RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --38
दोस्तो आपका दोस्त राज शर्मा पार्ट 38 लेकर हाजिर है . अब ये तो आप ही बताएँगे की ये पार्ट आपको कैसा लगा दोस्तो कमेंट देना मत भूलना
स्नेहा बाथरूम से नहा धोकर निकली.. विकी भी फोन करके लगभग तभी कमरे में आया था...इश्स नये अवतार में स्नेहा को देखते ही विकी की आँखें उस पर जम सी गयी.. चाहकर भी वो अपनी नज़रों को इश्स कातिल नज़ारे से दूर ना कर सका.. स्नेहा ने शायद अब ब्रा नही पहनी थी.. इसीलिए उसकी सेब जैसी चुचियाँ हल्का सा झुकाव ले आई थी.. पर तनी अब भी हुई थी.. सामने की और.. स्कर्ट नीचे घुटनो से कुच्छ उपर तक था.. मांसल लंबी जांघों का गोरापन और गड्रयापन विकी की सहनशीलता के परखच्चे उड़ाने के लिए काफ़ी था..
स्नेहा ने विकी को घूरते देख एक बार नीचे की और देखा," क्या हुआ.. ? आच्छि नही लग रही क्या..?"
विकी जैसे किसी सपने से बाहर निकला..," श.. नही.. ऐसी बात नही है.. मैं तो बस यूँही.. किसी ख़याल में खोया हुआ था...!"
"सपनो से बाहर निकलो जी और खाने का ऑर्डर दे दो.. बहुत भूख लगी है.." कहकर स्नेहा ने टी.वी. ओन कर दिया और 'हरयाणा न्यूज़' सर्च करने लगी....
जिस बात का अंदेशा विकी ने जताया था.. वही हुआ.. 'हरयाणा न्यूज़' की टीम मुरारी के बंगले के बाहर का कवरेज ले रही थी.. करीब 500 के करीब कार्यकर्ता विरोधी पार्टी के खिलाफ नारे लगाने में अपना पसीना बहा रहे थे... तभी स्क्रीन पर न्यूज़ रीडर की तस्वीर उभरी....
"जैसा की हम आपको बता चुके हैं.. आज शाम पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री. मुरारी लाल की इकलौती बेटी का कथित रूप से अपहरन हो गया.. पोलीस से मिली जानकारी के मुताबिक उस कार को बरामद कर लिया गया है जिसमें स्नेहा जी सवार होकर जा रही थी... घटनास्थल के आसपास खून बिखरा पाया गया है.. इश्स'से पोलीस अंदाज़ा लगा रही है की खून ड्राइवर मोहन का हो सकता है.. पोलीस को आशंका है की कहीं ड्राइवर की हत्या ना कर दी हो.. क्यूंकी उसकी भी अभी तक कोई खबर नही है... इसके अलावा पोलीस इश्स मामले में कुच्छ नही कर पाई है.. श्री मुरारी लाल जी ने आरोप लगाया है की ये
विरोधी पार्टी में उनके कट्टर प्रतिद्विंदी श्री. माखन लाल' और उनके दाहिने हाथ
माने जाने वाले विकी की शाजिस है.... उन्हे तोड़ने के लिए.... ताकि वो आगामी
लोकसभा चुनावों में ना खड़े हों.. कहा ये भी गया है की उनसे 50 करोड़ की
फिरौती माँगी गयी है......"
विकी मामले में अपना नाम सुनकर एक पल को सकपका गया... शुक्रा है उसने अपना नाम 'मोहन' ही बताया था... स्नेहा बेचैनी से खबर में डूबी हुई थी...
रीडर का बोलना जारी था...," हमारे संवाद-दाता ने श्री. मुरारी लाल से संपर्क करने की कोशिश की.. पर वो अवेलबल नही हुए.. हालाँकि फोन पर उनसे बात हुई.. आइए आपको सुनते हैं.. उन्होने क्या कहा:
स्नेहा ने रिमोट फैंकर अपने कान पूरी तरह से टी.वी. पर लगा लिए..
"देखिए.. मैं सबको बार बार बता चुका हूँ कि इश्स घृणित कार्य में माखन और विकी जैसे घटिया आदमी का हाथ है.. विकी ने खुद मुझे फोन करके 50 करोड़ की फिरौती माँगी है... वो लोग मुझे अगले एलेक्षन से हटने की धमकी भी दे रहे हैं.. पर मुझे प्रसाशन पर पूरा यकीन है..मेरी बेटी मुझे जल्द से जल्द वापस मिलेगी.. और जनता इन्न चोर लुटेरों, उठाईगीरों को एलेक्षन में सबक ज़रूर सिखाएगी.."
