगी...," उन्होने पहले ही कहा था की रोहतक में उनको ख़तरा है.." सुबक्ती हुई स्नेहा के गालों से मोटे मोटे आँसू बहने लगे..
राज ने वीरू को बेड पर लिटा दिया.. दोनो की समझ में नही आ रहा था की वो क्या करें; क्या कहें... कुच्छ देर बाद राज उठकर स्नेहा के पास आया," आ जाएँगे.. आप रो क्यूँ रही हैं.. हम छ्चोड़ आएँगे.. आपको जहाँ जाना है..."
स्नेहा को कहाँ जाना था.. वो अब जा भी कहाँ सकती थी... मोहन के संग सपनों का, अरमानो का जो गुलिस्ताँ स्नेहा ने अपने दिल में सहेज लिया था, उसके आलवा अब इस जहाँ में उसका बचा ही क्या था.. पापा? जिसने महज अपनी राजनीति के लिए शतरंज की बिसात पर मोहरे की तरह से उसका इस्तेमाल किया था.. उसके पास? नही.. कभी नही! अगर वो ऐसा सोचती भी तो किस मुँह से.. वा खुद उसके खिलाफ बग़ावत पर उतर आई थी.. और शालिनी वाला केस सुर्ख़ियों में आने पर तो उसको अपने 'बाप' से नफ़रत सी हो गयी थी....
"चिंता ना करें आप... लीजिए.. आप फोन कर लीजिए..." राज ने अपना फोन उठाकर स्नेहा को दे दिया...
"ओह हां.. पर उसका फोन तो ऑफ ही रहता है.. अक्सर.. चलो ट्राइ करती हूँ..!" उम्मीद की किरण नज़र आने से उसकी सुबाकियाँ कुच्छ कम हुई और उसने विकी का नंबर. डाइयल किया.. पर जैसा स्नेहा ने सोचा था वैसा ही हुआ.. फोन ऑफ था.. स्नेहा को मोहन की भी चिंता हो रही थी और अपनी भी.. वह बेड पर बैठकर अपना सिर पकड़कर रोने लगी....
"तुम रो क्यूँ रही हो.. वो थोड़ी बहुत देर में आ ही जाएँगे.... वैसे तुम्हारे पास घर का नंबर. भी तो होगा ना.. वहाँ पता कर लीजिए अगर उन्होने घर पर फोन किया हो तो.. वैसे वो भाई साहब आपके लगते क्या हैं?" वीरू बेबस था.. उसके पास आकर उसके आँसू नही पोंच्छ सकता था...
क्या बताती स्नेहा.. क्या नाम देती 2 दिन पहले बने इस दिल के रिश्ते को.. उसको डर था की अगर वो सच्चाई बताती है तो कहीं दोनो डर कर कुच्छ उल्टा सीधा ना कर दें.. मसलन पोलीस को फोन वग़ैरह.. प्रत्युत्तर में वो बिलख पड़ी..," मोहन.. कहाँ हो तूमम्म्मममम???"
स्नेहा का वो कारून प्रलाप सुनकर दोनो का दिल दहल गया.. राज उसके पास जाकर बैठ गया," आप ऐसे ना रोयें.. मैं छ्चोड़ आउन्गा आपको जहाँ जाना है... देखिए यहाँ पर हम एज ए स्टूडेंट रह रहे हैं... किसी ने आपका रोना सुन लिया तो लोग तरह तरह की बातें करेंगे.. प्लीज़.. आप सब्र से काम लें.. वो आते ही होंगे..." राज कह तो रहा था की वो आ जाएँगे.. पर चिंता उसको खुद को भी होने लगी थी.. अब तक तो उसको यहीं पर आ जाना चाहिए था.. 3 घंटे के करीब होने वेल थे उसको गायब हुए...
स्नेहा ने जैसे तैसे खुद को संभाला..," क्या मैं यहीं रह सकती हूँ.. जब तक वो नही आता?" उसने अपने आँसू पोंच्छ लिए.. सच में ही उसका रोना उन्न बेचारों को मुसीबत में डाल सकता था.. और खुद उसको भी...
