College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
11-26-2017, 01:07 PM,
#58
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल'स स्कूल --22

सीमा फोने काटते ही बाद हवस सी होकर भाग ली गेट की तरफ.. अपने प्यार के लिए.. उसको नही पता था टफ वहाँ मिलेगा या नही.... पर उसको भगवान पर भरोसा था.. फोन करना भी ज़रूरी नही समझा.....
गेट पर आते ही उसको टफ की गाड़ी दिखाई दे गयी.. वह भागती हुई ही ड्राइवर सीट के बाहर पहुँची.. उसने देखा टफ की बंद आँखों में आँसू थे... उसने शीशे पर नॉक किया.. टफ ने देखा सीमा बाहर खड़ी है.. उसकी भी आँखों में आँसू थे.. दोनो के आँसू एक रंग के हो चुके थे.. प्यार के आँसू.. मिलन की तड़प के आँसू..
टफ गाड़ी से नीचे उतरा.. सीमा उससे लिपट गयी.. बिना उसकी इजाज़त लिए... कभी ऐसा भी होता है क्या.. पहल तो लड़का करता है... पर कहानी उलट गयी थी.. सीमा रोड पर ही उसके अंदर घुस जाना चाहती थी.. हमेशा के लिए....," तुमने बताया क्यूँ नही?"
टफ ने उसकी कमर पर हाथ लगाकर और अंदर खींच लिया," कहा तो था जान; उससे पूछ तो लो.."
"फिर तुम इतने घबराए हुए क्यूँ लग रहे थे.." सीमा ने अपने आँसू टफ की शर्ट पर पोंछ दिए...
"वहाँ जाने की ग़लती के कारण सीमा... सॉरी.. सच में मैं तुम्हारे बिना नही रह सकता.."
"मैं भी अजीत... आइ लव यू" सीमा अपना सिर उठाकर टफ की आँखों में अपने लिए मंडरा रहा बेतहाशा प्यार ढूँढने लगी.......

दोनो गाड़ी में बैठे और चल दिए... पीछे प्रिया खड़ी अपने आँसू पॉच रही थी... काश उसकी भी ऐसी किस्मत होती..

"कहाँ चलें?" टफ ने गाड़ी रोड पर चढ़ा कर सीमा से पूछा.
"जहाँ तुम्हारी मर्ज़ी!" सीमा सीट से कमर लगाए आँखें बंद किए बैठी थी.. जाने कैसे वो यूनिवर्सिटी के बाहर टफ के सीने से जा चिपकी थी.. उस्स वक़्त उसको कतई अहसास नही हुआ की वो एक मर्द का सीना है.. उसकी ठोस छाती की चुभन अब जाकर वो अपने दिल में महसूस कर रही थी.. उसकी छातियाँ मर्द का संसर्ग पाकर उद्वेलित सी हो गयी थी... यह उसका पहला प्यार था, पहली कशिश थी.. पहली चुभन थी और पहली बार वो अपने आपको बेचैन पा रही थी; दोबारा उसके सीने में समा जाने के लिए.. उसका दिल उछल रहा था, पहले मिलन को याद करके भविस्या के सपनो में खोया हुआ!
"कहीं का क्या मतलब है? अपने घर ले चलूं क्या?" टफ ने मज़ाक में कहा..
सीमा ने अपनी मोटी आँखें खोल कर टफ की और देखा," तो क्या सारी उमर बाहर ही मिलने का इरादा है?"
"अरे मैं अभी की पूछ रहा हूँ.."
"अभी तो मंदिर मैं चलते हैं.. देल्ही रोड पर थोड़ी ही दूर सई बाबा का मंदिर है.. चलें?" सीमा ने टफ से पूछा...
"क्यूँ नही! " और टफ ने गाड़ी देल्ही की और बढ़ा दी...

करीब 15 मिनिट के बाद दोनो मंदिर के पार्क में बैठे थे," सीमा! मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ..!"
"कहो!" सीमा भी अब कुछ ना कुछ सुनना ही चाहती थी... कुछ प्यारा सा, रोमॅंटिक सा..
"सीमा! मैं अपनी बीती जिंदगी में निहायत ही आवारा टाइप का रहा हूँ.. केर्लेस और थोड़ा वल्गर भी... जैसा मैने कहा था.. तुमने मेरी जिंदगी में आकर उसको बदल दिया.. मैं मंदिर में बैठा हूँ.. आज जो चाहो पूछ लो; प्लीज़ आइन्दा कभी कोई बात सुनकर मुझसे यूँ दूर ना चली जाना जैसे आज..... मैं मर ही गया था सीमा.." टफ ने सीमा का हाथ अपने हाथों में ले लिया..
"अजीत! कल रात वाली बात का खुलासा होने पर कोई भी बहुत बड़ी बेवकूफ़ होगी जो तुम पर कभी शक करेगी... मैं तुम्हारी शुक्रगुज़ार हूँ की तुमने मुझ में प्यार ढूँढा.. तुमने मुझे अपनाया... मुझसे मिलने से पहले तुमने क्या किया है, ये मेरे . कतई मायने नही रखता... बस अब मुझे मंझदार में ना छोड़ देना... मैने बहुत सारे सपने देख लिए हैं..उनको बिखरने मत देना प्लीज़...