स्नेहा का सिर फट पड़ने को हो गया... उसके पापा उस वक़्त भी नशे में ही थे.. बातों से सॉफ पता चल रहा था.. अब स्नेहा को यकीन हो गया था की सिर्फ़ अपने राजनीतिक लालच के लिए ही उन्होने इतना घटिया गेम खेला है.... वो सुबकने लगी.. आँखों से अविरल आँसू बहने लगे... विकी ने पास बैठकर उसके कंधे पर हाथ रख दिया...," तुम रो क्यूँ रही हो.. तुम तो सही सलामत हो ना!"
"क्या सबके पापा ऐसे ही होते हैं...? उन्हे मेरी कोई फिकर नही... सिर्फ़ अपने और अपनी अयाशियों के लिए जीने वाले बाप को क्या 'बाप' कहलाने का हक़ है..." स्नेहा रोती हुई विकी से अपने सवाल का जवाब माँग रही थी...
"हमनें श्री मुररीलाल जी से मिलने की कोशिश की.. पर उन्होने बताया की वो किसी ज़रूरी मीटिंग में व्यस्त हैं... अभी नही मिल सकते...."
"मुझे पता है.. उनकी ज़रूरी मीटिंग क्या होती है.." कहते हुए स्नेहा का क्रंदन और बढ़ गया....
"अब चुप भी हो जाओ.. सब ठीक हो जाएगा..." विकी से स्नेहा का रोना देखा नही जा रहा था..
"क्या ठीक हो जाएगा, मोहन.. क्या? क्या मैं सिर्फ़ इश्स बात की सज़ा भुगत रही हूँ की मेरे पिता एक बड़े पॉलिटीशियन है.. ना मैं घर जा सकती हूँ.. ना मैं खुलकर घूम सकती हूँ.. ना मैं जी सकती और ना ही मर सकती... "
टी.वी. की और देख कर रो रही स्नेहा को अचानक विकी ने अपनी बाजुओं में समेत कर अपनी छाती से चिपका लिया.. और उसके बालों में हाथ फेरता हुआ उसको सहलाने, दुलार्ने लगा...
सहानुभूति की शरण में जाकर स्नेहा और भी भावुक हो गयी और उसकी छाती से चिपक कर ज़ोर ज़ोर से रोने लग गयी....
कारण ये नही था की विकी के ज़ज्बात बहक गये थे.. या कुच्छ और.. बुल्की कारण था.. अचानक टी.वी. की स्क्रीन पर माखन और उसकी तस्वीर का आना... अगर स्नेहा वो तस्वीर देख लेती तो किया धारा सब बेकार हो जाता.....
"हमने इश्स बारे में माखन जी से संपर्क करने की कोशिश की तो उन्होने अपने उपर लगे सभी आरोपों को खारिज करके इसको राजनीति से प्रेरित बताया.. हालाँकि वो इश्स बात का जवाब नही दे पाए की आगामी विधानसभा एलेक्षन
में उनकी पार्टी के उम्मीदवार अचानक विदेश क्यूँ चले गये..."
यही वो पल था जब स्क्रीन पर विकी की क्लोसप फोटो दिखाई गयी थी... जान बची सो लाखों पाए....
विकी ने टी.वी. बंद कर दिया.. तभी खाना आ गया... और स्नेहा को अपने आँसू खुद ही पोंच्छ कर सामानया होना पड़ा... वह विकी की छाती से चिपकने का एक बहुत ही सुखद अहसास लेकर बाथरूम में चली गयी.. और विकी ने दरवाजा खोल दिया....
"मैं क्या करूँ मोहन? कहाँ जाऊं?.. क्या मेरा अलग संसार नही हो सकता...?" हालाँकि खाना खाने के बाद स्नेहा काफ़ी हद तक सामानया हो चुकी थी.. पर वो अपने बदन में विकी की चौड़ी छाती से अलग होने के बाद रह रह कर उठ रही कसक को एक बार फिर से मिटा लेना चाहती थी.. अपनी मनभावनी आँखों से विकी के सीने में अपना संसार ढूँढने की कोशिश कर रही थी... वहीं नज़र गड़ाए हुए...
"सब ठीक हो जाएगा.. सानू! मेरा भी दिमाग़ खराब हो गया है.. तुम कहो तो.. थोड़ी सी पी लूँ?" विकी ने झिझकते हुए स्नेहा से पूचछा...
"क्या?" स्नेहा समझ नही पाई थी.. विकी क्या पीने की इजाज़त माँग रहा है...
"वो..!" विकी ने टेबल पर साज़ी बोटेल की और इशारा किया...