" क्या?.. हां.. पर.. मेरा मतलब है कि..." राज को कोई शब्द ही ना मिला आगे कुच्छ कहने को.. कैसे रह सकती है वो यहाँ.. लड़कों के कमरे में.. राज ने प्रशन सूचक नज़रों से वीरू की और देखा...
"हां.. रह ले बहन.. जब तक तेरा दिल करे तब तक रह यहीं पर.. मैं कह दूँगा.. मेरी बेहन है.. लोगों की ऐसी की तैसी..! लोग तो बोलते ही रहते हैं.." वीरू ने फ़ैसला सुना दिया..
स्नेहा सुनकर चोंक पड़ी.. उसने अपनी जुल्फें पीछे करके नज़रें उठाकर वीरू की और देखा.. कुच्छ पल तो वो विस्मय से अपनी आँखें फाडे हुए उसको देखती रही.. बूझे हुए चेहरे पर एक मद्धय्म सी मुस्कान दौड़ गयी.. और आँसू फिर से बहने लगे.. उसको यकीन ही नही हो रहा था की उसको 'भाई' मिल गया है..
वीरू उसकी तरफ देखकर मुस्कुराने लगा तो स्नेहा से रहा ना गया.. लगभग दौड़ती हुई सी वो उसके बेड की और गयी और घुटने ज़मीन पर रखकर उसकी छाती पर सिर रख लिया.. और सुबक्ती रही...
"अब भी क्यूँ रो रही है तू.. मैं हूँ ना.. तेरा भाई.." वीरू ने उसका चेहरा अपने हाथों में लेकर उपर उठाया...
"रो नही रही भैया.. समेट नही पा रही हूँ.. रक्षा बंधन पर मिली इस अनोखी खुशी को.. मेरा कोई भाई नही था.. आज से पहले.." स्नेहा खिल उठी..
"अब तो है ना.. वीरू!" वीरू की आँखें चमक रही थी...
"मुझे क्यूँ भूल रहे हो.. मैं भी तो हूँ.." राज भी स्नेहा की बराबर में आ बैठा...
"बहती गंगा में हाथ धो रहा है.. क्यूँ? चल आजा तू भी" वीरू ने कहा और दोनो राज के चेहरे को देखकर खिलखिला उठे......
विकी के इंतज़ार में दिन के कब 7 बज गये तीनो को पता ही नही चला.. स्नेहा रह रह कर बेचैन हो जाती थी.. पर अब उसको अपनी नही सिर्फ़ मोहन की चिंता थी.. उसको तो भाई मिल गये थे.. पर मोहन का यूँ अचानक गायब हो जाना उसकी परेशानी का सबब बना हुआ था.. स्नेहा रह रह कर खामोश हो जाती और शून्या में झाँकने लगती...
"चिंता क्यूँ कर रही हो सानू.. वो कोई बच्चे थोड़े ही हैं.. आ जाएँगे.." वीरू ने स्नेहा का हाथ पकड़ कर उसका ध्यान वापस खींचा...
स्नेहा ने हां में सिर हिलाया और अपनी नम हो चली आँखों को पौंच्छ लिया...
"स्नेहा तो है ही अभी.. मैं स्कूल चला जाउ? कल भी नही जा पाए थे.." राज ने खड़े होते हुए पूचछा..
"ठीक है.. तुम नहा लो.. वैसे भी मुझे कोई खास दिक्कत तो होने नही वाली है.. नाश्ता करके नही जाओगे क्या?" वीरू बोला....
"अभी तो मैं लेट हो रहा हूँ.. आकर ही देखूँगा.. स्कूल में खा लूँगा कुच्छ.. तुम्हारे लिए लाकर दे जाता हूँ..." राज बाहर निकलने लगा...
"मेरे लिए तो मेरी बेहन बना देगी.. क्यूँ स्नेहा?" वीरू स्नेहा को देखकर मुस्कुराया....
"पर... मुझे खाना बनाना नही आता है... कभी बनाया ही नही.." स्नेहा ने नज़रें उठाकर वीरू को देखा...
