RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल'स स्कूल --7
अंजली उसका ही इंतज़ार कर रही थी. शमशेर के अंदर आते ही उसने दरवाजा बंद कर दिया. उसने अजीब सा सवाल किया," शमशेर, तुम्हे में कैसी लगती हूँ?" शमशेर ने उसको खींच कर अपने से सटा लिया और उसके होंटो को चूम कर बोला,"सेक्सी!" अंजली: मैं मज़ाक नही कर रही; आइ'एम क्वाइट सीरीयस. बोलो ना! शमशेर रात से ही प्यासा था, उसने अंजलि को बाहों में उठा लिया और बेड पर ले जाकर पटक दिया. अंजलि कातिल निगाहों से उसको देखने लगी. शमशेर भी कुच्छ सोचकर ही आया था," मेरा तुम्हारे साथ नहाने की बड़ी इच्छा है. चलें! वो तो शमशेर की दीवानी थी; कैसे मना करती," एक शर्त है?" "बोलो!" "तुम मुझे नहलाओआगे!" उसकी शर्त में शमशेर का भी भला था. "चलो! यहीं से शुरुआत कर देता हूँ" कहकर शमशेर अंजलि के शरीर को एक एक कपड़ा उतार कर अनावृत करने लगा. अंजलि गरम हो गयी थी. नंगी होते ही उसने शमशेर को बेड पर नीचे गिरा लिया और तुरंत ही उसको भी नंगा कर दिया. वा उसके उपर जैसे गिर पड़ी और उसके होंटो पर अपनी मोहर लगाने लगी. शमशेर को रह रह कर दिशा याद आ रही थी. जैसे अगर उसको पता चलेगा तो वह बहुत नाराज़ होगी. "क्या बात है? मूड नही है क्या," अंजलि ने उसके होंटो को आज़ाद करते हुए कहा. शमशेर संभाल गया और पलट कर उसके उपर आ गया, उसने उसकी छति को दबा दिया....क्या दिशा को भी वा ऐसे छू पाएगा. अंजलि की सिसकी नकल गयी. उसने शमशेर का सिर अपनी चुचियों पर दबा दिया. शमशेर उस्स पल बाकी सबकुच्छ भूल गया. शमशेर उस्स पर भूखे शेर की तरह टूट पड़ा, और जिस्म को नोचने लगा, वा सच में ही बहुत सेक्सी थी. शमशेर उठा और अपना लंड उसको चखने के लिए पेश किया. अंजलि भी इश्स कुलफी को खाने की शौकीन हो चुकी थी. उसने झट से मुँह खोलकर अपनी चूत के यार को अपने गरम होंटो में क़ैद कर लिया. कमरे का टेम्परेचर बढ़ता जा रहा था. रह रह कर अंजलि के मुँह से जब उसका लंड बाहर लिकलता तो 'पंप' की आवाज़ होती. कुच्छ ही दिनों में ही वा ओरल सेक्स में परफेक्ट हो चुकी थी. अंजलि ने चूस चूस कर शमशेर के लंड को एकद्ूम चिकना कर दिया था; अपनी कसी चूत के लिए तैयार! शमशेर ने अंजलि को पलट दिया. और उसके 40" की गॅंड को मसालने लगा. उसने अंजलि को बीच से उपर किया और एक तकिये को वहाँ सेट कर दिया. अंजलि की गांद उपर उतह गयी.....उसकी दरार और खुल सी गयी.
