College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
11-26-2017, 12:59 PM,
#36
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल--14

ड्राइवर को उस्स छ्छोकरी ने सूपड़ा चूस चूस कर इतना पागल कर दिया की वो आखरी दम पर भी अपना लंड बाहर निकलना भूल गया... 5 मिनिट के करीब ही वो थ्रा गया... उसके लंड का रस झटके मार मार कर छ्होरी के मुँह में ही निकल गया... आनंद के मारे उसने अपनी आइडियान उपर उठा ली... पर कविता उसके सूपदे से मुँह हटाने को तैयार ही ना थी.. वा साथ साथ उपर उठती चली गयी... और रस की एक एक बूँद को अपने मुँह में भर लिया... लंड अपने आप ही शर्मा कर बाहर निकल आया... ड्राइवर की हालत देखकर कविता अपनी जीभ से होंटो को चट-ती हुई मुस्कुरा रही थी..," बहुत गरम था... मज़ा आ गया!"
"मेरा सारा प्लान चौपट कर दिया छ्होरी... अपनी चूत को बचा लिया.. मेरे लंड से!" चल जल्दी चल.. बस के पास!" ड्राइवर अपनी चैन बंद करने लगा...
कविता तो पुर रंग में थी," ऐसे नही जाने दूँगी अब... मेरा रस कौन पिएगा!" कहती हुई कविता अपनी सलवार उतारने लगी... और फिर पनटी उतार कर अपनी कमसिन; पर खेली खाई चूत का दीदार ड्राइवर को कराया..

ड्राइवर उसकी 18 साल की चिकनी मोटी फांको वाली चूत को देखता ही रह गया... सच में उसने ऐसी चूत आज तक नही देखी थी... उसने तो आज तक या तो रंडियों की मारी थी या फिर अपनी काली भद्दी सी बहू की... बिना कुच्छ कहे ही वा कंबल पर बैठ गया और कविता की चूत पर हाथ फेरने लगा..," हाई.. कितनी गोरी चिटी है छ्होरी तेरी चूत...

कविता ने एक स्पेशलिस्ट की तरह अपने चूतड़ कंबल पर रखे और अपनी टाँगें फैला दी... ऐसा करते ही चूत की फांकों ने दूर होकर उसका सुर लाल रंग ड्राइवर को दिखाया... वा भौचक्का होकर उसको देखने लगा..

ड्राइवर ने तुरंत अपनी पॅंट उतार दी.. लंड का ओरिज्णल काम करने के लिए....
पर कविता पूरी तरह मस्त थी.. उसने ड्राइवर के चेहरे को पकड़ा और अपनी चूत के दाने से उसके होन्ट लगा कर मचल उठी," इसको मुँह मीं पकड़ कर चूसो!"

ड्राइवर ने जैसे उसकी अग्या का पालन किया.. उसने जीब निकल कर चूत की फांको में रस टपकाना शुरू कर दिया... कविता ने सिर ज़ोर से चूत पर दबा लिया और तेज तेज साँसे लेने लगी... ड्राइवर को ठंड में भी पसीने आने लगे...," अपना लौदा मेरी चूत पर रखो... अंदर मत करना" कविता ने आदेश दिया... और उसका गुलाम हो चुके ड्राइवर ने ऐसा ही किया... वो उसके उपर आ गया... और घुटनो और कोहानियों के बाल ज़मीन पर सेट हो गया.. लंड उसकी चूत के उपर झूल रहा था.. अभी वो पूरी तरह आकड़ा नही था...

कविता ने अपना हाथ नीचे ले जाकर उसके लंड को पकड़ा और अपनी चूत पर घिसने लगी... बाहर ही... दाने पर... वा सिसक रही थी.. बक रही थी.. और ड्राइवर का लौदा खड़ा होते होते उसकी चूत की फांको के बीच फँस गया.. अब वा ज़्यादा हिल नही रहा था... कविता के चूतड़ उपर उठते चले गये.. लंड अब कम हिल रहा था और कविता की चूत ही उपर नेचे होकर अपने आप से लौदे को गुइसा रही थी..

