RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
घर आते आते गौरी का संजय के ख़यालों में उलझे उलझे बुरा हाल हो गया था.. पहली बार उसने किसी को दिल दिया था.. पहली बार उसको किसी ने शारीरिक और मानसिक तौर पर अंदर तक छुआ था.. और पहली बार में ही उसका दिल चलनी हो गया, ना वा संजय को देखती, ना संजय से दिल लगाती और ना ही ऐसा होता.. गौरी बाथरूम में जाकर अपने आप को शीशे में देखने लगी.. क्या वा ऐसी नही है की सारी उमर किसी को अपने से बँधसके... संजय को! क्या वो सिर्फ़ उससे खेलना चाहता था.. उसके साथ जीना नही.. ऐसा कैसे हो गया? उसने तो जब भी देखा,, संजायकी आँखों में प्यार ही देखा था.. उसके लिए.. या फिर ये मेरा भ्रम है... ख़यालों में खोए खोए ही वो होटेल के कमरे में जा पहुँची.. कैसे संजय ने उसके रोम रोम को आहलादित कर दिया था.. कैसे संजय के होंटो ने उसके होंटो को पहली बार मर्दाना गर्मी का अहसास कराया था.. पहली बार वो पागल सी हो गयी थी.. जाने कैसे वो खुद को काबू में कर पाई.. नही तो संजय उसके दिल के साथ उसके सरीर को भी भोग चुका होता...
गौरी के हाथ अपनी जांघों के बीच वहीं पहुँच गये जहाँ कल संजय पहुँच गया था.. उसने अपनी पट्टियों को वैसे ही कुरेड कर देखा... पर अब वो मज़ा नही था जो पहले आता था गौरी को," संजय ने ये क्या कर दिया... नही... मैं ऐसा नही होने दूँगी... मैं संजय को अपने पास लेकर अवँगी.. जिंदगी भर के लिए.. चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े..."
सोचते सोचते गौरी बाहर आई और किताबें उठा ली.. पर आज उस'से पढ़ा ही नही जा रहा था.. उसके दिल में ख़ालीपन सा घर कर गया.. शरीर में भी...
अगले दिन जब वा एग्ज़ॅम सेंटर पहुँची तो संजय गेट पर ही खड़ा था.. निशा अंदर जा चुकी थी..
"संजय!" गौरी ने उसके पास खड़ी होकर दूसरी और देखते हुए उसको आवाज़ लगाई..
"अब क्या रह गया है!" संजय अभी तक उस 'से नाराज़ था..
"मैं तुमसे बात करना चाहती हूँ! अपने बारे में.. नही... हम दोनो के बारे में..." गौरी ने आ रही एक लड़की को देखते हुए कहा..
"बोलो!" बाहर से संजय रूखा होने की भरपूर कोशिश कर रहा था... पर उसके दिल की खुशी उसकी आवाज़ से झलक उठी थी... वो भी तो हमेशा के लिए गौरी को अपना बना लेना चाहता था...
"अभी नही! कल हमारे पेपर्स ख़तम हो जाएँगे... तुम कल रात 11 बजे हमारे घर आना.. चुप चाप.. फिर बात करेंगे.." कहने के बाद गौरी ने ज्वाब का इंतज़ार नही किया... वो जान'ती थी.. संजय ज़रूर आएगा...
संजय जाती हुई गौरी के कुल्हों की लचक को देखकर तड़प गया.. रात को बुलाने का मतलब! .... अपने आप ही मतलब निकल कर उसकी आँखें चमक उठी...." बस अब सिर्फ़ कल का इंतज़ार है.. कल रात 11 बजे का...
दिशा और वाणी के दो दिन बाद पेपर ख़तम होने वाले थे.. वो उसके बाद घर जाने वाली थी... महीने भर के लिए.. यूँ तो उनकी मम्मी पापा से लगभग रोज़ ही बात हो जाती थी... पर फोन पर वो लाड प्यार कहाँ था जो वाणी को और दिशा को घर पर मिलता था.. उसकी मम्मी उनसे बात करते करते काई बार रो उठी थी.. वाणी को अब जल्द से जल्द घर जाना था.. बस एक बार पेपर ख़तम हो जायें.," दीदी! मैं अपनी हाफ पॅंट बॅग में रख लूँ..."
"ना वाणी! गाँव में बुरी लगेगी..."
"लेने दो ना दीदी.. मुझे बहुत अच्छी लगती है.. अपनी सहेलियों को दिखावँगी..!"
"मुझे पढ़ने दे.. जो मर्ज़ी कर ले, मेरा दिमाग़ मत खा बस.."
"दीदी! मैं भी तो रात को पढ़ती हूँ.. तुम भी पढ़ लेना. रात को ही..." वाणी ने गर्दन नीची करके.. अपनी आँखों को शरारती ढंग से उपर उठा कर दिशा को देखते हुए कहा!
"बताऊं क्या तुझे?" और दिशा की हँसी छूट गयी.. वाणी को मालूम था.. आज तीसरा दिन था और रात को शमशेर दिशा को पढ़ने नही देगा... वैसे भी 2 दिन बाद दिशा शमशेर को अकेला छोड़कर गाँव जा रही है...
