RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
विकी खिड़की में खड़ा होकर घूमड़ आए बादलों को देख रहा था.. किसी गहरी सोच में.. जो प्लॅनिंग वह कर रहा था.. वह घातक थी.. खुद के लिए भी और उसके करियर के लिए भी.. हालाँकि राजनीति में उसकी गहरी पैठ थी... पर इसकी गलियाँ कितनी बेवफा और हरजाई होती हैं.. विकी को अहसास था.. मुरारी की बेटी को अगवा करना खुद सीयेम को चोट पहुँचाने के बराबर था.. पर नफ़रत की आग होती ही ऐसी है.. इसमें खुद के नुकसान या फ़ायदे के बारे में नही सोचा जाता.. बल्कि दुश्मन की तबाही ही अहम होती है.. फिर चाहे जान ही क्यूँ ना चली जाए..
मुरारी का चेहरा जहाँ में आते ही जैसे उसका मुँह कड़वा हो गया.. अधजाली सिगेरेत्टे को बाहर फैंका और थूक दिया," साला भड़वा! कितनी कुत्ती चीज़ है.."
विकी ने बुदबुडाया...
"भाई.. अगर तू मज़ाक कर रहा है तो बता दे.. वरना मेने तो स्विट्ज़र्लॅंड का टूर प्लान कर लिया है.. मैं ख़ुदकुशी नही कर सकता.. सच्ची बोलता हूँ..." काफ़ी देर से सोफे पर खामोश बैठे माधव ने कहा...
"अबे जा साले! तू भाग जा.. ये गेम तुझ जैसे गांडुओं के लिए नही है.. अब मुरारी 10 करोड़ देगा और मल्टिपलेक्स का मालिक मैं बनूंगा... अब की बार पिच्छला सारा हिसाब चुकता हो जाएगा..." ,विकी ने हंसते हुए कहा...
"पर यार .. तू करेगा कैसे.. क्या तू उसको खुला चलेंज देगा.... किडनॅपिंग की खबर देगा..." माधव अभी तक डिसाइड नही कर पाया था की वो क्या करेगा....
"तुझे अब इस बात से कोई मतलब नही होना चाहिए.. चल फुट ले.."
"मतलब है भाई.. तुझे पता है.. मैं तुझे नही छ्चोड़ सकता.. बता ना.. कैसे करना है..?"
"बैठकर तमाशा देखना है.. और ताली बजानी है.. छक्का कहीं का.. अब तक क्यूँ गान्ड फटी हुई थी साले..." विकी ने उसके कंधे पर हाथ मारा....
"वो बात नही है भाई.. मुझे पता है.. तू दिमाग़ से कम और दिल में उफान रहे जज्बातों से ज़्यादा काम लेता है.. बस इसीलिए.. सिर्फ़ इसी वजह से अपना 'बल्लू' मुरारी से मात खा गया.. तुझे पता है...." माधव के इतना कहते ही विकी की मुत्ठियाँ और जबड़े भिच गये.. आँखों में खून उतर गया..," इश्स बार मुरारी की गाड़ उसके ही हथियार से मारूँगा.. तू देखता रह माधो.. मैं बल्लू भाई का बदला लूँगा.. देखता रह.. अबकी बार दिल नही दिमाग़ चलेगा.. तुझे एक खुशख़बरी मिलने वाली है.. बस थोड़ी देर रुक जा..." विकी ने अपनी बात पूरी भी नही की थी की दरवाजे के पास गेट्कीपर आया," साहब! कोई मोहन आया है..!"
"यस! जल्दी भेज उसको.. " विकी के चेहरे पर कामयाबी की ख़ुसी लहरा गयी.....
"ये मोहन कौन है भाई..?" माधव भी विकी के साथ ही खड़ा हो गया...
"अभी बताता हूँ.. 2 मिनिट सब्र कर..."
"नमस्ते सर..!"
"आओ आओ मोहन कैसे हो..?" विकी ने मोहन की कमर थपथपाई...
"ठीक हूँ साहब.. ये लो गाड़ी की चाबी...! हमें बहुत डर लग रहा है साहेब.." मोहन के बिना बताए ही ये बात झलक रही थी की वो कितना डरा हुआ है...
विकी ने ड्रॉयर से निकाल कर एक थैला उसको थमा दिया..," पैसे गिन ले.. और अपना फोने मुझे दे.. पैसे घर पहुँच जाएँगे तो माधव तुम्हारी बात करा देगा.. जब तक काम पूरा नही होता.. तू यहीं रहेगा... समझा.."
