RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
अचानक पिच्चे से 2 सीट आगे एक लड़की ने अपने साथ वाली को इशारा किया," आ देख... वो सर के दोस्त का हाथ..! प्यारी मेडम के कमीज़ के अंदर... उसने उपर उठकर देखा तो पिछे की सभी लड़कियाँ उधर देखने लगी.. उनकी बात अचानक बंद हो गयी. निशा का ध्यान भी टफ के हाथ पर गया... वो प्यारी मेडम के कमीज़ के और शायद उसकी सलवार के भी अंदर जा चुका था... प्यारी आँखें बंद किए बैठी थी... मज़े ले रही थी... उसको अहसास नही था की आधी बस उसी की और देख रही है...
अब सरिता का भी ध्यान पीछे गया... उसने देखा सभी की नज़र उसकी मम्मी की टाँगों के पास है... कुच्छ ना कुच्छ गड़बड़ ज़रूर है, सरिता ने सोचा.... उसकी मम्मी पर भी उसको 'पूरा भरोसा' था. इसका मतलब सर का दोस्त चालू है... उसने भी झपकी आने की आक्टिंग करते हुए अपना सिर टफ के कंधे पर टीका दिया और अपना दायां हाथ अपनी चूचियों के उपर से ले जाते हुए टफ के कंधे पर रख दिया... टफ का ध्यान असलियत में तभी पहली बार सरिता पर गया," नींद आ रही है क्या?"
सरिता संभाल कर बैठ गयी. लेकिन टफ ने अपना हाथ प्यारी की सलवार में से निकाला और सरिता के सिर को पकड़ कर वापस अपने कंधे पर टीका लिया... अब उसको नया माल मिल गया था... प्यारी ने तिर्छि नज़र से पीछे देखा... टफ ने करारा जवाब दिया," ठंड हो गयी है... अब ख़टमल कहाँ होंगे!" बस चलती जा रही थी...
राज को निशा का उसके घुटनो से जाँघ घिसना जान बुझ कर किया हुआ काम लग रहा था... उसने निशा के चेहरे की ओए देखा... वा आँखें बंद किए हुए थी... राज का बाया हाथ मुस्कान की जांघों को सहला रहा था.. हौले हौले...
अंजलि प्यारी के साथ बैठकर बहुत विचलित हो गयी थी. वो किसी भी तरह से राज के पास जाना चाह रही थी... पर कोई चारा नही था... उसने अपनी आँखें बंद की और सोने की तैयारी करने लगी...
कविता के शाल ओढाते ही कंडक्टर और राकेश दोनो की हिम्मत बढ़ गयी थी... राकेश तो अपना हाथ कविता की चूत के उपर रगड़ रहा था... और कंडक्टर अपना बाया हाथ दायें हाथ के नीचे से निकाल कर कविता की बाई चूची को मसल रहा था.. उसके हाथ की हलचल शाल के उपर से ही सॉफ दिखाई दे रही थी... पर ड्राइवर और राकेश के अलावा किसी का ध्यान उधर नही था... कविता की आँखें दो अलग अलग लड़कों से जाम कर मज़े लूट रही थी... पर चुपके चुपके!
टफ ने सरिता का ध्यान अपनी तरफ खींचते हुए कहा," क्या नाम है?"
सरिता ने धीरे से कान में कहा," धीरे बोलो! मम्मी सुन लेगी!"
टफ ने आसचर्या से कहा," तो तुम अंजलि की बेटी हो... गौरी!"
सरिता ने फिर से उससे रक़िएसट की," प्लीज़ धीरे बोलो! मैं सरिता हूँ; प्यारी की बेटी!"
"क्या?" टफ ने पहली बार उसके चेहरे पर गौर किया... ," अरे हां! तुम्हारी तो शकल भी मिलती है... फिर तो करम भी मिलते होंगे!" टफ ने अब की बार ढहीरे ही कहा!
कविता समझ तो गयी थी की ये आदमी कौँसे करमो की बात कर रहा है.. आख़िर उसकी मा को तो सारा गाँव जनता था.. पर उसने ना शामझ बनते हुए कहा," क्या मतलब?"
टफ ने उसकी छाती पर हाथ रखकर कहा... ," कुच्छ नही... तुम्हारी भी बड़ी तारीफ सुनी है.. शमशेर भाई से.... अब तो मज़ा आ जाएगा... कच्छ देर बाद सब समझ आ जाएगा...!