वाणी ने दिशा को चिडाने वाला वही पुराना तराना छेड़ दिया...," तुम्हारे सिवा कुछ ना..."
दिशा चप्पल उठा कर वाणी को सबक सिखाने दौड़ी.. पर वो कहाँ हाथ आने वाली थी.. दरवाजा खोल कर जैसे ही वाणी बाहर निकालने को हुई बाहर से आ रहे टफ से टकरा गयी... भिड़ंत जबरदस्त थी.. वाणी सहम गयी," देखो भैया दिशा... नही! मैं तो आपसे बात ही नही करती.." वाणी अब संभाल गयी थी..
"क्यूँ बात नही करती वाणी.. और दिशा को क्या देखूं.." टफ ने अंदर आते हुए वाणी से पूछा....
"कुछ नही.. वाणी शरारती हो गयी है.." दिशा ने पानी के गिलास वाली ट्रे टफ की और बढ़ते हुए कहा.....
वाणी ने ब्लॅकमेलिंग चालू कर दी," मुझे सबका पता है.. कौन शरारत करता है.. मैं कुछ नही बोलती तो इसका मतलब मुझे ही शरारती साबित करदोगे सब.. मैं सबका रेकॉर्ड रखती हूँ.. हां!"
"जा वाणी चाय बना ले.. तुझे पढ़ना तो है नही.." टफ ने कहा और वाणी चाय बनाए किचन में चली गयी.. शमशेर के आने का समय हो गया था...
"मम्मी! मैं ज़रा विनय के पास जा रहा हूँ" अगर ज़्यादा लेट हो गया तो शायद वहीं सो जवँगा... चिंता मत करना!" अगले दिन रात के करीब 9:00 संजय ने नहा धोकर तैयार होते हुए कहा.
"खाना तो खा जा!" मम्मी की किचन से आवाज़ आई...
"नही! मम्मी, मैं वही खा लूँगा" संजय को पता था; अगर उसके पापा आ गये तो इश्स वक़्त उसको निकलने नही देंगे..
"भैया! ज़रा ये क़ुईसचन तो समझाना एक बार!" निशा ने अपने बेडरूम से आवाज़ दी..
"आता हूँ.." संजय उसके रूम की और बढ़ा...
निशा दरवाजे के पीछे खड़ी हो गयी... जैसे ही संजय कमरे में घुसा.. निशा ने दरवाजा बंद किया और उस 'से चिपक गयी... उसने ब्रा नही पहनी हुई थी.... उसकी चूचियों के निप्पल संजय को अपनी कमर में तीर की भाँति लग रहे थे," छोड़ो निशा! ये क्या हर वक़्त पागलपन सवार रहता है तुम पर.. प्लीज़.. मुझे जाना है....
निशा ने उसकी एक ना सुनी.. अपनी पकड़ और मजबूत करते हुए निशा ने अपने दाँत संजय की कमर में ज़ोर से गाड़ा दिए..
"आ.. मार गयाआ!" संजय ने घूम कर अपने को चुडवाया..," निशा हद होती है.. बेशर्मी की.. तुम्हे पता है.. ये ग़लत है.. फिर भी!"
निशा ने उस पर ताना कसा..," उस्स दिन ग़लत नही था; जब तुमने पहली बार मुझको
नंगा किया था और...."
"मत भूलो निशा.. उस्स दिन तुमने मुझे उकसाया था.." संजय ने अपना बचाव करने की कोशिश की....
निशा ने गुस्से में अपनी नाइटी उतार फैंकी.. उसका एक एक अंग' प्यार की आग में झुलस रहा था.. उसकी चूचियाँ पहले से कुछ मोटी और सख़्त हो गयी थी.. उसके भाई के प्यार से खिली वो काली अब गुलाब से भी मादक हो चुकी थी..," लो आज फिर उकसा रही हूँ... आज क्यूँ नही करते!" उसने दरवाजे की और देखा.. कुण्डी उसने लगा दी थी.. उसकी चूचियाँ उसकी आवाज़ की ताल से ताल मिला कर नाच रही थी..
"पर अब मुझे अहसास हो गया है निशा.. मैं ग़लत था.. मुझे माफ़ कर दो.. मुझे जाना है.." संजय ने अपने हाथ जोड़ कर निशा से कहा..
"ये क्यूँ नही कहते की अब तुम्हे तुम्हारी 'गौरी' मिल गयी है.... मैं किसके पास जाउ.. बोलो.. मेरे यहाँ आग लगती है.. मेरे यहाँ आग लगती है...." निशा ने अपनी पनटी और अपनी छातियों पर हाथ रखकर कहा...," तुमने ही मुझे ये सब सिखाया है.. अब वापस कैसे आ सकते हैं संजय!.. मैं तुमसे प्यार करती हूँ..." निशा की आँखें भर आई....
"निशा.. प्लीज़.. हम इस बारे में कल बात करते हैं.. अभी मुझे जाने दो प्लीज़.." संजय भी जानता था की वो बराबर का.. बुल्की निशा से कहीं ज़्यादा इस हालत के लिए दोषी है..