"नहिईए.. तुम बहुत अच्छे हो.. मेरे पापा जैसे मत बनो.. प्लीज़!" सानू ने प्यार से कहा...
"ओके!" पूरे भगत बने विकी ने मुस्कुरकर अपने कंधे उचका दिए....
"मुझे नींद आ रही है.. तुम कहाँ सोवोगे..?" स्नेहा के इश्स प्रशन ने तो विकी को हिला ही दिया.. अगर वो ना पूछती तो बिना सोचे ही विकी को बेड पर ही सोना था.. बिना कहे....
"म्म्मै..? मैं कहाँ सोउंगा..? मतलब यहाँ सो जाउन्गा..." हड़बड़ाते हुए विकी ने टेबल की तरफ हाथ कर दिया...
स्नेहा खिलखिला उठी.. ज़ोर का ठहाका लगाया..," तुम इश्स टेबल पर सोवोगे? काँच की टेबल पर...?"
"नही.. मेरा मतलब है कि इसको एक तरफ करके.. नीचे सो जाउन्गा...!" विकी को कुच्छ बोलते ना बन रहा था..
स्नेहा अभी तक हंस रही थी.. एक दम संजीदा हो गयी," तुम ऐसे नही हो 'मोहन' जैसा मैं लोगों को समझा करती थी... तुम बहुत अच्छे हो.. एक दम पर्फेक्ट!" स्नेहा ने वैसा ही उंगली और अंगूठे का घेरा बनाकर कहा.. जैसा गाड़ी में विकी ने उसको देखकर बोला था...
"थॅंक्स...!" विकी ने ज़बरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश की...
"व्हाट थॅंक्स..! हम दोनो यहीं सो सकते हैं.. बेड पर.. काफ़ी चौड़ा है.... आइ मीन.. मुझे कोई प्राब्लम नही है.. तुम्हारे साथ सोने में...!" स्नेहा के बदन में कहते हुए गुदगुदी सी हो रही थी...
"देख लो!" विकी ने चेतावनी दी...
"उम्म्म...देख लिया.. आ जाओ.. सो जाओ!" स्नेहा एक तरफ को हो गयी...," पर चादर तो एक ही है.."
विकी ने बेड पर रखा तकिया ठीक किया और स्नेहा के बाजू में लेट गया.. ," कोई बात नही.. तुम्हारा इतना ही रहम बहुत है..... गुड नाइट!"
"पर मुझे नींद नही आ रही..." स्नेहा उसकी और करवट लेकर लेट गयी...
"अभी तो कह रही थी.. अब क्या हुआ...?"
"हां.. तब आ गयी थी.. अब चली गयी.." ये सब तो होना ही था... पहली बार किसी मर्द के साथ बिस्तेर सांझा हुआ था.. नींद तो भागनी ही थी...
सो तो विकी भी कैसे सकता था.. कयनात का हुश्न जब बाजू में बिखरा पड़ा हो.. समेटने के लिए...
"एक बात पूच्छू.. सच सच बतओगि ना..!" विकी ने भी उसकी तरफ करवट ले ली.. दोनो आमने सामने थे..
"पूच्छो..!"
"तुम्हारा कोई बाय्फ्रेंड नही है क्या..?"
"नही.. उसका क्या करना है...!" स्नेहा शरारत से बोली.. बदन में अरमान अंगड़ाई लेने लगे थे.. बाय्फ्रेंड के लिए...
विकी कुच्छ ना बोला.....
"क्यूँ पूच्छ रहे हो...?"
"बस ऐसे ही पूच्छ लिया... और कोई बात ही नही सूझी....
"क्या अब भी दर्द है!" स्नेहा ने था सा आगे सरक कर विकी के दायें कंधे पर अपना हाथ रख दिया...
विकी की समझ में नही आ रहा था की वह अब अपने दिल की सुने या दिमाग़ की.. घायल होने को बेकरार हुश्न उसकी पहुँच में था.. सिर्फ़ करीब एक फुट का ही फासला था.. दोनो के बीच.. कसंकस में उलझा हुआ बेचारा दिल को लाख समझाने की कोशिश बार बार कर रहा था.. पर सानू के 'हाथ' ने सारी कोशिशों को सरेआम कतल कर ही दिया था.. उसके हाथ की च्छुअन उसको अपनी जांघों के बीच तक महसूस हुई.... पर प्लान की कामयाबी के लिए ज़रूरी था की उन्न दोनो में कोई संबंध ना बने.. क्यूंकी अगर बाद में अगर स्नेहा के विचार सच का पता लगने के बाद बदल जाते हैं.. तो उसका मेडिकल एग्ज़ॅमिनेशन हर झूठह से परदा उठा सकता है..," सोने दो स्नेहा.. नींद आ रही है...!"
