RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
दोस्तो आपने गर्ल्स स्कूल--18 मैं देखा ही था अपना टफ सीमा पर लट्तू हो रहा था .सीमा की मा टफ के लिए कुछ लाने के लिए बाहर चली गयी थी . अब आगे की घटना पढ़े....
अपने आपको इनस्पेक्टर के साथ अकेला पाकर सीमा बेचैन हो गयी. उसको रह रह कर उस्स 'दुष्ट' द्वारा उसकी जांघों पर डंडा लगाना और निहायत ही बदतमीज़ी से बात करना याद आ रहा था... वह टफ से मुँह फेर कर कोने में जा खड़ी हुई...
"मुझे माफ़ कर दो सीमा... जी!" टफ उसकी आवाज़ सुन-ने को तड़प रहा था ..
2 बार माफी माँगे जाने पर भी सीमा ने कोई उत्तर नही दिया... ऐसा इसीलिए हो रहा था क्यूंकी सीमा को विस्वास था की इनस्पेक्टर को अपनी ग़लती का अहसास हो गया है... अगर पहले वाली 'टोने' में पूछता तो वो दोनो बार जवाब देती..
तभी उसकी मा आ गयी.. उसके हाथ में नमकीन और बिस्किट्स के 2 पॅकेट थे.. एक प्लेट में रखकर उसने टफ के सामने रख दिए और चारपाई पर बैठ कर अपना कप उठा लिया," तुम्हारी चाय ठंडी हो रही है बेटी!" मा ने सीमा से कहा..
सीमा ने अपना कप उठाया और गेस के सामने पड़े पीढ़े पर बैठ गयी.. दीवार से सिर लगाकर... उसकी आँखों में जैसे दिन भर का गुस्सा बाहर ना निकल पाने का मलाल था.. ग़रीब हो गये तो क्या हुआ.. आख़िर वो भी स्वाभिमान से जीने का हक़ रखते थे... उसको याद आया कैसे टफ ने थाने जाते ही उसके मुँह पर ज़ोर का तमाचा मारा था... उसके जाने कब से अपमान की डोर से बँधे आँसू खुल गये और टॅपर टॅपर उसके गालों पर गिरने लगे... पर वह रो नही रही थी... वो उसके हृदय को तार तार करने वाले की सहानुभती नही पाना चाहती थी.. बस उसके आँसुओं पर उसका वश नही था...
टफ ने उसकी मा के सामने ही अपनी ग़लती के लिए माफी माँगी," प्लीज़ सीमा जी! मैं बता चुका हूँ की वैसा करना मेरी मजबीरी थी.. आख़िर एक जिंदगी का सवाल है"
सीमा ने अपना कप दूर फैंक दिया, जाने कब से वो अपने अंदर उठ रहे भूचाल को रोकने की कोशिश कर रही थी..टफ ने इतनी खुद्दार और इतनी शर्मसार करने वाली बात अपनी जिंदगी में नही सुनी थी.. वह एक एक शब्द को चबा चबा कर उसके सीने में उतारती चली गयी..," हुमारी कोई जिंदगी नही है.. हुमारा इज़्ज़त से जीने का कोई हक़ नही... अगर मेरी जगह किसी अमीर बाप की बेटी होती तो क्या तुम ऐसे ही करते?अगर वो तुम्हारी कोई लगती होती तो भी क्या तुम उसको वही डंडा लगाते... हम... हम लावारिस हो गये क्या? हम अगर मर भी गये तो कोई ये नही कहने वाला की तुम! ... की तुम उसके लिए ज़िम्मेदार हो.. तुमने तो बस अपनी ड्यूटी निभाई है.. चले जाओ मेरे घर से... निकल जाओ अभी के अभी..."
अपनी भदास निकाल कर वो अपनी मा के सीने से जा लगी... उसका और कोई भी ना था... कोई भी... अब उसका कारू न क्रंदन टफ के लिए सहना मुश्किल हो रहा था... पर जाने क्यूँ वा अब भी किसी इंतज़ार में था... जाने कौनसा हक़ जान कर अब भी वही बैठा रहा..
मा को भी सीमा की बातें सुनकर तसल्ली सी हुई... वह उसके बालों में हाथ फेरने लगी... शायद कहना तो वो भी उसको यही चाहती थी.. पर बेशर्म टफ खुद ही चाय पीने आ गया था..
टफ की हालत खराब थी... कुछ कह भी तो नही सकता था.. वह उठा और बोला," माता जी मुझे आपका नंबर. दे दीजिए... मुझे इश्स बारे में कोई बात करनी होगी तो कर लूँगा.."
