RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल'स स्कूल --6
"सर, कोई बुरा सपना आया था क्या?", वाणी ने मासूमियत से पुचछा. वो और दिशा शमशेर को ध्यान से देख रही थी. शमशेर ने वाणी की जाँघ पर थपकी लगाई,"हां वाणी! बहुत बुरा सपना आया था"शमशेर संभाल चुका था. दिशा शमशेर के लिए पानी ले आई," लीजिए सर! पानी पीने से बुरे सपने नही आते!" वाणी शमशेर के और नज़दीक आ गयी," क्या सपना आया था सर!?" शमशेर ने कहानी बनाते हुए कहा," एक राक्षस का सपना था! आजकल वो मुझे बहुत डरा रहा है." "पर सर! आप तो दीदी का नाम ले रहे थे!" शमशेर परेशान हो गया, कहीं सारा सपना उसने लाइव टेलएकास्ट ना कर दिया हो!,"क्या कह रहा था मैं" वाणी: आप कह रहे तहे, दिशा मुझे माफ़ कर दो; मैं और सहन नही कर सकता. दिशा मुझे छ्चोड़ दो; वग़ैरा वग़ैरा...." शमशेर: तो राक्षश इसके रूप में आया होगा. चलो सो जाओ. अभी रात बाकी है." वाणी: सर, पहले सपना सुनाए ना! शमशेर: देखो वाणी अच्च्चे बच्चे ज़िद नही करते सो जाओ! कहकर वा बाथरूम में गया और अपना अंडरवेर चेंज करके आया. उसके आने के बाद वाणी ने उसकी जॅफी भरी और अपनी टाँग शमशेर के पेट पर रखकर सो गयी. मामला ख़तम जान कर दिशा भी सोने चली गयी. करीब एक घंटा बीट जाने के बाद भी शमशेर की आँखों में नींद नही थी. सच में ही बुरा सपना था ये. जिस रूप में दिशा उसके सपने में आई थी, अगर वो सच्चाई होती तो उसको वाकई बुरा लगता. सपने में तो दिशा ने बेशर्मी की हद ही तोड़ दी थी. खैर दिशा के लिए उसका खुमार बढ़ता ही जा रहा था. वैसे लड़कियों की उसकी कमज़ोरी को छ्चोड़ दें तो वा निहायत ही सुलझा हुआ और दिल का सॉफ आदमी था. बढ़ती ठंड के कारण वाणी उससे और ज़्यादा चिपकती जा रही थी. शमशेर के मॅन में खुरापात घर करने लगी, वह जानता था की वाणी अंजाने में ही सही; उसके हाथों सेक्स का मज़ा ले चुकी है. वह पलटा और अपना मुँह वाणी की तरफ कर लिया.
वाणी गहरी नींद में थी. वाणी की छति उसके हाथ से सटी हुई थी. उसने वाणी पर अपने शरीर का हल्का सा दबाव डालकर उसको सीधा कर दिया. शमशेर ने वाणी की छति के उपर हाथ रख दिया. उसकी चुचियाँ उसके सांसो के साथ ताल मिला कर उपर नीचे हो रही थी. उसके होंट और गाल कितने प्यारे थे! और एक दम पवित्र. शमशेर ने वाणी के होंटो को च्छुआ. मक्खन जैसे मुलायम थे.... शमशेर ने आहिस्ता आहिस्ता उसके टॉप में हाथ डाल कर उसके पेट पर रख लिया. इतना चिकना और सेक्सी पेट आज तक शमशेर ने नही च्छुआ था. शमशेर ने हाथ थोड़ा और उपर किया और उसकी उँच्छुई गोलाइयों की जड़ तक पहुँच गया. उसने उसी पोज़िशन में हाथ इधर उधर हिलाया; कोई हरकत नही हुई, वह हाथ को उसकी बाई चूची पर इश्स तरह से रख दिया जिससे वो पूरी तरह धक गयी. उसने उन्हे महसूस किया, एक बड़े अमरूद के आकर में उनका अहसास असीम सुखदायी था. शमशेर का जी चाहा उन मस्तियों को अभी अपने हाथों से निचोड़ कर उनका सारा रस निकाल ले और पीकर अमर हो जाए. पर वाणी के जागने का डर था. उसने वाणी के निप्पल को च्छुआ, छोटे से अनार के दाने जितना था. हाए; काश! वो नंगी होती और वा उन्हे देख पाता. इश्स ख़याल से ही उसको ध्यान आया की वाणी तो नीचे से नंगी है..... उसने नीचे की और देखा, वाणी का स्कर्ट उसके घुटनों तक था. शमशेर ने उसको उपर उठा दिया पर नीचे से दबा होने की वजह से वो उसकी जांघों तक ही आ पाया. शमशेर ने वाणी को वापस अपनी तरफ पलट लिया. वाणी ने नींद में ही उसके गले में हाथ डाल लिया. वाणी की होंट उसकी गालों को छ्छू रहे थे. शमशेर ने दिशा के कमरे