"ठीक है साहब.. पर मेरे घर वालों पर कोई आँच..."
"तू परवाह मत कर.. मैं देख लूँगा.. पीछे वाले कमरे में जा और दारू शारू गटक जी भर कर.. मलिक की तरह रह..! ऐश कर..."
"ठीक है साहब.." बॅग में 500 की गॅडडीया देखकर मोहन की आँखें चमक उठी," साहब.. वहाँ आज ही जाना है.. मॅ'म साहब को लेने..."
"यार.. मेरा एक काम कर देगा..प्लीज़!"... राज ने स्कूल आते हुए वीरेंदर से कहा...
"अगर उन्न छिपकलियो से रिलेटेड कोई काम है तो बिल्कुल नही...." वीरेंदर ने राज को शंका की द्रिस्ति से देखा...
स्कूल का तीसरा दिन था... प्रिया के करारे हुष्ण का सुरूर राज पर चढ़ता ही जा रहा था.. वीरू भी समझा समझा कर पक गया था.. पर ढाक के तो वही तीन पात...
"यार कोई ऐसा वैसा काम नही है... ज़रूरी है.. पढ़ाई से रिलेटेड..." राज के चेहरे पर गिड़गिडाहट सी उभर आई...
"बोल!" रूखा सा जवाब दिया...
"आ.. वो क्या है की.. छुट्टियों से पहले के प्रॅक्टिकल्स कॉपी करने हैं मुझे... अगर तू.... प्रिया से माँग दे तो... प्लीज़.."
"क्यूँ? प्रिया से क्यूँ.. मैं क्या मर गया हूँ साले..." वीरेंदर की आँखों से प्रतीत हो रहा था कि वो भी उस अचानक बने आशिक से हार मान चुका है... मन ही मन मुस्कुरा रहा था..
"समझा कर यार.. उसने अच्छे से लिखा होगा... माँग देगा ना यार.."
"अच्च्छा.. इश्क़ तुम फरमाओ.. और बलि पर मैं चढ़ु.. ना भाई ना.. अगर बोलने तक की हिम्मत नही है तो छ्चोड़ दे मैदान.." वीरेंदर ने राज का मज़ाक ही तो बना लिया...
"अच्च्छा .. तो तू समझता है की मैं खुद नही कर सकता..." राज ने बंदर घुड़की दी...
"तो कर ले ना यार.. मुझ पर क्यूँ चढ़ रहा है.. जा कर ले..!" वो क्लास में घुसे ही थे की वीरेंदर की करतूत ने राज का चेहरा पीला कर दिया," प्रिया! इसको तुमसे कुच्छ चाहिए...."
राज को काटो तो खून नही.. वो इसके लिए कतयि तैयार नही था.. और कोई लड़की होती तो वो बेबाक ही कह देता.. पर यहाँ तो दाढ़ी में तिनका था.. वह कभी अपनी सीट पर जा बैठे वीरेंदर को तो कभी दरवाजे की और देखने लगा....
आकर्षण की आग दूसरी तरफ थी या नही ये तो पता नही.. पर तिनका तो वहाँ भी मिल ही गया.. उठते बैठते रिया प्रिया को याद दिलाती रहती थी की राज उनकी ही और घूर रहा है.... मतलब तो वो भी समझती ही होगी.. पागलों की तरह एकटक देखते रहने का...
प्रिया ने एक बार राज की और देखा.. नज़रें झुकाई.... फिर उठाई और झुका ली... झुकाए ही रही...
"हां.. क्या चाहिए?" रिया बोल पड़ी.. हालाँकि आवाज़ बहुत मीठी थी पर राज के सीने में तीर की तरह चुभि...
"ववो.. केमिस्ट्री क्की.. प्रॅक्टिकल फाइल... एक बार चाहिए थी... एक बार.. बस!" राज को एक लाइन बोलने में इतनी मेहनत करनी पड़ी की पसीने से तर हो गया...
रिया ने प्रिया का बॅग खोला और उसमें से फाइल निकल कर देदी...
राज ने काँपते हाथो से फाइल पकड़ी और अपनी सीट की और रुख़ कर लिया...
"तूने.. मेरी फाइल क्यूँ दी.. अपनी दे देती.." प्रिया रिया के कान में फुसफुसाई...
"मुझसे थोड़े ही माँगी थी.. प्रिया से चाहिए थी ना!" कहकर रिया खिलखिला पड़ी...
