RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल--23
वाणी ने मनु की बात पर कोई ध्यान नही दिया.. वा दर्द से कराह रही थी..," मुम्मय्ीईईईईईई..." वाणी के कूल्हे पर चोट लगी थी..
वाणी की कराह सुनकर मनु सब कुछ भूल गया.. उसने बाथरूम का दरवाजा खोल दिया.. वाणी दरवाजे के पास ही पड़ी.. आँखें बंद किए वेदना से तड़प रही थी.. उसके शरीर पर कोई वस्त्रा नही था.. सिवाय उके हाथ से लिपटे तौलिए के अलावा..
मनु ने उसके हाथ से तौलिए लिया.. जितना उसको धक सकता था.. ढाका और अपनी बाहों में उठाकर बाहर ले आया..
धीरे से मनु ने वाणी को बिस्तेर पर लिटाया और उसके माथे पर हाथ रख लिया.. वाणी की गीली छातियों से वह अपनी नज़र चुराने की पूरी कोशिश कर रहा था...
"वाणी! एक बार कपड़े पहन लो.. कोई आ जाएगा.." मनु की आवाज़ उस्स बेपर्दा हुषण के सामने काँप रही थी..
वाणी को अब तक कोई होश ही नही था की वा किस हालत में है और किसके सामने है.. और जब अहसास हुआ तो सारा दर्द भूल कर बिस्तेर पर पड़ी चादर में अपने को समेटने की कोशिश करने लगी.. मनु खड़ा हुआ और वाणी की करोड़ों की इज़्ज़त को चादर में लपेटने में मदद करने लगा..," सॉरी वाणी.. मैं..."
"मेरे कपड़े दो जल्दी.." दर्द में लिपटी शर्म की आँच ने वाणी को पानी पानी कर दिया था.." वो टँगे हुए है.. हॅंगर पर".. वाणी ने अपन आँखों से इशारा किया..
मनु ने कपड़े उसके पास रख दिए और बेचैनी से उसको देखने लगा...
"बाहर जाआआओ!" दर्द कूम होते होते वाणी शरम की गर्त में डूबती जा रही थी..
"ओह हां... सॉरी" कहकर मनु बाहर निकल गया और सोफे पर जाकर बैठ गया...
कुछ देर बाद मनु ने वाणी को पुकारा...," वाणी ठीक हो ना..?"
"हूंम्म्म.." अंदर से वाणी इतना ही बोल सकी...
मनु के दिल को सुकून मिला.. उसने आँखें बंद कर ली.. उसकी आँखों के सामने वाणी का बेदाग बेपर्दा हुषण सजीव सा हो गया..
उस्स वक़्त मनु सिवाय वाणी की हालत पर हुंदर्दी के, कुछ सोच ना पाया था.. पर अब.. करीब 5 मिनिट बाद उसके शरीर में भी हलचल होने लगी..
उसने वाणी को देखा था.. वो भी बिना कपड़ों के.. अगर उस वक़्त सिर्फ़ वाणी के चेहरे के एक्सप्रेशन को भूल जायें तो हर अंग पागल करने की हद तक खिला हुआ था... उसकी सेब के खोल जैसे ढाँचें में ढली मांसल मजबूत छातियों पर पानी की चंद बूँदें ठहरी हुई थी... यहाँ वहाँ.. निप्पल्स दर्द से सिकुड से गये थे.. उसकी नाभि से नीचे तक का पेट किसी सिक़ुरकर बोतल के मध्य भाग की तरह ढलान और उठान लिए हुए था.. उसकी छोटी सी चिड़िया को एक तरफ फैली हुई टाँग ने प्रदर्शित कर रखा था.. उस्स बेपनाह खूबसूरत अंग के बाई और की पंखुड़ी पर बना छोटा सा कला तिल अब मनु के मर्डाने को जगा रहा था.. उसकी फाँकें बड़ी ही कोमल थी.. बड़ी ही प्यारी.. बड़ी ही मादक...
जब मनु ने उससे उठाया था तो उसको ऐसा लगा था जैसे रेशम में लिपटी कपास को उठा लिया हो.. इतनी हल्की.. मनु का नीचे वाला हाथ वाणी के पिछले उभारों को समेटे हुए था.. वाणी की आँखें बंद थी.. उसका चेहरा रोता हुआ कितना मासूम लग रहा था.. जैसे कोई 10 साल की गुड़िया हो.. पारी लोक से आई हुई..
