RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --37
हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा फिर हाजिर है पार्ट 37 लेकर
"पर्रर.. हमें कैसे पता लगेगा की अब पापा क्या करेंगे..?" स्नेहा ने ठीक ही पूचछा था.. वो ना भी पूछती तो विकी उसको बताने वाला था...
"सिर्फ़ एक ही तरीका है... हूमें किसी होटेल में रुकना पड़ेगा... वहाँ टी.वी. पर हम सब कुच्छ देख सकते हैं.. हरयाणा न्यूज़ पर तो ये खबर च्छाई होगी... क्यूंकी पोलीस वाले की बातों से साफ है कि तुम्हारे पापा ने नाटक शुरू कर दिया है...!" विकी ने तिर्छि नज़रों से उसके मंन के भाव पढ़ने की कोशिश की...
स्नेहा व्यथित थी.. जैसा भी था.. था तो उसका बाप ही.... क्यूँ उसने अपनी ही बेटी को घटिया राजनीति के लिए प्रयोग किया.. रही सही कसर उसने सानू को उन्न दरिंदों के हवाले करने की बात सोच कर पूरी कर दी... 7 दिन! वो 7 दिन उसकी जिंदगी के सबसे बदनसीब दिन होते.. अगर 'मोहन' उसको ना बचाता तो...
"कहा खो गयी सानू!" अब विकी को भी सानू के बदन से ज़्यादा इश्स खेल में मज़ा आने लगा था.. सच में दिल कभी दिमाग़ से नही जीत सकता.. दिल जीत कर भी हमेशा हारता ही है....
"कुच्छ नही.. पर आसपास होटेल कौनसा है..? जहाँ हम रुक सकें.....!" सानू ने रिश्तों के भंवर से निकलते हुए विकी की और देखा....
"होटेल तो बहुत हैं.. पर समस्या ये है कि इन्न कपड़ों में......" विकी ने उसकी स्कर्ट की और देखा....
और सानू शर्मा गयी.. पहली बार उसको अपने जवान होने का और अपने कपड़ों के छ्होटे होने का अहसास हुआ.. नज़रें नीची करके उसने अपनी नंगी जांघों को अपने हाथों से ढकने की कोशिश की... और साथ ही अपनी जांघें भीच ली...
आज तक स्नेहा गर्ल'स हॉस्टिल में रहकर ही पढ़ती आई थी.. और वहाँ रहकर स्वच्छन्द सी हो गयी थी... पर विकी की नज़रों ने उसको नारी होने की मर्यादाओं से अवगत करा दिया था.. और अब उसके इन्न कपड़ों के बारे में सीधे कॉमेंट ने तो उसको सोचने पर मजबूर कर ही दिया था... क्या 'मोहन' के उसकी जांघों पर हाथ रखने में अकेले 'मोहन' की ही ग़लती थी...
"अरे.. मेरे कहने का ये मतलब नही था.. मतलब हम वहाँ अपना रिश्ता क्या बताएँगे..." विकी ने उसके भावों को पढ़ते हुए अपनी बात सपस्ट की...
कुच्छ देर की चुप्पी के बाद स्नेहा बोल ही पड़ी," वही कह देना.. जो वहाँ.. पोलीस वाले को कही थी..." सानू कहते हुए लजा गयी...
"क्या?"
"अंजान मत बनो.. तुमने ही तो कही थी..." सानू सिर नीचे किए मुस्कुरा रही थी...
"कि तुम मेरी वाइफ हो.. यही?"
सानू शर्म से लाल हो गयी... बच्ची थोड़े ही थी जो 'वाइफ' होने का मतलब ना समझती हो... पर उसने 'हाँ' में सिर तो हिला ही दिया...
"वहाँ हम कार में थे.. पर होटेल में लोग किसी की वाइफ को इन्न कपड़ों में दिखने को हजम नही करेंगे.... वैसे भी तुम इन्न कपड़ों में 'वाइफ' नही.. गर्ल फ्रेंड ही लगती हो.." कहकर विकी मुस्कुरा दिया...
