RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --31
हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा गर्ल्स स्कूल पार्ट 31 लेकर आपके लिए हाजिर हूँ दोस्तो जैसा कि आप जानते है ये कहानी कुछ ज़्यादा ही लंबी हो गयी है इसलिए प्रत्येक किरदार के साथ कहानी को लेकर चलना पड़ता है जैसे दिशा , गौरी और वाणी को हम नही भूल सकते इसलिए इस पार्ट मैं इन्ही तीनो की कहानी है दोस्तो जिन दोस्तो ने इस कहानी के इस पार्ट को पहली बार पढ़ा है उनकी समझ मैं ये कहानी नही आएगी इसलिए आप इस कहानी को पहले पार्ट से पढ़े
तब आप इस कहानी का पूरा मज़ा उठा पाएँगे आप पूरी कहानी मेरे ब्लॉग -कामुक-कहानियाँब्लॉगस्पॉटडॉटकॉम पर पढ़ सकते है अगर आपको लिंक मिलने मैं कोई समस्या हो तो आप बेहिचक मुझे मेल कर सकते हैं अब आप कहानी पढ़ें
काफ़ी देर तक सोच विचार करने के बाद दिशा को एक बात सूझी.. क्यूँ ना दोनो बहने चल कर प्रिन्सिपल मेडम के घर सो जायें.. दोनो को खाना खिला कर सुलाने के बाद चलने में क्या हर्ज़ है.. सुबह सुबह आ जाएँगे वापस..
दिशा आकर चुप चाप बैठे मनु और अमित के पास बैठ गयी," तुम दोनो चुप कैसे हो गये? मैं खाना बनती हूँ.. तब तक तुम टीवी देख लो.." दिशा के चेहरे पर चिंता की लकीरें सॉफ दिखाई देने लगी थी...
"नही.. कुच्छ नही दीदी! वो... हम सोच रहे थे की हमें चलना चाहिए.. सारा आधे घंटे का तो रास्ता है.. पहुँच जाएँगे आराम से!" मनु ने उठ'ते हुए कहा..
मनु की बात सुनकर दिशा शर्मिंदा सी हो गयी.. उसको लगा उन्न दोनो ने उनकी बातें सुन ली हैं," अरे नही नही... अब तो देर भी काफ़ी हो चुकी है.. फिर यहाँ रुकने में क्या बुराई है.. तुम आराम से टीवी देखो.. मैं खाना बना लेती हूँ...!" कह कर दिशा उठी ही थी की वाणी ने एक नये अवतार में कमरे के अंदर प्रवेश किया...
निसचीत तौर पर वाणी का वो नया अवतार ही था.. क्रीम कलर का मखमली लोवर और खुली सी उसी कपड़े की बनी टी-शर्ट पहन कर वो बाहर निकली तो मनु की साँस बीच में ही अटक गयी.. पल भर के लिए उपर से नीचे तक वाणी का कातिलाना अंदाज देखकर ही मनु के माथे पर पसीना छलक आया.. वह वापस वहीं का वहीं बैठ गया और अपने संवेगो को काबू करने की कोशिश करने लगा.. लोवर घुटनो तक उसकी मांसल चिकनी जांघों से चिपका हुआ था.. वाणी की जांघें केले का चिकना तना मालूम हो रही थी.. टी-शर्ट छ्होटी होने के कारण वाणी के पुस्त क़ातिल नितंबों को पूरा ढक नही पा रही थी, जिस'से उनकी मोटाई के बीचों बीच अनंत खाई स्पस्ट द्रिस्तिगोचर हो रही थी.. बिना बाजू की टी-शर्ट के नीचे शायद वाणी ने कुच्छ भी नही पहना हुआ था.. संतरे के आकर में सीधे तने हुए दोनो फलों के बीचों बीच महसूस हो रहे पैनी नोक वाले दाने इश्स बात का ज्वलंत सबूत थे... वाणी प्रणय की देवी बनकर प्रकट हुई थी.... सच में.. आज
कयामत आने से कोई रोक नही सकता था....
मनु को अपनी और इश्स तरह घूरता देखकर वाणी पानी पानी हो गयी और अंदर टीवी चलकर सोफे पर बैठ गयी...
"तुम दोनो भी अंदर जाकर टी.वी. देख लो.. बस में अभी खाना बना देती हूँ..." कहकर दिशा किचन में चली गयी..
"मनु!" दिशा ने अंदर जा रहे मनु को किचन से आवाज़ लगाई तो मनु को लगा उसका चोरी चोरी लार टपकाना पकड़ा गया.. थूक अंदर गटक'ते हुए मनु ने वापस मूड कर कहा," ज्जई.... दीदी!"
"एक बार फोन देना!"
"ओह्ह्ह.. ये लो!" मनु ने राहत की साँस ली और फोन दिशा को पकड़ा कर अंदर चला गया..
दिशा ने गौरी के पास फोन मिलाया..
उधर से मीठी सी आवाज़ आई.. यक़ीनन गौरी ही थी..
"गौरी.. मैं बोल रही हूँ.. दिशा!"
