RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
कंडक्टर ने झट से अपनी पंत की ज़िप खोल दी... कच्च्चे में से साँप की तरह फुफ्कर्ता हुआ कला लंड गौरी की आँखों के सामने झहहूल गया.. गौरी दरकार पिच्चे गिर गयी..," बैठो!" कंडक्टर ने आदेश सा दिया...
गौरी मारती क्या ना करती वो फिर से बैठ गयी, पर उसने मुँह दूसरी और घुमा लिया...
यहाँ तक का सीन देखने के बाद अब राकेश को और देर करना ठीक नही लगा... वो गौरी की सील तोड़ना चाहता था... वा एक दम से झाड़ी के पीछे से निकल कर गुर्राया," क्या कर रहे हो?"
आवाज़ सुनते ही दोनो सुन्न रह गये... कंडक्टर का लंड एकद्ूम छ्होटा होकर एपने आप ही अपनी मांद में घुस गया.. उसने झट से अपनी ज़िप बंद करी..
गौरी को तो जैसे साप सूंघ गया.. उसकी गर्दन नीचे झुक गयी. उसने देखने तक की हिम्मत नही की आख़िर है कौन. उसने बैठहे बैठे ही अपनी नज़रें ज़मीन में गाड़ ली..
राकेश ने आते ही एक झापड़ कंडक्टर के मुँह पर दिया.. साले, बेहन चोद.. मैं सिखाता हूँ तुझे.. उसने पास पड़े लट्ठ को उठाया ही था की कंडक्टर भाग खड़ा हुआअ मैदान छ्चोड़ कर...
कुच्छ दूर जाकर वा रुक गया और आराम से चलने लगा.. उसको मालूम था की अब वो लड़का उसको चोदेगा.. इसीलिए डरने वाली कोई बात नही थी.. अचानक उसको सड़क से कुच्छ ही दूरी पर एक आदमी और एक औरत की हँसने की आवाज़ सुनी... उत्सुकतावास वा पगडंडी से दिखाई दे रहे रास्ते पर उतार गया.. कुच्छ नीचे उतरने पर आवाज़ें सपस्ट होने लगी..." साली उस्स दिन तेरी गांद का जो हाल किया था उसको भूल गयी... आज तेरी मा दादी बेटी सब एक साथ कर दूँगा... " टफ प्यारी देवी से कह रहा था.. "
"कर्दे ना मेरे राजा.. सारी रात निकल गयी.. उस्स बहनचोड़ अंजलि की गांद ना आती तो साथ में.. मैं तेरी गोद में ही बैठकर आती.." कहकर प्यारी ने टफ का लंड मुँह में ले लिया.....
कंडक्टर की तो जैसे उस्स दिन लॉटरी लगनी ही थी.... उसने देखा.. एक औरत उनको च्छुपकर देख रही है.. सब करते हुए... दबे पाँव उसने जाकर देखा.. ये तो कोई लड़की है..
कंडक्टर ने उस्स लड़की को ही अपना शिकार बनाने की सोची.. धीरे से पीछे जाकर उसने लड़की के मुँह को दबा लिया..पर उसका हाथ उसके मुँह की बजे उसके नाक के उपर रखा गया...," ऊईीईई माआ!" सरिता की अचानक की गयी इश्स हारकर से चीख निकल गयी.....
टफ और प्यारी दोनो चौंक पड़े... प्यारी ने अपनी बेटी की आवाज़ पहचान ली... टफ ये सोच रहा था की आख़िर सरिता ने चीख क्यूँ मारी.. सब समझाया तो था की कब आना है... कंडक्टर बेचारा यहाँ से भी भाग गया...
"आ जाओ सरिता!" टफ ने सरिता को पास बुला लिया... सरिता को जैसे पता नही क्या मिल गया हो.. ," मम्मी आप !"
प्यारी को कुच्छ कहते नही बन पा रहा था..," बेटी वो ये सला मुझे ज़बरदस्ती घसीट लाया..!"
"हां वो तो मुझे दिख ही रहा है...मम्मी!"