अंजलि को जल्द ही समझ आ गया की आज शमशेर का इरादा ख़तरनाक है; वा गेंड के टाइट च्छेद पर अपना थूक लगा रहा था.... "प्लीज़ यहाँ नही!" अंजलि को डर लग रहा था... फिर कभी कर लेना...!" अभी नही तो कभी नही वाले अंदाज में शमशेर ने अपनी उंगली उसकी गांद में फँसा दी, ऐसा तो वो पहले भी उसको चोद्ते हुए कर चुका था! पर आज तो उसका इरादा असली औजार वहाँ उसे करने का लग रहा था. अंजलि को उंगली अंदर बाहर लेने में परेशानी हो रही थी. उसने अपनी गांद को और चौड़ा दिया ताकि कुच्छ राहत मिल सके. कुच्छ देर ऐसे ही करने के बाद शमशेर ने ड्रेसिंग टेबल के ड्रॉयर से कोल्ड क्रीम निकाल ली," इससे आसान हो जाएगा" जैसे ही कोल्ड क्रीम लगी हुई उसकी उंगली अंजलि की गांद की दरारों से गुज़री, अंजलि को चिकनाई और तहंडक का अहसास हुआ, ये अपेक्षाकृत अधिक सुखदायी था. करीब 2 मिनिट तक शमशेर उंगली से ही उसके 'दूसरे च्छेद' में ड्रिलिंग करता रहा, अब अंजलि को मज़ा आने लगा था. उसने अपनी गांद को थोड़ा और उँचा उठा लिया और रास्ते और आसान होते गये; फिर थोड़ा और....फिर थोडा और..... थोड़ी देर बाद वह कुतिया बन गयी.....! इश्स पोज़िशन में उसकी गॅंड की आँख सीधे छत को देख रही थी, उंगली निकालने पर भी वह थोड़ी देर खुली रहती थी. शमशेर ने ड्रिलर का साइज़ बढ़ा दिया; अब अंगूत्हा अपने काम पर लगा था. शमशेर झुका और अंजलि की चूत का दाना अपने होंटो में दबा लिया, वह तो 'हाइयी मर गयी' कह बैठी. मरी तो वा नही थी लेकिन शमशेर को पता था वा मरने ही वाली है. शमशेर घुटने मोड़ कर उसकी गांद पर झुक गया, टारगेट सेट किया और 'फिरे!'..... अंजलि चिहुनक पड़ी, पहले ही वार में निशाना शतीक बैठा था..... लंड आधा इधर.... आधा उधर.... अंजलि मुँह के बाल गिर पड़ी, लंड अब भी फँसा हुआ था.... करीब 3 इंच "बुसस्स्सस्स.... प्लीज़.... रुक... जाओ! और नही" अंजलि का ये कहना यूँही नही था... उसकी गांद फैल कर 4 इंच खुल चुकी थी...... 4 इंच! शमशेर ने सेयिम से काम लिया; उसकी छतिया दबाने लगा..... कमर पर किस करने लगा.... वग़ैरा वग़ैरा! अंजलि कुच्छ शांत हुई, पर वा बार बार कह रही थी," हिलना मत....हिलना मत!" शमशेर ने उसको धीरे से उपर उठाया.... धीरे.... धीरे और उसको वापस चार पैरों वाली बना दिया......कुतिया! शमशेर ने अपना लंड थोड़ा सा बाहर खींचा.... उसकी गांद के अन्द्रुनि हिस्से को थोड़ी राहत बक्शी और फिर जुलम ढा दिया... पूरा जुलम उसकी गांद में ही ढा दिया. अंजलि को काटो तो खून नही.... बदहवास शी होकर कुच्छ कुच्छ बोलने लगी, शायद बताना ज़रूरी नही! शमशेर ने काम चालू कर दिया.... कमरे का वातावरण अजीबोगरीब हो गया था. अंजलि कभी कुच्छ बोलती.... कभी कुच्छ. कभी शमशेर को कुत्ता कहती.... कभी कमीना कहती.... और फिर उसी को कहती.....आइ लव यू जान.... जैसे मज़ा देने वाला कोई और हो और सज़ा देने वाला कोई और. आख़िरकार अंजलि ने राहत की साँस ली.... उसका दर्द लगभग बंद हो गया.... अब तो लंड उसकी गंद में सटाक से जा रहा था और फटाक से आ रहा था.... फिर तो दोनों जैसे दूध में नहा रहे हो.... सारा वातावरण असभ्या हो गया था.... लगता ही नही था वो पढ़े लिखे हैं.... आज तो उन्होने मज़े लेने की हद तक मज़ा लिया..... मज़े देने की हद तक मज़ा दिया.... और आख़िर आते आते दोनों टूट चुके थे....... हाई राम!