"अब और कितने नंबर. दे साहब!" बेटी की चीत्कार सुनकर उसके मॅन में भी दिनभर की बेइज़्ज़ती की ग्लानि बाहर आ गयी.. उसने उसको बेटा नही साहब कहा." दोनो नंबर. तो लिखवा ही चुके हैं हम कम से कम बीस बार...
टफ जैसे वहाँ से अपनी इज़्ज़त लुटवा कर चला हो.." अच्छा माता जी!" उसने मुड़ते हुए ही कहा और बाहर निकल गया...
सीमा को लग रहा था की उसने कहीं ग़लती की है... उसको निकल जाने को कह कर..
मा की गोद में सिर रखे पड़ी हुई सीमा ने दरवाजे की और देखा... टफ गाड़ी घुमा कर चला गया!!!
प्राची को शिवानी से हुम्दर्दि होने लगी थी. आख़िर थी तो वह भी एक लड़की ही.. क्या पता उसकी कुछ मजबूरिया रही हों या उसकी ऊँचा उड़ने की हसरत जो उसने चाँद ज़्यादा रुपायों की खातिर शिव को अपना सब कुछ दे दिया था... पर लड़की का दिल आख़िर लड़की का ही होता है.. शिव के फार्म हाउस से जाते ही वो अपनी ड्रेस निकाल लाई और सूनी आँखों से बेडरूम की छत निहार रही शिवानी को दे दी," जब तक बॉस नही आते, आप ये पहन सकती हैं..."
शिवानी ने उसको क्रितग्य नज़रों से देखा और उसके हाथ से कपड़े ले लिए...," आप को कुछ पता है... मेरे बारे में!"
"नही... और जान'ना ज़रूरी भी नही है.. इतना तो जान ही गयी हू की आप अपनी मर्ज़ी से यहाँ नही आई!" प्राची ने उसके कंधे पर हाथ रख और उसके पास बैठ गयी..
"अब मेरा क्या होगा!" शिवानी ने कपड़ों से अपने आपको ढकते हुए कहा...
"पता नही... पर मैं इसमें कुछ नही कर सकती.. मेरी नौकरी का सवाल है.. आख़िर मुझे भी जीने के लिए पैसा चाहिए!"
"पर इसको मेरे बारे में कैसे पता चला..!" शिवानी जानती थी की ये ओमप्रकाः का दोस्त है और उसको घर से ही पता चला होगा...!"
"अब वह घर वापस नही जाना चाहती थी... पर यहाँ से भी जल्दी से जल्दी बाहर निकलना था... किसी भी तरह?"
"क्या तुम मुझे यहाँ से निकाल सकती हो?"
"नही! मैने तुमको सॉफ सॉफ बता दिया है... मैं ये नौकरी नही छोड़ सकती, किसी भी हालत में... वरना तुम खुद ही सोचो अगर किसी की कोई मजबूरी ना हो तो क्या वो यहाँ काम करेगा?"
टफ सीधा गाँव में अंजलि के घर पहुँचा... वहाँ पर ओमप्रकाश को देखकर हैरान रह गया...," अरे! आप वापस भी आ गये! आप तो 3-4 दिन के लिए गये थे ना!" राज और अंजलि भी वहीं थे... गौरी लिविंग रूम में बैठी थी... सब उदास थे...
"हां... वो .. मेरा काम जल्दी हो गया.. इसीलिए वापस आ गया!" ओम ने हड़बड़ा कर टफ को सफाई दी..
"पर आप तो कह रहे थे की काम नही बना.." अंजलि ने टफ के दिमाग़ में शक़ का कीड़ा पैदा कर दिया... ओम ने कुछ देर पहले ही अंजलि को सफाई दी थी की बीच रास्ते में ही उसके दोस्त का फोन आ गया की अभी 3-4 दिन मत आना.
"हां .. वही तो है.. अब क्या मैं सब सबकुछ बतावँगा!.." सच तो ये था की ओम को अंजलि को दिया हुआ एक्सक्यूस हड़बड़ाहट में याद ही नही रहा था.. उसकी आवाज़ हकला रही थी.. और पोलीस वालों को इतना इशारा काफ़ी होता है..
टफ ने सिग्गेरेत्टे निकली और उसको सुलगा लिया... उसका दिमाग़ तेज़ी से काम कर रहा था.. वह कल रात हुई एक एक बात को याद करने की कोशिश कर रहा था..
तभी अचानक उसने सिग्गेरेत्टे ओम की और बढ़ा दी.. " लीजिए सर! गुस्सा छोड़िए और कश लगाइए!"
"नही में सिग्गेरेत्टे नही पीता!" ओम ने मुँह फेर कर कहा," अंजलि चाय बना लाओ!"