"देख सरिता! मैने तेरी इतनी बातें च्छुपाई हैं.... अब अगर तू...!"
"मैं कुच्छ नही बतावंगगी मम्मी.. बस मैं तो... "
"आजा तू भी आजा! जब आ गयी है तो...
"चलो अब कुच्छ नही होगा.. वो सला कौन था पता नही.. हूमें जल्दी से बस के पास चलना चाहिए! क्या पता किसको ले आए." टफ ने अपनी पॅंट उपर की और प्यारी को भी उठा दिया.. दोनो बुत बनी उसके पीछे चली गयी........
गौरी और राकेश अकेले रह गये. गौरी शर्मिंदा थी... वो कुच्छ बोल नही पा रही थी... जैसे ही राकेश ने उसका हाथ पकड़ा; गौरी सपास्टीकरण देते हुए बोली," वो ज़बरदस्ती कर रहा था...!"
राकेश उसको लपेटने की कोशिश कर रहा था," तुम यहाँ आई ही क्यूँ? अकेली!"
गौरी के पास कोई जवाब नही था... कैसे उसको ये बताती की वो तो कविता और उसको रंगे हतह पकड़ने आई थी... और पकड़ी गयी खुद वो.... वो चुप चाप खड़ी थी...
"आइ लव यू गौरी!" जैसे राकेश के पास कुच्छ भी कहने का पर्मिट था..," मैं तुमसे फ्रेंडशिप करना चाहता हूँ....
गौरी ने अपना हाथ उसकी और बढ़ा दिया," ओ.के. वी आर फ्रेंड्स"
गाँव के लड़के; लड़की से दोस्ती को उसकी गांद मारने का लाइसेन्स समझ लेते हैं... जैसे ही गौरी ने फ्रेंडशिप करने को 'हां' कहा... राकेश ने अपने होंट उसकी और बढ़ा दिए... गौरी अपना हाथ बीच में ले आई...," ये क्या है"
"अभी तो तुमने कहा था की हम दोस्त बन गये...." राकेश को बहुत जल्दी थी... उसने फिर से कोशिश की...
"तो?" गौरी ने पीछे हट-ते हुए कहा... "हाँ हम दोस्त बन गये पर...." गौरी के सुर्ख लाल होन्ट दूसरे होंटो के मिलने से आने वाली बाहर से अंजान थे....
राकेश ने बुरा मुँह बनाते हुए कहा," ये क्या दोस्ती हुई...."
गौरी को लगा इश्स तरह शायद ये ज़बरदस्ती पर भी आ सकता है," ठीक है, मनाली जाने के बाद देखते हैं... यहाँ सब ठीक नही लगेगा"
राकेश शांत हो गया," .... पर एक पप्पी तो लेने दो.."
"गालों की...ठीक है!" गौरी की मजबूरी थी..
"ठीक है!" राकेश गालों की पप्पी से ही सन्तुस्त होने को तैयार हो गया...
राकेश के होंट गौरी के ज्यों ज्यों पास आते गये... गौरी के बदन की महक से वा पागल सा होने लगा... ऐसी खुश्बू तो उसने आज तक भी कभी नही सूँघी.. गौरी की छतिया होने वाली बात के बारे में सोचने से उपर नीचे होने लगी.... उसकी मदभरी चूचियाँ तो दूर से ही किसी को पागल कर सकती थी.. फिर राकेश तो उसके पास खड़ा था.. इतनी पास की अगर एक फूल भी दोनों की छतियो के बीच रख दे तो नीचे ना गिरे...
तभी राकेश को लगा की गालों की पप्पी में क्या रखा है.. अगर इसका विस्वास जीत लिया तो कल परसों में सारी ही आ गिरेगी बाहों में.. उसने उसकी गालों के करीब आ चुके अपने होंट वापस खींच लिए," मैं तो मज़ाक कर रहा तहा.." चलो चलते हैं..."