राज का चेहरा देखने लायक था.. हालाँकि उसकी मंशा कामयाब हुई.. पर बे-आबरू सा होकर...
फाइल के एक एक पन्ने को राज इश्स तरह पलट रहा था.. जैसे वह गीता हो... बड़े प्यार से.. बड़ी श्रद्धा से..
ना तो प्रिया अपनी फाइल को वापस माँग पाई और ना ही उस दिन राज उसको वापस कर पाया...
चमचमाती हुई मर्सिडीस होस्टल के गेट के बाहर रुकी.. जानबूझ कर विकी ने ड्राइवर वाली ड्रेस नही डाली थी.. ब्लॅक जीन और कॉलर वाली वाइट टी-शर्ट में सरकार बदले बदले नज़र आ रहे थे.. वरना तो सफेद कुर्ता पाजामा उसकी शख्शियत की पहचान बन चुके थे.. बॅक व्यू मिरर को अड्जस्ट करके उसने एक सरसरी सी नज़र अपने ही चेहरे पर डाली.. 'वह क्या लग रहा है तू' ...विकी मॅन ही मॅन बुदबुडाया और कमर के साथ टँगी माउज़र निकाल कर सीट के नीचे सरका दी...
रेबन के पोलेराइज़्ड गॉगल्स पहने जब नीचे उतरा तो गेट्कीपर बिना सल्यूट किए ना रह सका.. वरना तो वहाँ अगर गार्जियन आते भी थे तो बॅक सीट पर बैठकर....
"सलाम साहब! गाड़ी अंदर ले जानी है तो गेट खोल दूं?"
"नही.. मिस स्नेहा को बोलो ड्राइवर आ गया है.. उसको लेने..!" विकी ने बाहें फैलाकर आसमान को निहारते हुए अंगड़ाई ली...
"ड्राइवर?????.... आप?" गेट्कीपर आसचर्या से जूतों से लेकर गॉगल्स तक पॉलिटीशियन विकी से जेंटलमेन विकी में तब्दील हुए शक्ष को घहूरता चला गया...
" 6 फीट 1 इंच!" विकी ने उसकी आँखों में आँखें डालकर कहा...
"क्या?"
"मुझे लगा मेरी हाइट माप रहे हो.." विकी मुस्कुराया...
"रूम नंबर. क्या है..?
"247! जल्दी करो..." विकी को जल्दी थी.. चिड़िया को लेकर उड़ जाने की...
गेट्कीपर ने एक नंबर. डाइयल किया..," हेलो मॅ'म! रूम न. 247 से स्नेहा जी को नीचे भेज दो... ड्राइवर जी... सॉरी.. आ.. उनका ड्राइवर लेने आया है.." वह अब भी फटी नज़रों से विकी को निहार रहा था....
"ओ तेरी.. क्या पीस है???" दूर से एक लड़की को आते देख विकी की हड्डियाँ तक जम गयी.. 'नही नही.. ये तो स्नेहा हो ही नही सकती.. कहाँ वो बदसूरत मुरारी.. और कहाँ ये हुश्न की परी... वो तो शायद अपने दोनो हाथ उठाकर भी इसकी उँचाई को नही छ्छू सकता... पर विकी खुदा की उस हसीन कृति से नज़रें ना हटा सका...
ज्यों ज्यों लड़की करीब आती गयी.. उसके छ्होटे कपड़ों में छिपे अनमोल खजाने को विकी अपनी पारखी नज़रों से परखने लगा..
करीब 5'8" की हाइट होगी.. कमर तो मानो थी ही नही.. 26" की कमर भी कोई कमर होती है.. उसकी जैसे दूधिया रंग में पूती जांघों पर फँसी हुई गुलाबी रंग की मिनी स्कर्ट पीछे से उसको मुश्किल से ही ढक पा रही होगी... उपर सफेद रंग की चादर सी सिलवटों से भरी पड़ी थी.. उसको क्या कहते हैं.. विकी को अंदाज़ा नही था.. पर वो सिलवटें भी शानदार उभारों का साइज़ च्छुपाने में सक्षम नही थी.. वहाँ से कपड़ा टाइट था.. एकद्ूम.. चलने के साथ ही उसके लूंबे बॉल इधर उधर लहरा रहे थे.....
अचानक विकी का कलेजा मुँह को आ गया जब उस लड़की की मीठी सी आवाज़ उसके कानो में पड़ी...,"कहाँ है.. ड्राइवर?"
