RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
उसकी आँखें बंद सी होने लगी. उसके सारे शरीर में हलचल शुरू हो गयी; जांघों के बीच भी गुडगुसी सी हो रही थी. उसको वश में आता देख राकेश आगे आ गया. उसके होंट चूसने लगा और उसके कमीज़ में अपना हाथ घुसा दिया. अब उसकी चुचियों और राकेश के हाथों के बीच कोई परदा ना था. दिव्या पर जवानी का नशा हावी होता जा रही था. वा आँखें बंद किए किए ही खाट पर बैठ गयी उसके मुँह से अजीब से आँहें निकल रही थी. राकेश ने उसको हाथ का हूल्का सा इशारा दिया और वो चारपाई पर पसर गयी. उसको नही पता था उसकी सहेलिया जिसे गंदी बात कहती है. उसमें दुनिया भर का मज़ा है. "राकेशह!" "क्या?" राकेश उसका कमीज़ उतहकर उसकी चुचियों को बता रहा था की ये सिर्फ़ दूध पिलाने के लिए नही बल्कि चूसने के काम भी आती हैं. दिव्या: बहुत मज़ा आ रहा है राकेश! आहह....ये तो बहुत अच्च्छा खेल है. राकेश ने उसका अधमरा सा करके छ्चोड़ दिया. वह उससे अलग हो गया! " और करो ना प्ल्स, थोड़ी देर और" मानो दिव्या उससे भीख माँग रही थी! राकेश: नही ये खेल तो यहीं तक है. अब इसका दूसरा हिस्सा शुरू होगा.... वह अपने पॅंट में छिपे लंड को मसल रहा था. दिव्या: नही, मुझे यही खेलना है! इसमें मज़ा आता है. राकेश: अरे वो खेलकर तो तुम इसको भूल ही जाओगी. राकेश समझ गया था की अब दिल्ली दूर नही है. दिव्या: अच्च्छा! तो खेलो फिर....... राकेश जानता था; दिव्या उँच्छुई कली है, खेल के अगले भाग में उसको दर्द भी होगा. आँसू भी निकलेंगे...और वो चिल्लाएगी भी," दिव्या, अगला खेल बड़ा मजेदार है. पर वो थोड़ा सा मुश्किल है" "कैसे?" वो और मज़ा लेने को व्याकुल थी. वो समझ नही पा रही थी की जो मज़ा अभी तक के खेल में उसको आया था, उससे ज़्यादा मज़ा... कितना होता होगा! राकेश: अब मैं तुम्हे एक कुर्सी से बाँध दूँगा. तुम्हारा मुँह भी कपड़े से बाँध दूँगा! फिर शुरू होगा आगे खेल! दिव्या: नही तुम चीटिंग करोगे, मुझे कुर्सी से बाँध कर भाग जाओगे.....हालाँकि वो ऐसा करने को तैयार थी. राकेश: मैं पागल हूँ क्या, मुझे ऐसा करना होता तो मैं पहले यही खेल खेलने को कहता. टाइम बर्बाद क्यूँ करता.... दिव्या: हूंम्म! ओके...! राकेश ने दीवार के साथ एक कुर्सी सटाई और उस्स पर दिव्या को इश्स तरह बैठा दिया जिससे उसके चूतड़ कुर्सी से थोड़ा बाहर निकले थे. उसके पैरो को उसने कुर्सी के हत्थो के उपर से ले जाकर बाहर की और बाँध दिए. इश्स पोज़िशन में वो तंग हो गयी. दिव्या: पैरो को आगे ही एक साथ करके नही बाँध सकते क्या? राकेश: नही, ये खेल का रूल है! दिव्या अपनी गॅंड को हिलाकर अड्जस्ट करने की कॉसिश करती हुई बोली," अच्च्छा ठीक है! अब जल्दी सिख़ाओ, मुझे दर्द हो रहा है. राकेश मंन ही मंन मुस्कुराया, सोचा ये इसी को दर्द कह रही है तो आगे क्या होगा. उसने दिव्या के मुँह पर कपड़ा बाँध दिया. अब वो बोल नही सकती थी; ज़्यादा हिल नही सकती थी... अब राकेश ने देर नही