वाणी का चेहरा याद आते ही मनु प्यारी उड़ान से अचानक वापस आया.. अंदर से कोई आवाज़ नही आ रही थी..
"वाणी..!" मनु ने उसको पुकारा..
कोई जवाब ना आने पर उसने उसके कमरे का दरवाजा खोल दिया..
"नही... प्लीज़.. यहाँ मत आओ! मुझे शरम आ रही है.. बाहर जाओ.." वाणी ने अपना चहरा टवल से धक लिया.. वाणी के लिए अब समस्या यही थी की उस्स उल्टी शर्ट वाले लड़के के मज़े कैसे लेगी...
मनु बाहर वापस आ गया.. उसने वाणी के चेहरे की मुस्कान और हया दोनो को देख लिया था.. अब वा कुछ निसचिंत था.. तभी दिशा और मानसी कमरे में आए.. दिशा ने वाणी को अंदर वाले कमरे में डुबके पाया तो जाकर उसको हिलाते हुए बोली..," चाय वग़ैरह पिलाई या नही.. मनु को!"
"नही दीदी..!"
"तू कभी नही सुधार सकती.. बेचारा तब से अकेला ही बैठा है.. चल उठ कर बाहर आजा.." दिशा ने वाणी को डांटा..
"नही दी.. मुझे नींद आ रही है.." वाणी सोच रही थी की मनु के सामने जाए तो जाए कैसे..
"खड़ी हो ले जल्दी.. चलना नही है क्या.. और ये पुराने कपड़े क्यूँ पहन लिए..?" दिशा ने वाणी को ज़बरदस्ती उठा कर फर्श पर खड़ा कर दिया...
वाणी लंगड़ाकर अपने नये कपड़ों की और चली...
"क्या हुआ वाणी..? क्या हुआ तेरे पैर को" हुल्की सी लचक देखकर ही दिशा घबरा गयी..
"कुछ नही दीदी.. वो.. गिर गयी थी..!"
"कहाँ.. कैसे?.. दिखा क्या हुआ है.." अचानक ही दिशा ने ढेरों सवाल उस पर दाग दिए..
अब तक मानसी को बोलने का मौका ही नही मिला था..," अच्छा वाणी! मैं तो तुमसे मिलने आई थी.. जल्दी आना..!"
वाणी भी जल्दी मनु को भेज देना चाहती थी.. ताकि बाहर आकर चलने की तैयारी कर सके.. अच्छा मानसी.. सॉरी! मुझे दर्द है.."
घर से निकलते ही मानसी ने मनु से पूछा..," वाणी बोली थी क्या तुमसे..?"
"ना!" मनु मन ही मन सोच रहा था.. यहाँ आकर तो बिना बोले ही वाणी ने जाने क्या दे दिया था उसको.. उसने बाइक स्टार्ट कर दी और चल पड़ा........
निशा कुल मिला कर अब तक चार बार मोमबत्ती से अपनी आग बुझाने की कोशिश कर चुकी थी.. पर आग बुझाने की बजे हर बार बढ़ जाती.. भूख तो सिर्फ़ अब आदमी ही मिटा सकता है.. सेक्स की.. अपने अंगों को खुज़ला खुज़ला कर निशा पागल हुई जा रही थी.. अब यूस्क कोई शिकारी चाहिए था.. खुद शिकार होने के लिए.. बेचैन निशा तिलमिलती हुई छत पर आ चढ़ि..
निशा की आँखों के सामने हर उस्स साख़्श का चेहरा घूम रहा था, जिसने कभी ना कभी, कहीं ना कहीं उसको दूसरी नज़र से घूरा था.. अब चाहे कोई भी हो, पर उसको अपनी चूत के लिए कोई लंड वाला दिलदार चाहिए ही था... कोई भी!
पड़ोसियों की छत की और नज़र दौड़ते हुए अचानक अपने से तीन घर छोड़ कर छत पर खाली कच्चे में खाट पर पड़े राहुल पर जा जमी.. उसका मुँह दूसरी तरफ था और वा कुछ पढ़ रहा था..