"कोई बात नही.. मैं सीखा दूँगा ना.. बस तुम वैसा करती जाना जैसे में बताउन्गा.. जा राज ब्रेड और बटर ले आ..." वीरेंदर स्नेहा को व्यस्त रखना चाहता था.. जब तक विकी नही आता... उसको पता था की वो खाली रहेगी तो ज़्यादा परेशान रहेगी...
राज ने स्नेहा की और देखा.. स्नेहा मुस्कुरा पड़ी..,"ठीक है.. पर कुच्छ उल्टा सीधा बन गया तो मुझे मत बोलना बाद में.. पहले बोल रही हूँ" और हँसने लगी...
राज उसकी हँसी का जवाब हुल्की मुस्कुराहट से देकर बाहर निकल गया....
"क्या बात है भैया? राज कुच्छ परेशान सा लग रहा है..?" स्नेहा ने राज के जाते ही वीरू से पूचछा..
"हूंम्म.. वही तो मैं भी देख रहा हूँ.. कल से इसको पता नही क्या हो गया है..?" वीरू ने जवाब दिया..
"आपने इस-से पूचछा ये रात को कहाँ गया था...?"
"ना.. पर शायद मुझे पता है ये कहाँ गया होगा..?"
"कहाँ?" स्नेहा को भी उत्सुकता हुई जान'ने की...
"रहने दो.. तुम्हारे मतलब की बात नही है..." कहकर वीरू ने करवट बदल ली..
"बताओ ना भैया.. ऐसे क्यूँ कर रहे हो.. मैं फिर से रो पड़ूँगी..." स्नेहा ने उसकी बाजू पकड़ कर वापस अपनी तरफ खींच लिया....
" ठीक है.. उसको आने दो.. पहले पक्का तो कर लूँ.. मैं जो सोच रहा हूँ.. वो सही भी है या नही.." वीरेंदर ने बात पूरी की भी नही थी की राज आ गया..," ये लो.. और ये खिड़की बंद रखना.. "
"खिड़की के बच्चे.. तूने ये तो बताया ही नही की तू गया कहाँ था.. रात को..?" वीरू ने आते ही सवाल दागा...
"बता दूँगा भाई.. अभी तो लेट हो रहा हूँ...?" कहते हुए राज बाथरूम में घुसने लगा...
"उसकी मा आई थी अभी यहाँ.. तुम्हे पूच्छ रही थी..." वीरू ने पाँसा फैंका..
"क्क्याअ? पर क्यूँ?.. मेरा मतलब कौन आई थी.. किसकी मा?" राज ने हड़बड़ा कर कहा...
"जिसके घर तू रात को गया था.. उसकी मा..? वीरू के ऐसा कहते ही राज का चेहरा सफेद पड़ गया.. उसकी हालत पर दोनो पेट पकड़कर हँसने लगे...
"क्या है भाई.. खंख़्वाह डरा दिया था... तूने स्नेहा को कुच्छ बता दिया क्या?" राज ने उनको हंसता देखकर राहत की साँस ली......
"नही.. अभी तक तो नही.. पर अभी बतावँगा.. तड़का लगाकर.. तू चला जा पहले.." वीरू ने हंसते हुए कहा...
"क्या है ये...? भाई तू भी ना.. मैं नही जाता स्कूल..." राज तौलिए को पटक कर वहीं बैठ गया..
"ठीक है.. मत जा.. जो मुझे नही पता वो तू बता देना..." खिलखिलाते हुए वीरू ने स्नेहा को हाथ दिया.. स्नेहा ने भी ताल से ताल मिलाई...
"प्लीज़ भाई.. तेरे हाथ जोड़ता हूँ.. मेरी इज़्ज़त का फालूदा क्यूँ निकाल रहा है.." राज दोनो हाथ जोड़कर गिड़गिदाने की मुद्रा में आ गया...
"क्यूँ जब मुँह काला करने गया था तब नही निकला इज़्ज़त का फालूदा..." वीरू और स्नेहा ज़ोर ज़ोर से हंस रहे थे.. राज का चेहरा देखने लायक हो गया था...