राज को मुस्कान से पॉज़िटिव रेस्पॉन्स मिल रहा था... वा राज के उसकी जाँघ पर फिसल रहे हाथ से लाल होती जा रही थी... राज ने उसको उलझे हुए शब्दों में इशारा किया," टूर पर पुर मज़े लेना साली साहिबा! ऐसे मौके बार बार नही आते... यहाँ से भी बगैर सीखे चली गयी तो मैं शमशेर को क्या मुँह दिखावँगा... ये तीन दिन तुम्हारी जिंदगी के सबसे हसीन दिन शाबिट हो सकते हैं... जी भर कर मज़े लो... और जी भर कर मज़े दो! समझी..."
बस में हल्के म्यूज़िक की वजह से धीरे बोली गयी बात तीसरे कान तक नही पहुँचती थी.......... बस जिंद शहर के पटियाला चौंक से गुज़री..............
मुस्कान को राज की हर बात समझ में आ रही थी... पर इश्स तरह इशारा करने से पहले उसकी हिम्मत नही हो रही थी.... उसने राज के अपनी गरम जांघों पर लगातार मस्ती कर रहे हाथ को अपने हाथ के नीचे दबा लिया... हूल्का सा... राज के लिए इतना सिग्नल बहुत था.. मुस्कान का...
सरिता तो अपनी मा से दो चार कदम आगे ही थी... टफ के अपनी चूची के उपर रखे हाथ को वहीं दबोच लिया और अपना दूसरा हाथ टफ की पॅंट में तैयार बैठहे उसके लंड पर फेरने लगी...
गौरी सो चुकी थी पर निशा की तो नींद उड़ी हुई थी... वो राज के साथ बैठना चाहती थी... वो पीच्चे घूमकर मुस्कान से बोली," मुस्कान! तू आगे आ जा ना; आगे थोड़ी सी ठंड लग रही है... तेरे पास तो कुम्बल भी है... मैं लाना भूल गयी."पर राज को भला मुस्कान उस्स पल कैसे छोड़ती... उसको तो ये तीन दिन अपनी जिंदगी के सबसे हॅसीन दिन बनाए थे... उसने कंबल ही निशा की और कर दिया," लो दीदी... कुम्बल ओढ़ लो!" अब निशा क्या कहती...?
उधर कविता के साथ तो बुरी बन रही थी... एक तो उसकी चूचियों से बिना बच्चे ही दूध निकालने की कोशिश कर रहा था; दूसरा उसकी सलवार के भी अंदर हाथ ले जाकर उसकी चूत का जूस निकालने पर आमादा था... कविता; उपर चूची नीचे
चूत... के साथ हो रही मस्तियों से मस्त हो चुकी थी... ड्राइवर का ध्यान लगातार उस्स पर जा रहा था... अपनी बारी की प्रतीक्षा में.... राकेश रह रह कर गौरी के चेहरे की और देख लेता... और उसका जोश दुगना हो जाता.....
लगभग सारी बस सो चुकी थी... या सोने का नाटक कर रही थी... जाग रहे थे तो सिर्फ़ ये बंदे; ड्राइवर, कंडक्टर, राकेश, कविया; टफ, प्यारी, सरिता; मुस्कान, राज, निशा और नेहा....... और शायद दिव्या भी... वो बार बार आँखें खोल कर बस में आगे चल रहा तमाशा देख रही थी... उसका हाथ अपनी नन्ही सी चूत पर रखा हुआ था........
बस कैथल पहुँच गयी थी.... बाइ पास जा रही थी.... अंबाला की और... करीब 10:15 का टाइम हो चुका था.
ठंड इतनी भी ज़्यादा नही हुई थी जैसा जागने वाले मुसाफिरों के कंबल खोल लेने से दिख रहा था... सबसे पहले टफ ने कंबल निकाला और अपने साथ ही सरिता को भी उसमें लपेट लिया... सरिता ने आगे पिच्छे देखा और टफ को इशारा किया...," ज़्यादा जल्दी है क्या?"
टफ ने अपनी पॅंट की जीप खोलकर अपना चूत का भूखा लंड उसके हाथ में पकड़ा दिया," खुद ही चेक कर लो!"
सरिता ऐसे ही लंड की दीवानी थी; उसने अपनी मुट्ही में टफ का लंड पकड़ा और उसको ऊपर से नीचे तक माप कर देखा," ये तो मेरी पसलियां निकल देगा!" सरिता ने धीरे से टफ के कान में कहा."
सरिता ने अपने आप को सिर तक धक लिया था... उसके होन्ट टफ के कान के पास थे..