निशा ने सुबक्ते हुए अपनी आँखों से आँसू पोंछे और अपनी नाइटी उठा कर संजय को रास्ता दे दिया....
संजय ने बेचारी निगाहों से एक बार निशा को उपर से नीचे देखा और बाहर निकल गया......
संजय के बाहर जाते ही निशा फफक फफक कर रो पड़ी.. आख़िर उसके भाई ने ही उसको इश्स आग में झोंका था.. उसने रह रह कर फेडक रही अपनी चूचियों को अपने हाथ से ही गुस्से से मसल दिया.. पर चैन कहाँ मिलता.. इनकी आग तो कोई मर्द ही बुझा सकता था.. उसके दिमाग़ में हलचल मची हुई थी.. अपनी आग बुझाने के लिए.." मैं क्या कर सकती हूँ..." उसने इधर उधर नज़र दौड़ाई.. टेबल पर 10 रुपए वाली मोटी मोमबत्ती रखी थी.. उसने मोमबत्ती उठा कर अपनी उंगलियों का घेरा उस्स मोमबत्ती पर बनाया.. मोटी तो उसके भाई के लंड से ज़्यादा ही थी..," क्या ये
काम कर सकती है..?" उसको उस्स पल के लिए वही बेहतर लगा.. पढ़ाई गयी भाड़ में.... वा बाहर गयी," मम्मी मैं सो रही हूँ.. सुबह जल्दी उतूँगी.."
"ठीक है बेटी.. मैं उठा दूँगी.. 4 बजे.. ठीक है?"
"अच्छा मम्मी.." निशा ने अंदर आते ही दरवाजा लॉक कर लिया.. अपनी निघट्य और पनटी उतार दी.. ड्रेसिंग टेबल को खींच कर बेड के सामने कर दिया.... एक रज़ाई को गोल करके उससे अपनी कमर सटा कर मिरर के सामने बैठ गयी..
निशा ने अपनी टाँगों को खोल कर ड्रेसिंग टेबल पर मिरर के दोनो और रख लिया....
उसकी नज़र अपनी आज तक 2 बार ही शेव की गयी चूत पर पड़ी... चूत तो पहले ही जलते कोयले की तरह गोरी से लाल हो चुकी थी.. उसकी खूबसूरती देखकर उसका चेहरा भी लाल हो गया...
मोमबत्ती कुछ जली हुई थी.. वा उठी और टेबल के ड्रॉयर से ब्लेड निकल लाई.. बड़ी मेहनत से उसने मोमबति के अगले भाग को तराश कर सूपदे जैसा सा बना लिया.. वासना की आती देखिए की उसने उस 'सूपदे' में आगे एक प्यारा सा छेद भी बना दिया, मानो उस्स छेद में से रस निकल कर उसकी चूत को ठंडक देगा.... उसने उसके इस कामचलू लंड को गौर से देखा... ऐसा वो पहली बार कर रही थी..
निशा मोम के लंड को अपनी टाँगों के बीच ले आई और चूत के उपर लगाकर शीशे में देखने लगी.... "ये चिकना कैसे हो?..
निशा ने अपनी उंगलियों पर ढेर सारा थूक लगाया और उसको मोम्लंड पर लगाने लगी.. उसकी चूत उसी को देख कर पिघलने लगी.... मोमबत्ती के लंड को उसने अपनी छातियों पर रगड़ा.... मज़ा आया.. वो फीलिंग ले रही थी.. जैसे उसने अपने भाई का लंड उधार ले लिया हो..
निशा उठी और घूम कर अपनी गांद की रखवाली कर रहे अपने मोटे मोटे चूतदों और उनके बीच में कसी हुई गहरी घाटी को देखने लगी.. ये लंड सिर्फ़ उसी का था.. उसने अपने चूतदों के बीच 'लंड' फसा दिया और अपना हाथ हटाकर उसको देखने लगी.. लंड कसी हुई फांकों के बीच में टंगा रह गया.. निशा खुद पर मुश्कुराइ.. वा बेड के उपर झुक कर कुतिया बन गयी.. उसकी चूत की रस भारी पत्तियाँ उभर आई.. बाहर की और...
शीशे में देखते हुए ही उसने अपनी चूत के मुँह पर उसका अपना लंड रखा और उसको रास्ता बताने लगी.. चूत की पत्तियाँ उसके स्वागत में खुल गयी.. निशा ने अपने हाथ से दबाव डाला.. चूत एक बार हुल्की सी बरस कर तरीदार हो चुकी थी... दबाव डालने के साथ साथ वो अंदर होता चला गया.. निशा ने अपने मुँह से हुल्की सी सिसकी निकाली.. ताकि चूत को बेवकूफ़ बना सके.. की लंड ओरिजिनल है.. पर कहाँ.. उसमें वो मज़ा कहाँ था.. चूत ने कोई खास खुशी नही जताई.. पर काम तो पूरा करना ही था... निशा सीधी हो गयी..
फिर से रज़ाई के साथ अपनी कमर लगा कर उसने टांगे खोली और कामचलू हथियार अपनी चूत में फँसा दिया..