"ठीक है तो फिर.. तेरी भी बात मैं बताउन्गा वापस आकर.. जितना भोला बन रहा है.. उतना नही है ये.. स्कूल में एक भी लड़की इस'से बात नही करती.. सब को डरा के रखता है.." और राज की बात दोनो की जोरदार हँसी में दब कर रह गयी.. राज को कुच्छ बोलते ना बना तो वापस बाथरूम में घुस गया...
नहा धोकर मुँह फुलाए हुए ही राज स्कूल चला गया...
"चलो.. बताओ.. अब कैसे बनेगा.. नाश्ता..?" स्नेहा ने बटर और ब्रेड उठाए और वीरू के पास आ गयी
"राज! तुम्हे सर बुला रहे हैं..!"
राज आवाज़ से ही पहचान गया.. यह प्रिया थी.. उसकी आवाज़ में एक अजीब सी मिठास थी... जबकि रिया की आवाज़ में अल्हाड़पन झलकता था....
राज क्लास से बाहर निकला.. प्रिया पहले से ही बाहर थी.. प्रिया को उनदेखा करते हुए वा कुच्छ कदम आगे बढ़ा पर फिर प्रिया की और मूड गया," कौन्से सर?" राज की आवाज़ में रूखापन था...
"ववो.. सॉरी राज.. रियली..!" प्रिया उस'से नज़रें नही मिला पा रही थी..
"कौन्से सर बुला रहे हैं..?" राज ने उसकी बात को अनदेखा करने का दिखावा किया...
"क्या तुम मुझे माफ़ नही करोगे राज? तुम्हे पता है.. मुझे एक पल के लिए भी नींद नही आई... प्लीज़ माफ़ कर दो... कर दो ना.." प्रिया इधर उधर देख रही थी.. कहीं कोई देख तो नही रहा...
"माफ़ तो तुम मुझे कर दो.. मैं भी दूसरों के जैसा हूँ ना.. बदतमीज़..!" राज का गुस्सा तो उसकी पहली रिक्वेस्ट पर ही पिघलने लगा था.. अब तो वह सिर्फ़ दिखावा कर रहा था.. प्रिया को अपने लिए तड़प्ता देख राज को बहुत सुकून मिल रहा था...
"म्मेरा वो मतलब नही था राज.. मैं डर गयी थी.. तुम्हारी कसम... आज के..."
प्रिया ने अपनी बात पूरी की भी नही थी की वहाँ रिया आ धमकी," तुम्हे पता है राज.. ये सारी रात सुबक्ती रही.. मैं भी नही सो सकी.. इसके चक्कर में.. अब इसको माफी दे भी दो..." रिया ने अपना वोट प्रिया के पक्ष में डाला...
"अगर तुम नही बता रही की कौन्से सर बुला रहे हैं.. तो मैं वापस जा रहा हूँ..!" राज ने रिया की बात का कोई जवाब नही दिया...
"मैने झूठ बोला था.. तुमसे बात करने के लिए.. मैं तुम्हारी कसम...." और प्रिया की बात अधूरी ही रह गयी.. राज वापस मूड कर क्लास में चला गया...
" तू चिंता मत कर प्रिया... ये कहीं नही जाने वाला.. मैं सब समझ रही हूँ.. ये तुमसे बदला ले रहा है बस.. चल आ क्लास में चलते हैं.. आ ना!" रिया ने प्रिया का हाथ पकड़ कर क्लास की और खींच लिया...
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" अजीब आदमी है यार तू भी.. उस लड़की को ऐसे ही छ्चोड़ आया.. अंजान लड़कों के पास?" शमशेर को विकी की बात पर बहुत गुस्सा आया...
"चिंता मत कर भाई.. निहायत ही शरीफ लड़के हैं.. उसको प्यार से रखेंगे.. 2-4 दिन की तो बात है.. तब तक मैं मुरारी को निपटा लूँगा..." विकी फोन पर शमशेर से बात कर रहा था," वैसे भी तो उसको लोहरू छ्चोड़कर ऐसा ही करने का प्लान था.. लोहरू छ्चोड़ने पर बाद में टेन्षन आ सकती थी.. उसकी समझ में कुच्छ नही आएगा.. मैने उसको समझा रखा है की मेरी जान को ख़तरा हो सकता है.. अगर कुच्छ हो जाए तो तुम किसी भी सूरत में अपने बयान मत बदलना..."