"अरे.. यहाँ मेरा किडनॅप हो गया है.. और तुम्हे सोने की पड़ी है..." शरारती स्नेहा ने अपना हाथ कंधे से आगे सरका कर उसकी छाती पर रख दिया...
झटके तो विकी को पहले से ही लग रहे थे.. इश्स बार वाला 440 वॉल्ट का था.. स्नेहा थोड़ी और आगे की और झुक गयी थी.. और उसका हाथ विकी की छाती पर किसी नागिन की तरह रेंग रहा था... उसकी मर्दानगी को चुनौती देता हुआ.. स्नेहा की साँसों में रमाइ हुई उसकी कुंवारेपन की बू.. विकी के फेफड़ों से होती हुई सारे शरीर में हुलचल मचा रही थी..
विकी ने अचानक उसकी कमर में हाथ डालकर उसको अपनी तरफ खींच लिया..," आख़िर चाहती क्या हो अब.. सोने भी नही दोगि क्या..? प्राब्लम क्या है?..... सोने दो ना यार.. प्लीज़!"
विकी द्वारा रूखी आवाज़ में कही गयी पहले वाली पंक्तियाँ स्नेहा के दिल में गहरे तक चुभ गयी.. उसने आख़िर ऐसा किया ही क्या था.. सिर्फ़ छाती पर हाथ ही तो रखा था.. उसके चेहरे के भाव अचानक बदल गये.. खुद को बे-इज़्ज़त सा महसूस करके स्नेहा की आँखें नम हो गयी.. उसकी छाती में धड़क रहे 'कुंवारे' दिल की धड़कन विकी को अपनी छाती में महसूस हो रही थी.. स्नेहा की छातियाँ विकी की छाती में गढ़ी हुई थी.. उस बेचारी को कुच्छ और ना सूझा.. सिवाय अपने को छुड़ाकर करवट बदलने और रोना शुरू कर देने के..
"सॉरी सानू! मेरा ये मतलब नही था.. सच में....!" विकी ने करवट लेकर रो रही सानू के हाथ पर हूल्का सा अपने हाथ से स्पर्श किया...
स्नेहा ने झटका मार कर अपना हाथ आगे कर लिया.. और और तेज़ी से सूबक'ने लगी.....
"ये क्या है स्नेहा.. मैने तो बस सोने के लिए रिक्वेस्ट्की थी.... सॉरी बोला ना..." विकी का दिल पिघल रहा था.. और जांघों के बीच वाला 'दिल' जम कर ठोस होता जा रहा था.. और अधिक ठोस...
"हाँ हाँ.. तुमने तो बस सोने की रिक्वेस्ट की है.. अगर सोना ही था तो जाने देते मुझे.. उन्न दरिंदों के साथ.. तब क्यूँ बचाया था.." स्नेहा अपनी आँखें पोंचछते हुए फिर से करवट लेकर सीधी हो गयी.. उसके कातिल उभार कपड़ा फाड़ कर बाहर छलक्ने को बेताब लग रहे थे... और खास बात ये थी की अपनी दाई और करवट लेकर कोहनी के बल सर रखकर अधलेटे विकी के 'खूनी' जबड़े से सिर्फ़ इशारा करने भर की दूरी पर थे... उसके उभार..
"वो.. दरअसल.. स्नेहा.. बुरा मत मान'ना.. पर जब तुम्हारा हाथ.. मेरी छाती पा लगा तो पता नही अचानक मुझे क्या हुआ.. लगा जैसे मैं बहक रहा हूँ.. सॉरी..!"
"अच्च्छा! तुमने जो मेरे यहाँ पर हाथ रख दिया था... गाड़ी में.. सिर्फ़ तुम्ही बहक सकते हो क्या..?" स्नेहा ने रोना छ्चोड़ खुलकर बहस करने की ठान ली...
"पर... हाँ.. पर मुझे तुम बहुत अच्च्ची लगी थी यार..." सानू ने उसके रेशमी बालों में हाथ फेरा....
"मुझे भी तो तुम अच्छे लगते हो.... तो क्या मैं तुम्हे नही छ्छू सकती...!" स्नेहा ने कहते हुए.. झिझक के मारे अपनी आँखें बंद कर ली...
स्नेहा के मुँह से ऐसी बात सुनकर विकी का सारा खून उबाल खा गया..," सच.. तुम्हे में अच्च्छा लगता हूँ क्या...?"
अब की बार स्नेहा बोल ना पाई.. जाने कैसे बोल गयी थी...