टफ ने देर नही की.. सरिता के घुटनो को मोड़ कर अगली सीट से लगवा दिया... और घुटनो को दूर दूर करके उसकी चूत का कमसिन दरवाजा खोल दिया... क्या हुआ खेली खाई थी तो?.... थी तो 17 की ही ना!... कमसिन तो कहना ही पड़ेगा!
टफ ने अपने बायें हाथ को सरिता की जाँघ के नीचे से निकाल कर सलवार के उपर से ही चूत की मालिश करने लगा....
लगभग यही काम राकेश अभी तक कविता की चूत के साथ कर रहा था... सरिता से सब सहन नही हो रहा था... वह उठी और बस के पीछे रखे अपने बॅग में से कंबल निकालने चली गयी... पिच्चे जाते ही कविता के मॅन में आइडिया आया... वा कंबल औध कर पिच्छली लुंबी सीट पर ही बैठ गयी... अकेली! उसके आगे वाली लड़कियाँ सो चुकी थी. वा राकेश के वहाँ आने का इंतज़ार करने लगी... उसको यकीन था... उसकी चूत की मोटी मोटी फांकों को मसल मसल कर फड़कट्ी हुई, लाल
करके शांत भी राकेश ही करेगा... कंडक्टर ने तो बस उसको सुलगया था... आग तो राकेश ने ही भड़काई थी.....
कंडक्टर और राकेश के हाथों से जैसे एकद्ूम किसी ने अमृत का प्याला छ्चीन लिया हो.. कविता के पीछे बैठने का मतलब वो यही समझे थे की वो तंग आकर गयी है... वो ये समझ ही नही पाए की वहाँ वो पूरा काम करवाने के चक्कर में गयी है...... बेचारे राकेश और कंडक्टर एक दूसरे को ही देख देख कर मुश्कूराते रहे....
टफ वाला आइडिया राज को बहुत पसंद आया... उसने अपना कंबल निकाला और उसको औध लिया... फिर उसने मुस्कान की और देखा... मुस्कान आँखों ही आँखों में उसको अपने कंबल में बुला लेने का आग्रह सा कर रही थी. राज ने धीरे से बोला," मुस्कान! कंबल में आना है क्या?
वो शर्मा गयी. उसने कंबल के नीचे से हाथ ले जाकर राज का हाथ पकड़ लिया. राज इशारा समझ गया. उसने कंबल उतार कर मुस्कान को दे दिया और बोला," इसको औध कर बस की दीवार से कमर लगा लो!"
मुस्कान उसकी बात का मतलब समझी नही पर उसने वैसा ही किया जैसा राजने उसको कहा था," सर! आप नही औधेंगे?"
राज ने कोई जवाब नही दिया.. उसने मुश्कान की और खिसक कर उसकी टाँगें उठाई और कंबल समेत अपनी जांघों के उपर से सीट के दूसरी तरफ रख दिया.. कंबल टाँगों पर होने की वजह से वो ढाकी हुई थी. अब राज की जांघें मुस्कान की चूत की गर्मी महसूस कर रही थी... उनके बीच में सिर्फ़ उनके कपड़ा थे... और कुच्छ नही... राज का हाथ अब मुस्कान की चूत को सहला रहा थे कपड़ों के उपर से ही..... अब से पहले मुस्कान के साथ ऐसा कभी नही हुया था... उसको इतने मज़े आ रहे थे की अपनी आँखों को खुला रख पाना और चेहरे से मस्ती को च्छुपाना... दोनो ही मुश्किल थे...
निशा की जांघें राज के घुटनों से दूर होते ही मचल उठी... उसने राज की और देखा... राज और मुस्कान एक दूसरे से चिपक कर बैठहे थे... निशा का ध्यान राज के पैरों की डाई तरफ मुस्कान के पंजों पर पड़ा..," ये बैठने का कौनसा तरीका है..." निशा समझ गयी... की दोनों के बीच ग़मे शुरू हो चुका है..... फिर उसकी नज़र नेहा पर पड़ी... वो मुश्कान के काँप रहे होंटो को देखकर मुश्कुरा रही थी... निशा और नेहा की नज़र मिली... वो दोनों अपनी सीट से उठी और इश्स सीक्रेट को शेर करने के लिए सबसे पिछे वाली सीट पर चली गयी.... कविता के पास....!
निशा ने जाते ही कविता पर जुमला फैंका," यहाँ क्यूँ आ गयी? आगे मज़ा नही आया क्या?.... राकेश के साथ....
