RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --24
आज सीमा का आख़िरी पेपर था और टफ सुबह सुबह ही नहा धोकर रोहतक जाने के लिए निकल रहा था जब माजी ने उसको टोका," अजीत बेटा!" "हां मा!" टफ के दरवाजे के बाहर जाते कदम ठिठक गये... "वो मैं कह रही थी... अब तो उमर हो ही गयी है.. रोज़ तेरे रिश्ते वाले चक्कर काट रहे हैं.. कल ही एक बहुत अच्छा रिश्ता आया है... लड़की बहुत ही सुंदर, पढ़ी लिखी और अच्छे घर से है.. तू कहे तो मैं उनको हां कह दूं...?" "मा.. मैं बस तुम्हे बताने ही वाला था.. वो... तुम्हारे लिए मैने बहू देख ली है..." टफ ने थोड़ा शर्मा कर नज़रें झुकाते हुए कहा... "अरे... तूने बताया नही... कौन है.. कहाँ रहती है.. तू जल्दी बता दे.. मैं उनसे मिल लेती हूँ बेटा.. तेरे भैया के विदेश जाने के बाद तो मैं बहू के लिए तरस गयी हूँ... "बतावँगा मा.. बस कुछ दिन रुक जाओ!" कह कर टफ बाहर निकल गया... मा की आँखें चमक उठी.... बहू की आस में! --------------- सीमा ने एग्ज़ॅम ख़तम होते ही टफ को फोन किया..," कहाँ हो?" "सॉरी सीमा... मुझे अचानक ड्यूटी पर जाना पड़ गया.. फिर कभी मिलते हैं.." टफ की आवाज़ आई.... सीमा की शकल पर मायूसी के भाव उभर आए.. रोनी सूरत बना कर वह बोली," पर... मैं... तुम बिल्कुल गंदे हो! मैं एक एक दिन कैसे गिन रही थी.. पता है? मैने तो आज तुम्हारे साथ घूमने का प्रोग्राम बनाया था.. छोड़ो.. मैं तुमसे बात नही करती..!" "घूमने का प्रोग्राम?... सच!" टफ की बाछे खिल गयी.. "और नही तो क्या... मैं मम्मी को बोल के भी आई थी.. की लेट हो जाउन्गि.. पर तुमने तो.. तुम सच में बहुत गंदे हो..!" सीमा प्यार से लबरेज गुस्सा झलकाते बोली.. "वैसे चलना कहाँ था.. सिम्मी?" "सिम्मी...?" कहकर सीमा हँसने लगी," ऐसे तो मेरी मम्मी बुलाती है.. प्यार से!!" "तो मैं क्या तुमसे प्यार नही करता... बोलो!" टफ मस्का लगाने पर उतारू हो गया... "उम्म्म ना! करते होते तो आज यहाँ नही होते क्या..?" "यहीं समझो... तुम्हारे दिल में...!" "दिल में होने से क्या होता है...? मौसम कितना अच्छा है.." सीमा आज कुच्छ मूड में लग रही थी.. "क्यूँ इरादा क्या है..? बड़ी मौसम की बात कर रही हो.." "इरादा तो था कुच्छ... पर तुम्हारे नसीब में ही नही है तो हम क्या करें!" सीमा इतराते हुए बोलती पार्क की तरफ आ गयी... "आज अपना वादा पूरा करना था क्या?" टफ ने उसको कभी बाद में किस देने का वादा याद दिलाया.... "हां करना तो था.. पर तुम्हारी किस्मत ही खोटी है तो मैं क्या करूँ...?" "सच... सच में इरादा था..." टफ उच्छालते हुए बोला.. टफ को अपने लिए इतना मचलता देख सीमा की खुशी का ठिकाना ना रहा.. वह हँसते हुए बोली...," हां... सच्ची... इरादा था..!" "तो चलो चलते हैं....!" टफ ने पिछे से आकर उसकी कमर में हाथ डाल लिया... "ऊईीईईईईईई..." अचानक अपने बदन को छुये जाने से सीमा उच्छल पड़ी... उसको क्या पता था की टफ वहीं से उस'से बात कर रहा था..," तूमम्म!" "और क्या.. तुम्हारे उस वादे की खातिर तो हम स्वर्ग से भी वापस आ सकते हैं.." टफ ने उसकी छाती पर कोमल घूसे बरसा रही सीमा के हाथों को पकड़ते हुए कहा.. "ओह थॅंक्स.. अजीत! तुम आ गये ... मैं सच मैं बहुत नाराज़ हो गयी थी.." सीमा ने अपना सिर उसकी छाति पर टीका लिया... "अब ये बातें छ्चोड़ो और अपना वादे के बारे मैं सोचो...." 'वादे' को याद करके सीमा शर्मा कर 'च्छुई मुई' की तरह कुम्हाला कर टफ से दूर हट गयी... फ़ोन पर बात और थी.. और सामने कुच्छ और... वो शर्मा कर इधर उधर ताकने लगी... "चलो चलते हैं..." टफ ने सीमा का हाथ पकड़ते हुए कहा.. "कहाँ?" सीमा अपना ही वादा याद करके सहमी सी हुई थी.. "कहीं तो चलेंगे ही... आओ..."