"यार तुझे बयानो की पड़ी है... वो लड़के स्कूल में पढ़ते हैं यार.. डर जाएँगे.." शमशेर ने विकी से गुस्से में कहा...
"तू चिंता क्यूँ कर रहा है भाई.. स्नेहा बहुत समझदार है.. वो संभाल सकती है अगर कुच्छ उल्टा सीधा हुआ तो..! और मैने अपना एक आदमी भी आसपास जमा रखा है.. अगर कुच्छ होने भी लगा तो वो स्नेहा को मेरा नाम लेकर ले उड़ेगा..." विकी ने शमशेर को तसल्ली देने की कोशिश की..
"पर मान लो तुझे मल्टिपलेक्स मिल भी गया.. बाद में क्या होगा... उस बेचारी का!" शमशेर स्नेहा को लेकर चिंतित था...
"होना क्या है.. ज़्यादा से ज़्यादा उसका बाप उसका खर्चा नही देगा ना.. मैं दे दूँगा.. और बोल?" विकी ने जवाब दिया...
"यार.. तेरी यही बात ग़लत है.. तू सब चीज़ों को पैसे से तोल कर देखता है.. आख़िर वो तुझसे प्यार करती है.." शमशेर के मंन में अभी भी काई सवाल थे..
"तो मैं उस'से प्यार करता रहूँगा ना.. टाइम निकाल कर.. बहुत मस्त है साली.. ऐसी बाला मैने आज तक नही देखी..." विकी ने बत्तीसी निकालते हुए कहा...
"तेरा कुच्छ नही हो सकता भाई.. तू तो पॉलिटिशियन्स से भी एक कदम आगे बढ़ गया है.. खैर जैसा तू ठीक समझे...!" शमशेर ने टॉपिक पर बात करना व्यर्थ समझा..,"वैसे कहाँ रहते हैं.. वो लड़के..?"
"एस.एच.ओ. विजेंदर के घर के ठीक सामने... तू ये बता.. टफ से बात की या नही..."
"हां.. कर ली.. वो तो कह रहा था.. इतनी सी बात मुझे नही बोल सकता था क्या? खैर.. आज रात 8:00 बजे सीधा थाने चला जाना.. टफ और मुरारी वहीं मिलेंगे.. कर लेना जो बात करनी है.. खुलकर.. मैने सब समझा दिया है..." शमशेर ने बुझे मंन से कहा...
"थॅंक यू बॉस! तुस्सी ग्रेट हो.." कहकर विकी ने खुशी खुशी फोन काट दिया था.. वो मन ही मन उच्छल रहा था.. उसके एक ही तीर ने जाने कितने शिकार कर लिए थे... पर हाँ.. एक मासूम भी उसकी चपेट में आ गयी थी... स्नेहा!
" चलो! जनाब बुला रहे हैं?" सी.आइ.ए. थाना भिवानी के एक सिपाही ने ताला खोलते हुए सलाखों के अंदर मुरझाए से बैठे मुरारी से कहा.. शाम के करीब 5 बजे थे..
"देखा.. मैने कहा था ना.. तुम्हारा जनाब ज़्यादा देर तक मुझे ऐसे नही बैठा सकता.. कोई छ्होटा मोटा आदमी नही हूँ मैं.. बाद में उस'से निपाटूंगा भी... ये 'क़ानून' छ्होटे लोगों के लिए बनते हैं... हमारे लिए नही.. आ गया होगा फोन.. उपर से उसके किसी 'बाप' का...." मुरारी ने रुमाल से अपनी गर्दन पर छलक आए पसीने और मैल की पपड़ी सॉफ करते हुए कहा और चौड़ी छाती करके बाहर निकल लिया...