निशा ने अपनी आँखें बंद की और अपने भाई को याद करके वो खिलौना अंदर बाहर करने लगी.. ज़ोर ज़ोर से... सिसकियाँ लेलेकर... अब उसको शीशे की ज़रूरत नही थी.. अब उसके सामने उसका भाई था.. उसकी बंद आँखों से वो देख रही थी..
निशा की स्पीड बढ़ती चली गयी.. और करीब 3 मिनिट बाद उस लंड को अपनी चूत में पूरा फँसा कर अकड़ कर सीधी लेट गयी.. आख़िर कार उसने चूत को आज तो बेवकूफ़ बना ही दिया.. पर उसको ओरिजिनल लंड की सख़्त ज़रूरत थी.. चाहे किसी का भी मिले...
रस बहने के काफ़ी देर बाद उसने मोमबत्ती को बाहर निकाला.. और किताबों के पीछे रख दिया... अब वो कम से कम आज तो चैन से सो ही सकती थी.......
करीब 10:50 पर गौरी धीरे से उठी और लिविंग रूम की लाइट ऑन कर दी... उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था.... जाने क्या होने वाला था.. पर गौरी फाइनल कर चुकी थी.. संजय को अपनी दुनिया में लाकर रहेगी.. चाहे उसको कुछ भी करना पड़े...
गौरी ने दोनो बेडरूम्स के दरवाज़ों पर कान लगा कर देखा.. कोई आवाज़ नही आ रही थी.... कुछ निसचिंत होकर गौरी ने जाली वाले दरवाजे से अपने दोनों हाथों को सेटाकर उनके बीच से बाहर देखने की कोशिश की...
करीब 1 घंटे से दीवार फाँद कर चारदीवारी के अंदर आ चुका संजय लाइट ऑन होते ही चौकस हो चुका था.. वह कार के पीछे अंधेरे में बैठा था और जैसे ही उसने गौरी को दरवाजे से झँकते देखा.. उसने आगे उजाले में अपना हाथ हिलाया..
"संजय आया हुआ है.. ये देखकर गौरी का दिल और ज़ोर से धड़कने लगा... अभी तक उसको पूरा विस्वास नही था की संजय आएगा भी या नही....
वा बिना आवाज़ किए दरवाजा खोल कर बाहर निकली और घर की दीवार के साथ साथ थोड़ा आगे अंधेरे में जाकर खड़ी हो गयी...
हरी झंडी मिलते ही संजय झुक कर बाउंड्री के साथ साथ गौरी की और बढ़ गया.. और उससे करीब एक फुट जाकर खड़ा हो गया," हां! क्यूँ बुलाया था..?"
गौरी ने मुड़कर दरवाजे की और देखा," मुझे डर लग रहा है संजय.."
"तो वापस जाओ ना.. जाओ?" संजय अब की बार अपनी तरफ से पहल नही करना चाह रहा था........
"क्या हुआ? अभी तक नाराज़ हो क्या.." रात के सन्नाटे में सिर्फ़ कानो तक पहुँचने वाली आवाज़ भी ऐसी लग रही थी मोनो सबको जगा देगी...
"सुनो! .. वो.. क्या घफ़ के पीछे वाली साइड में चलें... वहाँ एक कमरा सा है.." गौरी ने संजय को जी भर कर देखते हुए कहा..
संजय उसकी और देखता रहा.. गौरी ने उसका हाथ पकड़ा और अपने पीछे खींचा...
चोरों की तरह चूपते छुपाते घर के पीछे वाले एक बेकार से कमरे में पहुँच गये.. शायद ये कमरा पहले जानवरों के लिए प्रयोग किया जाता होगा... अब वो पहले से अधिक सेफ थे.. और घर वालों से दूर भी...
संजय ने फिर सवाल किया..," जल्दी बोलो! क्यूँ बुलाया था.. या मैं जाउ..." गौरी को बाहों में लपेटने की इच्छा वो जाने कैसे दबा पा रहा था...
"वो चंडीगड़ वाली कौन है..?" गौरी ने संजय की आँखों में देखते हुए अपने नाख़ून कुतरने शुरू कर दिए..
"चंडीगड़ वाली..?... कौन चंडीगड़ वाली..." संजय की कुछ समझ में ना आया..
"मुझे उल्लू ना बनाओ.. निशा ने सब बता दिया है..." गौरी ने अपना गुस्सा दिखाया..
क्याअ?.! निशा ने तुमको ऐसा कहा.." असचर्या की लकीरें संजय के माथे पर छा गयी.. अपनी वफ़ा दिखाने के लिए संजय ने गौरी के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले लिया...
"क्यूँ क्या ये झूठ है?.. उसने तो मुझे ये भी बताया था की तुम मुझसे शादी करने के बारे में सोच भी नही सकते..!" गौरी ने संजय को थोड़ा और झटका दिया...
"तुम्हे क्या लगता है गौरी.. मेरी आँखों में एक बार देखो तो सही..!" पिछे वाली गली में लगी स्ट्रीट लाइट की रोशनी उनको एक दूसरे की आँखों में झाँकने का मौका दे रही थी...
"मुझे तो नही लगता.. की.. निशा को मुझसे झूठ बोल कर कोई फयडा होगा..!" गौरी की बात में तो डम था.. पर संजय समझ चुका था की निशा ऐसा क्यूँ कर रही है.......