गेट्कीपर बिना कुच्छ बोले विकी की और देखने लगा..
"ड्राइवर??? आप.." लगभग वही प्रतिक्रिया स्नेहा की थी.. जो कुच्छ देर पहले गेट्कीपर प्रदर्शित कर चुका था... फिर संभालते हुए उसने अपनी गाड़ी को पहचाना और बोली," गाड़ी अंदर ले आओ..!"
विकी ने गाड़ी स्नेहा के बताए अनुसार ले जाकर रोक दी और बाहर निकल कर खड़ा हो गया...
"समान कौन रखेगा..??"
"क्या ? ओह सॉरी.." विकी को बात सुनकर एकबार गुस्सा आया पर अगले ही पल वो संभाल गया..," कहाँ है..?"
"लगता है.. एक्सपीरियन्स नही है.. आओ.." और कहकर स्नेहा अंदर से लाकर समान रखवाने में उसकी मदद करने लगी....
"आ.. तुमने कब से नौकरी जाय्न की है..?" स्नेहा ने चहकते हुए पूचछा...
"पैदाइशी नौकर हूँ...!" विकी ने तल्ख़ लहजे में जवाब दिया.... दोनो हॉस्टिल से करीब 5 कि.मी आ चुके थे.. जब स्नेहा से चुप ना रहा गया...
"शकल से लगते नही हो.. अब तक तो पापा खूसट ड्राइवर रखा करते थे...!"
"हूंम्म!" विकी ने उसी रफ़्तार से गाड़ी चलाना जारी रखा...
"वैसे हम जा कहाँ रहे हैं.." स्नेहा ने आगे वाली सीट की और झुकते हुए कहा...
"जहाँ कहो...!" विकी अपने प्लान पर काम कर रहा था.. मंन ही मंन.. उसको यकीन नही हो रहा था की वो इतनी आसानी से पहली सीढ़ी पार कर लेगा...
"माउंट आबू चलो.. हमारे स्कूल की ट्रिप वहीं गयी है.."
"नही.. मुझे वो जगह पसंद नही है... कहीं और बोलो..." विकी भला उसके स्कूल की ट्रिप में उसको शामिल कैसे करता...
"व्हाट डू यू मीन बाइ तुम्हे पसंद नही है.. डोंट फर्गेट यू आर ए ड्राइवर... चलो! हम वहीं चलेंगे..."
"नही.. जहाँ मेरा मॅन नही मानता; वहाँ में नही जाता.. कहो तो वापस हॉस्टिल छ्चोड़ दूं...." विकी ने अपने कंधे उचका कर अपना इरादा बता दिया...
"बड़े ईडियट किस्म के ड्राइवर हो.. अगर पापा कहते तो भी नही जाते क्या..?" स्नेहा के माथे की थयोरियाँ पर बल पड़ गये...
"उस.. उनकी बात और है... मैं उनका ड्राइवर हूँ.." कहते हुए विकी का जबड़ा भिच गया था..
"तो मेरे क्या हो?"
"मोहन... मेरा नाम है.... बाकी जो तुम कहो..!" विकी ने रेस पर से दबाव हटाते हुए बोला....
"हे! तुम्हे नही लगता तुम कुच्छ ज़्यादा ही बोलते हो..... एर्र्ररर.. ये गाड़ी क्यूँ रोक दी..?" स्नेहा को अब हर बात अजीब लग रही थी....
"पेशाब करना है.. तुम भी कर सकती हो.. सुनसान जगह है...!" विकी ने खिड़की खोली और बाहर निकल गया....
स्नेहा निरुत्तर हो गयी.. उस'से इतनी बदतमीज़ी से बात करने की हिम्मत आज तक किसी में नही थी..
विकी सड़क किनारे चलता हुआ करीब 10 ही कदम आगे गया होगा... उसने अपनी ज़िप सर्काई और अपना 'लंबू' बाहर निकाल लिया.. वो तो तब से ही बाहर आने को तड़प रहा था.. जब उसने गेट की तरफ मादक अंदाज में मटकती आ रही स्नेहा को देखा था.. बाहर आते ही 2-3 बार उपर नीचे हुआ..
विकी ने जानबूझ कर अपने आपको इश्स पोज़िशन में खड़ा किया था की अगर चाहे तो आसानी से स्नेहा उस भारी भरकम 'जुगाड़' को देख सके...