दोनो लगातार एक डसरे की आँखों में देखे जा रहे थे... शायद दोनो ही अपने देखे सपनो को एक दूसरे की आँखों में ढूँढ रहे थे... टफ के हाथों की पकड़ सीमा के मूलाम हाथों पर कास्ती चली गयी...

"आऔच! अब क्या मसल दोगे इनको." सीमा ने अपने हाथ को छुड़ाने की कोशिश करी..
"ओह सॉरी! मैं कहीं खो गया था.." टफ ने सहम्ते हुए उसका हाथ छोड़ दिया..
"अब ये अपना पुलिसिया अंदाज छोड़ दो.. मेरे साथ नही चलेगा.. अंदर कर दूँगी हां!" सीमा ने अपना हक़ जताना शुरू कर दिया था..

"कहाँ अंदर करोगी!" खिलाड़ी टफ अपने आपको रोक ही ना पाया.. द्वि- अर्थी कॉमेंट करने से...
गनीमत था सीमा उसकी बात का 'दूसरा' मतलब नही समझी... वरना वहाँ पर झगड़ा हो जाता... या क्या पता...? प्यार ही हो जाता! ," घर लेजाकार बाथरूम मे. रोक दूँगी... हमेशा के लिए!"
"अगर तुम भी मेरे साथ बंद हो जाओ तो में बाथरूम में उमर क़ैद काटने के लिए भी तैयार हूँ..." टफ ने फिर शरारत की..
"धात!.. बेशरम.." सीमा ने अपनी नज़रें झुका ली.. उसका दिल कर रहा था अजीत उसको अपनी छाती से वैसे ही चिपका ले जैसे वो रोड पर जा चिपकी थी.... उस्स मिलन की ठंडक अब तक उसकी छातियों में थी....
"चलें..... मुझे पढ़ाई करनी है.." सीमा चाह रही थी.. वो उसको कहीं ले जाए, अकेले में..!

टफ तो जैसे जोरू का गुलाम हो गया था.. ना चाहते हुए भी वो उठ गया," चलो! जैसी तुम्हारी मरजी"

अब सीमा क्या कहती.. वो उसके पीछे पीछे चल दी........

आज 10+2 के एग्ज़ॅम का तीसरा दिन था... सुबह सुबह गौरी निशा के घर पहुँच गयी," निशा! आज तू लेट कैसे हो गयी? तेरा इंतज़ार करके आई हूँ.. चल जल्दी!"
"सॉरी गौरी! मैं तुझे बताना ही भूल गयी... मेरे भैया के एग्ज़ॅम ख़तम हो गये हैं.. वो कल रात को घर आ गये थे... मैं तू बाइक पर उसी के साथ जाउन्गि.. सॉरी!" निशा गौरी को साथ लेकर नही जाना चाहती थी.. इतने में संजय बाथरूम से बाहर निकला.. उसने कमर के नीचे तौलिया बाँध रखा था.. चंडीगड़ में वह लगातार जिम जाता रहा था.. कपड़ों के उपर से गौरी उसकी मांसपेशियों के कसाव को नही देख पाई थी.. कपड़ों में वा इतना सेक्सी नही लगता था जितना आज नंगे बदन.. गौरी ने शर्मा कर नज़रें नीची कर ली...

"तो क्या हुआ निशा? ये चाहे तो हमारे साथ चल सकती है.. तीन में कोई प्राब्लम नही है" संजय ने बनियान पहनते हुए कहा..

निशा ने एक बार घूर कर संजय की और देखा फिर पलट कर निशा की और प्रेशन शूचक निगाहों से देखा...
"हां ठीक है.. अगर तीन में प्राब्लम नही है तो मैं भी चल पड़ती हूँ... तुम्हारे साथ.." गौरी को आज सच में ही संजय बहुत स्मार्ट लगा.. वह रह रह कर तिरछी निगाहों से संजय को देख रही थी....

"ठीक है.. चलो!" निशा ने बनावटी खुशी जताई.. सच तो ये था की वो संजय और गौरी को आमने सामने तक नही देखना चाहती थी.. उसको पता था की उसका भाई गौरी पर फिदा है... पर वा मजबूर हो गयी...

संजय ने बाइक बाहर निकली तो झट से निशा संजय के पीछे बैठ गयी.. संजय ने निशा की और देखा," निशा! दोनो तरफ पैर निकालने होंगे.. ऐसे नही बैठ पावगी दोनो.."
"तुम तो कह रहे थे की तीनो आराम से बैठ जाएँगे!" निशा ने मुँह बनाया और दोनो तरफ पैर करके संजय से चिपक कर बैठ गयी.. गौरी निशा के पीछे बैठ गयी.. तीनो एक दूसरे से चिपके हुए थे... संजय ने बाइक चला दी...