"मेरे बॅग में एक डिज़ाइनर सलवार कमीज़ है.... वो चलेंगे?" स्नेहा ने उत्सुकता से विकी की और देखा...
"बिल्कुल.. तुम कपड़े बदल लो.." कहकर विकी ने गाड़ी रोक दी... और स्नेहा के मासूम और कमसिन चेहरे को निहारने लगा...
"उतरोगे तभी तो बदलूँगी.. चलो बाहर निकल कर गाड़ी लॉक कर दो.. मैं बस 10 मिनिट लगाउन्गि..!" कहकर स्नेहा विकी की छाती पर हाथ लगाकर उसको बाहर की और धकेलने लगी...
एक झुरजुरी सी विकी के बदन में दौड़ गयी.. शहद जैसा मीठा हुश्न उसके सामने था.. और वह...
खैर विकी बाहर निकल गया.......
बाहर जाते ही विकी ने अपना फोन ऑन किया और माधव से बात करने लगा," हां.. क्या चल रहा है..?"
"सब ठीक है भाई.. पर उनमें से एक की हालत खराब है.. आपने उसकी जांघों में लात जमा दी.. बेचारा कराह रहा है.. अभी तक!" माधव बोला..
"अरे.. बहनचोड़ ने मुझे असली में ही चाकू बैठा दिया... पता नही कितना खून बह गया है... मैने तो देखा भी नही.. खैर रेस्पॉन्स क्या रहा...?"
"पागला गया है साला..! मुखिया पर इल्ज़ाम लगा रहा है... साला सब टीवी वालों को इंटरव्यू दे रहा है.. उसने तो ये भी कह दिया की 50 करोड़ माँगे हैं.. फिरौती
के...!"
"तू छ्चोड़.. अभी मुखिया को कुच्छ मत बताना.. और सुन.. सूर्या होटेल में फोन करवा दे.. कोई मुझे पहचाने ना.. साला जाते ही पैरों की और भागता है.."
"तू अभी तक यहीं है भाई.. बाहर निकल जा.. प्राब्लम हो सकती है.. तेरा भी नाम ले सकता है साला...!"
"तू चिंता मत कर छ्होटे.. उसकी मा बेहन एक हो जाएगी.. तू एक दो दिन बाद झटका देखना....!" विकी के जबड़े भिच गये...
"ले ली या नही.. उसकी लड़की की!" माधव ने दाँत निकाले होंगे ज़रूर.. कहकर...
"नही यार.. दिल ही नही करता.. बेचारी बहुत भोली है.. मासूम सी.. और तुझे तो पता ही है.. मैं रेप नही करता!" विकी मुस्कुराया..
"क्या हुआ.. थर्ड क्लास आइटम है क्या? आपका दिल नही करता तो मुझे ही चान्स दे दो.. यहाँ भी सूखा पड़ा है..!"
"साले की बत्तीसी निकाल दूँगा.. ज़्यादा बकवास की तो.." विकी खुद हैरान था.. वह ऐसा कह कैसे गया... जाने कितनी ही लड़कियाँ उन्होने आपस में बाँटी थी...
"सॉरी भाई.. हां एक बात और.. सलीम और इरफ़ान पर पोलीस ने 7/15 और 420 लगा दी है... अंदर गये.. उनकी भी जमानत करवानी पड़ेगी.."
"क्यूँ.. उन्होने क्या किया..?"
"वो साले आपकी गाड़ी जाने के बाद वहीं बैठकर दारू पीने लगे.. नाका लगाए हुए.. और असली पोलीस आ गयी.. उनको भी रोक लिया नशे में...."
"चल कोई बात नही.. राणा को फोन कर देना.. अपने आप जमानत करवा लेगा..."
"कर दिया है भाई.. 2 दिन लगेंगें..."
"चल रखता हूँ अब... होटेल में याद करके बोल देना.." कहकर विकी ने फोन काटा और वापस गाड़ी के पास पहुँच गया..