"बोलो ना सानू.. प्लीज़!" विकी ने स्नेहा की दूसरी और वाली बाजू अपने हाथ में पकड़ ली.. उसका हाथ सानू के पेट को हल्का सा छ्छू रहा था.. जो आग भड़काने को काफ़ी था...
कुच्छ देर बाद की चुप्पी के बाद अचानक स्नेहा पलटी और लगभग उसकी पूरी जवानी विकी की बाहों में समा गयी...," और नही तो क्या.. अगर अच्छे नही लगते तो क्या मैं किडनॅपिंग का खुलासा होने के बाद भी तुम्हारे साथ आने को राज़ी होती.... तुम बहुत अच्छे हो 'मोहन' बहुत अच्छे... दिल करता है.. हमेशा तुम्हारी छाती से लिपटी रहू.. मैं वापस नही जाना चाहती.. मुझे अपने घर ले चलो... अपने पास..." कहते हुए स्नेहा अपने बदन में हुलचल महसूस कर रही थी.. वह विस्मयकारी थी.. उसकी जांघों के पास.. कोई ठोस सी चीज़ उसके बदन में गढ़ी जा रही थी.. पर हैरानी की बात ये थी की ये चुभन स्नेहा को बहुत अच्च्ची लग रही थी.. वह सरक कर विकी के और ज़्यादा करीब हो गयी.. उसकी साँसें धौकनी के माफिक चल रही थी.. तेज तेज... गरम गरम....
शब्र रखने की भी तो कोई हद होती है ना.. विकी की हद टूट चुकी थी.. स्नेहा का चेहरा अपने हाथों में पकड़ा और होंठो पर एक रसीला चुंबन रसीद कर दिया...," तुम.. तुम मुझे छ्चोड़ कर तो नही जाओगी ना..."
रठाने मनाने तक तो सब ठीक था.. पर इश्स चुंबन की गरमाहट कच्ची उमर की स्नेहा सहन ना कर सकी.. बदहवास सी होकर अचानक पलट गयी और दूसरी और मुँह करके और लंबी साँसे लेने लगी... उसके गुलाबी होंठ खुले थे.. शायद विकी की दी हुई छाप को एक दूसरे से चिपक कर मिटाना नही चाहते थे...
मुँह फेर कर लेटी स्नेहा के नितंबों का उभार वासना की चर्बी चढ़कर इतना उभर चुका था की बीच रास्ते वापस लौटना किसी 'ब्रह्मचारी' के लिए भी असंभव था.. सारा प्लान विकी को ध्वस्त होता नज़र आने लगा... विकी को लगा ... अगर 2 और पल दूरी रही तो वह फट जाएगा... जांघों के बीच से...
बिना देर किए विकी थोड़ा खुद आगे हुआ और थोड़ा सा स्नेहा की कमर से चिपके पेट पर हाथ रखकर उसको अपनी और खींच लिया.. रोमांच और पहले अनुभव के कामुक धागे से बँधी स्नेहा खींची चली आई.. और दोनो अर्धनारीश्वर का रूप हो गये.. बीच में हवा तक को स्थान नही मिला.. अंग से अंग चिपका हुआ था..
"अब क्या हुआ..?" विकी ने उसके गालों पर जा बिखरे बालों को अपने बायें हाथ से ही जैसे तैसे हटा कर उसके गालों को च्छुआ...
अपने नरित्व में मर्दानी चुभन को महसूस करके स्नेहा पागल सी हो गयी थी.. आँखें जैसे पथरा सी गयी थी.. आधी खुली हुई... लगता था.. वह यहाँ है ही नही.. मॅन सांतवें आसमान में कुलाचें भर रहा था......
हसीन अदाओ का जब जाल बिछ जायेगा
तेरा पूरा वजूद जलवों के जाल में फस जायेगा
कातिल निगाहों का जादू काली घटा बन कर
तेरी अखियों के रस्ते तेरी रग-रग में असीम नशा भर जायेगा
बाहों की सलाखों का मखमली पिंजरा जब बदन पे कब्जा जमायेगा
शरीर का कतरा-कतरा भूकम्प के झटके खायेगा
तू लाख कोशिश कर ले मर्दानगी का हर जज्बा दम तोड़ जायेगा
हर लम्हा अरे पगले वही दफन हो जायेगा
कब्र में दफन एहसास को केवल यही याद आयेगा
जान मेरी कर दो रहम इस बीमार पर
ये उबलता ज्वालामुखी बिना फटे नही रह पायेगा
जिन्दगी वीरान है बिन तेरे
हूँ गुलाम तेरे प्रेम का तेरे अहसासों के सजदे करता चला जायेगा
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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