की. वा दिव्या की सलवार खोलने लगा. दिव्या ने कुच्छ बोलने की कोशिश करी, उसको शर्म आ रही थी.... राकेश ने दिव्या की सलवार का नाडा खोलकर उसके पीच्चे हाथ लेजकर सलवार को नी चे से आगे की और खींच लिया, उसके अंडरवेर समेत... और सलवार को उपर घुटनों तक उठा दिया. पैर बँधे होने की वजह से वो पूरी नही निकल सका. दिव्या कसमसा रही थी; राकेश के सामने उसकी नंगी चूत थी.... पर वो तो हिल भी ना सकती थी, बोल भी ना सकती थी, उसने ज़्यादा कोशिश भी नही की, उसने शर्म से आँखे बंद कर ली. राकेश नीचे बैठा और उसकी गांद को जितना आगे कर सकता था कर दिया. उसने अपने होंट उसकी सलवार के नीचे से ले जाकर चूत से सटा दिए. दिव्या सकपका गयी. उसकी आँखें मारे उत्तेजना के बंद हो गयी. असीम आनंद का अनुभव हो रहा था. उसने सोचा; राकेश सही कह रहा था. इसमें तो और भी मज़ा है, लेकिन पैर बाँधने की क्या ज़रूरत थी! अब राकेश जैसे उसकी चूत को चूस नही खा रहा था, कभी उपर, कभी नीचे, कभी ये फाँक, कभी वो फाँक; कभी दाना तो कभी च्छेद. दिव्या बुरी तरह छटपटा रही थी. हाए, इतना मज़ा दे दिया. उसकी चुचियों में कसमसाहट सी हो रही थी. इनको क्यूँ खाली छ्चोड़ रखा है, उसका दिल किया वा राकेश को अपने उपर खींच ले; पर उसके तो हाथ भी बँधे हुए थे. अब दिव्या की टाँगों का दर्द जाता रहा! अचानक उसको मिलने वाला मज़ा बंद हो गया था. उसने आँखे खोली, राकेश अपनी पॅंट उतार रहा था. राकेश ने अपनी पॅंट और अंडरवेर उतार कर ज़मीन पर फेंक दी, दिव्या की आँखें फटी की फटी रह गयी. इसका इतना लंबा कैसे है! अब ये इसका क्या करेगा.. जल्द ही उसको इसका जवाब मिल गया. राकेश अब ज़्यादा टाइम लगाने के मूड में नही था. उसने कुर्सी के हत्थे पर अपना एक हाथ रखा और दूसरे से अपने 6 इंची को उसकी गीली हो चुकी चूत से सटा दिया. दिव्या डर गयी! ये तो शादी के बाद वाला खेल है, उसकी दीदी ने बताया था; जब पहली बार उसके पति ने इसमें घुसाया था तो उसकी जान ही निकल गयी. वह जितना हिल सकती थी, उतना हिल कर अपना विरोध जताने लगी. "बट इन वान्ट"
राकेश ने अपने लंड का दबाव उसकी चूत पर दबाया पर वो खुलने का नाम ही नही ले रही थी. दिव्या की चीख उसके मुँह में ही दबकर रह जाती थी. राकेश भी नादान नही था. वो किचन से मक्खन उठा लाया. अपनी उंगली से दिव्या की चूत में ही मुट्ठी भर मक्खन ठुस दिया, दिशा की चूत से सीटी जैसी आवाज़ आने लगी, ये सिग्नल था की अब की बार काम हो जाएगा. राकेश ने अपने लंड पर भी मक्खन चुपडा और टारगेट को देखने लगा. उसने दिव्या की चीखों की परवाह ना करते हुए अपने औज़ार का सारा दम उसकी चूत के मुहाने पर लगा दिया!....