ड्राइवर अब फिर कगार पर आ गया था झड़ने के... उसने लौदा कविता के हाथ से छ्चीन लिया," अब की बार ऐसे नही... अब अंदर करने दो चूत के...
कविता भी अब मस्त हो चुकी थी... उसने अपनी टाँग हवा में उठा दी... और उनको पिछे ले गयी," लो फँसा दो जल्दी.." वा तड़प सी गयी थी.. लंड को उतारने को...

ड्राइवर ने कविता की टाँगों को पकड़ कर थोड़ा और पिछे किया... अपना लंड चूत के उपर रखा और उस्स पर बैठ गया... कविता की एकद्ूम साँस बंद हो गयी.. उसका गला सूख गया... आँखें बाहर आने को हुई... और वा मिमियने लगी.. ," बाहर निकाल जल्दी.. मार गयी.. माआअ.. " पर ड्राइवर ने अपने गुरु से बग़ावत कर दी... उसका मुँह दबोचा और उसके अंदर समाता चला गया... पूरा लंड चूत में उतार कर उसने कविता की चूत को देखा.. वा ऐसे ही खुल गयी थी जैसे उसकी बहू की चूत सुहग्रात वाले दिन खुल गयी थी... वा भी ऐसे ही चीखी थी.. और अगले दिन कभी ना आने की धमकी देकर गयी थी... पर चूत तो चूत होती है... उसके बाद जब उसकी बाहू वापस आई तो कभी जाने का नाम ही ना लिया...

ड्राइवर ने लंड पूरा चूत में फँसाए फँसाए ही कविता को बैठा लिया अपन जाँघो पर.. आर उसका कमीज़ उतार दिया... ब्रा से ढाकी उसकी चूचियाँ इतनी मस्त लग रही थी की ड्राइवर ने तुरंत उसकी ब्रा को उपर उठा कर उसकी चूचियों को ब्रा के नीचे से निकाल लिया और उनको चूसने लगा.. धीरे धीरे!
कविता की चूत ने जैसे तैसे ड्राइवर का लंड अपने अंदर रख लिया... ड्राइवर उसको अपनी जांघविं उपर नीचे करके हिला रहा था और थोड़ा थोड़ा लंड चूत के अंदर बाहर होने लगा....

धीरे धीरे मज़ा बढ़ने लगा... कविता ने उसके गले में बाहें डाली और पिछे लुढ़क गयी... लगभग पहले वाली पोज़िशन आ गयी... ड्राइवर अपने घुटनो पर बैठ गया और लंड को थोड़ा और ज़्यादा अंदर बाहर करने लगा.. अब कविता को भी जन्नत में होने का अहसास हो रहा था... उसको लगा दर्द में तो इश्स मज़े से भी ज़्यादा मज़ा आया था... सोचते सोचते ही उसकी चूत का ढेर सारा रस बाहर निकलने लगा.. झटके अब झटके नही लग रहे थे... लंड इतनी सफाई से अंदर बाहर हो रहा था की जैसे वो धक्के लगा ही ना रहा हो.. अचानक कविता का बचा खुचा रस भी बौच्हर की तरह से निकल कर लंड के साथ ही बाहर टपकने लगा... कविता को अब दर्द का अहसास होने लगा... अब इश्स दर्द में मज़ा नही था... पर ड्राइवर का काम अब बहुत देर तक चलना था.... कविता ने कहा "अब इसस्में नही... में उल्टी होती हूँ.. तुम पीछे कर लो"

ड्राइवर का तो मज़े से बुरा हाल हो गया... गांद में जाने का ऑफर मिलते ही लंड और शख्त हो गया... वहाँ और शख़्ती की ज़रूरत जो थी..
उसने झट अपना लंड बाहर निकाला और कविता को कुतिया बना दिया.. उसकी कमर को बीच से नीचे दबा कर जितना गांद को खोला जा सकता था.. खोला... लंड को गांद के च्छेद पर टीकाया और बोला.. "डाल दूं?"

"हां!" और हां कहते ही कविता ने अपने दातों को बुरी तरह भींच लिया... उसको पता था अब क्या होना है...

ड्राइवर के ज़ोर लगाते ही चिकना होने की वजह से वो फिसल कर चूत में ही घुस गया.. कविता चिल्ला उठी.. "यहाँ क्यूँ कर दिया कामीने...!"

