RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
दिशा ने धीरे से वाणी को झिड़का, "चलती है या दू एक कान पे.." कहकर वो वाणी को ख्हीचने की कोशिश करने लगी. वाणी शमशेर के उपर गिर पड़ी और उसे कसकर पकड़ लिया." ताकि दिशा उसको खीच ना सके.
वाणी की चुचियाँ शमशेर की छति पर लगकर टेन्निस बॉल की तरह पिचाक गयी. शमशेर को जैसे भगवान मिल गया हो.
दिशा की हालत अजीब हो गयी, क्या करे? सर जाग गये तो तमाशा होगा.
उसने वाणी के कान में कहा, तुझे सर की बहुत अच्छि बात बतानी है, जल्दी आ!"
"सच" सर की तो वो फॅन थी! रूको मैं सर को उठा दूं. वाणी फिर से सर के लगभग उपर लेटी और ज़ोर से कान में कहा," सर जी!"
आज वाणी ने दिशा को ये दिखाने के लिए की वो सच कह रही थी की सर को कुंभकारण की तरह उठाना पड़ता है; बहुत ज़ोर से चीखी. शमशेर को लगा उसके कान का परदा फ़ान्ट जाएगा. वा एक दम चौंक पड़ा, फिर उठ बैठा.
सर के उठने का ये तरीका देखकर दिशा खुद को खिलखिलाकर हँसने से ना रोक पाई.
उसकी मधुर हँसी पर शमशेर फिदा हो गया. पहली बार उसने दिशा को इश्स तरह हंसते देखा था. सर को अपनी और एकटक देखता पाकर वा शर्मा गयी.
" सर, मैं वो वाणी को उठाने आई थी. दिशा के चेहरे पर अब भी मुस्कान थी.
शमशेर: और मुझे किसने उठाया.
वाणी: मैने सर जी, और वो शमशेर के गले से लिपट गयी.
दिशा सोच रही थी की कास कम से कम एक बार वो भी ऐसे ही सर से लिपट सके.
शमशेर ने प्यार भारी पप्पी वाणी के गालों पर दी और बोला "जाओ वाणी!" और मेरे लिए तुम ही चाय लेकर आना.
शमशेर का मूड तननाया हुआ था वह अंजलि के पहलू में जाने का रात तक का वेट नही कर सकता था. उसने कपड़े बदले और अंजलि के पास पहुँच गया.
उधर दिशा वाणी को नीचे ले गयी. वाणी ने कहा "दीदी उपर कितनी ठंड थी. इतनी मीठी नींद आई की बस पुछो ही मत. मैं तो रात को वहीं सोऊ गी""तू पागल है क्या?" "देख मामा मामी को बिल्कुल पता नही चलना चाहिए की तू उपर सो गयी थी. वरना वो हमें कभी उपर नही जाने देंगे" दिशा ने उसको समझाते हुए कहा.
"क्यूँ दीदी?" वाणी ने अचरज से पूचछा.
"देख मैं तुझे डीटेल में तो बता नही सकती. लेकिन इतना समझ ले की बड़ी होने पर लड़की को अपना ख्याल रखना चाहिए. लड़कों के साथअकेले नही रहना चाहिए" दिशा ने कहा.
वाणी: पर तुम तो हमेशा कहती हो की अभी मैं छ्होटी हूँ. तो मैं बड़ी कैसे हुई.
दिशा: हां वैसे तो तुम छ्होटी हो पर... दिशा को समझ नही आ रहा था वो वाणी को कैसे बताए की वो किस लिहाज से बड़ी हो गयी है." बस तू इतना समझ ले की मैं हम दोनों के भले के लिए कह रही हूँ"
वाणी के मॅन में अपराध बोध आ गया," तो दीदी मैने कुच्छ ग़लत कर दिया" वा रॉनी सूरत बनाकर बोली.
दिशा: नही वाणी, तूने कुच्छ ग़लत नही किया. बस इतना समझ ले घर वालों को बाहर के लड़कों के साथ हमारा रहना बुरा लगेगा.
वाणी: लेकिन दीदी! सर कौनसा बाहर के हैं, वो तो अपने हैं ना!