और गाड़ी 5 मिनेट में ही सीमा के घर के सामने थी... "मुझे नही पता... मैं कुछ नही बोलूँगी.. तुम खुद ही बात कर लेना.. जो करो.." सीमा ख़ुसी और शरम से मरी जा रही थी.. उसने अपनी मा को कुच्छ नही बताया था.... अभी तक.. वो बता ही नही पाई थी.. "तुम आओ तो सही..." कहकर टफ उस से पहले ही अंदर घुस गया.. सीमा की मा उसको देखकर चिंतित हो गयी.. " क्या हुआ इंस्पेक्तेर साहब?" मा ने दरवाजे की चौखट पर ही नज़रें झुकाए खड़ी सीमा को देखकर डरते हुए कहा... "कुछ नही हुआ.. माता जी..! आप आराम से बैठिए... मुझे आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी है..." सीमा अंदर आकर अपने पिताजी की तस्वीर की और देख रही थी... हाथ जोड़े! "माता जी.. मैं आपकी बेटी को अपने घर ले जाना चाहता हूँ... शादी करके..!" सीमा की मा बिना पलक झपकाए उसको देखने लगी.... "वो क्या है की आप सीमा से पूच्छ लो.. वो भी यही चाहती है... अगर आप इजाज़त दें तो मैं अपनी मा को आपके पास भेज दूं... बात करने के लिए..." मा की आँखों से निर्झर अश्रु धारा निकल पड़ी.. ," बेटा! मुझे यकीन नही होता की हमारी बेटी को उसके अच्छे कर्मों का फल भगवान ने इसी जानम में दे दिया." अपनी आँखें पोन्छते हुए उसने टफ के सिर की तरफ हाथ बढ़ा दिए.... टफ ने अपना सिर झुका कर उनका आशीर्वाद कबूल किया.... "बेटी" मा ने सीमा की तरफ देखते हुए कहा.. सीमा आकर अपनी मा की छ्चाटी से लिपट कर रोने लगी.. मानो उसको आज ही विदा लेनी हो.. अपनी ससुराल जाने के लिए... "क्या हुआ बेटी तुम खुश तो हो ना शादी से..." मा बेटी को रोता देख पूच्छ बैठी.. अपने आँसुओं का ग़लत मतलब निकलता देख सीमा ने झट से अपनी टोन बदल दी...," हां मा! मैं चाय बनती हूँ.. आप लोग बैठिए..." "मैं 2 मिनट में आई बेटी" कहकर मा बाहर निकल गयी... टफ ने जाते ही सीमा के हाथ पकड़ लिए.. और गुनगुनाने लगा," जो वादा किया है वो... निभाना पड़ेगा.." वादा याद आते ही सीमा के गालों पर शरम की लाली आ बिखरी.. नज़रें झुक गयी और होन्ट लरजने लगे.... उनके मिलन की घड़ी अब दूर नही थी.... सीमा जब अपने हाथों को टफ की पकड़ से छुड़ाने की कोशिश करने लगी तो टफ ने उसको छ्चोड़ दिया... सीमा उसकी छ्चाटी से लिपट गयी... प्रेम बेल की तरह! विकी ने आरती को फोन किया," हां आरती! मैने तुझे वो काम करने को कहा था.. क्या रहा?" आरती: सर, मैने आपको पहले ही कहा था. वो ऐसी लड़की नही है.. मैं उसको अच्छी तरह जानती हूँ... वो जान दे देगी.. पर अपने उसूलों से नही डिगेगि... विकी: मुझे भासन मत दो... सिर्फ़ मुझे ये बताओ वो कितने में मिलेगी... आरती: सॉरी सर.. मैने हर तरह से ट्राइ किया, पर उलटा उसने मुझे खरी खोटी सुना दी... और उसकी तो शादी भी होने वाली है.. शायद अगले हफ्ते.. नो चान्स सर! विकी: साली.. रंडी.. विकी के लिए कहीं भी 'नो चान्स' नही है.. अगर मुझे वो नही मिली तो तुझे मेरे कुत्तों से चुड़वांगा... कहकर विकी ने फोन काट दिया... शराब के नशे में धुत्त उसकी लाल आँखों में एक ही चेहरा तेर रहा था... सीमा