सलवार कमीज़ में होने के कारण निशा की चूत संजय की कमर से नीचे बिल्कुल सटी हुई थी.. संजय उसमें से निकल रही उष्मा को महसूस करके गरम होता जा रहा था.. निशा ने अपने हाथ आगे लेजकर उसकी जांघों पर रख लिए.. संजय के लंड में तनाव आने लगा...
गौरी संजय के बारे में सोच कर गरम होती जा रही थी.. उसकी जांघों की बीच की भट्टी भी सुलग रही थी.. धीरे धीरे...
अचानक रोड पर ब्रेकर आने की वजह से गौरी लगभग उछल ही गयी, उसने घबराकर निशा को पकड़ने की कोशिश करी... पर उनके बीच में तो जगह थी ही नही.. गौरी के हाथ संजय के पेट के निचले हिस'से पर जाकर जम गये..


जिस वक़्त गौरी को वो झटका लगा था.. उससे थोड़ी देर पहले ही निशा संजय का ध्यान गौरी से हटाने के लिए उसकी पॅंट के उपर से उसके लंड को सहलाने लगी थी.. संजय कोई रिक्षन नही दे पाया हालाँकि उसके लंड ने तुरंत आक्षन लिया.. ट्राउज़र के पतले कपड़े में से वो अपना सिर उठाने लगा.. निशा ने पॅंट के उपर से ही उसको मजबूती से पकड़ लिया.. संजय बेकाबू हो रहा था.. निरंतर.. निशा ने सोने पर सुहागा कर दिया.. अपनी उंगलियों से ज़िप को पकड़ा और नीचे खींच दी.. अंडरवेर का सूती कपड़ा लंड के दबाव मे. पॅंट से बाहर निकल आया... निशा उस्स पर उंगलियाँ घुमाने लगी..
सब कुछ संजय की बर्दास्त के बाहर था.. तभी अचानक निशा की बदक़िस्मती कहें या संजय की खुसकिस्मती.. अचानक वो झटका लगा और गौरी के हाथ निशा की कलाईयों के उपर से होते हुए संजय के पेट से जा चिपके..
अचानक गौरी से अंजाने में हुई इस हरकत से निशा सकपका गयी.. उसने तुरंत अपने हाथ पीछे खींच लिए...
गौरी के दिल की धड़कन बढ़ गयी.. गौरी को अहसास था की उसकी उंगलियाँ संजय के गुप्ताँग से कुछ ही इंच उपर हैं.. उसने अपने हाथ हटा लेने की सोची; पर संजय को छूने का अहसास उसको इश्स कदर रोमांच से भर गया की उसके हाथों की पकड़ वहाँ कम होने की बजाय बढ़ती चली गयी..
निशा कसमसा कर रह गयी; पर कर क्या सकती थी... उसने हाथ अपनी जांघों पर ही रख लिए...
अचानक गौरी को ध्यान आया; निशा के हाथ तो वहाँ से भी नीचे थे जहाँ से वो संजय को पकड़े हुए थी.. उसकी नाभि के भी नीचे से.. तो क्या निशा के हाथ..
ये सोचते ही गौरी को अपनी पनटी पर कुछ टपकने का अहसास हुआ.. उधर संजय का भी बुरा हाल था.. उससने एक हाथ से अपने हथियार को जैसे तैसे करके पॅंट में अंदर थूसा पर वो ज़िप बंद ना कर पाया... ऐसा करते हुए उसके हाथ गौरी के कोमल हाथों से रग़ाद खा रहे थे.. गौरी अंदाज़ा लगा सकती थी की उसके हाथ कहाँ पर हैं और वो क्या कर रहा है...

जैसे तैसे वो भिवानी एग्ज़ॅमिनेशन सेंटर पर पहुँचे.. गौरी का ध्यान उतरते ही संजय की पॅंट के उभार पर गया.. संजय की काली ट्राउज़र में से सफेद अंडरवेर चमक रहा था.. उसकी ज़िप खुली थी...
गौरी का बुरा हाल हो गया.. वह भागती हुई सी बाथरूम में गयी.. अपने रुमाल से पसीना पोछा और सलवार खोल कर रुमाल उसकी पनटी और चिकनी टपक रही चूत के बीच फँसा लिया.. ताकि सलवार भीगने से बच जाए..
जैसे ही वह बाहर आई निशा ने पैनी निगाहों से देखते हुए पूछा," क्या हो गया था; गौरी?"
"कुछ नही.. वो.. पेशाब...!" गौरी ने अपनी नज़रें झुका ली...
निशा को एक अंजान डर ने आ घेरा.. गौरी अब संजय में इंटेरेस्ट लेने लगी है.. संजय तो पहले दिन से ही उसका दीवाना था....," चल अपनी सीट पर चलते हैं.."
कुछ ही देर में पेपर शुरू हो गया.. दोनो सब कुछ भूल कर अपना पेपर करने में जुट गयी..