संजय के हाथो से अनायास ही गौरी के हाथ फिसल गये.. कुछ ना बोल कर वा सोचता ही रहा की उसकी ग़लती उसको आज कितनी महनगी पड़ रही है.. बेहन से संबंध बनाने की ग़लती....
"सोच क्या रहे हो.. क्या तुम सिर्फ़ मेरे शरीर से प्यार करते हो..?" गौरी अपनी बात का जवाब हर हालत में चाहती थी...
"गौरी...! अगर मुझे सिर्फ़ तुम्हारे शरीर से प्यार होता तो मैं आज यहाँ ना आता.. ये जानते हुए भी की तुम मुझे हाथ तक नही लगाने दोगि... मैं तुमसे प्यार करता हूँ गौरी.. इसीलिए एक घंटे से यहाँ बैठा हुआ हूँ.. 11 बजने का इंतज़ार मुझसे नही हो सका..
"क्या सच में?" गौरी के चेहरे पर संतोष और प्यार के भाव आसानी से पढ़े जा सकते थे...," पर निशा ने ऐसा क्यूँ कहा?"
गौरी की बात का जवाब संजय के पास था.. पर वह बोलता भी तो क्या बोलता...
"मैं तुम्हे कुछ देना चाहती हूँ.. संजय! इश्स वादे के साथ की अगर तुम हर हालत में मेरे साथ जीने की कसम खाओ तो मैं अपने आपको दुनिया की सबसे ख़ुसनसीब लड़की समझूंगी..."
"मुझे नही पता ऐसा क्यूँ है.. पर मैं तुमको पाने के लिए दुनिया से भीड़ सकता हूँ... दुनिया को झुका सकता हूँ या दुनिया छोड़ सकता हूँ.. मैं तुमसे प्यार करता हूँ गौरी..! दिल से....
गौरी भावुक हो गयी.. उसने अपने गुलाब की पंखुड़ी जैसे सुर्ख लाल होन्ट संजय के गाल पर टीका दिए.. संजय ने कुछ नही किया.. बस आँखें बंद कर ली...
"क्या आज मुझे गले से नही लगाओगे..?" गौरी ने संजय को अपनी बाहों में आने का निमंत्रण दिया..
"नही.. गौरी.. मैं तुम्हे यकीन दिलाना चाहता हूँ की मैं तुम्हारे शरीर से नही.. बुल्की तुम्हारे कोमल दिल से प्यार करता हूँ..."
"आ जाओ ना..!" कहते हुए गौरी ने संजय को अपनी छातियों से चिपका लिया.. संजय ने अपनी बाहें गौरी की कमर में डाल दी.... और उसको अपनी और खींच लिया..
आज गौरी को शरीर में अजीब सी बेचैनी का अहसास हो रहा था.. वह मन ही मन संजय को अपना सब कुछ सौप देना चाहती थी..
"मुझे परसों की तरह पकड़ लो ना... संजू!" गौरी की साँसों से मदहोशी की बू आ रही थी..
"कैसे?"
"जैसे होटेल में..." गौरी ने अपनी छातियों का दबाव बढ़ा दिया....
"पर वो तो तुम्हे पसंद ही नही है.." संजय अपना हाथ गौरी की कमर में फिरा रहा था.. पर कमर से नीचे जाने की उसकी हिम्मत नही हो रही थी....
"मुझे कुछ नही पता.. तुम करो... जैसा तुम चाहते हो तुम करो... मुझे हर जगह से छू लो संजू.. मुझे पूरी कर दो..." गौरी निस्चय कर चुकी थी.. उसको संजय को अपना सब कुछ देकर उसका सब कुछ सिर्फ़ अपने लिए रख लेना है..
"काबू करने की भी तो कोई हद होती है.. और अब तो गौरी का ही निमंत्रण मिल गया था....
संजय के हाथ उसके कमाल से भी ज़्यादा सेक्सी चूटरों की दरार पर अपनी दस्तक देने लगे...
"आ संजू..." गौरी ने अपनी एडियीया उठा ली, ताकि संजय के हाथ जहाँ जाना चाहें वहाँ तक जा सकें... उसने संजय के होंटो को अपने होंटो की तपिश का अहसास कराया....
संजय ने जीभ उसके मुँह में डाल दी.. और उंगलियाँ उसकी गांद में.. उसकी चूत के द्वार तक..
"गौरी मदहोशी में उछाल पड़ी... उसकी आइडियान और उपर उठ गयी.. उसकी टाँगें और ज़्यादा खुल गयी....
"कौन है?" अचानक राज ने पिछे से आकर दोनो के होश उड़ा दिए... राज ने संजय का गला पकड़ लिया.....
"गौरी की घिग्गी बाँध गयी.. संजय ने एक ज़ोर का झटका राज के हाथों को दिया.. और एक ही झटके में दीवार कूद कर भाग गया........
राज ने गौर से गौरी को देखा.. उस्स प्यार की प्यासी गौरी के लाल चहरे का रंग.. अचानक ऊड गया... वह नज़रें झुका कर नीचे देखने लगी.......