विकी वापस आया तो स्नेहा का चेहरा तपते अंगारे की तरह लाल हो चुका था.. मानो उसने कोई अनोखी चीज़ देख ली हो.. नज़रें लजाई हुई थी.. जांघे एक दूसरी के उपर चढ़ि थी.. और होंठ तर हो चुके थे.. शायद जीभ घूमकर गयी
होगी...
विकी ने वापस आने पर हर एक चीज़ नोट की थी.. पर रेप उसके प्लान में नही
था.. स्नेहा को इश्स कदर पागल कर देना था की वो कुँवारी हो या रंडी बन चुकी हो.. पके हुए फल की तरह उसकी गोदी में आ गिरे....
"तो बताया नही.. कहाँ चलें...?" विकी ने सीट पर बैठकर गाड़ी स्टार्ट करते हुए कहा...
"जहन्नुम में..." कहकर स्नेहा ने अपना मुँह बाहर की और कर लिया....
"वो भी मुझे पसंद नही... मैं तो जन्नत में रहता हूँ.. ऐश करता हूँ!"
विकी की इश्स हाज़िरजवाबी पर स्नेहा मुस्कुराए बिना ना रह सकी... ," ठीक है फिर.. वहीं चलो!"
"कहाँ?"
"जन्नत में.. और कहाँ..."
"नही.. तुम अभी उस लायक नही हो...!"
"आ तुम पागल हो क्या? एक भी बात का सीधा जवाब नही देते.. मैं तो खुश हो गयी थी.. तुम्हे देखकर.. की पहली बार कोई ढंग का ड्राइवर भेजा है.... तुम हो की.......," ओईईईई मुंम्मी.... ये यहाँ कैसे...?"
विकी ने गाड़ी रोक दी.... पलटा तो चौंक गया..," ययए मुझे दो..!"
"पर ये गाड़ी में कैसे रह गयी... इसको तो पापा के पास होना चाहिए..." स्नेहा हैरत से माउज़र को देख रही थी...," मैं पापा के पास फोन करती हूँ.."
"न्नाही.. कोई ज़रूरत नही है.. ये मेरी है.. पर तुम्हे कैसे मिली.." विकी ने उसके हाथ से माउज़र ले ली...
"ववो.. मैने अपनी टाँग सीधी की तो मेरी सेंडल सीट में फँस कर निकल गयी.. उसको निकाल रही थी तो... पर तुम्हारे पास माउज़र.. तुम सच में अजीब आदमी हो.. इतने महँगे शौक!" स्नेहा उसको अजीब तरीके से देख रही थी....
"वो दरअसल मैं ड्राइवर नही हूँ.. एस.ओ. हूँ तुम्हारे पापा का...!" विकी तब तक सँभाल गया था...
"श.. ई सी!" स्नेहा के भाव विकी के लिए अचानक बदल गये...," सॉरी.. मैने आपसे ग़लत सुलूक किया हो तो..."
"कहाँ चलें...?" विकी ने सवाल किया...
"कहीं भी.. जहाँ तुम चाहो.. बस मुझे खुली हवा में साँस लेनी है.. आप सच में ही कमाल के हो... उ हूऊऊऊऊओ.." स्नेहा ने शीशा नीचे करके बाहर मुँह निकाला और ज़ोर की चीख मारी.. आनंद और लापरवाही भरी चीख....
विकी कुच्छ ना बोला... उसके प्लान का दूसरा हिस्सा कुच्छ ज़्यादा ही जल्दी कामयाब हो गया... स्नेहा का विस्वास जीतने वाला हिस्सा...
गाड़ी सड़क पर एक बार फिर तेज़ गति से दौड़ पड़ी....
"एक मिनिट रोकोगे प्लीज़.. "
"क्या हुआ..?"
"ओहो.. रोको भी..."
"बताओ तो सही.. हुआ क्या है आख़िर..."
"लड़कियाँ लड़कों की तरह बेशर्म नही होती... जल्दी रोको प्लीज़.." स्नेहा के चेहरे पर बेचैनी सॉफ झलक रही थी...
"श.." कहते हुए विकी ने ब्रेक लगा दिए....
स्नेहा गाड़ी से नीचे उतरते ही तेज कदमों से पास की झाड़ियों की तरफ चल दी.. उसकी गान्ड की लचकान देखकर विकी आह भर उठा.. पर कंट्रोल ज़रूरी था... दिमाग़ से काम लेना था इश्स बार!