ड्राइवर ने लंड निकल कर सॉरी बोला... उसने कविता की चूत से अपनी उंगली को घुसा कर रस लगाया और उंगल गांद में घुसा दी... इससे मोटे की तो वो आदि थी," इससे कुच्छ नही होगा... लंड घिसा अपना..."

"चिकनी तो कर लूँ छ्होरी.. तेरी गाड" उसने रस को अच्छि तरह से उसकी गांद में लगाया और फिर से अपना लौदा ट्राइ किया.. एक हाथ से पकड़ा और उस्स पर ज़ोर डाला.. सूपड़ा आधा अंदर गया.. और कविया दर्द और मज़े के मारे मार सी गयी," फँसा दे... फँसा दे... जल्दी फँसा दे... फटने दे चिंता मत कर...

ड्राइवर को भला क्या चिंता होनी थी.. उसने एक धक्का और ज़ोर से मारा और लंड का गोल घेरा उसकी गाड में फँस गया...
कविता की टाँगें जैसे बीच में से काट जायेंगी... पर उसमें गजब की हिम्मत थी... उसने अपने मुँह में कंबल त्हूस लिया... पर टांगे नही हिलने दी मैदान से...

कुच्छ देर बाद गांद ने भी हिम्मत हार कर खुद को खोल ही दिया लंड के लिए... अब लंड बाहर कम आता और हर बार अंदर ज़्यादा जाता... ऐसे ही इंच इंच सरकता सरकता लंड पूरा अंदर बाहर होने लगा.... कविता को ड्राइवर से ज़्यादा और ड्राइवर को कविता से ज़्यादा मज़े लेने की पड़ी थी.. दोनो आगे पीछे होते रहे.... ड्राइवर ने दोनो और से उसकी चूचियों को पकड़ रखा था और झटकों के साथ साथ उनको भी खींच रहा था.....

ऐसा चलता गया .... चलता गया... और फिर रुकने लगा.... ड्राइवर ने उसकी गांद को रस से भर दिया और तब तक धक्के लगाता रहा जब तक उसके लंड ने और धक्के लगाने से इनकार करके मूड कर अपने आपको गांद से बाहर ना कर लिया...

कविता ने तुरंत पलट कर उसके लंड को अपने होंटो से चुम्मि दे कर थॅंक्स बोला... इतने मज़े देने के लिए... पर लंड सो चुका था.....

बस के पास सभी अपनी अपनी बातों में लीन थे... सभी मनाली जाकर करने वाले मौज मस्ती की प्लॅनिंग कर रहे थे.... किसी को किसी की फिकर ना थी... जो जिसके पास बैठा था... उसके सिवा किसी का ख्याल ना था... जब ड्राइवर कविता का मुँह बंद करके उसको एक तरफ ले जा रहा था... लगभग उसी वक़्त... अकेले खड़े बातें कर रहे टफ और राज के पास मुस्कान आई....," सर! मुझे आपसे कुच्छ बात करनी है...!"
"बोलो!" राज ने घूमते हुए कहा.
मुस्कान टफ के सामने शर्मा रही थी... हालाँकि बस में उसने सरिता के साथ मस्ती करते टफ को देख लिया था.... और वो खुद भी जानती थी की राज की जांघों पर बैठ मज़े लेते टफ ने भी उसको देखा था... पर वो फिर भी शर्मा रही थी....," सर.... मुझे अकेले में बात करनी है.. आपसे!" वो नज़रें झुकायं बात कर रही थी... राज के हाथो मिली मस्ती की लाली अब भी उसके गालों पर कायम थी... का हुआ जो अंधेरे की वजह से किसी ने नही देखा... राज टफ को ' एक मिनिट कहकर उसी और चल पड़ा जिस तरफ कविया और ड्राइवर गये हुए थे...," मज़ा आया मुस्कान!"
मुस्कान कुच्छ ना बोली... बस नज़रें झुकाए साथ चलती रही... वो चाहती थी की सर खुद ही उसकी कसक जान लें... और उसको प्रॅक्टिकल पूरा करा दें... जिसको सर ने अधूरा छ्चोड़ कर उसकी हालत पतली कर दी थी...

थोड़ा आगे जाने पर सुनील ने उसके कंधे पर हाथ रख लिया और चलता रहा," बोलो ना! शर्मा क्यूँ रही हो?"