"वह उतनी शर्मिंदा नही थी.. जितना राज उसको करने की सोच रहा था.....
"शरम नही आई तुझे रात को..... ऐसे बाहर आकर.." राज ने अपना दाँव लगाने की सोची..
"नही.. मुझे उतनी शर्म नही आई.. जितनी आपको आनी चाहिए.. अपनी बीवी के होते हुए अंजलि दीदी के साथ ग़लत होने के लिए.." गौरी ने नहले पर दहला मारा और वहाँ से बाहर निकल गयी.......
पर उसको अचंम्बुआ था... दुनिया से भिड़ने की कसम खाने वाला संजय.. एक आदमी के सामने भी ठहर ना पाया....
"निशा सही कह रही थी... वो ऐसा ही है... गौरी को रोना सा आ गया... वह अपने बिस्तेर पर गिरकर सोचने लगी..
मनु 2 दिन बाद भी वाणी की खुमारी को अपने दिमाग़ से नही निकल पा रहा था.. रह रह कर उसकी हँसी उसके कानो में गूँज उठती.. और इसके साथ ही अकेले बैठे मनु के होंटो पर मुस्कान तेर जाती.. क्या बकरा बना था वो उस्स दिन..
मनु किताब बंद करके चेर से अपना सिर सटा कर बैठ गया.. आज तक उसने कभी किसी लड़की में रूचि नही दिखाई थी.. स्कूल की लगभग सभी लड़कियाँ उसके लिए दीवानी थी.. उसका दिमाग़ जो इतना तेज था.. यहाँ तक की स्कूल के टीचर उसको मिस्टर.
माइंड बुलाते थे... उसके चेहरे से भोलापन और शराफ़त एक राह चलते को भी दिख जाती थी... सुंदर गोल चेहरा.. गोरा रंग.. मोटी मोटी आँखें और हर दिल अज़ीज स्वाभाव उसकी विशेषतायें थी जो हर किसी को उसका दोस्त बना देती थी.. पहली नज़र में ही हर लड़की उसको देखकर उसको हेलो बोलने को तरस जाती थी.. फिर. स्कूल की तो बात ही कुछ और थी.. सब उसके ईईटिअन बन'ने की बात ज़ो रहे थे....
कोई लड़की उसके पढ़ाई के प्रति जुनून को नही डिगा सकी थी.. सिवाय वाणी के...
"मानी!" मनु ने मानसी को पुकारा.
"आई भैया!" मानी अगले मिनिट ही उसके कमरे में थी..
"यहाँ बैठहो, मेरे पास!" मनु ने साथ रखी चेर की तरफ इशारा किया..
मानसी कुर्सी पर बैठ कर मनु के चेहरे को देखने लगी," क्या है भैया?"
"मानी! क्या ... वो कल सच में ही मैं बहुत बुरा लग रहा था.. उल्टी शर्ट में..
"नही तो.. मुझे तो नही लगे.. क्यूँ?" मानसी की समझ ना आया.. मनु कल की बात आज क्यूँ उठा रहा है..
"नही.. बस ऐसे ही..... फिर वो लड़की ऐसे क्यूँ हंस रही थी.. घर में तो किसी से भी चूक हो सकती है.. आक्च्युयली मैने रूम में वो शर्ट..."
"ओह! छोड़ो भी.. वो तो ऐसे ही है.. स्कूल में भी सारा दिन ऐसे ही खुश रहती है.. वो तो मौका मिलने पर टीचर्स तक को नही बक्षति.. पर पता नही.. फिर भी उससे सभी इतना प्यार करते हैं.. कोई भी बुरा नही मानता उसकी बात का..." मानसी पता नही वाणी का गुणगान कर रही थी या उसकी आलोचना... पर मनु उसके बारे में सब जान लेना चाहता था..," कहाँ रहती है.. वाणी..?"
"अरे यही तो रहती है.. सेक. 1 में ही... अगले रोड पर 1010 उन्ही का तो घर है.. वो कोने वाला! पर क्यूँ पूछ रहे हो?" मानसी ने अपने कमीज़ के कोने को मुँह से चबाते हुए तिरछी नज़र से मनु को देखा.. उसकी समझ में कुछ कुछ आ रहा था...
"नही.. कुछ नही.. मुझे क्या करना है उसके घर का.. मैं तो बस ऐसा ही पूछ बैठा था.." मनु अपनी बेहन को अपने दीवानेपन से रूबरू कैसे करता..
"ठीक है भैया! अब मैं जाउ..?" मानसी ने खड़े होते हुए पूछा..
"ठीक है.. जाओ.."
"एक मिनिट रूको...! वो आएगी क्या फिर कभी.... यहाँ?"मनु वाणी को एक बार और देखना चाहता था...
"नही तो.. वो तो आज अपने घर जा रही है.. हमारे एग्ज़ॅम ख़तम हो गये ना...!"
"क्या?.." फिर मनु अपने आपको संभालता हुआ बोला," तुम मिलॉगी नही क्या उससे जाने से पहले?"
"क्यूँ?" मानसी समझ रही थी.. वाणी का जादू उसके भाई पर भी छा गया है.."
"अरे हर बात में क्यूँ क्यूँ करती रहती है.. इतने दीनो बाद आएगी वापस.. तुम्हे मिलकर आना चाहिए...