नज़रों से औझल होते ही विकी ने उसके पर्स में हाथ मारा.. मोबाइल उपर ही मिल
गया.. विकी ने उसको साइलेंट करके अपनी पॅंट की जेब में डाल लिया...
स्नेहा की पेशाब करने की प्यारी आवाज़ ने विकी की धड़कने और बढ़ा दी.. स्नेहा कुँवारी थी.. बिल्कुल कुँवारी.. विकी पेशाब करने की आवाज़ से ही इश्स बारे में कन्फर्म्ड हो गया.. हाथ के इशारे से उसने पॅंट में कुलबुला रहे यार को शांत रहने की नसीहत दी....
स्नेहा वापस आई तो उसकी आँखों में लज्जा सी थी.. एक अपनापन सा था.. एक चान्स था!
"मैं आगे बैठ जाउ?" पेशाब करके वापस आई स्नेहा के मंन में अब आदेश नही.. आग्रह था...
"क्यूँ नही..!" कहकर विकी ने अगली खिड़की खोल दी..
"श थॅंक्स... एक बात बोलूं?" स्नेहा ने अपने आपको अगली सीट पर अड्जस्ट किया...
"हूंम्म... बोलो!" विकी ने हुल्की सी मुस्कान उसकी और फैंकी.. दरअसल वो उस अधनंगे कमसिन बदन को देखकर बड़ी मुश्किल से अपनी बेकरारी छिपा पा रहा था.. चिकनी जांघें बेपर्दा सी उसकी नज़रों के सामने थी.... एक दूसरी से चिपकी हुई!
"मुझे शुरू में ही शक़ था की तुम ड्राइवर तो कम से कम नही ही हो.. तुम तो एकदम हीरो लगते हो...!" स्नेहा अपनी शर्ट को नीचे खींचती हुई बोली.. जो सिमट कर उसकी नाभि तक पहुँच गयी थी...
"हूंम्म.. बिना हेरोयिन के भी कोई हीरो होता है भला..." जाने विकी बात को कहाँ घुमा रहा था...
"मतलब!" क्या सच में वो मतलब नही समझ पाई होगी...?
"कुच्छ नही.. बस ऐसे ही...!"
"मतलब तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नही है.. है ना?" स्नेहा ने हुल्की सी मुस्कान उसकी तरफ फैंक दी...
गर्ल फ.... सुनते ही अनगिनत सुंदर चेहरों की कतार सी विकी की आँखों में घूम गयी.. पर प्रत्यक्ष में वो कुच्छ और ही बोला..," कुच्छ ऐसा ही समझ लो..! कोई मिलती ही नही...!"
"उदास क्यूँ होते हो.. जब तक हम हैं.. हूमें ही समझ लो.." स्नेहा ने कातिल मुस्कान उसकी और फैंकते हुए कहा...
"सच!" मानो विकी को बिन माँगे ही मोती मिल गया हो.. इतनी देर से उस पर टूट पड़ने को बेताब विकी का हाथ एक दम से उसकी जांघों पर जाकर चिपक गया...
"आएययी.. ऊउउउउ..." स्नेहा ने एक दम से उसका हाथ दूर पटक दिया," स्टॉप दा कार... आइ सेड स्टॉप दा कार...!" अचानक से स्नेहा का चेहरा तमतमा उठा...
विकी के दिल में आया की गाड़ी रोक कर अभी उसको अपनी गोद में बैठकर झूला दे.... उसको लगा मामला तो बिगड़ ही गया है.. पर फिर भी उसने संयम रखा और गाड़ी रोक दी....
"तूमम.. तुम बहुत बदतमीज़ हो.. तुमने किस बात का क्या मतलब निकाल लिया.." कहते हुए स्नेहा ने गुस्से से खिड़की पटकी और पीछे जाकर बैठ गयी... उसकी आँखों में आँसू थे....
उसके बाद करीब 2 मिनिट तक गाड़ी में कोई हुलचल नही हुई... आख़िरकार विकी को ही चुप्पी तोड़नी पड़ी..," चलें?"
स्नेहा कुच्छ ना बोली... अपनी आँखें मसल मसल कर वो लाल कर चुकी थी...
विकी किसी भी तरह बात को संभाल लेना चाहता था..," सॉरी... वो... मैं समझा की........"