"अब हमें क्या पता साहब.. हम तो हुक़ुम के गुलाम हैं.. जैसा आदेश जनाब करेंगे, मान'ना पड़ेगा.. वैसे मेरी पूरी हुम्दर्दि आपके साथ है.. अगली बार भगवान की दया से जब आप मंत्री होंगे तो मैं आपसे ज़रूर मिलूँगा.. याद रखिएगा मेरा चेहरा..." सिपाही ने मासूमियत से कहते हुए अपने नंबर. बदवा लिए.. मुरारी की नज़र में..
मुरारी ने खुश होकर उसकी पीठ ठोनकी," यहाँ कुच्छ लेन देन नही चलता क्या रे?"
"सब चलता है साहब.. हर जगह चलता है ये तो... पर ना किसी को कुच्छ उपर मिलता.. ना नीचे.. जनाब डीजीपी हरयाणा के भतीजे हैं ना... हम तो बस इंतज़ार ही करते रहते हैं.. की कब दीवाली आएगी और कब बोनस मिलेगा.. साला तनख़्वाह के अलावा एक कप चाय भी नही नसीब होती फोकट में तो... इस थाने में... मेरी बदली ज़रूर करवा देना साहब...." सिपाही ने फिर से लाइन मारी...
"तुम चिंता मत करो बेटा.. मुझे कुर्सी मिलते ही तुम्हारी प्रमोशन पक्की.. पर ये बताओ.. बात किस'से करनी पड़ेगी.. लेन देन की.." मुरारी उसके कान में फुसफुसाया...
सिपाही ने कोई जवाब नही दिया.. टफ के ऑफीस के सामने पहुँच गये थे दोनो..," चलो साहब.. बाकी बातें बाद में..."
मुरारी अंदर घुस गया.. अंदर चल रहे ए.सी. की ठंड में मुरारी को अपना ऑफीस याद आ गया.....
टफ अपनी गद्देदार कुर्सी पर आराम से टेबल के नीचे पैर फैलाए हुए अढ़लेटा सा बैठा था.. उसके सामने 30 की उमर के आसपास के 2 पहलवान से दिखने वाले अच्छे घरों के लोग खड़े थे..
"मुझे बुलाया इनस्पेक्टर?" मुरारी ने गर्दन टेढ़ी करते हुए पूछा.. रस्सी जल चुकी थी.. पर बल अभी तक नही गये थे..
टफ ने जैसे मुरारी को सुना ही नही.. वह टेबल पर आगे की और झुका और सामने खड़े लोगों से बोला," बैठो!"
जैसे ही उन्न दोनो ने बैठने के लिए टेबल के सामने खड़ी कुर्सी खींची; टफ उबाल पड़ा...," सालो.. बैठने के लिए कुर्सी चाहिए तुम्हे.. हां? उधर बैठो.. नीचे!"
"जनाब हमारी भी कोई इज़्ज़त है.. बाहर गाँव वाले आए हुए हैं.. क्यूँ नाक कटवा रहे हो..?" उनमें से एक ने हाथ जोड़कर कहा...
"हूंम्म.. इज़्ज़त.. तुम्हारी भी इज़्ज़त है.. सालो.. जब गाँव की लड़कियों को खेतों में पकड़ते हो तो तब क्या तुम्हारी इज़्ज़त गांद मरवाने चली जाती है... तुम इज़्ज़त की बात करते हो.. बहनचो..." टफ खड़ा हो गया..," कपड़े निकालो... देखता हूँ तुम्हारी इज़्ज़त कितनी गहरी है..!"
"नही.. जनाब.. ये तो पागल है.. लो बैठ गये.. आप तो माई बाप हैं.. आपके सामने नीचे बैठने में भला कैसी शरम..?" कहते हुए दूसरा टपाक से दीवार के साथ साथ कर ज़मीन पर बैठ गया.. और पहले वाले को भी खींच कर बिठा लिया...
"राजेश!" टफ ने सिपाही को आवाज़ लगाई...
"जी.. जनाब.." राजेश तुरंत दरवाजे पर प्रकट हो गया...
"लड़की के बाप को बुलाकर लाओ...!"
"जी जनाब.." राजेश तुरंत गायब हो गया और जब वापस आया तो उसके साथ एक अधेड़ उम्र का आदमी था...
"नमस्ते जनाब!" आदमी ने कहा और अंदर आ गया.. उसकी आँखें भरी हुई थी..