वापस आकर विकी ने स्नेहा को देखा तो उसका मुँह खुला का खुला रह गया," सानू! ये तुम हो?"
और स्नेहा मुस्कुरा पड़ी," क्यूँ? जाँच नही रहा क्या?"
"जाँच नही रहा..? तूने तो मेरी फाड़ ही दी.... " ये क्या बोल गया विकी.. खुद वो भी समझ नही पाया.. अब स्नेहा के कपड़े उसके व्यक्तिताव को सही परिभासित कर रहे थे.. एक दम सौम्या.. अद्भुत रूप से मासूम और एक भारतिया आदर्श लड़की की छवि में.. जिसको कोई भी अपनी जिंदगी से जुदा ना करना चाहे.. अब उसके चेहरे का भोलापन और निखरकर आ रहा था.. हालाँकि खुले कपड़ों में उसके कामुक उतार चढ़ाव और गोलाइयाँ छिप सी गयी थी...
"कैसी लगी.. बताओ ना.. मैने पहली बार ऐसे कपड़े पहने हैं.. मेरी सहेली ने गिफ्ट किए थे..."
विकी ने हाथ बढ़कर उसके गले में लटकी चुननी को सरकाकर उसके सिर पर कर दिया और फिर अंगूठे और उंगली को मिलाकर छल्ला बनाते हुए बोला," पर्फेक्ट! मैने तुम्हे पहले क्यूँ नही देखा!"
"क्या मतलब?" अपनी तारीफ़ सुनकर भावुक हो उठी स्नेहा के अधरों पर आई मुस्कान दिल को घायल करने वाली थी...
"कुच्छ नही.. चलते हैं..." विकी ने गाड़ी स्टार्ट कर दी....
"बताओ ना.. ऊई मा.. ये क्या है.." जैसे ही स्नेहा ने उसके कंधे को पकड़ कर उसको हिलाने की कोशिश की.. वो काँप उठी.... उसकी उंगली कटी शर्ट में से बाहर निकल आए माँस के लोथडे पर जा टिकी... और खून से गीली हो गयी...
"आउच.. कुच्छ नही.. हूल्का सा जखम है.. ठीक हो जाएगा.." स्नेहा की उँगली लगने से उसका दर्द जाग उठा.. पर विकी ने सहन करते हुए उसका हाथ हटा दिया...
"नही.. दिखाओ.. क्या हुआ है..? " कहते हुए स्नेहा ने कार की अंदर की लाइट ऑन कर दी.. और उसके हाथ उसके मुँह पर जा लगे..," ओ गॉड! ये कब हुआ..? तुमने बताया भी नही.. " घाव काफ़ी गहरा प्रतीत होता था.. शर्ट के उपर से ही देखने मात्रा से स्नेहा सिहर उठी...
"कुच्छ नही है.. होटेल में चलकर देखते हैं...!" विकी ने गाड़ी की रफ़्तार और तेज कर दी...
स्नेहा फटी आँखों से विकी के चेहरे और घाव को देखती रही.. विकी के चेहरे से पता ही नही चलता था की उसके शरीर का एक हिस्सा इश्स कदर घायल है.. विकी की मर्दानगी का जादू स्नेहा के सिर चढ़कर बोलने लगा... उसके प्रति स्नेहा के भाव पल पल बदलते जा रहे थे...
करीब 15 मिनिट बाद गाड़ी सूर्या होटेल पहुँच गयी... विकी ने गाड़ी पार्किंग में पार्क की और स्नेहा ने अपना बॅग संभाल लिया..," चलें!" विकी का घाव देखकर उसके चेहरे पर उभरी व्याकुलता अभी तक ज्यों की त्यों थी...
विकी की बाई बाजू खून से सनी पड़ी थी.. हालाँकि वो अब सूख चुका था.. जैसे ही मॅनेजर की नज़र विकी की इश्स हालत पर पड़ी वा दौड़कर उसके पास आने से खुद को ना रोक सका..," ययएए क्या हुआ.. भा.. मतलब... बाहर कुच्छ हुआ क्या.. सर?" वो माधव की दी हुई इन्स्ट्रक्षन को भूल ही गया था.. पर विकी ने जब उसको घूरा तो उसने भाई साहब से बदल कर बाहर कह दिया!