/36 घंटे से भी कम समय में विकी ने उसके बारे में हर जानकारी हासिल कर ली थी.. पर कहीं से भी उसको पॉज़िटिव रेस्पॉन्स नही मिल रहा था.. हर किसी ने उसको 'नो चान्स' ही जवाब दिया था.... आज तक विकी जितनी लड़कियों को अपने हरम मे लाया.. वो ऐसे या वैसे सीधी हो ही गयी थी.... पर सीमा ने तो उसको पागल ही कर दिया था.... विकी को उसका अपने गोरे सुंदर चेहरे से अपनी लट हटाना.. नज़रें झुकायं... छाती पर किताब रखे उसकी ओर आना... रह रह कर याद आ रहा था.... सीमा पहली लड़की थी जिसने उसके पैसे और हसियत को इतनी जबरदस्त ठोकर मारी थी... ' नो चान्स ' विकी ने अपना गिलास खाली करके ज़मीन पर दे मारा... मानो शीशे के टूटे हुए गिलास का हर टुकड़ा उस पर हंस रहा हो... पर विकी का घमंड टूटने का नाम ही नही ले रहा था.... आइ विल रेप हर... ''आइ विल रेप हर!" विकी की हुंकार से कोठी का कोना कोना काँप उठा.. उसको खाने की पूछने आ रहा नौकर दरवाजे पर ठिठक गया... विकी ने बोतल मुँह से लगाई और एक ही साँस में बची शराब अपने गले से नीचे उतार ली... नशा हद से ज़्यादा बढ़ गया था... विकी ने दौबारा आरती को फोने लगाया, साली.. कुतिया... मुझे नो चान्स बोला... उसको तो मैं चोदुन्गा ही... तुझे अगर यूनिवर्सिटी के हर लड़के के नीचे ना लिटाया तो मेरा नाम विकी नही... नंगी करके दौडावँगा साली... और सुन ले.. उसको उसकी सुहाग रात से पहले चोदुन्गा... मैं तोड़ूँगा उसकी सील.. मैं.. विकी!" विकी के हर शब्द से उसका रुतबा.. उसका पैसा.. और उसका हाथ टपक रहा था... "प्लीज़ सर..." लड़की की आवाज़ काँप रही थी...," आप जो कहोगे.. मैं करने को तैयार हूँ... प्लीज़.. मैने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है .. मैं फिर कोशिश करूँगी.. मुझे माफ़ कर दीजिए सर..." भय के मारे वो रह रह कर अटक रही थी... "अब तू कुच्छ नही करेगी.. अब मैं करूँगा.. तू सिर्फ़ ये बता.. वो यूनिवर्सिटी आती कब है.." विकी हर शब्द को चबा चबा कर बोल रहा था.. "सर.. अब तो एग्ज़ॅम ख़तम हो गये.. शायद वो अब नही आएगी...!" "चुप.. बेहन की... तो क्या मैं उसको घर से उठा कर लवँगा... बुला उसको.. कही भी... कैसे भी..." "सस्स्सीर.. वो... मेरे कहने से नही आएगी...!" "हाआप.... मादर चोद... अगर तूने कल शाम 4 बजे तक उसको किसी भी तरह से नही बुलाया.. कही बाहर तो समझ लेना.. तू गयी..." कहकर विकी ने फ़ोन काट दिया और कपड़ों समेत ही जाकर शवर के नीचे खड़ा हो गया... उसको सीमा चाहिए थी... हर हालत में... ---------------- अपनी जिंदगी और इज़्ज़त गँवाने के डर से अगले दिन सहमी हुई आरती ने अपनी एक सहेली को कोई बहुत ज़रूरी काम कहकर लाइब्ररी बुला लिया... और उसको बोल दिया की सीमा को ज़रूर लेकर आना है..... आरती को पता था.. सीमा उस लड़की के कहने पर आ सकती है... और हुआ भी यही.... आरती के कहने पर विकी अपनी दूसरी गाड़ी लिए तैयार खड़ा था... यूनिवर्सिटी गेट से थोड़ी पहले... Z ब्लॅक कलर के शीशों वाली गाड़ी भी ब्लॅक कलर की ही होंडा सिटी थी... आरती ने विकी को बता दिया था की उनका फ़ोन आ गया है और वो बस आने ही वाली हैं....
और विकी को सीमा आती दिखाई दे गयी... उसी स्टाइल में.. अपनी लाटो को सुलझाती... नज़रें झुकाए.. फ़र्क सिर्फ़ इतना था की आज वो सामने से आ रही थी... बजाय की बॅक व्यू मिरर में दिखाई देने के... विकी पिच्छली सीट पर बैठा था.. ड्राइवर ने इशारा पाते ही गाड़ी स्टार्ट कर ली... जब करीब तीन चार कदम का ही फासला रह गया तो विकी अचानक गाड़ी से उतरा.. सीमा का ध्यान उस पर नही था... वो तो नज़रें झुकाए चल रही थी... जैसे ही वो पिछली खुली खिड़की के सामने आई.. विकी ने बिना वक़्त गवाए उसकी बाँह पकड़ी और कार के अंदर धकेल दिया.. अचानक लगे इस झटके से सीमा अपने आपको बचा ना सकी और विकी तुरंत अंदर बैठ गया.. गाड़ी चल दी... उसके साथ वाली लड़की अवाक सी खड़ी देखती रह गयी.. 2 मिनट तक उसको जैसे लकवा मार गया हो.. और जब उसको होश आया.. तो शोर मचा कर बचाने वाला कुच्छ वहाँ बचा ही ना था.....