"हां.. दिशा.. ये आज नये नये नंबर. से फोन कैसे मिला रही हो.. जीजा जी आ गये हैं क्या?"
"नही यार.. दरअसल वो वाणी की सहेली के भैया बारिश की वजह से वापस नही जा पाए.. उनके ही फोन से फोन कर रही हूँ..."
"अच्च्छा.. और सुना.. केयी दीनो से तू आई नही हमारे घर..?"
"इन्न बातों को छ्चोड़ यार.. ये बता आज हमारे घर आ सकती है क्या?" दिशा ने मतलब की बात पर आते हुए कहा..
"उम्म्म.. आज? ..... क्या हुआ...?"
"कुच्छ नही यार.. वो मैने बताया ना.. 2 लड़के आए हुए हैं और मामा मामी शायद आज ना आ पायें... तो कुच्छ अजीब सा लग रहा है.. हम दोनो बहनो को.. सोचा 2 से भले तीन!"
"कौन? वही जो सुबह बाइक पर आए थे...? गौरी के मंन में उस नौजवान की तस्वीर उभर आई जो बेबाकी से उस'से बात कर रहा था....
"तू इन्न बातों को छ्चोड़ यार.. बोल आ सकती है या नही?" दिशा को खाना भी बनाना था...
"हुम्म आ सकती हूँ.. अगर तू मुझे लेने आ जाए तो.. बारिश हो रही है.. और अंधेरा भी हो गया है.. ऐसे में अकेली आने में डर लगेगा..!"
"पर.. मैं भी अकेली कैसे आउन्गि..?..... चल
ठीक है.. मैं आती हूँ.. उनमें से किसी एक को लेकर.."
"ओके! मैं तुम्हे तैयार मिलूँगी... पर मम्मी को मत बताना तुम दोनो अकेली हो..."
"ठीक है.. मगर क्यूँ...?"
"तू सब समझती है यार.. मम्मी क्या सोचेगी?"
"चल ठीक है.. मैं आ रही हूँ!" कहकर दिशा ने फोन काट दिया...
अंदर आकर दिशा ने मनु से कहा," मनु! एक बार तुम्हे मेरे साथ चलना पड़ेगा.. गौरी के घर..."
"गौरी का नाम सुन'ते ही अमित बिना कोई पल गँवाए खड़ा हो गया," मैं हूँ ना दीदी.. मैं चलता हूँ!"
दिशा उसकी बात सुनकर हंस पड़ी," ठीक है.. तुम चलो!" और एक छतरी उठा कर दोनो बाहर निकल गये...
कुच्छ पलों तक कमरे में टी.वी. की आवाज़ गूँजती रही.. अचानक वाणी ने टी.वी. मूट कर दिया..," इतना क्यूँ भाव खा रहे हो..? बोल नही सकते...
मनु का ध्यान तो पहले ही वाणी पर टीका हुआ था.. गला सॉफ करके बोला," क्या नही बोल सकता.. क्या बोलूं?
"क्या बोलू का क्या मतलब... बस बोलो.. कुच्छ भी!" वाणी ने उसकी नज़रों को खुद में भटक'ते हुए देखा तो इतराते हुए उसके स्वर में नारिसूलभ पैनापन आ गया..
"कुच्छ भी क्या बोलूं.. मुझे बोलना ही नही आता." मनु ने सच ही कहा था.. बोलना आता होता तो कब का बोल ही ना देता!
वाणी बात करते हुए अपने लंबे बालों को पिछे बाँधने लगी.. ऐसा करने से उसके उभारों में आगे की और कामुक उभर आ गया.. वाणी जानती थी.. मनु की नज़र कहाँ है.. आख़िरकार पहल वाणी को ही करनी पड़ी," मैने किचन से तुम दोनो की बातें सुनी थी..."
"का...कैसी बातें?"
"वही जो अमित कह रहा था.. की अगर तुझमें हिम्मत नही है तो मैं जाकर बोल देता हूँ वाणी को!"
मनु बिना बोले ये अंदाज़ा लगाने की कोशिश करता रहा की वाणी ने सिर्फ़ इतना ही सुना है या और भी कुच्छ...
मनु को चुप बैठे देख वाणी को ही एक बार फिर बोलना पड़ा," क्या तुम'मे सच में ही हिम्मत नही है..?"
"किस बात की हिम्मत..?"
"मुझसे बोलने की... और क्या?"
"क्या बोलने की..!" मनु के दिल में आ रहा था की जैसे अभी बोल दे.. होंठो से... होंठो को ही.. कानो को नही!
खीज उठी वाणी ने सोफे पर रखा तकिया उठाया और मनु की तरफ फैंक दिया.. मनु ने तकिया लपक लिया....
"बोल दो ना प्लीज़..." वाणी सामने से उठकर उसके साथ वाले सोफे पर जा बैठी..
" तुम बहुत प्यारी हो वाणी... तुम्हारे जैसी मैने आज तक सपने में भी नही देखी!" मनु ने उसका हाथ अपने हाथ में लेने की कोशिश की तो वाणी शर्मकार वहाँ से उठ गयी.. और वापस पहले वाली जगह पर जाकर अपनी आँखें बंद कर ली...