"कुच्छ नही.. हमें सूयीट चाहिए.. रात भर के लिए...!" विकी ने अंजान बनते हुए कहा...
"देखिए सर.. हम आपको रूम प्रवाइड नही करा सकते.. जब तक की साथ आने वाली लड़की आपके फॅमिली रीलेशन में ना पड़ती हो... सॉरी..!" कहते हुए मॅनेजर ने आँखें दूसरी और घुमा ली थी.. भाई की आँखों में आँखें डाल कर नखरे करने की उसमें हिम्मत ना थी...
"ये मेरी वाइफ है...!"
"बट.. हम कैसे माने.. ना इनके मान्थे पर सिंदूर है... ना गले में मंगल सुत्र.. और ना ही....."
"चलो.. हम कहीं और रह लेंगे..!" स्नेहा ने पकड़े जाने के डर से विकी को बोला...
"एक मिनिट.... आप मेरे साथ एक तरफ आएँगे मिस्टर. मॅनेजर...!" गुस्से को छिपाने की कोशिश में विकी एक एक शब्द को दाँत पीस पीस कर बोल रहा था...
"पर्र.....!" मॅनेजर आगे कुच्छ बोल पता.. इश्स'से पहले ही विकी ने उसकी बाँह पकड़ी और लगभग खींचते हुए उसको बाहर ले गया....," साले..!"
"पर भाई साहब.. मैने सोचा लड़की को शक नही होना चाहिए कि हम आपको जानते हैं..." कहकर मॅनेजर ने बतीसि निकाल दी... उसको उम्मीद थी की विकी उसकी पीठ थपथपाएगा..
"तेरी मा तो मैं चोदुन्गा साले.. डरा दिया ना उसको.. अब क्या तेरी मा की चूत में लेकर जाउ उसको..."
"स्स्सोररी.. भाई.. सह.. आप ले लीजिए रूम..."
"ना ना.. मत दे.. चुपचाप चल और एंट्री कर.. मोहन नाम है मेरा.. अपना दिमाग़ मत लगाना फिर से..."
"ओ.के. सिर.. !"
-----------
"अब वह कैसे मान गया...?" लिफ्ट से उपर आते हुए स्नेहा ना विकी से पूचछा...
"कुच्छ नही.. थोड़ी टिप देनी पड़ी..!"
उपर पहुँचे तो वेटर उनकी जी हजूरी के लिए दरवाजे पर खड़ा था... जैसे ही दोनो रूम में घुसे विकी का माथा ठनका गया... अंदर बेड को किसी सुहाग की सेज़ की तरह सजाया हुआ था.. पूरा कमरा फूलों की प्राकृतिक खुश्बू से महक रहा था.. टेबल पर जोह्नी वॉकर की बोटेल, दो गिलास और आइस क्यूब्स रखे थे.. स्नेहा सजावट को देखकर खिल सी गयी थी...
"एक मिनिट.. तुम फ्रेश हो लो.. मैं अभी आया..." कहकर गुस्से से भनभनाया हुआ विकी नीचे चला गया...
"साले.. कुत्ते की पूच्छ.. तुझमें दिमाग़ है या नही.. मेरा बॅंड बजा दिया तूने.." विकी ने 2 झापड़ मॅनेजर को मारे और सोफे पर बैठकर अपना सिर पकड़ लिया....
"पर हुआ क्या भाई साहब.. क्या कमी रह गयी..? मैने तो अपनी तरफ से जी जान लगाई है..."
"यार तू अपन तरफ से जी जान क्यूँ लगाता है.. जितना बोला गया उतना क्यूँ नही करता... तू आदमी है या घंचक्कर... साला.."