कविता को पता नही था की राकेश से अपनी चूत मसळवते समय निशा उसको देख चुकी थी... वो हल्का सा हँसी और बोली... नही मुझे तो नही आया मज़ा... तुझे लेना हो तो जाकर ले ले!
नेहा का मज़ा लेने का पूरा मॅन था," निशा दीदी! मैं जाउ क्या आगे राकेश के पास.... वो कुच्छ करेगा क्या?
निशा ने नेहा पर कॉमेंट किया," रहने दे अभी तू बच्ची है..." फिर कविता को कहने लगी... आगे देख क्या तमाशा चल रहा है... मुस्कान और सुनील सर के बीच..."
कविता बोली," और वो सर का दोस्त भी कम नही है... थोड़ी देर पहले प्यारी मेडम पर लाइन मार रहा था... आशिक मिज़ाज लगता है.." उसने ये बात च्छूपा ली की वो तो उसकी चूत में से भी सीधी उंगली से गीयी निकल चुका है... और नेहा भी तो... शमशेर के साथ.... नेहा और कविता की नज़रें मिली... दोनो ही एक दूसरे के मॅन की बात समझ कर हँसने लगी....
निशा उनकी बात का मतलब ना समझ पाई," क्या बात है. तुम हंस क्यूँ रही हो?"
कविता ने रहस्यमयी अंदाज में कहा," कुच्छ नही... पर नेहा अब बच्ची नही है!"
नेहा ने कविता को घहूरा," दीदी! तुम मेरी बात बताॉगी, तो मैं आपकी भी बता दूँगी... देख लो!"
कविता उसकी बात सुनकर चुप हो गयी.. पर निशा के दिमाग़ में खुजली होने लगी.," आए मुझे भी बता दो ना प्लीज़... मैं किसी को नही बाताओंगी.... प्लीज़... बता दो ना..."
कविता और नेहा ने एक दूसरे की और देखा... वो निशा पर भरोसा कर सकती थी... पर निशा की किसी ऐसी बात का उनको पता नही था... कविता बोली... ठीक है.. बता देंगे... पर एक शर्त है..........
मुस्कान की हालत खराब हो गयी थी.. अपनी कुवारि और मर्द के अहसास से आज तक बेख़बर चूत रह रह कर आ भर रही थी.. जैसे जैसे राज अपने हाथ से उसकी हल्के बलों वाली चूत को प्यार से सहला रहा था, मुस्कान उस्स पर से अपना नियंत्रण खोती जा रही थी.. उसको लग रहा था जैसे उसकी चूत खुल सी गयी हो... चूत के अंदर से रह रह कर निकलने वेल रस की खुश्बू और उसकी सलवार के गीलेपान को सुनील भी महसूस कर रहा था... उसने मुस्कान की सलवार के नाडे पर हाथ डाला... मुस्कान अंजाने डर से सिहर गयी... उसने पिछे देखा... अदिति सो चुकी थी...
मुस्कान ने सर का हाथ पकड़ लिया," नही सर... प्लीज़... कोई देख लेगा... मैं मार जवँगी...
राज उसकी चूत को अपनी आँखों के सामने लेनी के लिए तड़प रहा था. छूने से ही राज को अहसास हो गया था की चूत अभी मार्केट में नही आई है... पर बस में तो उसका 'रिब्बन' काट ही नही सकता था... राज ने धीरे से मुस्कान को कहा," कुच्छ करूँगा नही... बस देखने दो... मुस्कान ने सामने टफ की और देखा....
टफ सरिता का मुँह अपनी जांघों पर झुका चुका था... कंबल के नीचे हो रही हलचल को देखकर भी मुस्कान ये समझ नही पा रही थी की टफ की गोद में हो रही ये हुलचल कैसी है... उसने राज को उधर देखने का इशारा किया... राज ने अपनी गर्दन टफ की और घुमाई तो टफ उसकी और देखकर मुस्कुराने लगा," भाई साहब! अपने अपने समान का ख्याल रखो... आ.. काट क्यूँ रही है?... मेरे माल पर नज़र मत गाड़ो... फिर मुस्कान का प्यारा चेहरा देखकर बोला....," ... या एक्सचेंज करने का इरादा है भाई...."