बाहर संजय का बुरा हाल था... गौरी के हाथों का कामुक स्पर्श अब भी उसके पाते पर चुभ रहा था.. उसकी शराफ़त जवाब देने लगी थी.. बाइक से उतरते ही उसकी पॅंट की और देखती गौरी उसकी नज़रों से हटाने का नाम नही ले रही थी.. वह अपना ध्यान हटाने के लिए इधर उधर घुमा पर उसके 'यार' का कदकपन जा ही नही रहा था... कैसे उसको अपने पीछे चिपका कर बैठाया जाए, सारा टाइम वो इसी उधेड़बुन में लगा रहा.....
कहते हैं जहाँ चाह वहाँ राह.. उसकी आँखें चमक उठी... अपना प्लान सोचकर.......

पेपर ख़तम होते ही निशा और गौरी दोनो बाहर आई..
संजय ने दोनो से मुखातिब होते हुए पूछा," कैसा पेपर हुआ?"
"बहुत अच्छा" निशा ने गौरी को ना बोलता देख बात कुछ और बढ़ा दी," दोनो का...!"
संजय ने गौरी को देखते हुए बाइक स्टार्ट की और बैठने का इशारा किया.. निशा लपक कर बीच में आ बैठी.. गौरी उसके पीछे बैठ गयी... चिपक कर!"

वो लोहरू रोड पर मुड़े ही थे की अचानक संजय ने बाइक रोक दी..," हवा कुछ कम लग रही है.. देखूं तो!"
संजय ने पिछले टाइयर की हवा आधी निकल दी थी.. तीनों बैठने पर टाइयर पिचक सा गया था...," ओहो! पंक्चर हो गया लगता है.. अब क्या करें..?"
निशा ने झुक कर टाइयर को देखा और बोली," पंक्चर लगवा लाओ; और क्या करोगे!"
"नही लग सकता ना! तभी तो परेशान हूँ..." संजय ने प्लान तैयार कर रखा था.
"क्यूँ?" निशा हैरानी से बोली...
"यहाँ किसी ऑटोपार्ट्स वाले को पोलीस ने कल बेवजह पीट दिया.. इसीलिए सभी हड़ताल पर गये हैं.. कोई भी नही मिलेगा.. अब तीन तो बैठ नही सकते.. देर मत करो.. चलो पहले गौरी को छोड़ आता हूँ.. फिर तुम्हे ले जवँगा.." संजय को लग रहा था ये तरीका काम करेगा..," हो सका तो गाँव से पंक्चर भी लगवाता आउन्गा.."
निशा उसके बिछाए जाल में फँस गयी.. उसने आव देखा ना ताव.. झट से बिके पर बैठ गयी," पहले मुझे छोड़ कर आओ" पागल ने ये नही सोचा की कोई पहले जाए या बाद में.. पर गौरी अकेली तो होगी ना उसके साथ...

"ठीक है, गौरी! मैं यूँ गया और यूँ आया.." कहकर संजय ने बाइक स्टार्ट कर दी...
तभी निशा को ध्यान आया; वो भी कितनी मूर्ख है..," संजय! तुम जान बूझ कर तो ऐसा नही कर रहे... वो जीप में भी तो आ सकती थी.."
"पागल मत बनो, निशा! क्या सोचती वो" संजय ने सपास्टीकरण दिया..
"नही! मुझे लग रहा है तुम उसके साथ अकेले आना चाहते हो.."
"ऐसा कुछ नही है निशा.. बेकार की बहस मत करो.." और संजय ने बाइक की स्पीड बढ़ा दी...
निशा ने अपना हाथ आगे लेजाकार उसके लंड को पकड़ कर भींच दिया.....

वापस आते हुए संजय ने बाइक मैं हवा भरवा ली.. वह अकेला था और उसका दिल और लंड दोनो ही गौरी को सोच सोच कर उछाल रहे थे.....

गौरी के पास पहुँच कर उसने स्टाइल से बाइक मोडी और एकद्ूम ब्रेक लगाकर गौरी के पास रोक दी," बैठो!"
गौरी मन ही मन बहुत खुश थी पर बाहर से वो शरमाई हुई लग रही थी...
वह एक ही तरफ दोनो पैर करके बैठ गयी...
"ये क्या है गौरी! आजकल की लड़किया.. दोनो और पैर करके बैठती हैं.. ये पुराना फॅशन हो गया है.. और तुम तो वैसे भी शहर से हो....
'अँधा क्या चाहे दो आँखें' गौरी झट से उतरी और अपनी एक टाँग उठाकर बाइक के उपर से घुमा कर बाइक के बीचों बीच बैठ गयी.. लेकिन संजय से दूरी बना कर..........