"ववो.. माधव भाई ने बोला था की आपको पहचान'ना नही है.. और कोई लड़की साथ आएगी.. तो मैने सोचा खास ही होगी..."
"तू अब दिमाग़ मत खा.. मेरे साथ चल और सॉरी बोल की रूम ग़लती से दे दिया.. और 2 मिनिट में दूसरी अड्जस्टमेंट कर..."
"ठीक है.. भाई साहब.. मैं अभी चलता हूँ..!" मॅनेजर के चेहरे पर 12 बजे लग रहे थे....
"सॉरी.. मेडम.. वो ग़लती से आपको ग़लत नंबर. दे दिया.. आक्च्युयली ये किसी वेड्डिंग कपल के लिए है.. आइए.. आपका सामान शिफ्ट करा देता हूँ..." विकी मॅनेजर के साथ नही आया था.... जानबूझकर!
"वो कहाँ हैं..?" स्नेहा सुनकर मायूस सी हो गयी...
"वो कौन..?" मॅनेजर का दिमाग़ भनना रहा था...
"वो.. मेरे पति! और कौन?" कहते हुए स्नेहा का दिल धड़क रहा था.. कितना प्यारा अहसास था स्नेहा के लिए.. विकी जैसा पति!
"ववो.. आते ही होंगे.... लीजिए आ गये...!"
"क्या बात है..?" विकी ने अंजान बनते हुए कहा...
"आक्च्युयली सर....." और मॅनेजर को स्नेहा ने बीच में ही टोक दिया...," देखिए ना मोहन! ये हमारा रूम नही है.. मुझे भी बिल्कुल ऐसा ही चाहिए.... कह रहे हैं.. ये तो किसी वेड्डिंग कपल के लिए है.. जैसे हम बूढ़े हो गये हों.. जैसे हमारी शादी ही ना हुई हो... मुझे नही पता.. मुझे यही रूम चाहिए..."
विकी को उसकी बातों पर यकीन ही नही हुआ.. वो तो ऐसे बोल रही थी जैसे सचमुच की पत्नी हो.. बिल्कुल वाइफ वाले नखरे दिखा रही थी..
"तुम्हारी प्राब्लम क्या है मॅनेजर.. हमें यही कमरा चाहिए.. समझ गये.." विकी ने तुरंत पाला बदल लिया....
"जी सर.. समझ गया.. सॉरी!" कह कर मॅनेजर स्नेहा की और अदब से झुका और बाहर निकलगया.. जैसे मंदिर से निकला हो!"
"ये हुई ना बात.. हमें निकाल रहा था.. कितना प्यारा रूम है... जैसे...." आगे स्नेहा शर्मा गयी...
"तुम्हे सच में यहाँ कुच्छ ग़लत नही लगा..?" विकी का ध्यान रह रह कर टेबल पर साज़ी बॉटले और गिलासों पर जा रहा था....
"यहाँ क्या ग़लत है..?" स्नेहा ने एक बार और जन्नत की तरह सजे कमरे में नज़रें दौड़ाई....
"ये शराब...?????" विकी ने ललचाई आँखों से बोतल की और देखा.. बहुत दिल कर रहा था....
"नही तो.. आदमी तो पीते ही हैं..." स्नेहा किंचित भी विचलित ना हुई.....
"अच्च्छा.. तुमने किसको देखा है..?"
"पापा को.. वो तो हमेशा ही पिए रहते हैं..... अरे हां.. टी.वी. ऑन करो.. देखें पापा क्या नाटक कर रहे हैं...." स्नेहा एक बार फिर मुरझा गयी....
"तुम तब तक टी.वी. देखो.. मैं इसका कुच्छ करके आता हूँ.." विकी स्विच ऑन करने के लिए टी.वी. की और बढ़ा...
"ओह माइ गॉड! मैं तो भूल ही गयी थी.. सॉरी.. पर इश्स वक़्त डॉक्टर कहाँ
मिलेगा...?" स्नेहा ने सूख चुके खून से सनी शर्ट की और देखते हुए कहा...