गौरी ने इश्स तरह का व्यवहार करने पर उसको अचरज से देखा... निशा ने तो उसको उस्स लड़के के बारे में कुछ और ही बताया था... राकेश के पिछे चल रही गौरी ने अचानक उसका हाथ पकड़ लिया... राकेश एक दम से घूम गया... उसको लगा की अभी वो उसको कह देगी... की मेरे साथ कुच्छ भी कर लो.. पर उसकी सोच ग़लत थी. गौरी ने प्यार से देखते हुए राकेश को कहा," राकेश! किसी को कुच्छ मत बताना प्लीज़..
"नही बतावँगा.. तुम्हे मेरा नाम कैसे मालूम है?"
"बस ऐसे ही... वो अलग अलग हो गये और पहले गौरी फिर राकेश बस तक पहुँच गये... किसी बंदे/बंदी ने उन्न दोनो को ही आते देख लिया... वो सोच रहा था... ये दोनो अभी तक किधर थे..
बस के पास ही आग जली हुई थी और सब ठंड में उसके चारों और बैठह कर किसी तरह रात काट रहे थे....
तभी गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज़ हुई... ड्राइवर ने नीचे आकर कहा," गाड़ी ठीक हो गयी है... जल्दी बैठो!" उसका लंड तो ठंडा हो ही चुका था... अब ठंड में रहने का क्या फायडा....!
सभी खुस होकर बस में बैठ गये... पर अब की बार कुच्छ सीटो की अदलाबदली हो गयी थी.......
बस में कुच्छ ज़्यादा ही बदलाव नज़र आ रहा था... राज अंजलि की नाराज़गी देखकर अंजलि के पास जाकर पसर गया... प्यारी को तो जैसे इश्स बात का इंतजार था... प्यारी टफ की सीट की और बढ़ी... पर सरिता ने ऑब्जेक्षन किया," ये मेरी सीट है मम्मी" मम्मी ने उसको घहूर कर देखा पर सरिता मान'ने को तैयार ही नही थी... दोनो के झगड़े का फायडा निशा ने उठा लिया... क्यों झगड़ा कर रहे हो आपस में, वो कहते हुए टफ के पास जा बैठी... इश्स पर दोनो मा बेटी जैसे निशा को खाने को दौड़ी... अंत में फ़ैसला ये हुआ की सरिता अपनी मम्मी की गोद में बैठेगी... सब उनकी हालत पर हंस रहे थे पर दोनो अधूरी ही आ गयी थी, इसीलिए किसी ने भी परवाह नही की...
इसी बीच निशा जब टफ के पास जा रही थी तो राकेश गौरी की बराबर में बैठ गया... गौरी कुच्छ ना बोल सकी...
कविता थॅकी हारी और मज़े लेने के मूड में नही थी. वो जाकर मुस्कान के पास बैठ गयी... निशा को मजबूरन कंडक्टर के पास बैठना पड़ा... गाड़ी फिर से टेढ़े मेधे रास्तों पर चलने लगी.....
टफ को भी प्यासा ही वापस आना पड़ा था... उसने सरिता के चूतदों के नीचे हाथ दे दिया... प्यारी की गोद में होने की वजह से सरिता की गांद को कपड़े के उपर से कुरेदते हुए बार बार प्यारी की चूत को हिला रहा था... दोनो मस्त थी...
अंजलि ने राज के पास बैठते ही अपना गुस्सा दिखना शुरू कर दिया.. वो राज से हटकर, खिड़की से सटकार बैठ गयी... राज ने अपना बयाँ हाथ अपनी दाईं बाजू के नीचे से निकाला और उसके पेट पर गुदगुदी करने लगा.. थोड़ी देर तक तो वो हाथ हटाने की कोशिश करती रही फिर हंसकर राज के साथ चिपक कर बैठ गयी.. सारा गुस्सा भूल कर...
कंडक्टर नये पटाखे को देखते ही मचल उठा... वो निशा को कविता समझ बैठहा और अपने हाथ से उसकी छति भींच दी.. निशा उठी और एक ज़ोर का तमाचा कंडक्टर को रशीद कर दिया... सबका ध्यान एकद्ूम से आगे की और गया," क्या हुआ निशा?" राज और अंजलि ने एक साथ पूचछा...