राहुल राकेश के गॅंग का निहायत ही आवारा लड़का था.. वा कॉलेज जाता तो था पर पढ़ाई करने नही, खाली बस में आते जाते लड़कियों के साइज़ की पमाइश करना.. और अगर कोई फँस जाती तो उसको शहर में किराए पर लिए हुए अपने कमरे में ले जाकर उसको कली से फूल या फूल से गुलदस्ता बना देने के लिए... निशा ने उसके बारे में काइयों से सुन रखा था...
अचानक राहुल की हरकत देखकर निशा पागल सी हो गयी...
राहुल का एक हाथ किताब खोले खोले ही अपने कच्चे में घुस गया और उपर नीचे होने लगा... निशा सीत्कार उठी.. जिस चीज़ को वो अपनी जांघों के बीच गुम कर लेना चाहती थी.. वो तो राहुल अकेला बैठा हुआ ही बाहर हिला रहा है....
निशा ने बेशर्म होकर एक छोटा सा पत्थर उठाया और उसकी खत के पास फैंक दिया.. आवाज़ सुनते ही राहुल चौंक कर पलटा.. उसका हाथ बाहर निकल आया था.. लंड को अंदर ही छोड़ कर..
जैसे ही राहुल ने पलट कर देखा.. निशा ने अपनी गर्दन घुमा ली.. पर वा मुंडेर के साथ ही खड़ी रही..
राहुल ने इधर उधर चारों और नज़र दौड़ाई.. पर निशा के अलावा उसको कोई छत पर नही दिखा...
राहुल सोच में पड़ गया.. ये आइटम तो कभी किसी के काबू में ही नही आया था.. वो खुद भी एक बार उसके हाथ से करारा तपद खा चुका था.. क्या.. सचमुच इसी ने.. नही नही... बापू तक बात पहुँच गयी तो जान से मार देगा.. ये सोचकर राहुल अपनी खाट पर वापस आकर लेट गया.. किताब उसने तकिये के नीचे रख दी.. और निशा की तरफ मुँह करके लेट गया.. बिना कोई हलचल किए.. वो रह रह कर तिरच्चि नज़रों से अपनी और देख रही निशा को ही घूरता रहा...
थोड़ी देर बाद राहुल ने कुछ सोचकर वापस मुँह दूसरी और कर लिया.. और अपने कच्चे में फिर से हाथ डाल लिया...
कुछ ही सेकेंड बाद राहुल की खत के पास एक और पत्थर आकर गिरा.. राहुल ने गौर किया.. पत्थर पिछे से ही आया था..
राहुल को अब किसी इशारे की ज़रूरत नही थी...
राहुल निशा की और मुँह करके बैठ गया और एक चादर से अपने दायें बायें को ढाका...
फिर निशा की और देखते हुए उसने अपना लंड निकाल कर उसके सामने कर दिया...
पहले जो निशा उसको तिरछी निगाहों से ही देख रही थी.. इश्स हरकत पर कूद पड़ी.. उसने सीधे उसकी और मुँह करके उसके लंड पर अपनी आँखें गाड़ा ली...
लूम्बाई का पता नही चल रहा था पर मोटा बहुत था... काले साँप जैसा.. उसके भाई से करीब 3/2 गुना मोटा... निशा का हाथ मुंडेर से नीचे अपनी चूत को छेड़ने लगा...
इस तरह बेहिचक निशा को अपनी और देखता पाकर राहुल फूला नही समा रहा था.. उसने खड़े होकर अपना कच्चा जांघों तक सरका दिया.. अब निशा की सीटी बजने की बरी थी... जिसको वो काले साँप जैसा सोच रही थी.. वो तो सच में ही कला साँप निकला.. राहुल ने अपने लंड को हाथ से उठाकर अपने पाते से लगाया था.. वो यूस्क नाभि तक छू रहा था.. निशा को पता नही क्या हुआ.. घबरा कर छत पर बने कमरे में घुस गयी...
नही वा घबराई नही थी.. अंदर जाते ही उसने सबसे पहले अपनी उखाड़ चुकी साँसों को नियंत्रण में किया और फिर दरवाजा बंद करके खिड़की खोल दी.. खिड़की से राहुल छत पर खड़ा सॉफ दिखाई दे रहा था.. पर उसका साँप पीटरे में घुस गया था.. और पिटारा आगे से बिल्कुल सीधा उठा हुआ था.. मानो निशा पर निशाना लगा रहा हो...