की और देखा, वहाँ से दिशा के पैर और उसकी गंद तक का हिस्सा ही दिख रहे थे. निसचिंत होकर शमशेर ने वाणी के स्कर्ट को पिच्चे से भी उठा दिया. वाणी की चिकनी सफेद जाँघ और गोल कसे हुए चूतड़ देख कर शमशेर धन्य हो गया. उसके चूतदों के बीच की दरार इतनी सफाई से तराशि गयी थी की उसमें कमी ढ़हूँढना भगवान को गाली देने के समान था. शमशेर कुच्छ पल के लिए तो सबकुच्छ भूल सा गया. एकटक उसके चूतदों की बनावट और रंगत को देखता रहा. फिर उसने उनपर हाथ रख दिया; एकद्ूम ठंडे और लाजवाब! वह धीरे धीरे उनपर हाथ फिराने लगा. शमशेर ने उसके चूतदों की दरार में उंगली फिराई; कही कोई रुकावट नही. शमशेर का लंड अब तक अपना फन उठा चुका था; डसने के लिए. उसने वाणी के चेहरे की और देखा, वा अपनी ही मस्ती में सो रही थी. शमशेर ने उसको फिर से पहले वाले तरीके से सीधा लिटा दिया. उसकी टाँगें फैली हुई थी; स्कर्ट जांघों तक थी, मोक्षद्वार से थोड़ा नीचे तक. स्कर्ट उपर करते वक़्त शमशेर के हाथ काँप रहे थे. आज से पहले ऐसा शानदार अनुभव उसका कभी नही रहा...... शायद किसी का भी ना रहा हो...... स्कर्ट उपर करते ही शमशेर के लंड को जैसे 440 वॉल्ट का झटका लगा. शमशेर का दिमाग़ ठनॅक गया, ऐसी लाजवाब चूत... नही! उसको चूत कहना ग़लत होगा. वो तो एक बंद कमाल की पंखुड़ीयान थी; नही नही! वो तो एक बंद सीप थी, जिसका मोती उसके अंदर ही सोया हुआ है. शमशेर का दिल उसकी छति से बाहर आने ही वाला था. क्या वो मोती मेरे लिए है! शमशेर ने सिर्फ़ उसका जिस्म देखने भर की सोची थी, लेकिन देखने के बाद वा उस्स मोती को पाने के लिए तड़प उठा. उस्स सीप की बनावट इश्स तरह की थी की सेक्सपेर को तो क्या, सर शेक्स्पियर को भी शायद शब्द ना मिले. नही मैं एक्सप्लेन नही कर सकता. उस्स अमूल्या खजाने को तो सिर्फ़ महसूस ही किया जा सकता है; और वो...शमशेर कर ही रहा था. शमशेर ने उसकी जांघों के बीच भंवर को देखते ही उसको चोदने की ठान ली.... और वो भी आज ही....आज नही; अभी. उसने वाणी की सीप पर हाथ रख दिया. पूरा! जैसे उस्स खजाने को दुनिया से च्छुपाना चाहता हो. उसको खुद की किस्मत और इश्स किस्मत से मिलने वाली अमानत पर यकीन नही हो रहा था. उसने बड़े प्यार से, बड़ी नाज़ूक्ता से वाणी की सीप की दरार में उंगली चलाई, वाणी कसमसा उठी! अचेतन मॅन भी उस्स खास स्थान के लिए चौकस था; कही कोई लूट ना ले! शमशेर ने अपना हाथ तुरंत हटा लिया. वाणी के चेहरे की और देखा, वह तो सोई हुई थी. फिर से उसकी नज़र अपनी किस्मत पर टिक गयी. शमशेर ने अपने शरीर से वाणी को इश्स कदर धक लिया की उस्स पर बोझ भी ना पड़े और अगर वो जाग भी जाए तो उसको लगे सर का हाथ नींद में ही चला गया होगा. इश्स तरह तैयार होकर उसने फिर कोशिश की....वाणी का मोती ढूँढने की, उसकी दरार में उंगली चलाते हुए उसको वो स्थान मिल गया जहाँ उसको अपनाखूट गाढ़ना था. ये तो बिल्कुल टाइट था, इसमें तो पेन्सिल भी शायद ना आ सके! शमशेर को पता था आने पर तो इसमें से बच्चा भी निकल जाता है... पर वो उसको दर्द नही दे सकता था. बदहवास हो चुके शमशेर ने अपनी छ्होटी उंगली का दबाव उसके च्छेद पर हल्का सा बढ़ाया; पर उस्स हल्के से दबाव ने ही वाणी को सचेत सा कर दिया. वाणी का हाथ एकद्ूम उसी स्थान पर आकर रुका और वो वहाँ खुजलाने लगी. फिर अचानक वो पलटी और शमशेर के साथ चिपक गयी. शमशेर समझ गया 'असंभव है' ऐसे तो बिल्कुल कुच्छ नही हो सकता. मायूस होकर उसने वाणी का स्कर्ट नीचे कर दिया और उसके साथ उपर से नीचे तक चिपक कर सो गया..................