"अब बोल रहा हूँ तो कोई सुन नही रहा.." कितनी हिम्मत करके मनु ने अपने दिल के अरमानों को ज़ुबान दी थी...
"फिर बोलते रहना था ना.. तुम तो मुझे छू रहे थे.." वाणी के शब्दों में हया का मिश्रण था..
"तुम्हे मेरा छूना बुरा लगा वाणी!" मनु उठकर वाणी के पास घुटने टेक कर बैठ गया.. और फिर से उसका हाथ पकड़ लिया..
वाणी की आँखें बंद हो गयी.. उसके शरीर में मीठी सी हुलचल सी हुई.. उसके अरमानों ने अंगड़ाई सी ली..," नही.. मुझे डर लग रहा है.." वाणी का शरीर भारी सा होकर उसके काबू से बाहर होता जा रहा था.. लग रहा था.. जैसे बदन अभी टूट कर मनु के आगोश में जा गिरेगा!
"डर???? ... मुझसे..." मनु उसके हाथ को अपने हाथ से सहलाने लगा..
"नही.. खुद से.. कहीं बहक ना जाऊं.." वाणी ने अपना शरीर ढीला छ्चोड़ कर नियती के हवाले कर दिया था... अपने मनु के हवाले!
"मैने सपने मैं भी नही सोचा था...." मनु की बात अधूरी ही रह गयी.. बाहर दरवाजा खुलने की आवाज़ के साथ ही वाणी ने अपना हाथ वापस खींच लिया और मनु संभालने की कोशिश करता हुआ वापस अपने स्थान पर जा बैठा.........
तीनो जब अंदर आए तो गौरी का चेहरा तमतमाया हुआ था.. हमेशा रहने वाली मधुर मुस्कान उसके चेहरे से गायब थी.. वो आई और दिशा के साथ सीधे किचन में चली गयी.
"क्या हुआ गौरी? तुम्हारा मूड अचानक खराब क्यूँ हो गया?" दिशा ने चुप चाप आकर आलू छील'ने में लग गयी गौरी की और हैरानी से देखती हुई बोली..
"कुच्छ नही हुआ.." गौरी रोनी सूरत बना कर काम में लगी रही...
"कुच्छ तो ज़रूर हुआ है.. घर से चली तब तो तू बहुत खुश थी.. अचानक तेरे बारह कैसे बज गये.." दिशा ने उसका चाकू वाला हाथ पकड़ लिया," यहाँ आकर खुश नही है क्या?"
"ऐसा कुच्छ नही है दिशा.. बस यूँ ही.. कुच्छ याद आ गया था!.. मैं ठीक हूँ!" गौरी ने अपने आपको सामान्य बना'ने की कोशिश करते हुए कहा...
तभी वाणी वहाँ आ धमकी.. उसके चेहरे से बेकरारी और प्यार की खुमारी पहचान'ना मुश्किल नही था," मैं भी हेल्प करती हूँ.. मनु को भूख लगी है.. जल्दी खाना तैयार करते हैं..."
"अच्च्छाा.. मनु को भूख लगी है.. बाकी किसी को नही!" दिशा ने चटकारे लेते हुए कहा...
वाणी किचन में बैठ कर आता गूँथ रही दिशा के पीछे से उसके गले में बाहें डाल कर लगभग उस पर बैठ ही गयी," नही दीदी.. उसने बोला है ऐसा.. की उसको भूख लगी है.."
"ठीक है ठीक है.. तू ऐसे मत लटका कर.. पता है तू कितनी भारी होती जा रही है.." दिशा का इशारा उसके वजन की और नही.. बल्कि आकर में बढ़ते जा रहे 'संतरों' की और था..
"उम्म्म 46 किलो की ही तो हूँ.." कहते हुए वाणी ने दिशा के उपर अपना वजन और बढ़ा दिया...
"ये अमित करता क्या है?" चुपचाप बैठी गौरी आख़िरकार अमित के प्रति अपनी उत्सुकता दर्शा ही बैठी..
"मैं पूच्छ कर आती हूँ..." कहकर वाणी अंदर भाग गयी...," अमित.. आप करते क्या हो.. दीदी पूच्छ रही हैं..."
"कुच्छ नही करता.. बस ऐश करता हूँ.." अमित ने शरारती मुस्कान फैंकते हुए कहा...
"अरे.. खुशख़बरी देना तो में भूल ही गया था.. हम दोनो का आइआइटी में सेलेक्षन हो गया है.. पिच्छले महीने ही रिज़ल्ट आ गया था.." मनु को अचानक याद आया...
"ये कोई खुशख़बरी हुई.. आइटीआइ तो हमारे गाओं का कल्लू भी करता है.." वाणी ने
जीभ निकाल कर मनु को चिड़ाते हुए कहा....
"पागल वो आइटीआइ है.. मैं आइआइटी की बात कर रहा हूँ.. आइआइटी की.. समझी.."
"सब पता है जी.. ज़्यादा भाव मत खाओ.. मेरा भी सेलेक्षन हो जाएगा आइआइटी में.. एक बार 12थ हो जाने दो.. और तुमसे अच्च्छा रॅंक भी आएगा.." कहकर वाणी वापस किचन में भाग गयी...