"क्या समझे तुम... हां.. क्या समझे..? यही की मैं कोई आवारा लड़की हूँ... यही की लड़की के लिए उसकी इज़्ज़त.. उसकी आबरू कोई मायने नही रखती.. बोलो!" स्नेहा का ये रूप विकी के लिए किसी आठवे अजूबे से कम नही था.. उसकी आँखों से विकी के प्रति क्षणिक घृणा और ग्लानि भभक रही थी," सारे मर्द भेड़िए होते हैं.. मैने हंसकर दो बात क्या कर ली... तुम जैसे लोगों के लिए गर्लफ्रेंड का एक ही मतलब होता है....!" स्नेहा का हर अंग एक ही भाषा बोल रहा था.. तिरस्कार तिरस्कार और तिरस्कार....
विकी की तो बोलती ही बंद हो गयी.. हालाँकि उसकी शरारती आँखें पूच्छ रही थी..," देवी जी! ऐसे कपड़ों में कोई नारी को पूज तो नही सकता!" पर मामला और बिगड़ सकता था.. इसीलिए आँखों की बात ज़ुबान तक वो लेकर नही आया..," मैने बोला ना सॉरी! आक्च्युयली तुम ऐसी... हो की मैं रह ना सका.. मेरे ज़ज्बात काबू में ना रहे.. अब तो माफ़ कर दो...!"
नारी की सबसे बड़ी कमज़ोरी.. खुद को शीशे में देखकर इतराना और खुद की प्रसंशा सुनकर सब कुच्छ भुला देना.. स्नेहा भी अपवाद नही थी.. विकी की इश्स बात से उसके कलेजे को अजीब सी ठंडक पहुँची जिसकी खनक उसके अगले ही बोल में सुनाई दी," अब चलो भी... अंधेरा हो रहा है.. रात भर यहीं पड़े रहोगे क्या...?" स्नेहा ने अपने आँसू पोंच्छ दिए या हुश्न की तारीफ़ की लेहायर उन्हे उड़ा ले गयी.. पता ही नही चला.. आँखों में आँसुओं का स्थान अब चिरपरिचित चमक ने ले लिया था... गाड़ी फिर दौड़ने लगी....
"अब मौन व्रत रख लिया है क्या? कुच्छ बोलते क्यूँ नही..." लड़की थी.. भला चुप कैसे रहती... 10 मिनिट की चुप्पी ने ही स्नेहा को बोर कर दिया...
विकी कुच्छ नही बोला.. नारी की हर दुखती राग को वह पहचानता था...
"श गॉड! लगता है फोन हॉस्टिल में ही रह गया...! मुझे पापा को फोन करना था...!" स्नेहा अपने पर्स को खंगालने लगी... पर फोन मिलना ही नही था.. वो तो विकी की जेब में पड़ा था.. साइलेंट!
"एक बार अपना फोन देना...!" स्नेहा ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया...
विकी ने मोहन वाला फोन निकल कर स्नेहा को पकड़ा दिया.....
करीब 3 बार फोन करने के बाद मुरारी ने फोने उठाया," साले.. पिल्ले के बच्चे.. कितनी बार बोला है..... रंग में भंग मत डाला कर...!"
स्नेहा को उसके पापा के पास दो लड़कियों के हँसने खिलखिलाने की आवाज़ सुनाई दी..," ओह डार्लिंग! यू आर सो हॅंडसम.. मुऊऊउऊन्हा!"
स्वेता का दिल बैठ गया," पापा! ... मैं हूँ...!" अपने पापा का रंगीलापन देख उसका नरित्व शर्मसार हो गया....
"ओह्ह्ह.. मेरी बच्ची! कैसी हो.. मोहन पहुँच गया ना...!"
"हां पापा.. मैं फोने रखती हूँ..." कहकर उसने फोन काटा और गुस्से से पटक दिया....
"क्या हुआ?" विकी ने अचरज भरी नज़रों से मिरर में देखा...
"कुच्छ नही.. बस बात मत करो.. मेरा मूड खराब है!"
"हुआ क्या है?... अगर मुझे बताने लायक हो...." विकी ने गाड़ी की रफ़्तार धीमी कर दी...
"बोला ना, कुच्छ नही.. पर्सनल बात थी.... तुम बताओ.. तुम कहाँ के हो.. इश्स'से पहले कहाँ थे.. वग़ैरह वग़ैरह...." स्नेहा ने बात को टालते हुए कहा...
"हमारा क्या है मेडम..! रोटी के लिए आज यहाँ कल वहाँ... जिंदगी तो तुम जैसे बड़े लोगों की होती है.. ऐश ही ऐश.. ना कोई चिंता.. ना फिकर.. !" विकी ने अपने पत्ते फैक्ने शुरू कर दिए थे.....