सीमा अचानक हुए इस हमले से हतप्रभ होकर रह गयी... पहले तो वा अपनी आँखें विस्मय से फाडे विकी को देखने लगी.. और जब होश आया तो पागल सी होकर कार के सीशों पर हाथ मार कर चिल्लाने लगी.. पर z- ब्लॅक शीशों में किसी को क्या दिखाई देना था... अंत में वा विकी को अपनी और घूरता पाकर दूसरी तरफ वाली खिड़की से चिपक कर अनुनय भारी नज़रों से विकी को देखने लगी..," य.. ये क्या कर रहे हो... प्लीज़ मुझे नीचे उतार दो...!" विकी पर उसकी याचना का कोई प्रभाव ना पड़ा... वह अपनी जीत पर गर्व से तना बैठा था... उसको लगा.. सीमा उसकी हो चुकी है... उस रात के लिए... करीब 5-6 मिनिट में ही कार कोठी के गैराज में जा रुकी... जैसे ही ड्राइवर ने चाबी निकली, 'कट' की आवाज़ के साथ खिड़किया अनलॉक हो गयी.. सीमा ने तुरंत खिड़की खोली और कार से निकल कर भागी.. विकी ने उसको रोकने की कोशिश नही की... ग़ैराज का मैं गेट बंद हो चुका था... पीछे की तरफ से 4 सीढ़ियाँ चढ़कर एक दरवाजा था... वो कहते हैं के जब मौत आती है तो गीदड़ शहर की और भागता है.. सीमा भी उसी और भागी.. रास्ता सीधा गेलरी से होकर बेडरूम में जाता था... भागती हुई सीमा को गलरी में खड़े करीब 6.5 फीट के कद्दावर बॉडीगार्ड ने पकड़ लिया... "हराम जादे... छोड़ उसे.." विकी की गुर्रति आवाज़ सुनते ही बॉडीगार्ड 2 कदम पीछे हटकर नीचे सिर करके खड़ा हो गया..," सॉरी सर!.. मैं तो आपकी खातिर..." "क्या एम.पी. साहब आए हैं?" विकी ने उसके पास आते हुए पूछा... "जी... सर.. बस अभी आए हैं...." "क्या प्रोग्राम है... ?" विकी ने पलट ते हुए बॉडीगार्ड से पूचछा.. "दिन भर यहीं हैं... शायद रात को जायेंगे.. आलाकमान के पास.. !" विकी अपनी चाल तेज करते हुए बेडरूम में घुसा.... सीमा एक कोने में डुबकी बैठी थी... मंत्री उसके पास ही खड़ा अपने गंदे दाँतों में टूतपिक फसाए.. बेशर्मी से अपना कुर्ता उपर करके पेट पर हाथ फेर रहा था...," आए हाए.. छमियां.. कितना सेक्सी गिफ्ट लेकर आया है विकी मेरे लिए... तेरे जैसी हसीन को चोदे अरसा हो गया... वैसे पहले कभी चुदवाई हो की नही..." सीमा दीवार से चिपकी ज़मीन में नज़रें गड़ाए काँप रही थी... अपने ही शहर में इन्न अंजान भेड़ियों से सीमा को रहम की कोई उम्मीद नही थी... उसकी पास कोई रास्ता नही था.. सिवाय गिड़गिदने के.....," सर.. प्लीज़... आप तो मेरे पिताजी की उमर के हैं... मुझे जाने दीजिए ना... प्लीज़... मैं आपके पैर पड़ती हूँ... उसको कहिए.. मुझे छ्चोड़ दे... आपको याद होगा.. आपने ही पिछले साल मुझे बेस्ट अथलेट का अवॉर्ड दिया था.. आन्यूयल फंक्षन में... आपने मुझे बेटी कहा था सर...." नेता शिकारी बिल्ली की तरह अपने दाँत दिखता बोला...," मैं तो बेटीचोड़ हूँ बेटी... मेरी तो समझ में ही नही आता की मैने अगर तुझे चोदे बिना तुझे अवॉर्ड दे दिया तो ये चमत्कार कैसे हो गया..... खैर.. कोई बात नही... शाम तक ब्याज समेत वसूल कर लूँगा....!" :
/"गुड मॉर्निंग सर!" विकी ने अंदर आते ही नेताजी का ध्यान अपनी और खींचा..," वेरी गुड मॉर्निंग विकी भाई... बस यूँ समझ लो.. तुम्हारी पार्टी की तरफ से इस बार एम ल ए. की उम्मीदवारी पक्की... वैसे कहाँ से ले आया इस उदंखटोले को... कितनी मासूम सी दिखाई देती है... तू भी यार कमाल कर देता है.... चल अब थोड़ी देर बाहर इंतज़ार कर...." नेता ने अपना कमीज़ उतारकर अपना पूरी बाजू वाला बनियान उतारने की तैयारी करने लगा..... विकी ने सीमा की आँखों की मासूमियत और पवित्रता को पहली बार गौर से देखा.. भय से फैली हुई बदहवास आँखों में इस वक़्त याचना के अलावा कुछ नही था.. हां... नमी भी भरपूर थी जो डर के कारण आँसू में बदल नही पा रही थी..... सीमा की नज़रें विकी की आँखों से मिलते ही उसके दिल में उतरती चली गयी... जाने क्यूँ उसका दिल चाहा की वा सीमा को यूँ ही जाने दे... पर अब वा उसके हाथ में नही था... उसका शिकार उस से भी बड़े सैयार के हाथ में था... गणपत राई के हाथों में.. वा पार्टी का एक कद्दावर नेता था, और इस बार उनकी सरकार आते ही सी.