"यार ये गौरी तो बहुत गरम माल है.. दिल कर रहा है..आज रात में इसका रेप कर दूं?" अमित ने मनु के कान में फुसफुसाया..
"तुझे.. हर समय यही बातें सूझती हैं क्या?" मनु ने उसको मज़ाक में झिड़का.
"हां भाई.. हम तो ऐसी ही बातें सोच ते हैं.. हम ऐसे आशिक़ नही हैं जो अपने प्यार को सीने में च्छुपाए तड़प्ते रहें.. और मौका मिलने पर भी गँवा
दें.. ये 21वी सदी है दोस्त.. गन्ना उखाड़ो और खेत से बाहर.. समझा.. खैर मेरी छ्चोड़.. अपनी सुना.. तुझे अकेला छ्चोड़ कर गया था.. कुच्छ शुरू किया या नही.." अमित ने मनु को मॉडर्न प्यार का पुराण पढ़ाते हुए पूचछा...
"मैं तेरे जैसा बेशर्म नही हूँ.. प्यार की कदर करना जानता हूँ..." मनु अब
भी अपने विचारों पर कायम था..
" करता रह भाई.. और तब तक करते रहना जब तक वो तुझसे उम्मीद छ्चोड़ कर किसी दूसरे को ना पसंद करने लगे... फिर हिलाना अपना घंटा" दरअसल अमित उसको उकसाना चाह रहा था... अपने जिगरी दोस्त का अंदर ही अंदर कुढना उस'से देखा नही जा रहा था..
" देखते हैं.. अंजाम-ए-इश्क़ क्या होता है.." और मनु मुस्कुराता हुआ आँखें बंद करके अकेले में वाणी के साथ बिताए सुखद पलों को याद करने लगा..
"तुझे पता है मैने गौरी को क्या किया..?" अमित ने मनु को हिलाया..
"क्या किया.. कब?" मनु ने आँखें खोलते हुए उत्सुकता से पूचछा..
"जब हम वापस आ रहे थे तो उसने अंधेरे में मेरे पेट में घूसा मारा
था.. मैने उसकी वो दबा दी..." मनु ने मुस्कुराते हुए कहा...," सच में यार ऐसा लगा मानो पिघल ही जाउन्गा.. बहुत गरम चीज़ है यार.."
" 'वो'? .... क्या मतलब.." मनु ने चौकते हुए पूचछा..
"अरे अब हिन्दी में बुलवाएगा क्या?.. 'वो' मतलब उसकी गा....."
"बस बस... तू तो बहुत ही जालिम चीज़ है यार..." टीवी का वॉल्यूम बढ़ाते हुए मनु ने चेहरा उसकी और घुमा लिया...," पर उसने पहले घूँसा क्यूँ मारा..."
"मैने हौले से उसके कान में कह दिया था कुच्छ..." मनु ने कुच्छ को रहस्या ही रखा..
"कुच्छ क्या.. पूरी बता ना!" मनु उत्तेजित सा होने लगा था.. जान ना पहचान.. पहली ही मुलाकात में गान्ड पकड़ ली...
अमित ने गर्व से अपने कॉलर उपर करते हुए कहा.. "हम तो बंदे ही ऐसे हैं भाई.. फ़ैसला ऑन दा स्पॉट..."
"तू बता ना.. कहा क्या था तूने.." मनु जान'ने के लिए तड़प रहा था..
"बस यही की तुमसे ज़्यादा सेक्सी लड़की मैने आज तक नही देखी.." अमित ने बता ही दिया..
"दिशा ने नही सुना...?" मनु उसको आँखें फाड़ कर देख रहा था..
"नही.. दिशा अलग च्छतरी लेकर चल रही थी.. मैं जान बूझ कर उसकी च्छतरी में आया था... धीरे से कहा था.. उसके कान में"
"साले.. पर तेरी इतनी हिम्मत कैसे हो गयी..?" मनु हैरत में था.. अब तक..
"तभी तो कह रहा हूँ.. अपना गुरु बना ले.. सब कुच्छ सीखा दूँगा.. वो मुझे देखकर मुस्कुराइ थी... और बंदे के लिए इतना काफ़ी था.. उसका हाल-ए-दिल जान'ने के लिए.. वो प्यार की मारी हुई लड़की है जानी.. और हमसे अच्च्छा प्यार आख़िर कौन दे सकता है.. बहुत गरम छ्होरी है यार.. जान भी दे दूँगा.. 'उसकी' लेने के लिए.....
दोनो के बीच काम शस्त्रा पर जिरह जारी थी की दिशा, वाणी, और गौरी खाना लेकर अंदर आ गये...," चलो.. टेबल आगे खेंच लो.. खाना खाते हैं..."
और पाँचों आमने सामने बैठ गये.. वाणी 'अपने' मनु के सामने बैठी थी.. पर गौरी जानबूझ कर वाणी और मनु के बीच अमित के सामने ना बैठकर मनु के पास वाली सीट पर बैठ गयी.. दिशा अमित के सामने थी..