निशा ने अपने कमरे की लाइट जला दी.. राहुल उसको कमरे के अंदर से अपनी और देखते पाकर खुस हो गया.. उसने अपना लंड एक बार फिर आज़ाद कर दिया..
निशा सोच रही थी की उसको कैसे बताउ.. उसका साँप मुझे चाहिए है.. और जो तरकीब उसने सोची.. उसने तो राहुल के छक्के छुड़ा दिए..
निशा ने एक ही झटके में अपना कमीज़ उतार दिया.. अगर ब्रा ना होती तो राहुल को अटॅक ही आ जाता.. वो तो निशा को बंद प्रॉजेक्ट मान चुका था अपने लिए, थप्पड़ खाने के बाद.. आज ये घटा उस्स पर कैसे बरसी.. लाइट में राहुल निशा की नाभि से उपर का ढाँचा अपनी आँखों से देखकर व्याकुल हो उठा.. उसने अपनी आँखें मसली.. मानो फोकस चेंज करके सीधा निशा के पास ले जाना चाहता हो... अपनी नज़रों को... पर दूर से भी नज़ारा घायल करने लायक तो था ही.. निशा ने अपने हाथ अपनी ब्रा में फँसा लिए थे.. इशारा राहुल को सपस्त था.. की उसको क्या चाहिए...
राहुल को अपनी और पागलों की तरह देखता पाकर निशा के हॉंसले और बढ़ गये... उसने ब्रा के बाट्टों खोल दिए और अपनी गोरी, गोलाइयों के साक्षात दर्शन ही राहुल को करा दिया..
राहुल का हाथ मशीन की तरह अपने लंड पर चलने लगा.. वा बिना टिकेट मिले इस मौके का हाथों हाथ फयडा उठा रहा था..
राहुल के लगातार फूल रहे लंड को देखकर निशा सिहर गयी... उसकी उंगली भी बिना बताए ही अपने काम पर जुट गयी.. उसका दूसरा हाथ निशा की चूचियों को बारी बारी हिला रहा था... दबा रहा था.. और मसल रहा था...
राहुल के लंड से तेज पिचकारी सी निकल कर उससे करीब 2 फीट दूर रस की बोचर फर्श पर जा गिरी... राहुल मस्ती और रोमांच की अधिकता में सीधा खाट पर जा गिरा... पर निशा तो अब भी भूखी ही रह गयी... उसने उसी वक़्त एक कागज पर कुछ लिखा और अपने कपड़े पहन कर बाहर निकल आई.. कागज को एक पत्थर में लपेटा और राहुल वाली छत पर फाँक दिया...
राहुल ने पर्चा खोला.. उसकी लॉटरी निकली थी.. आज रात 11 बजे की.. निशा के उपर वाले कमरे में..
राहुल ने निशा की और एक किस उछली और अपने कमरे में चला गया... निशा भी रात के इंतज़ार में खुश होकर नीचे चली गयी...
राहुल ने राकेश के पास फोने मिलाया," आबे साले! तुझे ऐशी खबर सूनवँगा.. की तेरा लंड खड़ा हो जाएगा..."
"और तेरी मा की गांद में घुस जाएगा.. आबे.. अपने बाप से तमीज़ से बात किया कर.. आज कल खड़ा ही रहता है अपना.. साली कोई मिलती ही नही... बैठने वाली.." राकेश ने बात पूरी की..
"आब्बी.. सुन तो ले.. तेरी गंद ना फट जाए तो मुझे कह देना..." राहुल उत्तेजित होकर बोल रहा था..
"अच्छा.. तो ले फाड़ मेरी गांद.. देखूं.. तेरे लौदे में कितना दूं है...?"
"आज तेरी नही.. निशा की गांद फाड़ेंगे.. 11 बजे बुलाया है.. रात को!"
"क्य्ाआआआ!" सच में ही फट सी गयी थी राकेश की.
शमशेर ने वाणी को सारे रास्ते गुमसूँ बैठे देख पूछा," क्या बात है मेरी जान! आज ये फूल मुरझाया सा क्यूँ है?"
वाणी कुछ ना बोली, बाहर की और मुँह करके उल्टे भाग रहे पेड़ों को देखने लगी...
गाँव आ गया था.. गाड़ी की रफ़्तार मंद हो गयी..