"कुच्छ नही सर....वो!" मुस्कान कुच्छ बोल नही पा रही थी... उन्होने ध्यान नही दिया... बस में उनके पिच्चे बैठही अदिति और दिव्या उनके पीछे पीछे जासूसों की तरह चल रही थी... उनको पता था.... ज़रूर यहाँ प्रॅक्टिकल पूरा हो सकता है.... क्या पता उनका भी एक एक पीरियड हो जाए...

राज ने उसके कंधे पर रखे हाथ से उसकी चूची को दबा दिया... ज़्यादा बड़ी नही थी... पर खड़ी खड़ी ज़रूर थी.... मुस्कान हल्की सी सिसकारी लेकर राज की छति से लिपट गयी..," सर कर दो!... प्लीज़... मैं मर जाउन्गि!" उसने अपने हाथ सुनील की पीठ पर चिपका लिए और अपनी छति राज की पसलियों में गाड़ दी.... राज को उसकी चूचियों की गर्मी का अहसास होते ही विस्वास हो गया... अब ये चुदे बिना नही मानेगी... मुझसे नही तो किसी और से..!

राज ने उसका चेहरा उपर उठाया और उसके सुलगते होंटो को थ्होडी शांतवना दी... अपने होंटो से...," आइ लव यू सर!" मुस्कान का हाल बहाल हो रहा था....

राज को लगा अभी वो ज़्यादा दूर नही आए हैं... वो रोड पर चलता गया... और उस्स रास्ते को पार कर गया.. जिस रास्ते पर उस्स समय ड्राइवर ने कविता की गांद में अपनी हथेली फँसा रखी थी....
अदिति और दिव्या भी उनके पीछे चलती गयी... उनको भी बड़ी लगान थी... प्रॅक्टिकल करने की.....
रोड पर चलते चलते राज को नीचे ढलान की और जाता एक सांकरा सा रास्ता दिखाई दिया... करीब 2 फीट चौड़ा... शायद किसी गाँव के लिए शॉर्टकट था. राज ने मुस्कान को अपनी छति से चिपकाया और नीचे उतरने लगा..

वो करीब 20 फीट ही गये होंगे की उन्हे एक चीख सुनाई दी.. दोनो चौंक कर पलते... अदिति के जूते मैं से एक काँटा उसके पैर में चुभ गया था... इसीलिए उसकी चीख निकल गयी... राज तेज़ी से चढ़ कर उसके पास गया," अदिति तुम? और ये दिव्या?"
अदिति और दिव्या का सिर शर्म से झुक गया... शर्मा तो राज भी गया था.. पर उसको पता था... ये तो होना ही था... अदिति बस में उनके पीच्चे ही बैठी थी...," जासूसी कर रही हो!?"

अदिति ने सिर झुकाए ही जवाब दिया," नही सर, हम तो सिर्फ़ देखने आए थे!"

राज थोड़ा संभाल कर बोला," देखने ही आए थे या कुच्छ करने भी?"

अदिति कुच्छ ना बोली... उसने राज की कलाई अपने कोमल हाथो में पकड़ ली... राज समझ गया... वो भी प्रॅक्टिकल करना चाहती थी," और ये छिप्कलि?" उसने दिव्या की और देखा... उसको क्या पता था ये छिप्कलि राकेश का साँप निगल चुकी है एक बार... अपनी चूत में!,"सर मुझे भी करना है... दिव्या की चूत बुरी तरह खुजा रही थी... उसको प्यार का खेल सीखा कर राकेश गौरी के पिछे पड़ गया... और वा इतने दिन से यूँही तड़प रही थी...
"ये कोई बच्चों का खेल नही है? जाओ! राज ने दिव्या को कहा... पर उसको डर भी था की अगर दिव्या को वापस भेज दिया तो ये राज उगल भी सकती है.... उसने दिव्या को मुँह लटका कर सुबक्ते देखा तो राज ने दोनो का हाथ पकड़ा और मुस्कान के पास ले आया....
मुस्कान अदिति से जलती थी... अदिति वही लड़की थी जिसको राज ने पहले ही दिन उठा कर पूचछा था," तुम्हे किससे प्यार है?" उसकी चूचियाँ क्लास में सबसे मस्त थी.. ज़्यादा बड़ी नही थी पर सीधी खड़ी थी... बिना ब्रा के... और उसकी प्यारी सी हँसी का राज दीवाना था... जब वा हँसती थी तो उसके गाल पर दाई और एक डिंपल बन जाता था...