"अब पूच्छ लो दीदी.. इन्न दोनो का आइआइटी में सेलेक्षन हो गया है.." वाणी ने रोटी उठाकर अपनी प्लेट में रखते हुए गौरी से कहा...
"कॉनग्रेटबोथ ऑफ योउ!" दिशा ने दोनो की और मुश्कूराते हुए बधाई दी...
"थॅंक्स.. तुम बधाई नही दोगि गौरी जी!" अमित गौरी के अब तक लाल चेहरे को देखकर मुस्कुराया...
"कॉनग्रेट्स मनु!" गौरी की बधाई मनु तक ही सीमित रही...
"और मुझे...?" अमित ने गौरी की प्लेट से रोटी उठा ली..
एक बार तो गौरी ने अपनी रोटी वापस छ्चीन'ने की कोशिश की पर जब दोनो की आँखें चार हुई तो वो शर्मा गयी...अपने गोरे गालों को पिचकाते हुए दूसरी रोटी उठाते हुए बोली..," भीखरियों को कैसी मुबारकबाद...!"
दिशा ने गौरी की बात पर आसचर्या से उसकी और देखा," तुम्हारा 36 का आँकड़ा कैसे बन गया...?"
"36 का नही.. हमारा 69 का आँकड़ा है..." अमित सच में ही बेबाक और बिंदास था..
गौरी ने किसी अश्लील किताब में '69' पोज़िशन के बारे में पढ़ा था.. बात सुनते ही उसके गाल लाल हो गये.. जांघों के बीच पनिया सी गयी और चेहरे की हालत तो देखते ही बनती थी.. बड़ी मुश्किल से खाने का नीवाला गले के नीचे उतरा..
" '69' का आकड़ा...?" दिशा और वाणी दोनो एक साथ बोल पड़ी..,"वो क्या होता है..?"
"क्कुच्छ नही.. मैं भीखारी हूँ ना... '69' का आकड़ा देने लेने वालों के......"
"खाना खाने दे ना यार.. " मनु को डर था.. अमित का कोई भरोसा नही.. कब क्या बोल दे...!"
"कोई खाने देगा तब ना...." अमित का इशारा गौरी की और था...
"हां हां.. रोटी तो मेरी उठा ही ली..तुम्हे अपने हाथ से खिलवँगी अब..." गौरी तब तक संभाल चुकी थी और फिर से मैदान में थी...
"सच.. मैं धन्य हो जवँगा.. अगर एक बार खाली चखा भी दी तो.." अमित पिछे हटने वालों में से नही था...
दिशा और वाणी दोनो इश्स मीठी झड़प का आनंद ले रहे थे.. वो समझ नही पाई थी की रह रह कर अमित बात को कहाँ लेकर जा रहा है..
"ये ले....!" अमित की हर बात का मतलब समझ रही गौरी के लिए वहाँ बैठना सहन नही हो रहा था... वह उठकर जाने लगी तो वाणी ने उसका हाथ पकड़ लिया..," बैठो ना दीदी.. ऐसे मज़ाक में भी कोई रोता है...!"
दिशा के और कहने पर बड़ी मुश्किल से गौरी वापस वही बैठ गयी...
"अगर तुम्हे मेरी बात से बुरा लगा है तो.... सॉरी" अमित ने उसका हाथ ही तो पकड़ लिया..
गौरी की हालत बिन जल मच्चली की तरह होती जा रही थी.... हाथ छुड़ाने की हल्की सी कोशिश के बाद उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान तेर गयी," अच्च्छा बाबा! अब हाथ तो छ्चोड़ दो.. खाना तो खाने दो!"..
"ये लो.. मैने कौनसा जीवन भर के लिए पकड़ा है.." अमित ने उसके हाथ को ज़ोर से दबाया और छ्चोड़ दिया...
अमित की इश्स बात पर सभी ज़ोर ज़ोर से हंस पड़े....
सकपकाई हुई गौरी ने फिर अमित पर ताना मारा," जीवन भर के लिए कोई बेवकूफ़ ही अपना हाथ तुम्हे सौपेगी..." बहस अब गरम होती जा रही थी.. पर अमित एकदम ठंडा था.. कूल मॅन!
" और तुम्हे वो लेवेल अचीव करने के लिए काई जनम लग जाएँगे... इतनी बेवकूफ़ होने तक की कोई तुम्हारा हाथ पकड़ने की सोचे... जीवन भर के लिए...! तुम्हारा तो चेहरा देखते ही मैं समझ गया था... " अमित को पता था.. उसकी आख़िरी लाइन गजब का असर करेगी.. किसी भी लड़की पर..
"क्या समझ गये थे.. मेरा चेहरा देखते ही..." गौरी ने खाना छ्चोड़ कर उस'से पूचछा.. उसके स्वर में नर्मी थी.. इश्स बार.
"कुच्छ नही.. खाना खा लो!" कहते ही अमित अपना खाना ख़तम करके उठ गया.....