वाणी और दिशा कितने दीनो से घर आने की राह देख रही थी.. उत्साह तो वाणी में अब भी था.. पर मनु उसके दिमाग़ से निकालने का नाम ही नही ले रहा था.. आख़िर उसने निर्वस्त्रा वाणी को अपनी गोद में जो उठाया था...
गाड़ी के घर के बाहर पहुँचते ही वाणी की मम्मी भागी हुई आई.. और वाणी और दिशा के नीचे उतरते ही दोनो को अपनी छाती से लगा कर सूबक पड़ी.. यूँ तो वो 2 टीन बार शहर जाकर उनसे मिलकर आ चुकी थी.. पर उनको घर आया देख उसकी पूरण यादें ताज़ा हो गयी," क्या हो गया मेरी लड़ली को.. ऐसे क्यूँ खोई सी है.. क्या अब शहर के बिना दिल नही लगता तेरा.." मम्मी ने वाणी के वीरान से चेहरे को देखकर कहा...
"मामी जी ये उपर कैसा म्यूज़िक बाज रहा है...?"
उपर चल रहे लता राफ़ की आवाज़ में मधुर गीत को सुनकर दिशा ने मामी से हैरत में पूछा...
"बेटी! ये तुम्हारे स्कूल के नये मास्टर जी हैं.. अंजलि मेडम के कहने पर हुँने सोचा, चलो ख़ालीपन तो नही रहेगा घर में.. बहुत ही शरीफ और नएक्दील लड़का है बेचारा.... मम्मी ने शमशेर को पानी देते हुए कहा...
"मैं मिलकर आता हूँ... कहकर शमशेर खड़ा हो गया..
"मैं भी चलूं..." शमशेर की बाँह पाकर कर वाणी बोली...
"तू अब भी इनकी पूंछ ही बनी रहती है क्या?" मम्मी ने हंसते हुए वाणी को कहा...
वाणी बिना कोई जवाब दिए शमशेर के साथ उपर चढ़ गयी...
शमशेर ने उपर जाकर दरवाजा खटखटाया...
"ठहरिए... अभी आता हूँ 10 मिनिट में...
शमशेर ने वाणी की और देखा और दोनो हंस पड़े...," कैसी गधे की दूं है... दरवाजा खोलने में 10 मिनिट लगाएगा...
और वासू ने पुर 10 मिनट बाद ही दरवाजा खोला..," कहिए श्रीमान... देखिए मैं बार बार हाथ जोड़ कर विनती कर चुका हूँ की मैं मार जवँगा पर नारी जाती को टशन हरगिज़ नही पढ़ौँगा... जाने ये सरकार किस बात का बदला वासू शास्त्री से ले रही है की मुझे यहाँ नारियों के विद्यालया में पढ़ाने भेज दिया.. मैने उनको कितना समझाया की नारी नरक का द्वार है.. क्यूँ मुझे धकेल रहे हो.. पर माने ही नही.. कहने लगे की आप जैसे मास्टर की ही तो लड़कियों को ज़रूरत है... चलो सरकार के आगे तो मैं क्या करूँ.. पर टशन पढ़ाना ना पढ़ाना तो मेरे हाथ में है ना.. सो मैने कह दिया.. नो टूवुशन फॉर गर्ल्स... और शाम को केबल टीवी पर अड्वरटाइज़ भी पढ़ लेना.. वासू शास्त्री नारी को नरक का द्वार मानता.. है.. ओक!"
कहते ही वासू ने दरवाजा बंद करने की कोशिश की.. शमशेर ने अपना हाथ दरवाजे पर लगा कर बोला," शास्त्री जी..हमारी भी तो सुनिए ज़रा.... ये इस घर की बेटी है.. और मैं यहाँ का दामाद..."
वासू की उमर कोई 25 साल .. चेहरे से दुनिया भर की शराफ़त यूँ टपक रही थी मानो बहुत ही ज़्यादा हो गयी हो. उसके कंधे को छू रहे घने बालों से उसकी चोटी 2 कदम आगे ही थी... आँखों पर लगे .5 के गोले चस्में उसकी शराफ़त में इज़ाफा ही कर रहे थे.. स्वेत कुर्ता पयज़ामा पहने शास्त्री जी कुछ विचलित से दिखाई दिए; शमशेर की बात सुनकर..," ये बात कतई विस्वास के लायक नही है की ये देवी आपकी बीवी...."
"ये मेरी साली है बंधु!" शमशेर ने उसी के लहजे में उसकी शंका का समाधान कर दिया..