"ऐसा क्यूँ कहते हो...? क्या मेरी एक भी बात से तुम्हे लगा की मुझ में बड़े होने का कोई गुमान है.. मैने तो जब से होश संभाला है.. बस इश्स अनाथाश्रम जैसे हॉस्टिल में ही रह रही हूँ... पापा कभी मुझे घर लेकर ही नही जाते.. ले भी गये तो दिन के दिन वापस..." स्नेहा की आँखें सूनी हो गयी.. मानो अपनेपन की तलास में भटक भटक कर थक गयी हों...
"पर... ये तो बहुत जाना माना हॉस्टिल है.. अनाथाश्रम कैसे?.. और आप भी तो.. एक्दुम परियों के जैसे रहती हो.. बेइंतहा कर..." विकी ने बात को आगे बढ़ाया!
"अनाथ उसी को कहते हैं ना... जो बिना मा-बाप के रहता हो! मम्मी को तो कभी देखा ही नही.. बस पापा हैं... वो भी.." कहते हुए स्नेहा का गला रुंध गया... जिसके अपने 'अपने' नही होते... वह सबको अपना मान'ने लगता है.. किसी को भी!
"आप ऐसा क्यूँ कह रही हैं मॅम साहब!.. आप तो...."
"ये मेमसाहब मेमसाहब क्या लगा रखा है.. मैं स्नेहा हूँ.. मुझे मेरे नाम से बुलाओ!"
विकी जानता था.. लड़कियाँ ऐसा ही बोलती हैं.. जब कोई उनको अच्च्छा लगने लग जाए..," पर मॅम.. सॉरी.. पर मैं तो आपका नौकर हूँ ना!"
"नौकरी गयी तेल लेने... मुझे अब और घुटन नही चाहिए.. मैं जीना चाहती हूँ.. कम से कम.. जब तक तुम्हारे साथ हूँ.. ओके? कॉल मी स्नेहा ओन्ली.. वी आर फ्रेंड्स!" कहकर स्नेहा ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया.. फ्रेंडशिप का प्रपोज़ल देकर...
विकी ने स्नेहा का कोमल हाथ अपने बायें हाथ में लपक सा लिया,"मैं.. अब क्या कहूँ.. आप को समझ ही नही पा रहा.. इतनी जल्दी गुस्सा हो जाती हैं.. तो उतनी ही जल्दी फिर से...!"
"सच बताओ.. मैं तुम्हे गुस्सैल दिखती हूँ... वो.. उस समय तो... खैर.. हम चल कहाँ रहें हैं.. ये तो बताओ..." स्नेहा धीरे धीरे लाइन पर आ रही थी...
"एक मिनिट..." कहते हुए विकी ने गाड़ी रोकी और बाहर निकल गया.. घना अंधेरा असर दिखाने लगा था... रात हो गयी थी...
"हेलो.. माधव!"
"हां भाई..? सब ठीक तो है ना.. कहाँ हो.. तुम्हारा फोन भी ऑफ आ रहा है..." माधव चिंतित लग रहा था...
"अरे मैं बिल्कुल ठीक हूँ.. और वो मेरे साथ ही है.. सब तरीके से हो रहा है.. किसी बूथ से फोन करवा मुरारी को.. बोल दे की उसकी बेटी किडनॅप हो गयी है.. जल्दी करना.. अब रखता हूँ.. हां.. मोहन को संभाल कर रखना.. उसको टी.वी से दूर रखना...." कहकर विकी ने फोन काट दिया.... और ऑफ कर दिया...!
वापस आया तो स्नेहा बेचैनी से उसकी राह देख रही थी...," कहाँ चले गये थे.. मुझे डर लग रहा था.."
विकी अपनी अनामिका (छ्होटी उंगली) खड़ी करके मुस्कुराया और गाड़ी में बैठ गया...
"तुम भी ना.. इतनी जल्दी!" कहकर स्नेहा खिलखिलाने लगी.. विकी ने भी हँसने में उसका साथ दिया.. सुर मिलने लगे थे.. दूरियाँ कम होने लगी.. एक अपनापन सा अंगड़ाई लेने लगा.....
गाड़ी फिर चल दी.... पता नही कौन्से रोड पर गाड़ी चल रही थी.. स्नेहा को जान'ने की कोई जल्दी नही थी.. पर विकी को फिकर थी.. अब गाड़ी जल्द से जल्द बदलना ज़रूरी हो गया था.....
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
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