"तुम अंदर बेड पर सोना पसंद करोगे या तुम्हारी भी बाहर चारपाई डालूं.. बारिश थम गयी है.. बाहर बहुत अच्छि हवा चल रही है..." दिशा ने बर्तन सॉफ करके अंदर आते ही मनु और अमित से सवाल किया...
"हां.." मनु आगे बोलने ही वाला था की अमित ने उसका हाथ दबा दिया,"हम अंदर ही सो जाएँगे.. मेरी तबीयत कुच्छ ढीली सी है..!"
मनु कुच्छ ना बोला.. उसने सच में ही अमित को अपना लवगुरु मान लिया था...
"जैसी तुम्हारी मर्ज़ी.. हम लड़कियाँ तो बाहर मज़े से सोएंगी..."दिशा ने अपनी राय जाहिर की..
"हम भी यहीं सो जाते हैं ना दीदी... अभी तो बहुत बातें भी करेंगे.. अमित और गौरी दी की लड़ाई भी देखनी है..!" वाणी की आखरी लाइन से शरारत भले ही झलक रही हो.. पर उसकी आँखों के भाव मनु से वियोग ना सह सकने की तड़प बयान कर रहे थे...
"तुझे पता भी है.. 11:30 हो गये हैं.. सुबह उठ कर ही बातें करना अब.. देख लो गौरी.. कितने मज़े ले रहे हैं लोग.. तुम दोनो की लड़ाई के!"
गौरी भले ही उपर से अमित से चिडने का दिखावा कर रही हो.. पर अमित ने उसके पहले असफल प्यार की याद ताज़ा करा दी थी.. कुच्छ पलों के दरमियाँ ही उसको अमित में अपनापन सा झलकने लगा था.. नौकझौंक भी तो अपनो में ही होती है.. फिर अमित की आँखों में उसको अपने लिए काफ़ी आकर्षण देखा था.. सुंदर सजीला तो वो था ही.. हाज़िर जवाबी भी कमाल की थी.. और बेबाकी के तो क्या कहने.. गौरी उसकी उस बात को कैसे भूल सकती थी जो उसने उसके कानो में कही थी," तुम बड़ी सेक्सी हो..!" और फिर जहाँ पर उसने हाथ मारा था.. उसकी तो जान ही निकल गयी होती.. उस सुखद अनुभूति को याद करके रह रह कर उसकी जांघों के बीच उफान आ रहा था..," पर दिशा.. मुझे लगता है हमें भी अंदर ही सो जाना चाहिए.. रात को बारिश फिर आ सकती है.. बेवजह नींद खराब होगी.."
"ठीक है.. फिर बरामदे में डाल लेते हैं... ठीक है?" दिशा ऊँच नीच को समझती थी..
अब इश्स बात को काटने के लिए गौरी क्या तर्क लाती...," ठीक है.. पर कुच्छ देर तक तो टी.वी. देख ही लेते हैं..."
"जैसी तुम्हारी मर्ज़ी.. मैं तो सोने जा रही हूँ.. जब नींद आए तब आकर सो जाना.. बिस्तेर लगा देती हूँ" कहकर दिशा बाहर निकल गयी....
मनु और अमित बेड पर जाकर पसार गये.. वाणी की खुशी का कोई ठिकाना नही था.. अब वो कम से कम कुच्छ समय और मनु का प्यारा चेहरा देख सकती है.. वो सामने वाले सोफे पर जाकर बैठ गयी.. टी.वी. देखना तो एक बहाना था.. रह रह कर उनकी नज़रें मिलती और दिल झंझणा उठते.. आँखों ही आँखों में वो बातें भी हो रही थी.. जिस डर में दिशा ने चारपाई बाहर डाली थी!
"अब बताओ.. तुमने ऐसा क्यूँ बोला था!" गौरी ने अमित को फिर ललकारा.. वजह सिर्फ़ एक ही
थी.. उस'से बातें करने में गौरी को मज़ा आ रहा था...
"क्या बोला था?" अमित ने ऐसा नाटक किया मानो वा सब कुच्छ भूल चुका हो..
"यही की तुम्हारा हाथ पकड़ने के लिए मुझ जैसी लड़की को काई जनम लग जाएँगे..!" गौरी की आँखों में एक आग्रह सा था.. की कड़वा जवाब ना दे.. वो इश्स जुंग को ख़तम करके एक नयी शुरुआत करना चाहती थी.
"मैने ऐसा तो नही बोला?" अमित भी और ज़्यादा बात बढ़ाने के मूड में नही था..
"जो कुच्छ भी बोला था.. पर मतलब तो यही था ना?"
मनु और वाणी को उनकी बहस से अब कोई मतलब नही था.. वो तो अब एक दूसरे में ही खोए हुए थे....
"कुच्छ भी कहो.. पर सच वो था जो मैने तुमसे रास्ते में कहा था.. वो भी तुम्हे बुरा लगा...!" अमित ने करवट लेकर उसकी और चेहरा कर लिया...
"गौरी एक पल के लिए शर्मा सी गयी.. अपने गुलाबी होंठों पर जीभ घुमाई और फिर नज़रें मिलते हुए बोली," पर तुमने हाथ क्यूँ मारा.?"