सॅटटॅक और सूपड़ा अंदर. उसने दिव्या की जांघों को अपने हाथों से दबा कर एक बार और हुंकार भारी, दिव्या बेहोश सी हो गयी. उसने इतने गंदे लड़के की बात पर विस्वास करके अपनी मौत बुला ली. दर्द को कम तो होना ही था सो हुआ, दिव्या को धीरे धीरे मज़ा आना ही था सो आने लगा. अब उसकी आँखों से पानी सूख गया और उनमें आनंद की चमक आ गयी. वह अपने आपे में नही रही, कहना चाहती थी मुझे खोल दो और खुल कर खेलो ये खेल. पर वो तो बोल ही नही सकती थी, वो तो खेल ही नही सकती थी.... वो तो बस एक खिलौना थी; राकेश के हाथों का.... राकेश उसको चोद्ता ही चला गया.... उसने ये भी परवाह ना की दिव्या की मछ्लि घायल है; खून फाँक रही है.... मक्खन में लिपटा हुआ.... अचानक राकेश का काम होने को आ गया और उसने ज़ोर की दहाड़ लगाई.... वह शिकार में कामयाब जो हो गया था, लंड निकाल कर उसकी गोद में गिर पड़ा.... दिव्या का तो पता ही नही कितनी बार उसकी योनि ने रस उगला..... खून में लिपटा हुआ.... खैर राकेश ने दिव्या को खोल दिया. दिव्या खून देखकर एक बार तो डरी, फिर उसको दीदी की बात याद आ गयी....पहली बार तो आता ही है. जब दोनो नॉर्मल हो गये तो राकेश ने कहा," मज़ा आया मेरी जान" दिव्या: हां पर तुमने चीटिंग की,.... मुझे आइन्दा कभी बांधना मत!
...दिशा सर के लिए दूध लेकर गयी. शमशेर बस नाहकार ही निकला था. दिशा उसको बहुत कुच्छ कहना चाहती थी पर पता नही क्यूँ, उसके सामने जाते ही जैसे उसके होंट सील जाते थे; वह शमशेर के जिस्म पर नही बल्कि उसकी पर्सनॅलिटी पर मरती थी. रात की बात को याद करके वह बार बार खुश हो जाती थी, उसको पता था की सर के सपने में वो आई थी..... पर वो ये नही समझ पा रही थी की सर बार बार उसका नाम लेकर माफी क्यूँ माँग रहे थे.... जो भी था सर का सपना तो डरावना ही था.... वरना वो पसीने में क्यूँ भीगे होते! उसने दूध का मग टेबल पर रख दिया और झाड़ू लेकर वहाँ सफाई करने लगी. शमशेर: रहने दो, मैं कर लूँगा! दिशा: आ..आप कैसे करेंगे सर!... वो बड़ी हिम्मत करके बोल पाई. शमशेर: करनी ही पड़ेगी... और कौन करेगा? दिशा: मैं कर तो रही हूँ! शमशेर: तुम कब तक करोगी? दिशा के दिल में आया कहदे सारी उमर; पर लबों ने साथ नही दिया," सर! आप शादी क्यूँ नही करते? शमशेर: कोई मिलती ही नही..... शमशेर आगे कहने वाला था....'तुम्हारे जैसी' पर उन्न खास शब्दों को वो दूध के साथ पी गया! दिशा: आपको कैसी लड़की चाहिए.... ? अब की बार उसने 'सर' नही लगाया. शमशेर को शीधे बोलते हुए उसको बड़ा आनंद आया. तभी शमशेर का सेल बज गया; अंजलि का फोन था. 'हेलो' उधर से आवाज़ आई,"शमशेर!" "हां!" "तुम मेरे पास अभी आ जाओ", बहुत खास बात करनी है." शमशेर ने दिशा की और देखा,"क्या खास बात है भला? "तुम आओ तो सही; आ रहे हो ना" "हां" कहकर उसने फोन काट दिया. उसने जल्दी से कपड़े बदले और नीचे उतर गया. नीचे जैसे वाणी उसका ही इंतज़ार कर रही थी," सर, आपने मुझे प्रोमिसे किया था की मुझे गाड़ी चलाना सिखाएँगे. आज सनडे है; चलें..." शमशेर: आज नही वाणी, फिर कभी...! वाणी: प्लीज़ सर, चलिए ना. शमशेर: वाणी, अभी मुझे काम है, शाम को देखते हैं! ओक; बाइ वाणी मायूस होकर सर को जाते देखती रही...... टू बी कंटिन्यूड....
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