सरिता बड़ी मस्ती से टफ के लंड को अपने गले की गहराइयों से रु-बारू करा रही थी... अगर ये बस ना होती तो टफ कब का उसकी चूत का भी नाप ले चुका होता... सब कुच्छ खुले आम होते हुए भी... कुच्छ परदा तो ज़रूरी था ना... जैसे आज कल की लड़कियाँ अपनी चूचियों को ढकने के नाम पर एक पतला सा पारदर्शी कपड़ा उन्न पर रख लेती हैं... ऐरफ़ ये दिखाने को की उन्होने तो च्छूपा रखी हैं.. पर दर असल वो तो उनको और दिखता ही है...
सरिता ने लंड की बढ़ रही अकारण के साथ ही उसको गले के अंदर उपर नीचे करने में तेज़ी ला दी... रह रह कर वो टफ के लंड को हूल्का सा काट लेती.. जिससे टफ सिसक पड़ता... बस टफ तो यही सोच रहा था की एक बार ये बस मनाली पहुँच जाए... साली को बतावँगा.. प्यार में दर्द कहते किसको हैं... उसने सरिता की चूची को अपने हाथ में दबाया हुआ था... वो भी उसकी चूचियों को नानी याद करा रहा था... पर सरिता को तो प्यार में वाहसीपान जैसे बहुत पसंद था.. अचानक ही टफ ने सरिता का सिर ज़ोर से अपने लंड के उपर दबा लिया.. लंड से रस की जोरदार पिचकारी निकल कर गले से सीधे सरिता के पेट में पहुच गयी... ना तो सरिता को उसके र्स का स्वाद ही पता चला, और ना ही उसके अरमान शांत हुए... उसकी चूत अब दहक रही थी.. वो किसी भी तरीके से अब इश्स लंड को चूत में डलवाना चाहती थी... पर टफ तो उस्स पल के लिए तो शांत हो ही चुका था... अपना सारा पानी निकालने के बाद उसने सरिता को अपने मुँह से लंड निकालने दिया... पर सरिता ने मुँह बाहर निकलते ही अपने हाथ में पकड़ लिया और टफ को कहा," इसको अभी खड़ा करो और
मेरे अंदर डाल दो... नीचे!
बस ने अंबाला सिटी से जी.टी. रोड पर कर चंडीगढ़ हाइवे पर चलना शुरू किया... करीब 11:30 बजे...
अब सच में ही ठंड लगने लगी थी... सब के सब कंबलों में डुबक गये....
राज सिर्फ़ उसकी चूत को एक बार देखना भर चाहता था... उसके दोबारा कहने पर मुस्कान ने अपना नाडा खोल कर सलवार चूतदों से नीचे खिसका दी... साथ में अपनी पनटी भी... अब उसकी नगी चूत सुनील के हाथों में थी... राज ने मुस्कान की रस से सराबोर हो चुकी चूत को उपर से नीचे तक सहला कर देखा... एक दूं ताज़ा माल था... हल्के हल्क बॉल हाथ नीचे से उपर ले जाते हुए जैसे खुश होकर लहरा रहे थे... पहली बार इश्स तरह उस्स बंजर चूत पर रस की बरसात हुई थी.. वे चिकने होकर रेशम की तरह मालूम हो रहे थे...
राज से रहा ना गया.. उसने कंबल उपर से हटा दिया... क्या शानदार चूत थी... जैसी एक कुँवारी चूत होनी चाहिए... उससे भी बढ़कर... राज ने अपनी उंगली च्छेद पर रखी और अंदर घुसने की कोशिश की.. चिकनी होने पर भी अंदर उंगली जाते ही मुस्कान दर्द के मारे उच्छल पड़ी... और उच्छलने से उसके चूतड़ राज की जांघों पर टिक गये.. उसने नीचे उतरने की कोशिश की पर राज ने उसको वहीं पकड़ कर कंबल वापस चूत पर ढक दिया... टफ सरिता की चूत में उंगली करके उसके अहसान का बदला चुका रहा था... पर उसका धन राज की गोद में बैठी मुस्कान पर ही था... पर ये दोनो जोड़े निसचिंत थे... कम से कम एक दूसरे से...
राज थोड़ा सा और सीट की एक तरफ सरक गया... अब मुस्कान बिल्कुल उसकी जांघों के बीच में राज के लंड पर चूतड़ टिकाए बैठी थी... राज ने पूरी उंगली उसकी चूत में धीरे धीरे करके उतार दी थी... सीट की उचाई ज़्यादा होने की वजह से अब भी बिना कोशिश किए कोई किसी को आगे पीच्चे नही देख पा रहा था....