संजय ने सब कुछ प्लान कर रखा था.. उसने बाइक की स्पीड तेज की और अचानक ही ब्रेक लगा दिए," संभालना गौरी!"
संभालने का टाइम मिलता तब ना.. झटके के साथ ही गौरी की चूचियाँ तेज़ी के साथ संजय की कमर से टकराई.. संजय तो मानो उस्स एक पल में ही स्वर्ग की सैर कर आया.. गौरी की मस्त चूचियाँ बड़ी बहरहमी से संजय की कमर से लग कर मसली सी गयी.. अचानक हुए इश्स दिल को हिला देने वेल 'हादसे' से गौरी की साँसे उखाड़ गयी..
"सॉरी गौरी! आगे गढ़ा था.." संजय ने बाइक रोक कर गौरी की और देखा....
गौरी की शकल देखने लायक हो गयी थी.. उसकी समझ में नही आ रहा था वा दर्द के मारे रो पड़े; या आनंद के मारे झूम उठे.. उसने नज़रें झुका ली..
"बहुत दर्द हुआ क्या?" संजय ने गौरी को लगभग छेड़ते हुए कहा....
गौरी क्या बोलती.. उसने नज़रें झुकाई.. मिलाई और फिर झुककर अपनी गर्दन हिला दी.. गर्दन का इशारा भी कुछ समझ में आने वाला नही था.. ना तो हां थी.. और ना ही ना..
"तुम आगे होकर मुझे कसकर पकड़ लो! सारा रास्ता ही खराब है.." संजय ने आँखों से झूठी सराफ़ात टपकाते हुए कहा...
"गौरी का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था.. एक ही रास्ता था उसकी धड़कन को कम करने का... और उसने ऐसा ही किया.. अपनी छाती को संजय की कमर से सटकर बैठ गयी.. अपने हाथ उसकी छाती पर कस दिए.....

दोनो एक ही बात सोच रहे थे.. अब कंट्रोल होना मुश्किल है.. पर दोनो ही ये बात एक दूसरे के लिए सोच रहे थे.. किसी में भी पहल करने की हिम्मत ना थी..
संजय धीरे धीरे बाइक चला रहा था.. गौरी की मस्टाई गड्राई और गोलाई वाली छातियाँ अपनी कमर से सटा देख संजय ने खुद को पीछे की तरफ धकेलना शुरू कर दिया.. गौरी एक बार तो पिछे की और हुई.. फिर संजय को जानबूझ कर ऐसा करते देख उसने भी आगे की तरफ दबाव डालना शुरू कर दिया.. आलम ये था की चूचियों की ऊँचाई आधी रह गयी थी.. दोनो की ज़िद के बीच में पीस कर..
कोई हां नही कर रहा था, कोई ना नही कर रहा था.. कोई हार नही मान रहा था... गौरी को असहनीया आनंद की प्राप्ति होने लगी... गौरी नीचे से भी संजय के कमर के निचले हिस्से से सॅट गयी.. उसकी जांघें भींच गयी.. संजय धन्य हो गया...पर जब तक बात और आगे बढ़ती.. उनका गाँव आ गया...
गौरी का हाल संजय से भी बुरा था.. किसी मर्द के इतने करीब वा पहली बार आई थी.. वो भी उस्स मर्द के करीब जो उसको बेहद पसंद था...
"संजय उसके दिल का हाल उसके गुलाबी हो चुके गालों से जान गया था...," कल मैं तुम्हे अकेला लेकर जाउ क्या? पहले जल्दी से निशा को छोड़ आउन्गा.. उसको बोल देना तुम अलग आओगी... क्या कहती हो?"

गौरी नीचे उतरी; नीचे गर्दन करके मुस्कुराइ और घर भाग गयी... संजय गौरी के भागते हुए नितंबों की थिरकन देखकर मदहोश हो गया... उसने किक लगाई और घर की और चल दिया..," हँसी मतलब........!"

गौरी जैसे सेक्स करके थक गयी हो.. उसकी साँसे अभी भी उखड़ी हुई थी... उसका दिल अब भी धड़क रहा था.. ज़ोर से...!

संजय के घर पहुँचते ही निशा ने उसको घूरा," क्या चक्कर है? उसको लाने में इतनी देर कैसे?"
"तुम भी ना निशा... वो मैं पंक्चर लगवाने लग गया था गाँव में....
निशा ने उसको धक्का देकर बेड पर गिरा दिया और उसके उपर सवार हो गयी......

अगले दिन वही हुआ... संजय कहीं जाने की बात कहकर करीब 2 घंटे पहले ही निशा को सेंटर पर छोड़ आया.. निशा गौरी को जाते हुए बता आई थी की आज मैं जल्दी जा रही हूँ....
निशा भी खुश थी.. उसकी जान; उसका भाई गौरी को आज लेकर नही गया.....
अंजलि और राज स्कूल जा चुके थे.. गौरी टाइम का अंदाज़ा लगा कर घर से निकल पड़ी.... जब संजय निशा को छोड़ कर वापस आया तो गौरी सड़क पर खड़ी थी...
संजय के उसके पास बिके रोकते ही वा उस्स पर बैठ गयी... दोनो तरफ पैर करके...