आख़िर तुम्हारी दोस्त है वो..."
"फिर क्या हुआ भैया? हम आज ही तो मिले थे.. हुँने तो एक महीने के लिए एक दूसरे को गुड बाइ बोल भी दिया है... मुझे नही जाना.. अब मैं जाउ..?"
"जा... ख्हम्ख मेरा टाइम वेस्ट कर दिया.." खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे के अंदाज में मनु बड़बड़ा उठा...
मानसी बाहर चली गयी.. बाहर जाते ही उसको वाणी का प्यारा चेहरा याद आ गया... उसका भाई उसका दीवाना हो गया लगता था.. वाणी के बारे में पूछते हुए उसकी आँखों में चमक और चेहरे पर शरम का अहसास इश्स हक़ीकत को बयान कर रही थी की कुछ तो ज़रूर है उसके दिल में...
सोचकर मानसी मुस्कुरा पड़ी.. कितनी अच्छी जोड़ी लगती है दोनो की... वा उल्टे पाँव मनु के कमरे में गयी..," भैया मुझे वाणी से मिलने जाना है.. एक बार साथ चल पड़ोगे क्या??"
"कक्यू..न मैं क्या करूँगा..?" फ्री में लगी जैसे लाखों की लॉटरी के बारे में सोचकर उसकी ज़ुबान फिसल गयी.. जो उसका दिल कहना चाह रहा था, कह नही पाई...
"अकेली तो मैं नही जवँगी.. उनके कुत्ते से मुझे बड़ा दर लगता है... ठीक है रहने दो.. कोई खास काम भी नही था..."
मानसी के मुड़ते ही मनु ने उसको रोका," मैं तोड़ा नही लून... !"
"अरे नहाए धोए तो बैठे हो...!"
"नही प्लीज़.. बस 10 मिनिट लगवँगा.. मुझे उससे बहुत डर लगता है.. जाने क्या कह देगी.."
"ओ.क.!" मानसी हँसने लगी.....
दिशा और वाणी अपना समान पॅक करके बैठी थी...," वाणी! जल्दी से नहा ले नही तो उनके आने के बाद देर लगेगी.. तेरा दिल नही कर रहा क्या घर जाने का?" दिशा ने वाणी के कंधे पर हाथ रखा...
वाणी अपना कंधा उचका कर खड़ी हो गयी..," कर रहा है दीदी... बहुत मन कर रहा है.. पर जीजू अब्भी तक नही आए..!"
"तू नहा तो ले पहले.. और वो अभी आने ही वाले होंगे... आते ही निकल पड़ेंगे..." दिशा ने उसको बाथरूम में धक्का दे दिया....
तभी दिशा का मोबाइल बाज उठा... शमशेर का फोन था..
"क्या बात है आना नही क्या?" दिशा ने मीठा गुस्सा करते हुए बोली..
"आ रहा हूँ ना मेरी जान.. थोड़ा फँस गया हूँ.. एक घंटा लगेगा. वो तुम्हे अपना समान लेना था ना... सॉरी.. अगर बुरा ना मानो तो तुम खुद ही ले आओ तब तक.. नही तो और लेट हो जवँगा.."
"पहले कभी लाए हो.. जो आज लाओगे.. मैं क्या तुम्हारी शेविंग क्रीम नही लाती.. ठीक है.. फोने रखो.. मैं अभी ले आती हूं जाकर.."
"बाइ जान.." कहकर शमशेर ने फोने काट दिया..
दिशा ने दरवाजा खोलही था की दरवाजे पर मानसी और एक लड़के को देखकर चौंक पड़ी..," मानसी तुम!"
"हां दीदी.. मुझे वाणी से मिलना था.. फिर तो ये चल! जाएगी.. ये मेरे भैया हैं..!"
मनु ने दिशा को दोनो हाथ जोड़कर नमस्ते किए.. हालाँकि वो उससे करीब साल भाई छोटी थी.. पर मेक उप में वो कुछ बड़ी लग रही थी...
दिशा ने मनु को गौर से देखा.. बड़ा ही भोला और शकल से ही किताबी कीड़ा लग रहा था..
"मानसी! मेरे साथ एक बार मार्केट तक चलेगी क्या..?"
"क्यूँ नही दीदी.. भैया बाइक लेकर आए हैं.. इनको ले चलें.."
"दिशा ने मानसी का हाथ दबा कर कहा," नही! बस दो मिनिट में आ जायेंगे... आप अंदर बैठो तब तक.. हम अभी आए..." दिशा ने मनु की और देखकर कहा और मानसी का हाथ पकड़ कर खींच ले गयी...
"दीदी.. भैया को ले ही आते..!"
"अरे कुछ पर्सनल सामान लाना है... समझा कर...
मनु की ब्चैन निगाहे कमरे के कोने कोने तक अपने होश उड़ाने वाली की तलाश में भटकने लगी.. पर उसको दीवार पर टाँगे वाणी के 24'' बाइ 36'' के मुस्कुराते हसीन फोटो के अलावा कोई निशान दिखाई ना दिया.. वाणी मनु की और ही देख रही थी.. मानो कह रही हो," मैं तुम्हारी ही तो हूँ..."