मुस्कान ने राज को कस कर पकड़ लिया.. उंगली घुसने से मुस्कान को इतना मज़ा आया की वो अपने आप ही धीरे धीरे आगे पीच्चे होकर उंगली को चूत के अंदर की दीवारों से घिसने लगी... वो ज़्यादा टाइम ना टिकी... मुस्कान का रस बाहर आने का अंदाज़ा लगाकर राज ने वापस उसको सीट पर बिठा दिया... मुस्कान ने राज की उंगली को ज़ोर से पकड़ा और अपनी चूत के अंधार ढ़हाकेल कर पकड़ लिया... और अकड़ कर अपनी टाँगे सीधी कर ली... सीट गीली हो गयी...... मुस्कान ने उचक कर नेहा को बताना चाहा की उसने प्रॅक्टिकल करके देख लिया... पर नेहा तो पीछे कविता और निशा के साथ बैठी थी......... मुस्कान राज से लिपट गयी...और सर को थॅंक्स बोला.. राज ने उसके होंटो को अपने होंटो में दबा लिया.... कंबल में धक कर.....
शर्त की बात सुनकर पहले तो निशा हिचकी पर फिर बोली ,"बोलो क्या शर्त है..?"
नेहा कविता के दिमाग़ को पढ़ नही पाई," नही दीदी... प्लीज़ मत बताओ; किसी को पता चल गया तो?
कविता ने उसकी बात पर ध्यान ना देते हुए कहा," निशा! अगर तुम कोई अपना राज बता दो तो हम भी तुम्हे एक ऐसी बात बता सकती हैं, जिसको सुनकर तुम उच्छल पड़ोगी... हम तुझे टूर पर मज़े दिलवा सकती हैं... "
निशा को अपने भाई के साथ 2 दिन पहले मनाई गयी सुहग्रात याद आ गयी.. पर इश्स बात को तो वा किसी के साथ भी शेर नही कर सकती थी...," मेरी कोई बात नही है... हन में दिव्या और सरिता की एक बात बता सकती हूँ...?"
कविता चौकी...," दिव्या की बात? वो तो छ्होटी सी तो है...!... और सरिता की बात कौन नही जानता...!"
निशा ने और भी मज़े लेते हुए कहा," देख लो! मेरे पास इतनी छ्होटी लड़की की बात है... और वो भी एक ऐसे आदमी के साथ जो तुम सोच भी नही सकती.... !"
ठीक है बताओ, पर इसके बाद हम एक आर काम करवाएँगे अपनी बात बताने से पहले..!"
अब निशा को उनकी सुन-ने से ज़्यादा अपनी बात बताने पर ध्यान था..," मैने स्कूल में शमशेर को सरिता और दिव्या के साथ करते देखा था..."
"क्य्ाआ?" दोनो के मुँह से एकसाथ निकला... शमशेर के साथ ही तो वो अपनी बात बताने की सोच रही थी...!
"दिव्या के साथ भी?" कविता ने पूचछा.
निशा ने सच ही बता दिया..," नही! पर वो भी नंगी खड़ी थी सर के साथ..."
अब कविता और नेहा के पास बताने को इससे ज़्यादा कुच्छ नही था की शमशेर ने ही एक दोस्त के साथ मिलकर उनको खूब चोदा था... और वो दोस्त इसी बस में जा रहा था... उनके साथ... और इसका मतलब टूर में मौज करने का हथियार उनके साथ ही जा रहा था...
"अब बताओ भी!" निशा ने कविता को टोका.
"हम तुम्हारी कोई बात जाने बिना तुम्हे नही बता सकते... अब जैसे तूने सरिता की बात बता दी ऐसे ही हमारी भी किसी को बता सकती हो... पर हम तुम्हे बता सकते हैं... अगर तुम एक काम कर सको तो!" कविता ने कहा..
"क्या काम!" निशा ने सोचते हुए पूचछा...
"अगर तुम अपनी सलवार और पनटी को निकाल कर अपनी ये हमको दिख सको तो....." कविता ने सौदा निशा के सामने रखा....
"तुम पागल हो क्या? ये कैसे हो सकता है... और तुम्हे देखकर मिलेगा क्या... ?"
"मैं सिर्फ़ ये देखूँगी की तुम अभी तक कुँवारी हो या नही..." कविता ने निशा से कहा..
"तुम्हे कैसे पता लगेगा" निशा अचरज से बोली...
"वो तुम मुझ पर छ्चोड़ दो.. और तुम्हे भी सीखा दूँगी कैसे देखते हैं... कुँवारापन...!" कविता बोली...
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