"कुच्छ नही सर!" बेचारी क्या बताती... उठकर आई और गुस्से से राकेश को कहा," मेरी सीट से उठ जाओ"
राकेश मौके की नज़ाकत समझ कर चुप चाप उठा और आगे चला गया....
चलते चलते करीब सुबह के 4:30 बजे गाड़ी होटेल के सामने रुकी.....
सभी नींद में डूबे हुए थे.... राज ने 13 कमरों की पेमेंट करी सभी को उनके कमरे दिखा दिए... एक कमरे में 4 लड़कियाँ थी... अंजलि और प्यारी का रूम अलग था... राज और टफ और राकेश का अलग..... राज ने जानबूझ कर राकेश को आळग कमरा दिलवा दिया... ड्राइवर और कंडक्टर के रूम की बराबर में... इश्स तरह कुल 15 कमरे बुक हो गये 3 दिन के लिए... सभी अपने अपने कमरों में जाकर सो गये!
सुबह उठ कर सब नाश्ते के बाद मनाली घूमने चले गये... पहले शाम तक मार्केट में घूमें और हिडिंबा का मंदिर देखा... करीब 4 बजे वो होटेल में लौटे और खाया पिया... सभी लड़किया जो पहली बार बाहर घूमने निकली थी... बड़ी ही खुस थी... एक बात की चर्चा हर जगह थी... राज और मुस्कान में कुच्छ हुआ है.. और टफ और सरिता में भी कुच्छ है... असली चक्राउः जो रचा जा रहा था उसका किसी को अहसास नही था...
टफ ने मौका देखकर राज से पूचछा," यार! तुझे मज़ा आ रहा है...!"
राज ने सामानया बन'ने की आक्टिंग करते हुए कहा," हां! आ रहा है! क्यूँ?
"क्यूँ झहूठह बोल रहा है यार!" मुझे सब पता है.. तेरा अंजलि मेडम के साथ कुच्छ सीन है..."
राज ने लुंबी साँस लेते हुए कहा," नही यार.. ... मतलब हां है... पर क्या हो सकता है.."
टफ ने लगभग उच्छलते हुए कहा," हो सकता है मेरे यार. तू आज रात अंजलि को अपने पास बुला ले!"
राज ने गौर से टफ को देखा," और प्यारी मेडम का क्या करेंगे!"
"अरे में प्यारी के लिए ही तो यहाँ आया हूँ... सोच ले मेरा भी काम हो जाएगा तेरा भी..."
राज बहुत खुश हुआ...," तूने तो कमाल कर दिया यार... अब आएगा टूर का मज़ा!"
कुच्छ देर बाद राज ने मौका देखकर गौरी को रोका," गौरी; लाइव मॅच देखना है क्या?"
गौरी लाइव मॅच देखने के लालच का नेतीजा रात को भुगत चुकी थी," कैसे?"
"तू चिंता ना कर! रात को मेरे कमरे में आ जाना 10 बजे के बाद..."
गौरी ने उत्सुकता से पूचछा," किसके साथ?"
"वही... तेरी मम्मी के साथ!" राज मुस्कुराया...
गौरी इतनी खुश हुई की वो उच्छल पड़ी.. ओक सर....मैं 10 बजे के बाद आ जाउन्गि...
उधर टफ ने भी सरिता को सब कुच्छ समझा दिया...
सरिता अपनी बात एक बहुत ही खास सहेली को बता दी... कामना... वो उसके साथ ही पढ़ती थी और बहुत ही गरम आइटम थी....
तो भाई लोगो इस पार्ट का भी यही एंड करना पड़ेगा क्योकि कहानी अभी बहुत बाकी है बाकी कहानी अगले पार्ट मैं तब तक के लिए विदा
लकिन दोस्तो कहानी पढ़ने के बाद एक कमेंट दे दिया करो मैं भी खुश हो जाउगा तो फिर देर मत कीजिए अपना कमेंट देने मैं
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