"कहाँ?" अमित शरारती ढंग से मुस्कुराया..
"तुम सब जानते हो?"
"तुमने भी तो घूँसा मारा था!"
"पर मैने तो पेट में मारा था.. हूल्का सा!" गौरी ने उस पल को याद करके अपनी टाँगें भींच ली... जब अमित ने मजबूती से उसके शरीर के सबसे मस्त हिस्से को एक पल के लिए मजबूती से जाकड़ लिया था..
"आगे पीछे में क्या फ़र्क़ है..?"
"अच्च्छा जी.. कुच्छ फ़र्क़ ही नही है..!" गौरी ने उस'से नज़रें मिलाई पर लज्जावाश तुरंत ही नज़रें हटा ली.. उसके शारीरिक हाव भाव से अमित को पता चल चुका था की वो क्या चाहती है...
"बहुत हो गया.. अब दोस्ती कर लेते हैं.." अमित ने अपना हाथ लेटे लेटे ही उसकी ओर फैला दिया..
"दोस्ती का मतलब समझते हो..?" गौरी की बेकरारी बढ़ती जा रही थी..
"हां.. लड़कियों के मामले में.. गन्ना उखाड़ो और खेत से बाहर!"
"मतलब?" गौरी सच में ही इश्स देसी मुहावरे का मतलब समझ नही पाई...
"कुच्छ नही बस ऐसे ही बोल दिया.. जाओ अब सोने दो!" अमित जान'ता था.. अब वो बात को बीच में नही छ्चोड़ेगी...
"सच में नींद आ रही है क्या?" गौरी का अच्च्छा सा नही लगा..," क्या मैं बहुत बोरिंग हूँ?"
"मैने बताया तो था.. तुम कैसी हो?"
"अब आ भी जाओ.. वाणी.. सुबह उठना भी है.." बाहर से दिशा की आवाज़ आई..
गौरी मायूस होकर उठ गयी.. जाने कैसी ऊटपटांग बातें करती रही.. क्यूँ नही कह पाई अपने दिल की बात.. की.. उसको अमित बहुत अच्च्छा लगा...
बाहर निकलते हुए अचानक वह कुच्छ सोच कर वापस मूडी और अपना हाथ बढ़ा दिया..," दोस्ती?"
अमित ने लपक कर उसका हाथ पकड़ लिया..,"पक्की!"
"एक बात कहूँ?.. मुझे वो बात बुरी नही लगी थी.." कहते हुए गौरी की आँखें लज्जावाश अपने आप ही झुक गयी..
"कौनसी बात?" अमित ने अंजान बनते हुए कहा..
"वही.. जो तुमने रास्ते में कही थी.. और तुम भी वैसे ही हो!" कहकर गौरी ने अपना हाथ झटक लिया और बाहर भाग गयी.. शर्माकर!
वाणी ने अपनी आँखें बंद करके सोने की आक्टिंग कर ली.. उसको पता था.. की सोती हुई 'छुटकी' को दीदी कभी तंग नही करेगी.. वरना उसका मनु से दूर होना तय था.. रात भर के लिए....
"वाणी.. जल्दी बाहर आ जाओ.. सोना नही है क्या?" दिशा ने एक बार फिर पुकारा..
"ये तो सोफे पर ही पसारकार सो गयी.." मनु ने अपनी आवाज़ तेज़ रखी ताकि उसकी झूठ पकड़ी ना जाए..
"ये भी ना.." दिशा उठकर अंदर आ गयी," वाणी.. वाणी!.. उठ रही है या पानी डालूं?" दिशा ने वाणी को पकड़ कर हिलाया..
पर वाणी तो प्रेमसागर में डुबकी लगा रही थी.. पानी की कैसी धमकी.. वो हिली तक नही..
"दिशा को जाने क्यूँ अहसास था की ये नौटंकी हो सकती है.. और जब उसने पेट पर पसरे हाथ को उठाकर गुदगुदी की तो सच सामने आ गया.. वाणी से गुदगुदी सहन नही होती थी.. वह खिलखिलकर अपने को हँसने से ना रोक पाई.. फिर आँखें खोल कर मिन्नत सी की..," सोने दो ना दीदी.. प्लीज़.. मैं यहीं सो जवँगी.. सोफे पर ही.."
अगर मनु अकेला होता तो शायद एक पल के लिए वह अपनी जान को उसकी जान के साथ ही छ्चोड़ भी देती.. पर अमित भी तो साथ था..," नही! चलो बाहर.." आँखें दिखाते हुए दिशा ने वाणी को डाँट लगाई..
मायूस वाणी उठी और रुनवासी सी होकर पैर पटकती कमरे से बाहर जाकर चारपाई पर पसर गयी.. जाने क्या अरमान थे जो खाक हो गये...
"लाइट ऑफ कर दूँ...?" दिशा ने मनु की और देखते हुए कहा..
बेचारे मनु की तो बत्ती गुल हो ही चुकी थी.. जवाब अमित ने दिया..," हां कर दो!"
और अंदर की लाइट ऑफ हो गयी.....
करीब आधा घंटा बाद....