गौरी ने सारी रात जाने का क्या सोचा था और संजय ने भी जाने क्या क्या! पर दोनो ही प्यार के कच्चे खिलाड़ी थे.. अपने मान की बेताबी को तो समझ रहे थे.. पर दूसरी और क्या चल रहा है.. उससे अंजान थे...
समय निकलता देख संजय ने पहल कर ही दी," आज मुझे पाक्ड़ोगी नही क्या?"
गौरी ने हल्क हाथों से उसको थाम लिया...
"बस?" संजय धीरे धीरे उसके मान की थाः ले रहा था...
"हूंम्म्म!" गौरी को शर्म आ रही थी; बिना झटका लगे अपनी छाती मसलवाने की, उसकी कमर से दबा कर..
"क्यूँ?" संजय बेचैन हो गया...

गौरी कुछ ना बोली... उस्स गढ़े को समझ लेना चाहिए था.... की हेरोइन तैयार है...
"तुम्हे पता है... तुमसे सुन्दर लड़की मैने आज तक नही देखी..." संजय ने प्रशंसा के फूल उस्स पर न्योछावर कर दिए.. गौरी मन ही मन खिल उठी...

"मैने निशा से कुछ कहा था; तुम्हारे बारे में.. क्या उसने नही बताया..?" संजय उस्स'से कुछ ना कुछ तो आज सुन ही लेना चाहता था....
"उम्म्म!" गौरी का फिर वही जवाब....
"उम्म्म्म क्या?" संजय ने कहा..
"बताया था!" गौरी मानो हवा में ऊड रही हो.. वो अपने आपे में नही थी.. संजय को पहल करते देख...
"क्या बताया था?" संजय ने पूछा..
गौरी कुछ ना बोली.. अपने गाल संजय की कमर पर टीका दिए.. हाथों का संजय की छाती पर कसाव थोडा सा बढ़ गया.. पर छातियों की कमर से दूरी अभी बाकी थी...
"बताओ ना प्लीज़... क्या बताया था...?" संजय को मामला फिट होता लग रहा था....
"यही की...... की तुम मुझसे ... प्प्पयार करते हो.." गौरी ने आँखे बंद करके लरजते गुलाबी होंटो से कहा...
"और तुम?" संजय ने प्यार का जवाब माँगा...
गौरी इससे बेहतर जवाब क्या देती.. अपने आपको आगे करके संजय से सटा लिया.. हाथों का घेरा उसकी छाती पर कस दिया और अपनी छातियों को जैसे संजय के अंदर ही घसा दिया..... ये कच्ची उमर के प्यार की स्वीकारोक्ति थी... सीमा और टफ के प्यार से बिल्कुल अलग... गौरी बाइक पर संजय से चिपकी हुई काँप रही थी..
उसके रोम रोम में लहर सी उठ गयी... भिवानी आ गया था.. संजय ने गौरी को कहा," पेपर के बाद किसी भी तरह से यहीं रुक जाना.. निशा बस में जाएगी.....

गौरी तो संजय के प्रेम की दासी हो चुकी थी... कैसे उसका कहा टालती.....

पेपर ख़तम होने के करीब आधे घंटे बाद संजय सेंटर पर गया... उसकी प्रेम पुजारीन वहीं खड़ी थी.. अकेली......

निसचिंत होकर वह संजय के पीछे बैठ गयी... अंग से अंग लगाकर....
"होटेल में चलें...!" संजय ने गौरी से पूछा...
"लेट हो जाएँगे...!" हालाँकि इस बात में 'ना' बिल्कुल नही थी... संजय भी जानता था...
" कुछ नही होता... कुछ बहाना बना देंगे..." संजय ने बाइक हाँसी रोड पर दौड़ा दी...
कुछ हो या ना हो... जो दोनो की मर्ज़ी थी वा तो हो ही जाएगा.....
एक घटिया से टाइप के होटेल के आगे संजय ने बाइक लगा दी.. गौरी बाहर ही खड़ी रही...
"रूम चाहिए!" संजय ने वहाँ बैठे आदमी से कहा..
आदमी ने बाहर खड़ी बाला की सेक्सी गौरी को देखकर अपने होंटो पर जीभ फिराई," कितनी देर के लिए?" होटेल शायद इन्ही कामो के लिए उसे होता था...
"2 घंटे!"
"हज़ार रुपए!" इस वक़्त का फयडा कौन नही उठाता...
संजय ने पर्स से 1500 रुपए निकल कर उसको दिए..," हूमें डिस्टर्ब मत करना"
"सलाम साहब!"
संजय ने गौरी के हाथ में हाथ डाला और उनको दिए कमरे में घुस गया...