"तब ठीक है श्रीमान.. पर कुछ तुछ व्यक्ति साली को.. आधी.... समझ रहे होंगे आप मेरी व्यथा को... मैं आज के युग में पैदा होने पर शर्मिंदा हूँ.. शुक्रा है गाँधी जी आज जीवित नही हैं.. नही तो..."
"छोड़िए ना शास्त्री जी.. अंदर आने को नही कहेंगे..!" शमशेर उसकी बातों से पाक सा गया था...
"देखो मित्रा... मुझे ना तो आपको यहाँ से भगाने का हक़ है.. और ना ही अंदर आने की इजाज़त देने का अधिकार.. मैं तो अंजलि जी की कृपा से यहाँ मुफ़्त में ही रह रहा हूँ.." वासू ने नाक पर चस्मा उपर चढ़ते हुए उनको अंदर आने का रास्ता दे दिया...
शमशेर ने अंदर आते ही उसकी टेबल पर दीवार से लगाकर रखी हुई हनुमान जी की मूर्ति देखी.. वासू पूरा ब्रहंचारी मालूम होता था..."क्या पढ़ाते हैं आप.?"
"गणित पढ़ाता हून श्रीमान.. वैसे मुझे याज्याविद्या भी आती है.. मैं शुरू से ही गुरुकुल में पढ़ा हूँ.."
"ओहो... तो ये बात है.." शमशेर ने वाणी का हाथ दबा कर उसको ना हँसने का इशारा किया.. वाणी अपनी हँसी नही रोक पा रही थी..
तभी दिशा चाय लेकर उपर आ गयी," गुड आफ्टरनून सर!" दिशा ने वासू को विश किया..
"प्रणाम!.. तो श्रीमान ये आपकी दूसरी साली है.." वासू ने दोनो एक जैसी जानकार सवाल किया..
"जी नही शास्त्री जी.. ये मेरी बीवी है.. और मुझे शमशेर कहते हैं.. श्रीमान नही.."
शायद दिशा को देख कर एक बार को वासू का ईमान भी डोल गया था.... पर उसको तुरंत ही अपनी ग़लती के लिए हनुमान जी की और हाथ जोड़ कर माफी माँगी...
"चाय लीजिए ना शास्त्री जी.." शमशेर ने कप वासू की और बढ़ा दिया..
"क्षमा करना शमशेर बंधु! मैं बाहर का कुछ नही ख़ाता.. और अगर आपको ना पता हो तो चीनी को सॉफ करने के लिए हड्डियों का प्रयोग किया जाता है.. अगर आप भी मेरी तरह शाकाहारी हैं तो कृपया आज से ही चीनी का प्रयोग बंद कर दें.." वासू ने एक बर्तन से गुड निकल कर शमशेर को दिखाया..," इसका प्रयोग कीजिए.. शुद्ध शाकाहार..! कहकर एक पतीले में ज़रा सा पानी डाल कर गुड उसमें डाल दिया और अपनी चाय गॅस पर बन'ने के लिए चढ़ा दी..
"अच्छा शास्त्री जी! फिर मिलते हैं.. अभी तो मुझे वापस जाना है.. और हन.. यहाँ की कन्याओं से बचके रहना.. सभी नों-वेग हैं.."
"मित्रा! मेरे साथ मेरे हनुमान जी हैं.. लड़कियाँ मेरे पास आते ही भस्म हो जाएँगी.. आप चिंता ना करें... आप कभी वापस आईएगा तो मुझसे ज़रूर मिलीएगा!"
"अच्छा अभी चलता हूँ.." कहकर शमशेर वाणी के साथ बाहर निकल गया..," ये क्या चाकर था.." वाणी ने शमशेर से पूछा.."
"बहुत ही नएक्दील इंसान है... बेचारा!" शमशेर ने वाणी की और देखते हुए कहा...
करीब आधे घंटे बाद शमशेर ने अपनी गाड़ी स्टार्ट की और सबको बाइ कहा.. दिशा उसको बहुत ही कातिल नज़रों से देख रही थी.. जैसे ही शमशेर मुश्कुराया.. दिशा ने उसकी और आँख मार दी..
शमशेर को अब 1 महीना गुजारना था.. अपनी दिशा के बगैर.