अगली सुबह करीब 6 बजे दिव्या, वाणी की क्लासमेट उसके घर आई. दिशा घर में सफाई कर रही थी. उसके मामा मामी सूरज निकलने से पहले ही खेत चले गये थे. "दीदी! वाणी कहा है?", दिव्या ने दिशा से पूचछा. दिशा: उपर सो रही है, सनडे को वो कहाँ जल्दी उठहति है! दिव्या उपर चली गयी. उपर जाते ही वा सर को कसरत करते देख शमा गयी," ससर्र! गुड मॉर्निंग, सर!" "गुड मॉर्निंग दिव्या!", शमशेर ने मुस्कुरा कर कहा. पसीने की बूंदे उसके ताकतवर जिस्म पर सोने जैसी लग रही थी! दिव्या: सर! वाणी कहा है? शमशेर: वो रही! कमरे की और इसरा करते हुए उसने कहा. दिव्या ने वाणी को उठाया," वाणी! चल; मेरे घर पर! मैं अकेली हूँ. घर वाले शहर गये हैं. हम वहीं खेलेंगे! वाणी ने जैसे ही शमशेर को पसीना बहाते देखा, वो दिव्या की बात को उनसुना कर बाहर भाग आई," सर आप पहलवानी करते हैं?" शमशेर: नही तो! वाणी: फिर...! ये सब तो पहलवान करते हैं ना! शमशेर हँसने लगा, बिना कुच्छ कहे ही वा उठा और अंदर चला गया. दिव्या: आ वाणी; चल ना मेरे घर. वाणी ने भोलेपन से कहा," नआईईई, मुझे तो अभी स्कूल का काम भी करना है. मैं दोपहर बाद आ जवँगी; ओके!" दिव्या उससे दोपहर बाद आने का प्रोमिसे लेकर चली गयी....... दिव्या, वाणी की बेस्ट फ्रेंड; उसी की उमर की थी. उसका बदन भी गदराया हुआ था. चेहरे से गाँव का अल्हाड़पन भोलापन साफ झलकता था. उसका घर सरपंच की हवेली से सटा हुआ था....छत से छत मिलती थी. सरपंच का बिगड़ा हुआ बेटा; छत से दिव्या को अकेला देखकर कूद आया! जाहिर है उसकी नियत ठीक नही थी...! "राकेश तुम छत से कूदकर क्यूँ आए हो!", दिव्या उसकी आँखों में छिपि वासना को नही समझ पाई. राकेश करीब 21 साल का नौजवान लड़का तहा. एक तो उसका खून ही खराब था; दूसरे उसके बाप की गाँव में तूती बोलती थी; फिर बिगड़ता कैसे नही," दिव्या में तुझे एक खेल सिखाने आया हूं. खेलेगी!" "नही, मुझे अभी पढ़ना है; शाम को वाणी आएगी तो मैं उसके साथ खेलूँगी, तब आ जाना" राकेश: सोच ले इतना मस्त खेल है की हमेशा याद रखेगी. इश्स खेल को सिर्फ़ दो ही खेल सकते हैं. फिर मत कहना की सिखाया नही. मैने सरिता को भी सीखा दिया है. दिव्या: ठीक है 5 मिनिट में सीखा दो! राकेश ने झट से अंदर आकर दरवाजा बंद कर दिया! दिव्या: तुम ये दरवाजा क्यूँ बंद कर रहे हो! राकेश: क्यूंकी ये खेल अंधेरे में खेला जाता है,पागल! दिव्या: अच्च्छा! .....वो खेल सीखने के लिए उत्सुक हो उठी. राकेश: अब तुम आँखे बंद कर लो, देखो आँखे नही खोलना. दिव्या: ठीक है!... और उसने आँखें बंद कर ली. राकेश ने उसके गालों की पप्पी ले ली... दिव्या ने आँखें खोल दी,"छ्हीईइ! बेशर्म, ये कोई खेल है?" राकेश: अरे खेल तो अब शुरू होगा, बस तुम आँखें नही खॉलॉगी! दिव्या ने अनमने मंन से आँखें बंद कर ली. राकेश ने पिछे से जाकर उसकी दोनों अधपकी चुचियाँ पकड़ ली.. दिव्या: हटो राकेश, ये तो गंदी बात है. तुम यहाँ हाथ मत लगाओ!..... उसके दिल में एक लहर सी उठी थी. राकेश उसकी छतियोन को मसलता रहा. दिव्या ने छुड़ाने की कोशिश की पर उसका विरोध लगातार कम होता गया.
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