मनु उसकी बिल्लौरी आँखों में झँकते हुए सपनों की दुनिया में खो गया," आइ लव यू वाणी!" उसके मुँह से अनायास ही निकल पड़ा.. इसके साथ जिंदगी के हसीन सपनो में खोने को मिल जाए तो कोई कुछ भी खोने को तैयार हो सकता है.. कुछ भी.. वाणी मानो एक खूबसूरत लड़की ही नही थी.. कोयल जैसी आवाज़, अपनी सी लगने वाली आँखें, चिर परिचित मुस्कान, खालिस दूध जैसा रंग और सुबह गुलाब पर पड़ी ओस की बूँदों की रंगत वाले दानेदार लज़ीज़ होंटो की मल्लिका; वाणी सिर्फ़ एक सपनो की राजकुमारी ही नही थी.. एक जादूगरनी थी, जिसका जादू सब पर छाया था; किसी ना किसी रूप में.. सबको अपनी पहली मुस्कुराहट से अपना बना लेने वाली वाणी को अब अजीब नही लगता था जब कोई उसमें यूँ डूब जाता.. उसकी तो आदत सी हो गयी थी.. सबको अपना मान कर मज़ाक करना.. किसी की आँखों का बुरा ना मान'ना; चाहे वो आँखें प्यार की हों या हवस के भूखे सैयार की.. कुछ लड़के तो उसकी उनकी तरफ उछली गयी एक प्यारी मुस्कान को ही अब तक सीने में छिपाए बैठे थे, और मान रहे थे की उनके लिए कोई चान्स है शायद; रास्ते बंद नही हुए हैं.. और बेचारा मनु भी इसी विस्वास की ज्योत मान में जगाए.. यहाँ आया था!
एक और बात वाणी में खास थी.. जाने क्या बात थी की यूयेसेस पर कभी कोई ताना नही मारता था.. आते जाते.. उसका जादू ही ऐसा था की उसके बारे में मान में चाहे कोई कुछ सोच भी लेता.. पर अपनी आरजू को कभी गालियों की शकल दे कर बाहर नही निकल पता था.. सब भीगी बिल्ली बन जाते थे.. ऊस शेरनी को देख कर....
अचानक गोली सी आवाज़ सुनकर वाणी के फोटो के पास खड़ा मनु गिरते गिरते बचा..
" डीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई"
आवाज़ सुनते ही मनु तस्वीर से निकल कर वापस लौट आया.. हक़ीकत की दुनिया में.. पर उसके हलक से आवाज़ ही ना निकली.. आवाज़ कहाँ से आई है वो तभी समझ सका जब आवाज़ ने उसके कानो में मिशरी सी घोल दी...
"दी... टॉवेल दे दो जल्दी.. मैं ले कर आना भूल गयी थी.."
मनु की नज़र कमरे के साथ दूसरे कमरे के दरवाजे पर गयी थी.... आवाज़ शर्तिया उसी हसीना की थी....
पर मनु क्या कहता.. वो क्या करता.. वाणी की आवाज़ सुनते ही उसका गला बैठ गया.. उसको सामने से देखने के एक बार फिर मिले चान्स ने उसको असमंजस में डाल दिया...
"दीदी! देख लो.. मैं ऐसे ही आ जाउन्गि बाहर.. नंगी.. मुझे फिर ये मत कहना की इतनी बड़ी हो गयी.. अककाल नही आई.. मैं आ जाउ.. ऐसे ही..."
ये बात वाणी के मुँह से सुनकर मनु की कमर में पसीने की लहर करेंट के झटके की तरह दौड़ गयी.... क्या वाणी सचमुच ऐसे ही आ जाएगी.. नही नही..! मैं उसको शर्मिंदा होते नही देख सकता..," तुम्हारी दीदी यहाँ नही है वाणी...!"
"कौन?.. दीदी कहाँ है....."
कुछ जवाब ना मिलता देख वाणी शुरू हो गयी..," बचाओ! बचाओ!... चोर... चोर.. चोर!"
मनु को उसकी इश्स बात पर गुस्सा भी आया.. और हँसी भी.."
"मैं हूँ वाणी... मनु.." फिर धीरे से बड़बड़ाया.. तुम्हारा मनु.. वाणी!"
"मनु... कौन मनु.. दीदी कहाँ हैं.." वाणी अभी तक बाथरूम के अंदर ही थी...
मनु दरवाजे के करीब जा कर बोला..," मानसी का भाई! मानसी लेकर आई थी.. वो और तुम्हारी दीदी बाहर गयी हैं..." अपना नाम तक याद ना रखने पर मनु की सूरत रोने को हो गयी...
"मानसी! .... कौन मानसी.?" कहक्र वाणी खिलखिला कर हंस पड़ी....," मुझे पता है बुधहू! मनु.. उल्टी शर्ट पहन'ने वाला मनु.." कहकर फिर वाणी ने मनु पर बिजली सी गिरा दी.. हंस कर...
[color=#400000][size=large]"बाहर टवल पड़ा होगा.. दे दोगे प्लीज़!" वाणी ने अपन
|