वाणी रो धोकर सो चुकी थी.. दिशा भी गहरी नींद में थी.. पर अमित, मनु और गौरी... तीनो की आँखों से नींद गायब थी.. किस्मत से मिले इश्स मौके को कोई गँवाना नही चाहता था..
"तूने अंदर सोने को क्यूँ कहा.. कम से कम बात तो करते ही रहते..!" मनु को अमित पर गुस्सा आ रहा था..
"थोड़ी देर में अपने आप पता चल जाएगा.. जागता रह.. बस एक काम करना.. कोई भी अगर अब अंदर आए तो हम में से एक बाहर चला जाएगा.. बाकी अपनी अपनी किस्मत..!" अमित ने गुरुमन्तरा मनु को दिया..
"कोई आए मतलब..? तुझे कोई भ्रम है क्या प्यारे!" हालाँकि मनु को उसकी ये आस बहुत प्यारी लगी थी..
"भ्रम नही है बेटा.. पूरा यकीन है.. मैने तो गौरी को इशारा भी किया था.. पता नही समझी की नही.. अगर कोई नही भी आया तो मैं पक्का बाहर जाउन्गा.. तू बता देना.. वाणी को अंदर भेजना हो तो..!" अमित की इश्स बात ने मनु को चौकने पर विवश कर दिया...
"मतलब.. तू.. ?"
"हां.. बिल्कुल ठीक समझा... मैं और गौरी.. अकेले..! तू क्या समझता है.. इतनी मेहनत में यूँही बेकार होने दूँगा... कभी नही..
बस एक बात याद रखना.. अगर गौरी यहाँ आ जाए तो नींद की आक्टिंग किए रहना.. और जब में उसको पूरी तरह तैयार कर दूँ तो एकदम से उठकर बाहर चले जाना.. फिर बाहर चाहे अपनी किस्मत पे रोना या वाणी के साथ सोना.." कहकर अमित मुस्कुराया..
"आइ कान'ट बिलीव यार.. वो नही आएगी.. हाँ अगर राज शर्मा ये कहता तो मैं ज़रूर मान लेता" मनु की पॅंट जांघों पर से बुरी तरह टाइट हो गयी थी..
"तो मैं कब शर्त लगा रहा हूँ.. आ गयी तो ठीक वरना मैं बाहर जाकर उसको जगा लूँगा"
इंतज़ार करते करते जाने कब मनु गहरी नींद में खो गया; पता ही ना चला..
अचानक अंधेरे कमरे के बाहर मद्धयम प्रकाश में एक साया सा उभरा
अमित दम साध कर ये अंदाज़ा लगाने में जुट गया की आख़िर किसकी किस्मत चमकी है.....
अचानक बाहर की लाइट ऑफ हो गयी.. और जो कुच्छ थोड़ा बहुत नज़र आ रहा था वो भी बंद हो गया.. घुपप अंधेरा!
अमित दीवार की और लेटा था.. अब किसी को मालूम नही था की जो साया उनको दिखाई दिया था.. उसने कमरे में प्रवेश किया भी या नही.. मनु गहरी नींद में खो चुका था पर अमित को यकीन था की आने वाली गौरी ही है.. और वो पूरी तरह तैयार था...
पैर दबा कर चलने की हुई हुल्की सी आहट से अमित को अहसास हुआ की दोनो में से एक अंदर आ चुकी है..
अचानक अमित के पैरों पर कोमल हाथ के स्पर्श ने उसके खून को एकदम से गरम कर दिया.. एक पल को उसके दिल में ख़याल आया की उठ कर गौरी को लपक ले.. पर वा जल्दबाज़ी नही करना चाहता था.. सो चुपचाप लेटा रहा..
गौरी का हाथ धीरे धीरे बिना ज़्यादा हुलचल किए उपर की और आता जा रहा था और इसके साथ ही अमित के साँसों में से उसके उबाल चुके खून की गर्मी बढ़ती जा रही थी..
अचानक गौरी ने अपना हाथ वापस खींच लिया और खड़ी हो गयी.. फिर धीरे से फुसफुसाई.. "मनु!"
अमित का दिमाग़ ठनका.. तो क्या ये वाणी है??? पर ऐसा कैसे हो सकता है.. दोनो को हमारी पोज़िशन का पता था.. वह बोलने ही वाला था की अचानक वही फुसफुसाहट अमित के लिए उभरी..," अमित!"
[color=#8000bf][size=large]अमित फिर भी कुच्छ ना बोला.. क्या पता जो कोई भी है.. पहले यकीन कर लेना चाहती होगी की दूसरा जाग तो नही रहा.. ये सोचकर अमित ने चुप्पी ही साधे रहना ठीक समझा.. या फिर क्या पता अमित के मॅन में पाप आ गया हो.. गौरी जैसी तो कोईमिल भी जाए.. पर वाणी जैसी तो कोई दूसरी हो ही नही सकती.. भले ही एक दिन के लिए ही क्यूँ ना हो.. भगवान जाने! पर अमित ने निस्चय कर लिया की वो अपनी सोने की आक्टिंग जारी रखेगा और एक बार झड़ने के बाद ही कुच्छ सोचेगा....[/size
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