एम. की कुर्सी संभालने वाला था... और विकी को टिकेट उसके ही कहने पर मिलने वाला था... जो की विकी का राजनीति पर राज करने के सपने को पूरा करने वाला पहला कदम होता... विकी निराश होकर बाहर निकालने ही वाला था की उसके फोने पर टफ की कॉल आ गयी... विकी वहीं खड़ा होकर फ़ोन सुन'ने लगा...," हां अजीत!" अजीत शब्द सुनते ही सीमा की आँखों में दबे पड़े आँसू छलक उठे... काश! ये उसका अजीत होता....! "यार... कहाँ है तू... मैं रोहतक में ही हूँ... तुझसे मिलकर एक खुशख़बरी सुननी है.. "बोल भाई!" विकी ने आनमने मन से कहा... उसका ध्यान अब भी सीमा की और ही था... वह गणपत के अपनी और बढ़ रहे हाथों को बार बार अपने से दूर हटाने की कोशिश करती हुई इधर उधर सरक रही थी... "मैं शादी करने वाला हूँ... इसी हफ्ते... तुझे मेरी सीमा से मिलवाना था यार... पर वो पता नही क्यूँ नही आई.. आज डिपार्टमेंट में... सोचा तुम्ही को फोन लगा कर बुला लूँ तब तक...." "सीमा..?????" विकी को उन्होनी की बू आई... कहीं यही तो अजीत की सीमा....." विकी अंदर तक हिल गया.. उसने टफ की कॉल को मूट पर डाला और सीमा से मुखातिब हुआ...," क्या तुम्हारी शादी अजीत...?" अपने टॉप के गले में हाथ डाले गणपत के हाथ को अपने दोनो हाथों से पकड़े अपनी इज़्ज़त बचाने की कोशिश कर रही सीमा चिल्ला पड़ी..," हां.. हां... प्लीज़ मुझे बचाओ.. प्लीज़!" सीमा कभी विकी के चेहरे के उड़े ह रंग और कभी गणपत के पंजे को देखती चिल्लाई...! "इसको छोड़ दो सर...!" विकी ने विनम्रता से मगर आदेश देने वाले लहजे में गणपत को रोकने की कोशिश की.... "चल बे!... तू अभी तक यहीं खड़ा है... बाहर निकल जा और जब तक मैं ना कहूँ.. अंदर मत आना... बहुत गरम है साली ये तो... बहुत देर में ठंडी होगी...." "मैं कहता हूँ रुक जा गणपत! वरना अच्छा नही होगा..!" कपड़े के फटने की आवाज़ सुनकर विकी अपना आपा खो बैठा... सीमा उसके दोस्त की जान थी... "क्यूँ बे साले.. तेरी क्या बेहन लगती है.. जो इतनी फट रही है... और फिर लगती भी होगी तो क्या हुआ... मैं तुझे टिकेट दिलवाने जा रहा हूँ.. पता है ना!" कहते हुए गणपत ने एक ज़ोर का झटका देकर सीमा के अंगों को ढके हुए टॉप को चीर दिया... इसके साथ ही सीमा की चीख निकल गयी... गोली उस से 6 इंच दूरी से गुज़री थी.. सीधी गणपत के गले के आर पार... गणपत का भारी भरकम शरीर धदम से फर्श पर गिर पड़ा... सीमा अपने अंगों को अपनी हथेलियों में समेटे हुए आँखें बंद करके बैठ गयी... डरी सहमी.... गोली की आवाज़ सुनते ही बॉडी गार्ड एक पल बिना गवाए अपनी स्टेंगून ताने अंदर घुसा... और अपनी रिवॉल्वेर की नाली को देख रहे विकी पर गन तान दी... उसने देखा... गणपत को अब बॉडी गार्ड की ज़रूरत नही पड़ेगी... उसकी बॉडी में साँस बचे ही नही थे..... "साला.. अब मुझे ही आलाकमान के पास जाना पड़ेगा... टिकेट लेने के लिए..." विकी ने गार्ड को देखते हुए कहा.... गार्ड समझ गया... पॉलिटिक्स में पॉवेर आनी जानी चीज़ है...," इसका क्या करना है सिर... विकी अपने चेहरे को अपने पाक हो चुके हाथों से धक कर सोफे पर बैठ गया.. उसमें अपनी होने वाली भाभी का सामना करने की हिम्मत नही हो रही थी... गणपत को टपकाने का उसको कतई अफ़सोस नही था पर अपने जानी दोस्त की जान के साथ अंजाने में जो कुछ वा करने जा रहा था; उसके पासचताप की अग्नि ने उसकी