होटेल का कमरा कुछ खास नही था, अंदर जाते ही संजय को कॉंडम की सी गंध आई.. गद्दों पर बेडशीट तक नही थी.. पर ये वक़्त इंटीरियर डिज़ाइनिंग के बारे में सोचने का नही था...
उसने पलट कर गौरी की और देखा.. अपने राइटिंग बोर्ड से अपना सीना छिपाए खड़ी गौरी नज़रें झुकायं जाने क्या सोच रही थी..
"इधर आओ गौरी!" संजय ने मदहोश आवाज़ में हाथ फैलाकर गौरी को अपनी बाहों में आने को कहा...
जाने किस कसंकस में एक कदम पीछे हटकर दीवार से सटकार खड़ी हो गयी.. उसकी पलकों ने शरमाती आँखों को धक लिया..

संजय खुद ही 4 कदम चलकर उसके करीब, उसके सामने जाकर खड़ा हो गया... उसने गौरी के बेमिसाल शरीर पर एक नज़र डाली...

सच में गौरी किसी हसीन कयामत से कम नही थी.. उसका सुंदर मासूम सा लगने वाला गौरा चेहरा हर तरह से सौंदर्या की कसौटी पर नंबर 1 था.. उसकी पतली लंबी सुरहीदार गर्दन उसके ऊँचे ख्वाबों को दर्साति थी.. गर्दन से नीचे प्रभु की कला की 2 अनुपम कृतियाँ; किसी भी मर्द को उसके कदमों में सबकुछ लूटा देने को बद्धया कर सकती थी.. छातियों से नीचे पेट का पटलापन और नाभि से नीचे शुरू होने वाला उठान उसकी मस्त चिकनी जांघें उसके नितंबों के बीच की अंतहीन गहराई को बरबस ही उजागर कर देती थी....
संजय तो पहले से ही बेकाबू था.. वह थोड़ा सा झुका और एक हाथ से गौरी के कानो पर गिरी उसकी लट को पीछे करके गालों पर अपने होन्ट रख दिया..
"आआह!" इश्स आवाज़ से गौरी के समर्पण का बोध संजय को हुआ..
उसने गौरी के हाथों को पकड़ा और उन्हे उसकी छातियों से हटा दिया.. हुल्की सी हिचकिचाहट के साथ गौरी अपने हाथों को अपने मोटे कुल्हों के पास ले गयी...
संजय उससे सटकार खड़ा हो गया.. गौरी की चूचियाँ संजय की छाती के निचले हिस्से को छू रही थी; हूल्का हूल्का.. गौरी की साँसे गरम होती जा रही थी.. संजय अपने गले से उन्न सांसो की गरमाहट महसूस कर रहा था...
संजय झुका और अपने होन्ट गौरी के पतले मुलायम होंटो पर बिछा दिए.. और थोड़ा सा आगे होकर उसकी छातियों को अपने भर से दबा दिया.. गौरी के हाथ उपर उठकर संजय के बालो में अपनी उंगलियाँ फँसा दी.. उसके होन्ट संजय का सहयोग करने लगे..
संजय ने गौरी की कमर में हाथ डाल दिया और सहलाने लगा.... उसके हाथ धीरे धीरे नीचे की और जा रहे थे.
गौरी के नितंब को मजबूती से पकड़कर संजय ने अपनी और खींच लिया... गौरी बहाल सी हो गयी.. उसने अपने होंटो को अलग किया और ज़ोर ज़ोर से हाँफने लगी.. उसकी छातियाँ अब भी संजय के सीने में गाड़ी हुई थी..
गौरी को अपनी चूत से थोडा सा उपर संजय का लंड गड़ता हुआ महसूस हुआ.. वा अपने आपको पीछे हटाने लगी.. डर से..
पर संजय ने उसके नितंब को पूरी सख्ती से अपनी और खींच कर रखा था.. गौरी को अपनी चूत में जलन सी होने लगी... उसने अपना हाथ अपनी चूत और संजय के लंड के बीच में फँसा दिया.. संजय ने थोड़ा पीछे हटकर अपनी चैन खोली और अंडरवेर में से ताना हुआ अपना लंड निकाल कर गौरी के हाथों में दे दिया...
गौरी, नारी के लिए बेमिशाल उफार यूयेसेस लंड को अपने हाथ में पकड़ कर अपनी चूत को बचा रही थी...
संजय ने गौरी की गांद के नीचे से अपना हाथ लेजकर उसकी चूत की पत्तियॉं पर रख दिया.. गौरी उछाल पड़ी... उसका मौन टूट गया," याइयीई... ये क्या कर रहे हो?"
उसकी साँसे किसी भट्टी से निकली आँच की तरह गरम थी....
"जान वही कर रहा हूँ; जिसके लिए हम यहाँ आए हैं... प्यार!"
"नही! मैं ऐसा नही कर सकती.." गौरी ने पूरी तरह खुद को संजय से छुड़ा लिया..
"क्क्या? क्या कह रही हो तुम... जो अभी तक कर रही थी.. वो क्या था?" संजय के साथ कलपद हो गयी..( क्यूँ??)
गौरी पूरी तरह अपने आपको संभाल चुकी थी..," ये सच है संजय की मुझे तुम बहुत अच्छे लगते हो... जब तुमने कहा की तुम मुझसे प्यार करते हो तो मैं तुम्हारे करीब आकर तुम्हे जान'ने को मचल उठी.. मैं तुमसे प्यार करती हूँ.. बट मैं नही जान'ती हमारा प्यार किसी मुकाम तक पहुँचेगा या नही...
सॉरी! संजय; मैं शादी से पहले अपना शरीर तुम्हे नही सौंप सकती.. किसी भी हालत में.. गौरी ने एक बार फिर अपनी नज़रें झुका ली थी.."
संजय सुनकर हक्का बक्का रह गया.. उसका दिल किया की उसका रेप कर डाले.. पर वह इतनी प्यारी थी की कूम से कूम कोई इंसान तो उसको घायल कर ही नही सकता था.. और संजय शैतान नही था...
बेचारे का लोडेड हथियार बगैर अनलोड हुए ही क्रॅश हो गया..
संजय के चेहरे से बे-इंतहा गुस्सा झलक रहा था... उसने फाटक से दरवाजा खोला और बाहर निकल गया... गौरी उसके पीछे दौड़ी....
संजय ने बाइक स्टार्ट कर दी.. गौरी जाकर उसके पीछे बैठ गयी....
"एक तरफ पैर करो!" संजय की हालत सब समझ सकते हैं....
सहमी हुई गौरी उतरी और उसके कहे अनुसार बैठ गयी... वह लज्जित थी... उसने संजय को हर्ट किया था......