मुस्कान ने मुँह बना कर कहा," मैं जाऊं सर!"
"नीचे चलो! आराम से... आज तुम सभी को एक नया प्रॅक्टिकल कराता हूँ.... ऐसा प्रॅक्टिकल तो आज तक खुद मैने भी नही किया है.....

कुच्छ और नीचे जाने पर रास्ते की सिद में ही राज को एक छ्होटी सी क्यारी दिखाई दी.. जिसको समतल करके शायद कुच्छ सब्जी वग़ैरह उगाने के लिए तैयार किया गया था... राज तीनों को वहीं ले गया... ठंड काफ़ी थी चारों को शर्दि लग रही थी...राज ने अपना कंबल उतारा और ज़मीन पर बिच्छा दिया...." सब अपने अपने कपड़े निकाल लो... और कंबल ओढ़ लोराज ने तीनो से कहा... मुस्कान को छ्चोड़ कर दिव्या और अदिति ने तुरंत ऐसा ही किया... मुस्कान नाराज़ हो गयी थी... उसको अपना हिस्सा बाटना पड़ रहा था... राज ने मुस्कान को अपनी बाहों में भर लिया और उसकी गर्दन को चूमने लगा... गरम तो वा पहले ही थी... जब राज ने उन्न दोनो नंगी लड़कियों को छ्चोड़कर उसको बाहों में भरा तो उसकी नाराज़गी जाती रही... उसने कंबल उतार फैंका और राज से चिपक कर उसकी जाँघ से अपनी जांघों के बीच च्छूपी कोमल चूत को रगड़ने लगी... अब वा अपने से राज को दूर नही करना चाहती थी... वह अदिति को जलाने के लिए कुच्छ बढ़ चढ़ कर ही अपना प्यार लूटा रही थी राज पर... मुस्कान को देखकर उनकी भी हिम्मत बढ़ गयी... नंगी अदिति ने राज को पीछे से पकड़ लिया और अपनी छति उसकी पीठ से सेटाकर शर्ट के उपर से ही राज को दांतो से काटने लगी... मुस्कान ने अपना हाथ अदिति की चूची पर ले जाकर उसके दाने को जोए से दबा दिया... अदिति सिसक उठी...

दिव्या के लिए राज का कोई हिस्सा नही बचा था.. वा अदिति के पिछे आकर उसके चूतदों पर हाथ फिरने लगी... जब उसका हाथ अदिति की गांद की दरार में से होकर गुजरा तो वो उच्छल पड़ी... उसको यहाँ किसी ने पहली बार हाथ लगाया था... दिव्या तो खेल का पहला भाग खेल रही थी.. और पहले भाग में लड़की हो या लड़का... उसको कोई फ़र्क़ नही पड़ता था...
मुस्कान अलग होकर अपने कपड़े उतारने लगी... वो अदिति से पिछे नही रहना चाहती थी... अब कहीं भी शर्मीलेपान के लिए कोई जगह नही थी..

मुस्कान के अलग हट-ते ही अदिति घूम कर आगे आ गयी... राज उसकी सबसे प्यारी चूचियों से खेलने लगा... राज ने उसकी छतियोन के मोतियों को चूसना शुरू कर दिया... अदिति पागल हो उठी.. दिव्या अदिति के पीछे आ गयी और नीचे बैठकर उसकी टाँगों के बीच उसकी चूत से होन्ट सटा दिए...

अदिति आनंद से दोहरी होती जा रही थी... पल पल उसको जन्नत का अहसास करा रहा था... सबकुच्छ भूल कर वा बदहवासी में बोल रही थी., हाईए... मेरा सबकुच्छ चूस लिया.... अया... मेराअ... सभह... कूच निकााल लिया.... सिएर्र्ररर ज्जिि मार गििईई" दिव्या ने उसको मचलता देख दुगने जोश से उसकी फांको में अपनी जीभ से खेलना शुरू कर दिया....
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