आत्मा को बुरी तरह झुलसा दिया था... जो कुछ भी वो आज तक करता रहा था.. वह सब उसका निहायत ही बचकाना लगने लगा... उसको आज ये अहसास हो रहा था की मर्द की हवस का शिकार बन'ने वाली लड़कियाँ हमेशा ही पराया माल नही होती.. वो भी किसी ना किसी की बेहन होती होंगी, बेटी होती होंगी, जान होती होंगी.... और होने वाली भाभी होती होंगी..... सीमा ने अपने आप को जैसे तैसे संभाल कर चादर में लपेटा.. और अपना फ़ोन ढूँढने लगी... पर शायद फ़ोन गाड़ी में या कहीं सड़क पर ही गिर गया था... विकी बार बार आ रही टफ की कॉल्स उठाने की हिम्मत नही कर पा रहा था... आख़िर में उसने फोने सीमा की और बढ़ा दिया... ," हेलो!" "जी कौन?" टफ सपने में भी सीमा के वहाँ होने के बारे में नही सोच सकता था... "मैं.... मैं हूँ जान... तुम्हारी सीमा!"सीमा फुट फुट कर रोने लगी थी.. "सीमाआ???" कहाँ हो तुम?" "यहीं हूँ.. तुम्हारे दोस्त के पास... सेक 1 में..." और सीमा क्या कहती.... टफ के उपर मानो बिजली सी गिर पड़ी... पता नही एक ही पल में उसने क्या क्या सोच लिया," सीमा.... तुम भी....?" कहकर उसने फ़ोन काट दिया.. और अपने घुटने पकड़ कर बैठ गया... उसने सीमा को ग़लत समझ लिया था.... सीमा फ़ोन करती रही पर टफ ने फोने ना उठाया... उसने कोई सफाई सुन'ने की ज़रूरत ना समझी.......
सीमा असहाय होकर विकी की और देखने लगी.. उसको मालूम नही था की विकी और टफ एक दूसरे को कैसे जानते हैं.. पर इतना तो वा देख ही चुकी थी की विकी के तेवर अजीत का फोने आने के बाद अचानक बदल गये थे... उसकी आँखों की वासना हुम्दर्दि में बदल गयी थी और हुम्दर्दि ऐसी की उस पर हाथ डालने वाले के प्राण ही नोच लिए.. विकी उसकी नज़रों में अब विलेन नही था.. उसकी इज़्ज़त का रक्षक था.. सीमा ने थोड़ा हिचकते हुए विकी के कंधे पर हाथ रखा," वववू.. मेरा फ़ोन नही उठा रहे.. प्लीज़ मुझे जल्दी से वहाँ ले चलो.. मेरे अजीत के पास... मेरा दम निकल रहा है यहाँ..." रह रह कर वो फर्श पर पड़ी गणपत की लाश को देख लेती... "मैं बहुत ही बुरा आदमी हूँ सीमा जी... मैने आज तक लड़की को खिलौना ही समझा था.. मुझे नही मालूम था की ये एक दिन मेरे हाथों को खून और विस्वासघात से रंग देंगे.... पर मुझे कुछ हो जाए.. परवाह नही... मैं तुम्हारे बीच की ग़लतफहमी को दूर करके रहूँगा..." कहकर विकी ने फ़ोन उठाया और टफ के पास मेस्सेज भेज दिया..' सीमा को मैं ज़बरदस्ती उठा लाया था.. मैं बहुत शर्मिंदा हूँ भाई... तुम कोठी पर आ जाओ!' जब टफ ने अपने फोने पर ये मसेज देखा तो वा पहले ही कोठी के बाहर आ चुका था.. इंतकाम की आग में झुल्सता हुआ... बदला लेने के लिए.. सीमा और विकी दोनो से.... मसेज पढ़ने के बाद उसकी आँखें और लाल हो उठी... गेट्कीपर ने विकी के इशारे से गेट खोल दिया.. टफ दनदनाता हुआ अंदर जा घुसा... दरवाजे पर कदम रखते ही बासी होते जा रहे खून की दुर्गंध ने उसका माथा ठनका दिया.. फर्श पर पड़ी लाश... दुशाला औडे खड़ी सूबक रही सीमा और चिंतित विकी को देखकर उसको अपनी आग थोड़ी देर अपने सीने में ही दफ़न किए हुए पहले पूरी बात जान'ने को विवश कर दिया.. उसने सीधा सीमा से सवाल किया," क्या हुआ है यहाँ..?" अपने प्यार की आँखों में अपने लिए ज़रा भी हुम्दर्दि और प्यार ना पाकर सीमा अंदर तक टूट गयी... होना तो कुछ और चाहिए था..कास उसका अजीत उसको बाहों में भरकर उस मर चुके गिद्ध के हान्थो की च्छुअन से लगी कालिख को सॉफ कर देता... उसके हलाक से तड़प से भरी और मरी सी आवाज़ निकली," मैने कुछ नही किया जान.. मैं वैसी ही हूँ जैसी यहाँ लाई गयी थी.. ज़बरदस्ती.. मैने तुम्हारा फ़ोन आने तक खुद को बचाए रखा.. और बाद में इसने मुझे लूटने से बचा लिया..