"अरे डॉक्टर की क्या ज़रूरत है... नीचे फर्स्ट एड पड़ी होगी.. सफाई करके पट्टी बँधवा लेता हूँ... मैं अभी आया 5-7 मिनिट में..."
"वो तो मैं कर दूँगी.. तुम फर्स्ट एड बॉक्स मंगवा लो.. यहीं पर... तुम्हारे बिना मेरा दिल नही लगेगा... डर सा भी लगता है..." स्नेहा ने प्यार भरी निगाहों से विकी की और देखा...
विकी जाकर बेड पर स्नेहा के पास बैठ गया..," इसमें डरने की क्या बात है..? तुम क्यूँ परेशान होती हो... ज़्यादा टाइम नही लगाउन्गा.. ठीक है..?" विकी को माधव के पास फोन करना था..
स्नेहा ने घुटनो के बाल बैठते हुए विकी की बाँह पकड़ ली..," अच्च्छा.. मैं परेशान हो जाउन्गि.. तुमने जो मेरे लिए इतना किया है.. वो? नही तुम कहीं मत जाओ.. मत जाओ ना प्लीज़.. मुझे ये सब करना आता है.."
इश्स हसीन खावहिश पर कौन ना मार मिटे... विकी ने रूम सर्विस का नो. डाइयल
करके फर्स्ट एड बॉक्स के लिए बोल दिया.. स्नेहा की और वो अजीब सी नज़रों से देख रहा था.. नज़रों में ना तो पूरी वासना झलक रही थी.. और ना ही पूरा प्यार ही..
"मैं तब तक कपड़े चेंज कर लेती हूँ.. कहकर स्नेहा ने बॅग से कुच्छ कपड़े निकाल कर बेड पर फैला दिए..," कौनसा पहनु?"
विकी असमन्झस से स्नेहा को घूर्ने लगा.. जैसे कह रहा हो..' मुझे क्या पता...'
"बताओ ना प्लीज़.. नही तो बाद में कहोगे.. 'ये ऐसे हैं.. ये वैसे..' "
"नही कहूँगा.. पहन लो.. कोई भी.." विकी स्नेहा को देखकर मुस्कुराया और बेड पर रखे एक पिंक कलर के सिंगल पीस स्कर्ट टॉप पर नज़रें जमा ली.. यूँ ही.
"ये पहनु? .. पर ये तो पूरा घुटनो तक भी नही आता.. बाद में बोलना मत..." स्नेहा ने विकी की द्रिस्ति को ताड़ लिया.... कहते हुए लज्जा का महीन आवरण उसके चहरे पर झिलमिला रहा था...
"मुझे नही पता यार.. कुच्छ भी पहन लो..." हालाँकि विकी ये सोच रहा था कि उस ड्रेस में वो कितनी सेक्सी लगेगी...
"ठीक है.. मैं यही डाल लेती हूँ..." स्नेहा ने बोला ही था कि वेटर ने बेल बजाई...
"लगता है.. फर्स्ट एड आ गयी.. ले लो.. मैं बाद मैं चेंज करूँगी.. पहले तुम्हारी पट्टी कर देती हूँ..."
--------
"शर्ट तो निकाल दो... पहले.." स्नेहा ने बॉक्स खोलते हुए विकी से कहा...
विकी का दिमाग़ भनना रहा था.. आज तक वो लड़कियों को निर्वस्त्रा करता आया था.. पर आज उसकी जिंदगी की सबसे हसीन लड़की उसको खुद शर्ट निकालने को बोल रही है.. क्या वो झिझक रहा था? हां.. उसके चेहरे के भाव यही बता रहे थे...
"तुम तो ऐसे शर्मा रहे हो.. जैसे तुम कोई लड़की हो.. और मैं लड़का..!" कहकर स्नेहा खिलखिला उठी.. अपने चेहरे की शर्म को छिपाने के लिए उसने हाथों से अपना चेहरा ढक लिया.. हंसते हुए.. हमेशा वो ऐसा ही करती थी..