"बोलो ताउ! क्या करना है इनका..?" टफ ने बड़े ही नरम लहजे में बात की..
उस आदमी ने नफ़रत और ग्लानि से ज़मीन पर बैठे दोनो की और देखा और अपनी नज़रें हटा ली..," सब कुच्छ आप पर छ्चोड़ दिया है जनाब.. अब हम तो किसी को मुँह दिखाने लायक रहे नही.. हमारी बेटी.." कह कह कर बुद्धा फूट फूट कर रोने लगा.. उसका गला भर आया...
"ठीक है.. आप जाकर मुंशी के पास बिटिया के बयान दर्ज करवा दो...! मैं कल इनको कोर्ट में प्रोड्यूस कर दूँगा..."
"एक मिनिट जनाब.. क्या हम अकेले में इनसे एक बार बात कर लें... इधर आना ताउ!" दूसरे वाले आदमी ने कहा...
"आप बात करना चाहते हो ताउ?" टफ ने पूचछा..
बुड्ढे ने कोई जवाब ना दिया.. उनके बुलाने पर वो इनकार नही कर सका और बरबस ही उनकी और चला गया....
कुच्छ क्षण दोनो आदमी उसके कान में ख़ुसर फुसर करते रहे.. बुड्ढे के अंदर का स्वाभिमान जाग उठा और कसकर एक तमाचा उनमें से एक को जड़ दिया.. दोनो टफ की वजह से खून का घूँट पीकर रह गये....
"क्या हुआ ताउ? क्या कह रहे हैं ये..." टफ ने दोनो को घूरते हुए कहा..
बुद्धा फफक पड़ा..," कह रहे है.. केस वापस ले लो वरना तुम्हारी छ्होटी बेटी को भी......" इस'से आगे वो ना बोल पाया....
टफ कितनी ही देर से अपने खून में आ रहे उबाल को रोके बैठा था..," कपड़े फाडो इन्न बेहन के लोड़ों के... और नगा करके घूमाओ बाहर.. तब आएगी इनको अकल..!"
टफ के मुँह से निकालने भर की देर थी.. राजेश अपने साथ दो और अपने ही जैसे हत्ते कत्ते पोलीस वालों को लेकर अंदर आ गया...
"हमें माफ़ कर दो साहब.. हमने तो खाली चुम्मि खाई थी.. और चूचियाँ दबाई थी बस..... प्लीज़.. जनाब.. इश्स बार छ्चोड़ दो.. नही.. प्लीज़ फाडो मत.. हम निकाल रहे हैं ना.." टफ का रौद्रा रूप देखकर दोनो अंदर तक दहल गये... और साथ में मुरारी भी.. उसके चेहरे पर पसीना छलक आया था.. और रौन्ग्ते खड़े हो गये थे...
सिपाहियों के कान तो बस अपने जनाब की आवाज़ ही जैसे सुनते थे... 2 मिनिट के बाद ही वो दोनो सिर्फ़ कcचे बनियान में खड़े थे...
"इतनी बे-इज़्ज़ती सहन नही होती जनाब.. हमारी भी पहुँच उपर तक है.. सेंटर में मिनिस्टर है हमारा मौसा...!" पहले वाले आदमी झक मार रहा था..
"एक मंत्री तो ये खड़ा.. तुम्हारे सामने.. इसको भी नंगा करके दिखाऊँ क्या?" टफ ने कहा तो मुरारी को झुर्झुरि सी आ गयी.. उसकी टाँगें काँपने लगी थे खड़े खड़े...
दोनो के मुँह अचानक सिल गये.. अब तक मुरारी पर तो उनका ध्यान गया ही नही था.. मुरारी को इश्स तरह भीगी बिल्ली बने खड़ा देख उनको अपनी औकात का अहसास हो गया....
"दोनो को हवालात में डाल दो.. शाम को इनकी गांद में मिर्ची लगानी है.... चलो ताउ जी.. आप बयान दर्ज करवा दो.." टफ ने कहा और फिर मुरारी की और घूरते हुए बोला..," बैठो.. मैं आता हूँ...!
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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