टफ को थोड़ी तसल्ली हुई.. उसने विकी के चेहरे की और देखा.. उसके चहरे पर खुद के लिए ग्लानि के भाव थे.. ," मुझे कोई कुछ बताएगा.. की आख़िर हुआ क्या है..?" विकी ने नज़रें झुआके अपने सीमा के भक्षक से रक्षक होने की पूरी दास्तान सुना दी... हालाँकि टफ के मन में अब भी विकी के लिए घृणा के भाव थे.. पर आख़िरकार उसने सीमा को लूटने से बचाया ही था.. टफ भाग कर सीमा से जाकर लिपट गया.. सीमा सिसक पड़ी.. अपने यार की बाहों में आकर.. उसके हाथ चादर में लिपटे थे ; पर उसके होन्ट आज़ाद थे.. अपना प्यार और बेगुनाही प्रदर्शित करने के लिए.. उसने टफ के गालों पर अपने होन्ट रख दिए.. अपना वादा पूरा किया.. टफ को किस करने का.. जाने कब तक वो ऐसे ही लिपटे रहे... होंटो ने होंटो को चूमा.. अपने प्यार के जिंदा होने की मोहर लगाई... टफ ने सीमा से अलग होते हुए विकी से पूचछा... ," ये क्या कर दिया? तुम इसको मारे बिना भी सीमा को बचा सकते थे..!" "पता नही.. मुझे क्या हो गया था.. मुझे एक पल भी सोचने का मौका नही मिला दोस्त..." विकी अब तक लज्जित था.. टफ से नज़रें नही मिला रहा था.. "तुम्हे पता है.. क्या होगा? अब इस 'से कैसे निपटोगे..?" "जो होगा देखा जाएगा दोस्त... पर मुझे कोई फिकर नही.. सिवाय इस बात के की क्या तुम मुझे माफ़ करोगे...!" "28 तारेख को शादी में आ जाना... अगर तब तक अंदर ना पहुँचो तो!" टफ ने रूखे शब्दों में उसको अपनी शादी का न्योता दिया और सीमा को अपने से साटा बाहर निकल गया... सीमा को सुनकर असीम सुख मिला.. '28 तारीख!' गाड़ी में बैठते ही सीमा ने टफ की और देखा," क्या तुम मुझे कुसूरवार मान रहे हो..?" टफ ने मुश्कूराते हुए सीमा की और देखा," 28 तारीख को बातौँगा.. अभी बहुत तैयारी करनी है.. आख़िर कार वो रात आ ही गयी जिस रात का टफ... ओर हां, सीमा को भी बेशबरी से इंतजार था.. बारात छ्होटी ही रखी गयी थी पर रिसेप्षन पर टफ और उसके दोस्तों ने अपने सारे शौक खुल कर पुर किए.. गाँव से वाणी और दिशा भी आई थी... शमशेर के साथ... विकी आया था मगर सीमा के सामने जाने से कतरा रहा था... टफ उसके पास जाकर बोला..," उसका क्या किया...?" "अभी तक तो उसकी लास भी नही मिली है... गार्ड को मैने 2000000 देकर देश से भगा दिया... देखते हैं क्या होगा...." विकी ने टफ से कहा... "हमारे साथ फोटो नही खिचवेयगा?"..... "मुझे माफ़ कर दे यार..." "अरे भूल जा उस बात को... वो सब अंजाने में हुआ था ना! मैने तेरी भाभी को सब बता दिया है.. वो भी तुझसे नाराज़ नही है अब... चल आ!" करीब 12:00 बजे सबने टफ और सीमा को नयी जिंदगी के लिए शुभकामनायें देकर विदा किया...
/कार में जाते हुए पिछे रखे गिफ्ट्स में से एक छोटा सा डिब्बा आगे आ गिरा... सीमा ने डिब्बे को उठाया... उस्स पर लिखा था.." हॅपी मॅरीड लाइफ!"--- विकी. "देखूं इसमें क्या है...?" "देख लो!" टफ ने कहा... "नही.. तुम गेस करो!" सीमा ने अजीत की दूरदर्शिता जान-नि चाही... "हुम्म... कोई घड़ी या फिर..... नही घड़ी ही होगी.. शुवर!" टफ ने डिब्बे का साइज़ देखकर कहा... "नही.... मुझे लगता है... इसमें कोई रिंग होनी चाहिए..! चलो शर्त लगाते हैं..." सीमा को मसखरी सूझी... "कैसी शर्त?" "जो तुम कहो..." अब सीमा को उसकी किसी शर्त से ऐतराज नही था... वो जान'ती थी की टफ कोई शरारत ही करेगा... शर्त के बहाने..! "तुम घर तक मुझे चूमती रहोगी... अगर मैं जीता तो...!" "और अगर मैं जीती तो... " सीमा ने थोड़ा सा शरमाते हुए कहा... "तो मैं तुम्हे चूमता रहूँगा...!" "ना जी ना!... फिर गाड़ी कौन चलाएगा..." "रोक देंगे!" "फिर घर कैसे पहुँचेंगे...?" "क्या ज़रूरत है...." बातों बातों में सीमा ने पॅकिंग खोल डाली.. और खोलते ही उच्छल पड़ी.." ओई मा!" और डिब्बा उसके हाथ से छ्छूट गया... टफ ने देखा... डिब्बे में 4 कॉनडम्स रखे थे... और साथ ही लिखा था... जनसंख्या बढ़ाने की जल्दी हो तो इसको यूज़ मत करना...!