संजय ने गौरी को गाँव के अड्डे पर ही उतार दिया..," यहाँ से पैदल चली जाओ... लोग सोचेंगे.. इज्ज़ात गावा कर आई है.." संजय ने व्यंगया कसा!
बेचारी गौरी क्या करती... उसका क्या मालूम था की प्यार में इंटेरवाल नही होता... जब भी होता है.. पूरा ही करना होता है... उसका चेहरा उतार गया था.. संजय ने बाइक आगे बढ़ा दी... गौरी थके हुए से कदमों से घर की और बढ़ गयी.

गौरी अजीब कसमकस में थी.. सच था की वो मन ही मन संजय को बहुत चाहने लगी थी.. आख़िर लड़की को चाहिए क्या होता है किसी लड़के में, अच्छा करेअर, सुंदर चेहरा, और तगड़ा बदन. ये सभी कुछ उसको संजय में मिल सकता था. बहुत कम लोग होते हैं जिनमें ये सारी खूबियाँ एक साथ मिल जायें.. पर गौरी को एक चीज़ और चाहिए थी.. जीवन भर साथ निभाने का विस्वास. वो कहाँ से लाती, विस्वास किसी की शकल से नही टपकता;, साथ रहने से, एक दूसरे को जान'ने से आता
है.. गौरी भी अपने हर अंग में सिहरन महसूस कर रही थी, जब संजय ने उसको जगह जगह हाथ लगाया.. एक लड़के के हाथ में और खुद के हाथ में कितना फ़र्क होता है, ये गौरी जान गयी थी.. और संजय के हाथ ने अब तक उसके दिमाग़ में खलबली मचा रखी थी.. वह जल्द से जल्द संजय को जान लेना चाहती थी... ताकि... उसको हां कर दे... उस्स पर क़ब्ज़ा जमाने के लिए... ताकि उसको हां कर दे... अपने हर अंग को झकझोरने के लिए..

जब गौरी से रुका ना गया तो वो निशा के घर जा पहुँची... करीब 6 बजे शाम को...

निशा गौरी को देख कर भुन सी गयी," क्या बात है गौरी? आजकल..."
"कुछ नही.. बस घर पर दिल नही लग रहा था... और सुना.. कल के पेपर की तैयारी कैसी है?"
तभी संजय अपने रूम से बाहर आ गया.. उसने तिरछी नज़र से गौरी को देखा.. गौरी ने नेजरें झुका ली...
"चल तू मेरे कमरे में आ जा!" निशा जितना हो सकता था, गौरी को संजय से दूर रखना चाहती थी..
"निशा! मैं तुझसे एक बात बोलना चाहती हूँ...!" गौरी ने उसका हाथ पकड़ कर कहा..
"क्या?" निशा को गौरी का अंदाज कुछ राज बताने वाला सा लगा....
"वो.. तू कह रही थी.. की संजय.... मुझसे प्यार करता है.... क्या घर वाले.. हमारी शादी को मान जाएँगे?"
"नही! घर वाले तो दूर की बात है.. संजय ही नही मानेगा..!" निशा की बात सुनकर गौरी को सदमा सा लगा..
"क्यूँ?"
"क्यूँ क्या! मैं अपनने भाई को नही जानती क्या.. उसने चंडीगड़ भी एक लड़की से चक्कर चला रखा है... पर मुझे पता है.. वो शादी तो उसी से करेगा....!"
गौरी अवाक रह गयी.. उससे फिर वहाँ रुका ना गया.. वो तुरंत अपने घर वापस आ गयी..
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RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल - by sexstories - 11-26-2017, 01:07 PM

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