अंजलि ने नंगी ही शमशेर के साथ स्नान किया. शमशेर ने अंजलि को खूब रगड़ा और अंजलि ने शमशेर को ... फिर दोनों अपना शरीर ढक कर बाहर सोफे पर बैठ गये. "डू यू लव मी जान?" अंजलि ने बैठते ही सवाल दागा. " तुम्हे कोई शक है?" "नही तो!" अंजलि ने उसकी गोद में सिर रख लिया," क्या तुम मुझसे शादी करोगे?" "नही!" शमशेर का जवाब बहुत कड़वा था. "क्यूँ?" अंजलि उठ कर बैठ गयी! शमशेर: क्या मैने कभी ऐसा कोई वाडा किया है? अंजलि: ना! शमशेर: तो ऐसा सवाल क्यूँ किया? अंजलि मायूस हो गयी " मैने तो इसीलिए पूचछा था..... चाचा का फोने आया था; मेरे लिए एक रिस्ता आया है" "कंग्रॅजुलेशन्स!" क्या करता है" शमशेर को जैसे कोई फ़र्क नही पड़ा. अंजलि: कुच्छ खास नही, उमर करीब 40 साल है. एक बच्ची है पहली बीवी से! और मुझे इतना ही पता है की वो पैसे वाला है... बस! शमशेर ने उसको बाहों में भर कर माथे पर चूम लिया..... उसे लगा शायद ये आखरी बार है.... राकेश के जाने के बाद, दिव्या बहुत बेचैन हो गयी... वो वोडेफोन की एड आती है ना टी.वी. पर; अब सबको बताओ सिर्फ़ 60 पैसे में; की मोटी की तरह ही उसका हाल था, सबको तो वो बता नही सकती, पर वाणी; वो तो उसकी बेस्ट फ्रेंड थी. दिव्या ने वाणी को ये खेल सिखाने की सोची और बिना देर किए उसके घर पहुँच गयी. "वाणी", घर जाकर उसने आवाज़ लगाई. "हां दिव्या, आ जाओ! मैं यही हूँ!" दिव्या की आवाज़ में हमेशा रहने वाली मिठास थी. दिव्या: अब चलें हमारे घर! वाणी: सॉरी दिव्या! सर के आने के बाद मुझे गाड़ी सीखने जाना है! मैं नही चल सकती. दिव्या: अच्च्छा एक बार बाहर आना! वाणी उसके साथ बाहर आ गयी," बोल!" दिव्या: तू चल ना प्लीज़. मुझे तुझे एक खेल सिखाना है. वाणी उत्सुक हो गयी. खेलने में उसको बहुत मज़ा आता था!," कैसा खेल!" दिव्या: नही, यहाँ नही बता सकती, अकेले में ही बता सकती हूँ! वाणी: तो चल उपर! उपर बता देना! दिव्या: उपर तो सर रहते हैं, वो आ गये तो? वाणी: नही, वो तो 5 बजे की कहकर गये हैं, अभी तो 2 ही बजे हैं! चल जल्दी चल! दोनों भागती हुई उपर चली गयी. उपर जाकर उन्होने दरवाजा बंद कर लिया, एक खिड़की खुली थी. दिव्या: ये भी बंद कर दे! वाणी: अरे इसकी कोई ज़रूरत नही है, कोई आएगा तो सीढ़ियों से ही दिख जाएगा; फिर ऐसा भी क्या खेल है जो तू इतना डर रही है. दिव्या: देख बुरा मत मानना, ये च्छूप कर खेलने का ही खेल है, पर मज़ा बहुत आता है. वाणी: ऐसा कौनसा खेल है? दिव्या: शादी के बाद वाला खेल! वाणी को पता ही नही था की शादी के बाद कोई खेल भी खेला जाता है. उसको किसी ने बताया ही नही आज तक! वो उत्सुक हो उठी, ऐसा खेल खेलने के लिए," चल जल्दी सीखा ना" दिव्या: देख वैसे तो ये खेल लड़के के साथ खेला जाता है पर..... वाणी ने बीच में ही टोक दिया," तो सर को आने दो!" दिव्या उसकी बात पर हँसी," धात! ऐसा फिर मत कहना.... पर में तुझ खेल सीखा सकती हूँ...." वाणी: तो सीखा ना, इतनी बातें क्यूँ कर रही है........ वाणी ने आँखें बंद कर ली; दिव्या ने राकेश की तरह से ही वाणी के पीच्चे जाकर उसकी मदभरी च्चातियों को हल्के से दबा दिया. वाणी उच्छल पड़ी," ये क्या कर रही है तू" हां, मज़ा तो उसको आया था; ये मज़ा तो वो ले चुकी थी सर के हाथो से! दिव्या: तू बस अब टोक मत, यही तो खेल है! वाणी हँसने लगी, उसके बदन में गुदगुदी सी होने लगी,"ठीक है" और उसने फिर आँखें बंद कर ली. दिव्या ने इश्स बार उसके टॉप में हाथ डाल दिया और उसको खेल का पहला भाग सिखाने लगी. वाणी मारे गुदगुदी के मरी जा रही थी. वह रह रह कर उच्छल पड़ती! उसको बहुत मज़ा आ रहा था; उसका चेहरा धीरे धीरे लाल होने लगा! अब दिव्या उसको छ्चोड़ कर बोली," अब तू इधर मुँह कर ले; तू मुझसे खेल और में तुझसे खेलूँगी." अब लेज़्बियेनिज़्म अपने चरम पर था. दोनों एक दूसरे की चुचियों को मसल रही थी. एक दूसरे के लबों से लब टकरा रही थी; दोनों ही मस्त हो चुकी थी, बीच बीच में दोनों सीढ़हियों की और भी देख लेती. वाणी: तू तो कह रही थी की ये खेल लड़के के साथ खेला जाता है; इसमें लड़के की क्या ज़रूरत है.... वो साथ साथ 'खेल' भी रही थी. दिव्या: पहला भाग तो चल जाता है, पर दूसरा भाग लड़के के बिना नही हो सकता. वाणी: वो कैसे? दिव्या: चल बताती हूँ; बेड पर लेट जा...... और वाणी लेट गयी..! दिव्या ने वाणी का स्कर्ट उपर उठा दिया और उसकी कछि को नीचे कर दिया.... वाणी को अजीब सा लग रहा था पर वो ये खेल पूरा खेलना चाहती थी.... दिव्या वाणी की चूत देखकर जल सी गयी; उसकी क्यूँ नही है ऐसी......वैसी तो शायद दुनिया में किसी की नही थी. दिव्या ने वाणी की चूत पर अपने होंट सटा दिए ...वाणी भभक उठी.... उसको कल रात की याद ताज़ा हो गयी जब वो....... सर की 'टाँग' पर बैठी थी... वाणी की आँखों में मस्ती भरती जा रही थी.... उसने मस्त अंदाज में पूचछा....," तूने कहाँ सीखा री ये खेल!" "सरपंच के लड़के से!" "राकेश से" वाणी बहकति जा रही थी" "हां वो आज 4 बजे फिर आएगा....तुझे भी खेलना है क्या पूरा खेल? चलना मेरे साथ.....3:30 बजे चलेंगे....घर पर कोई नही है... रात को आएँगे! हां मुझे भी खेलना है पूरा खेल मैं भी चालूंगी तेरे साथ......." टू बी कंटिन्यूड....
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