संजय के साथ अंशुल को देख कर निशा ख़ुसी से उछाल पड़ी," अंशु तुउउउ!" वह अपने कमरे से भाग कर उसके पास आई..," तू तो कह रहा था.. तू अभी नही आ सकता.. मुंम्म्मिईीईई... अंशु आया है..!"
अंशुल निशा की मौसी का लड़का था.. करीब 3 साल बाद वो अंशुल से मिल रही थी.. निशा के मौसजी की नौकरी वेस्ट बेंगल में थी.. अंशुल भी वहीं रहकर पढ़ रहा था.... अब 9त के एग्ज़ॅम देकर वो अपनी मम्मी के साथ मामा के यहाँ आया हुआ था और वहीं से संजय के साथ आ गया था..
"बस आ गया दीदी.. हम तो कल वापस जाने वाले थे.. पर अब अगले हफ्ते तक यहीं हैं.. सोचा आप सबसे मिलता चलूं..." अंशुल की आवाज़ मोटी हो गयी थी.. तीन साल में..
"अरे.. तेरी तो मूँछे भी निकल आई हैं.." निशा की ये बात सुनकर अंशुल झेंप गया और अपने मुँह पर हाथ रख लिया....
"तो क्या.. मर्द को मूँछे तो आएँगी ही.. देख नही रही, तुझसे भी कितना लंबा हो गया है.. और तगड़ा भी हो गया है मेरा बेटा!" निशा की मम्मी ने अंशुल का सिर पूचकार्टे हुए कहा...
मम्मी के मुँह से 'मर्द' शब्द सुनते ही निशा की नज़र सीधी अंशुल की पंत पर गयी.. मान ही मान सोचा.. अरे हां.. ये तो पूरा मर्द हो गया है... निशा के शरीर में कुछ सोच कर सिहरन सी दौड़ गयी.. ुआकी छातियों ने अंदर ही अंदर अंगड़ाई सी ली... उसकी शानदार गांद में कंपन सा हुआ.. अंशुल मर्द हो गया है...!
निशा की अंशुल से बचपन से ही बहुत छनती थी.. वो अपनी बेहन से ज़्यादा निशा से प्यार करता था.. घर वेल भी इश्स बात को जानते थे... पर करीब 3 साल से वो एक दूसरे के संपर्क में नही आए थे.. इस दौरान निशा गद्रा कर लड़की से युवती बन गयी थी और अंशुल लड़के से मर्द!
निशा रात को राहुल के साथ प्रोग्राम को भूल कर एक नया ही प्लान सोचने लगी.....
खाना खाने के बाद अंशुल संजय के कमरे में चला गया.. जाना तो वा अपनी दीदी के पास ही चाहता था.. पर जाने क्यूँ उसको शरम सी आ रही थी.. जिस निशा से वो 3 साल पहले इतना स्नेह करता था.. आज वो अपने स्नेह का खुलकर इज़हार करने से भी संकोच कर रहा था.. तीन साल पहले तो निशा और उसमें कोई फ़र्क ही नही था.. दोनो बच्चे थे.. हन तब भी निशा की छाती पर दो नींबू ज़रूर थे.. पर इससे अंशुल और उसकी मस्तियों में कोई व्यवधान उत्तपन्न नही हुआ था.. क्यूंकी अंशुल को पता ही नाहो था की वो नींबू उगते क्यूँ हैं लड़कियों को.. पर अब की बात अलग है.. अब तो वो नींबू पाक कर मौसम्मि बन गये थे.. और अब अंशुल को पता भी था.. बेहन की मौसम्मियों पर लार नही टपकाते... उनकी और देखना भी ग़लत बात होती है.. और इसीलिए वो उस'से नज़र मिलने में भी संकोच कर रहा था....
पर निशा तो अपने मन में कुछ पका ही चुकी थी.. वा संजय के कमरे में गयी... अंशुल के पास.. संजय का मूड उखड़ा हुआ था.. दर-असल वा गौरी की याद में डूबा हुआ था...
"भैया! कुछ खेलें.. अंशुल भी आया हुआ है.." निशा ने संजय की जाँघ पर हुल्की सी चुटकी काट'ते हुए बोला...
"नही.. मेरे सिर में दर्द है.. तुम दोनो ही खेल लो.." संजय की समझ में ना आया.. निशा कौँसे खेल की बात कर रही है....