टफ का शक मजबूत होता जा रहा था.. उसने कल रात को आते ही नेवी कट का टोटका टेबल के पास पड़ा देखा था... इसका मतलब कोई और भी आया था ओम के साथ रात को.. पर ओम तो कह रहा था की वो 10 बजे के बाद आया है..
"क्या नाम बताया था आपने अपने दोस्त का जो कल आपके साथ आए थे!" टफ ने बातों ही बातों में पूछा..!
"वो... शिव... आअ कल रात को कोई भी तो नही! मैं तो उसकी बात कर रहा था जिसका फोन आया था.." ओम का गला सूख गया. टफ को यकीन हो चला था की लोचा यहीं है.. पर वह और पक्का करना चाहता था... उसने राज को इशारे से बाहर ले जाकर कुछ टाइम के बाद कॉल करने को कहा; उसके फोन पर...
वो चाय पी ही रहे थे की टफ के मोबाइल पर राज की कॉल आ गयी..
टफ ने फोन काट दिया और अकेला ही बोलने लग गया, फोन को कान से लगा कर..
"हेलो!"
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"हां दुर्गा बोलो!"
"क्या? शिवानी का पता चल गया!" कहाँ है?" टफ की बात सुनकर अंजलि और गौरी भाग कर कमरे में आए...," ओह थॅंक गॉड!"
ओम के चेहरे का रंग सफेद होता गया... टफ की नज़र उसके चेहरे पर ही थी...
""क्या? क्या बक रहे हो...?" टफ का नाटक जारी था...
ओम बैठा बैठा काँप रहा था.. टफ का आइडिया काम कर गया... उसने फोन काटा और ओम की और मुखातिब होकर कहा..," हां तो मिस्टर. ओम प्रा...!"
"मैने कुछ नही किया जनाब... वो मैने तो मना भी किया था.. शिव को..!" आगे टफ ने उसको बोलने ही ना दिया... उसके चेहरे पर ऐसा ज़ोर का थप्पड़ मारा की वो बेड से मुँह के बाल फर्श पर जा गिरा.. उसने दोनो हाथ जोड़ लिए और गिड़गिदने लगा," इनस्पेक्टर साहब! मेरी बात सुन लो प्लीज़.. मैने कुछ नही किया.." अंजलि और गौरी दोनो को उससे घृणा हो रही थी...
टफ ने ओम की कॉलर पकड़ी और उठा कर बेड पर डाल दिया," साले! जल्दी बक के बकना है.. ना ते तेरी...!" लड़कियों को देखकर उसने अपने आपको काबू में किया," चल जल्दी बक!"
ओम ने पहली लाइन से आखरी लाइन तक रटे हुए तोते की तरह बोलता चला गया...
टफ ने उसको जीप में डाला और राज को साथ लेकर फार्महाउस की और गाड़ी दोडा दी........
शिवानी ने प्राची को एक इज़्ज़तदार काम और इतनी ही सॅलरी की नौकरी दिलवाने का लालच दिया... ," देख प्राची! इश्स तरह की नौकरी करने से कही अच्छा लड़की के लिए स्यूयिसाइड कर लेना है.. मेरे ख्याल से तू भी इश्स बात को समझती है... मैं तुझे एक बहुत ही अच्छा काम और इससे ज़्यादा तनख़्वाह दिलवा सकती हूँ.. अगर तू मेरी यहाँ से निकालने में मदद करे तो!"
"पर अगर ऐसा नही हुआ तो मैं ना घर की रहूंगी, ना घाट की..!" प्राची ने अपना शक जाहिर कर दिया!"
"देख प्राची! यहाँ बैठे बैठे तो मैं कुछ कर नही सकती. विस्वास करना या ना करना तुम पर निर्भर है... पर सोच ले.. क्या तुझे कभी भी अपना परिवार नही चाहिए... हुमेशा इश्स कुत्ते की रखैल रह सकती है" अब की बार शिवानी ने प्राची की दुखती राग पर हाथ रख दिया...
"ठीक है शिवानी! तुम तैयार हो जाओ! बाहर मेरी स्कूटी खड़ी है... मैं नौकरों को इधर उधर करती हूँ..." कहकर वो कमरे से बाहर निकल गयी.....
कुछ देर बाद शिवानी और प्राची फार्महाउस के गेट पर पहुँचे ही थे की टफ की ज़ीप ने उनके सामने ब्रेक मारे..
टफ ने शिवानी को एक शब्द भी नही बोला और प्राची को हाथ से कसकर पकड़ लिया और सीधा अंदर चला गया...
राज की नज़रें शिवानी से मिली.....
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