विकी की नज़र उसके हिलने की वजह से फड़फदा रहे कबूतरों पर पड़ी.. बिना सोचे हाथों में पकड़ कर मसल देने लायक थे.. फिर जाने वो क्या सोच रहा था.. और क्यूँ सोच रहा था...
"निकालो!" स्नेहा के बोल में अधिकार भारी मिठास थी.. और कुच्छ नही...
"निकलता हूँ ना...!" कहते हुए विकी ने एक एक करके अपनी शर्ट के सारे बटन खोल दिए.. जैसे ही वो बाई बाजू से शर्ट निकालने की कोशिश करने लगा.. दर्द से बिलबिला उठा..," अयाया...!"
"रूको.. मैं निकलती हूँ.. आराम से..!" कहकर एक बार फिर स्नेहा उसके सामने आ गयी... घुटनो के बल होकर.. बड़ी नाज़ूक्ता से एक हाथ विकी के दूसरे कंधे पर रखा और दूसरे हाथ से धीरे धीरे शर्ट को निकालने लगी," दर्द हो रहा है?"
दर्द तो हो रहा था.. पर उतना नही.. जितना मज़ा आ रहा था.. विकी आँखें बंद किए अपनी जिंदगी के सर्वाधिक कामुक क्षनो को अपनी साँसों में उतारता रहा.. सच इतना मज़ा कभी उसको सेक्स में भी नही आया था.. स्नेहा के कमसिन अंगों की महक निराली थी.. जिसे वो गुलबों की तेज खुश्बू के बीच भी महसूस कर रहा था.. उसकी 'मर्दानगी' अकड़ने लगी... दिल और दिमाग़ में अजेब सा युद्ध छिड़ा हुआ था..
इश्स बार भी दिमाग़ ही जीत गया.. विकी ने अपने तमाम आवेगो को काबू में रखा.. हालाँकि 'काबू' में रखने की इश्स कोशिश में उसके माथे पर पसीना छलक आया.. ए.सी. के बावजूद...
"उफफफफफ्फ़.. घाव तो बहुत गहरा है... मुझसे देखा नही जा रहा.." स्नेहा ने शर्ट निकालते हुए घाव को देखते ही आह भरी...
"लो निकल गयी... ! चलो बाथरूम में.. इसको धो देती हूँ..." स्नेहा का दूसरा हाथ अब भी उसके कंधे पर ही था.. और वो यूँही विकी के चेहरे को एकटक देख रही थी.. प्यार से...
------
पट्टी करने के पूरे प्रकरण के दौरान जहाँ भी स्नेहा ने उसको स्पर्श किया.. मानो वही अंग खिल उठा.. आज तक कभी भी विकी को इश्स तरह की अनुभूति नही हुई थी.. वो तो बस आनंद के सागर में गहरी डुबकी लगाकर अपने हिस्से के मोती खोजता रहा....
प्यार और वासना में सदियों से मुकाबला होता आया है.. कुच्छ लोग 'प्यार' होने को सिर्फ़ 'आकर्षण' और 'वासना' मानते हैं.. पर सच तो ये है की वासना प्यार के अनुपम अहसास के आसपास भी कभी फटक नही सकती.. वासना आपको 'खाली' करती है.. वहीं प्यार आपको तृप्त... जहाँ लगातार 'सेक्स' भी हरबार आपको एक सूनेपन और बेचैनी से भर देता है, वहीं आपके यार का प्यार भरा एक हूल्का सा स्पर्श आपको उमर भर के लिए ऐसी मीठी यादें दे जाता है.. जिसके सहारे आप जिंदगी गुज़ार सकते हैं.. यार के इंतज़ार में..
विकी शायद आज पहली बार 'प्यार' के स्पर्श को महसूस कर रहा था.. हॅव यू एवर?
ओके दोस्तो इस पार्ट को यहीं बंद करता हूँ फिर मिलेंगे नेक्स्ट पार्ट के साथ तब तक के लिए विदा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
|