"चेस खेलें अंशुल!" निशा ने चहकते हुए अंशुल से पूछा..
"हन दीदी.. चलो खेलें.." अंशुल खुलकर बात नही कर पा रहा था.. मौसम्मियों वाली दीदी से.. रह रह कर उसका ध्यान वहाँ अटक जाता था..
"संजय! कहाँ है चेस बॉक्स?" निशा ने अपनी आँखों पर कोहनी रखे संजय से पूछा...
"शायद तुम्हारे कमरे में ही है.. और प्लीज़ सोने से पहले मेरे रूम की लाइट ऑफ कर देना...."
"ठीक है... तो हम वहीं खेल लेते हैं.. चलो अंशु!" कहते हुए निशा ने उसको चलने का इशारा किया...
निशा ने संजय के कमरे की लाइट ऑफ कर दी और दोनो निशा के कमरे की और चल दिए...
करीब करीब 9:30 बाज चुके थे, रात के!
"अंशु, तुम चेस लगाओ! मैं अभी आई." निशा ने चेस बॉक्स अंशुल को देते हुए कहा और बाथरूम में घुस गयी.
निशा ने अपनी ब्रा निकल कर कमीज़ वापस पहन लिया.. कमीज़ का गला काफ़ी खुला था और निशा उसे सिर्फ़ रात को ही पहनती थी...
"दीदी! इस घोड़े को कैसे चलते हैं..?" अंशुल ने निशा के बाहर आते ही पूछा..," मैं भूल सा गया हूँ!"
"अभी बताती हूँ.." निशा बेड पर उसके सामने आकर बैठ गयी..
निशा की चूचियों के दानों को किसी कील की भाँति उसके कमीज़ में से बाहर की और निकालने की कोशिश करते देख अंशु के सिर से लेकर गांद तक ज़ोर की लहर 'सरराटे' के साथ गुजर गयी.. दोनो कील सीधे अंशु की आँखों में चुभ रही थी.. फिर भी वह अपने आपको उनकी तरफ बार बार देखने से रोक नही पा रहा था..
निशा अंशु की गरम हो रही ख्वाइशों को ताड़ गयी..," घोड़ा टेढ़ा चलता है.. मैं तुझे सब सीखा दूँगी.. ये मैने अपना प्यादा आगे बढ़ाया.. तुम्हारी बारी.." निशा ने अपनी टाँग फैला कर पालती मारे बैठे अंशुल के घुटने से सटा दी... निशा ने पारेलेल सलवार पहन रखी थी.. टाँग फैलने से उसकी जांघों के बीच की मछली उभर कर दिखने लगी..
अंशुल ने ऐसा नज़ारा आज तक कभी देखा नही था.. जहाँ निशा की टाँग ख़तम हो रही थी, वहीं से वो फूली सी.. मादक पंखों वाली तितली का राज शुरू होता था.. अंशु के माथे पर पसीने की बूँद उभर आई.. उसने अपना हाथी उठाकर प्यादे के उपर से ही 3 खाने आगे सरका दिया..
"ये क्या कर रहा है बुद्धू.. घोड़े के अलावा कुछ भी तुम्हारे प्यादों को पार नही कर सकता..." निशा ने हाथी वापस उसकी जगह पर रख दिया...
"मुझे नही खेलना दीदी.. चलो कुछ और खेलते हैं.." सच तो ये था की उसकी जांघों के बीच उसका लंड इतनी बुरी तरह फेडक रहा था की उसको 'खिलाए' बिना दिमाग़ कही और लग ही नही सकता था..
"क्या खेलें?" निशा ने आगे झुकते हुए अपनी कोहनियाँ बेड पर टीका कर अपने चूतदों को उपर उठा लिया.. और अंशुल की साँसें उखाड़ गयी.. निशा के आम बड़े ही मादक तरीके से झूलते दिख रहे थे.. निशा की साँसों के साथ उसकी चूचियों के बीच की दूरी कम ज़्यादा हो रही थी.. और अंशु की धड़कन उपर
नीचे..
अंशुल बेड से उतार कर घूमा और अपने फनफना रहे लंड को नीचे दबाने की कोशिश की पर नाकाम रहने पर वो बाथरूम में घुस गया...
निशा अंशु के हाथ के हिलने के तरीके से समझ गयी.. की उसका जादू चल गया है...
क्या कर रहे हो अंशु? जल्दी आओ..."
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