टफ भी इस शैतानी पर हँसे बिना ना रह सका... 22 साल की उमर की सीमा इस गिफ्ट को देखकर शरम से लाल हो गयी... और बेचैन भी... अपनी जान की बाँहों में आने के लिए... जिसके लिए आज तक उसने अपने कौमार्या को बचाए रखा था... सीमा सुहाग सेज़ पर बैठी अपने सुहाग का इंतज़ार कर रही थी. उसका बदन पानी पानी हो रहा था.. अपनी जिन शारीरिक कामनाओ को उसने बड़ी सहजता से सालों दबाए रखा, वो आज जाने क्यूँ काबू में नही थी.. कुछ पल का इंतज़ार उसको बार बार सीढ़ियों पर 'अपने' अजीत के कदमों की आहट सुन'ने को विचलित कर रहा था... आख़िरकार उसकी खुद्दारी, सहनशीलता, और भगवान पर अटूट विस्वास ने उसको उसकी नियती से रूबरू करा ही दिया... आज वो अपने आपको अपने अजीत को सौपने वाली थी... 'तन' से! मॅन से तो वो कब की उसी की हो चुकी थी... पहला प्यार सबको इतनी आसानी से नसीब नही होता... और जिनको होता है, उनको दुनिया में किसी और की कमी महसूस नही होती.... उधर टफ का भी यही हाल था.. टफ रह रह कर उठने की कोशिश करता पर उसके दोस्त उसको तड़पने के लिए पकड़ कर 'थोड़ी देर और' कह कर बैठा लेते... आख़िर कर उन्होने उसको अपनी सुहागिनी सीमा के पास जाने की इजाज़त दे ही दी. उपर आते कदमों की आहत सुनकर सीमा का दिल धड़कने लगा.. जोरों से; मानो अपने महबूब के आने की ख़ुसी में नाच रहा हो.. टफ ने अंदर आकर दरवाजे की चितकनी लगा दी.. साडी उतारकर सलवार कमीज़ पहन चुकी सीमा के पैर जांघों समेत एक दूसरे से चिपक गये... रोमांच में... आज वो अजीत को अपना कौमार्या अर्पित करने वाली थी... आज अजीत उसको लड़की से नारी बनाने वाला था... पूर्ण पवितरा अर्धांगिनी... टफ ने देखा; सीमा सिमटी हुई है, बेड के एक कोने पर... उसकी पलकें झुकी हुई भारतिया पत्नी के सर्वश्रेस्थ अवतार को चित्रित कर रही थी.. उसके पैर का अंघूठा दूसरे पैर के अंगूठे पर चढ़ा उसके दिल की उमंगों को छलका रहा था.. उसके हाथो की उंगलियाँ एक दूसरी के गले मिलकर घुटनो पर टिकी अपनी बेशबरी दिखा रही थी.. मानो एक हाथ 'अजीत' हो और दूसरा स्वयं सीमा... उसके कोमल आधारों पर लगी सुर्ख लाल लिपस्टिक होंटो के गुलबीपन को एक नया ही रंग दे रही थी... काम तृष्णा का रंग... ऐसा नही था की टफ पहली बार किसी के साथ हुमबईस्तेर होने जा रहा था.. पर आज का हर पल उसको इस बात का अहसास करा रहा था की आज की हर बात जुदा है, अलग है.. यूँ तो वह कब का इंसान बन चुका था.. पर आभास उसको अब जाकर हुआ था की अपने 'प्यार' से प्यार करने का रोमॅन्स क्या होता है... कल तक जिस 'से बात किए बिना वा रह नही पता था.. आज उस 'से बात कहाँ से शुरू करे, टफ को समझ ही नही आ रहा था... आख़िरकार टफ जाकर सीमा के पैरों के पास पैर नीचे रखकर बैठ गया.. सफेद कुर्ते पयज़ामें में उसका लंबा चौड़ा कद्दावर शरीर शानदार लग रहा था... सीमा के अंगूठो की हुलचल तेज हो गयी.. पैर थोड़ा सा पिछे सरक गयी.... दोस्तो माफी चाहता हूँ टफ और सीमा की सुहाग रात का वर्णन मैं अगले पार्ट मैं
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