दिशा ने वाणी को अपनी छति से चिपका लिया. शमशेर का चेहरा उसके सामने घूम गया," हां च्छुटकी, सर तो अपने ही हैं." उसकी आँखों से आँसू टपक पड़े.
शमशेर के आने के बाद दिशा में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ आ गया था. लड़के रूपी मक्खियों को अपनी नाक पर ना बैठने देने वाली दिशा आज शमशेर की दासी हो चली थी. उसके भी मॅन में था की वो शमशेर को वाणी की तरह ही सिने से चिपका ले. दिनों दिन उसका खुमार बढ़ता ही जा रहा था. उसको अब भी ये महसूस होता था कि सर उससे नाराज़ हैं और उसको गुस्सैल लड़की समझते हैं. इसीलिए तो मुझसे इश्स तरह बात नही करते जैसे औरों से करते हैं. उसको क्या मालूम था शमशेर भी उसी की माला जप रहा है आजकल.
निर्मला के आने के बाद जब वाणी सर को. चाय देने गयी तो सर वहाँ नही मिले. वाणी का भी सर के बगैर दिल नही लगता था. पर जिस बात को उसको मम्मी पापा से च्छुपाना था, वही बात उसके मॅन में बैठ गयी. वा जान-ना चाहती थी की ऐसा क्यूँ है कि बाहर के लड़कों के पास नही जाना चाहिए. पर किसी ने उसको नही बताया. ये तो मानव का स्वाभाव है की जिस बात से उसको रोका जाए, वही करने में उसको आनंद मिलता है.
रात को करीब 7:00 बजे शमशेर वापस आया. अंजलि की तो वा खुजली मिटा कर आया था पर उसकी भूख बढ़ती ही जा रही थी. रोटियों की भूख मिठाई खाने से कम नही होती. वो तो अब दिशा का भूखा था. थोड़ी देर नीचे मामा मामी के साथ बैठकर वा उपर चला गया. वाणी भी साथ ही चली गयी. उसके मम्मी पापा को अब किसी बात की चिंता नही थी. शमशेर की तरफ से तो वो दिशा का लिए भी निश्चिंत थे. दिशा शायद इसीलिए घबराती थी क्यूंकी उसके मॅन में चोर था...प्यार का चोर.....शमशेर!
नीचे से जब वाणी को खाने के लिए आवाज़ आई तो शमशेर ने कहा जा वाणी मेरी रोटी उपर ही भेज देना और तू जाकर पढ़ाई कर ले.
वाणी: नही! आज में पढ़ूंगी नही; कल सनडे है, खूब सोऊगी!
शमसेर: ठीक है सो जाना; पहले मेरा खाना तो दे जा.
वाणी: ओके सर!
वाणी ने नीचे जाकर कहा,"सर खाना उपर मॅंगा रहे हैं! उनकी तबीयत खराब है."
निर्मला: वाणी तू खाना खा ले! जा बेटी दिशा! तू सर को खाना दे आ.
दिशा: ठीक है मामी जी, और वो खाना लेकर उपर चली गयी.
"सर, मे आइ कम इन?"
शमशेर कपड़े बदलने की तैयारी में था. उसके शरीर पर पॅंट के अलावा कुच्छ नही था. दिशा की आवाज़ सुनकर उसने कहा," आ जाओ! अपना ही घर है."
दिशा अंदर घुसी तो थोड़ी सकुचा गयी, शमशेर को ऐसे देखकर, उसका कसरती बदन उसको लुभा रहा था.
वह खाना रखकर जाने लगी तो शमशेर ने उसको कलाई के पास से पकड़ लिया. "आ..आ!" वा जड़ हो गयी, उसके अंदर तूफान जैसी हलचल थी, पर बाहर जैसे पत्थर. उसको हल्का सा इशारा मिलते ही वा शमशेर की बाहों में क़ैद हो जाती, हमेशा के लिए! सिर्फ़ हूल्का सा झटका अगर उसको शमशेर दे देता तो. पर हाय री दोनों की किस्मत; शमशेर ने वो झटका ही नही दिया.
दिशा घूम गयी और नीचे देखने लगी.
" क्या नाम है तुम्हारा?" शमशेर ने उसी अंदाज से पूचछा जैसे उसने पहले दिन स्कूल में पूचछा था.
दिशा कुच्छ ना बोली; कुच्छ ना बोल सकी.
शमशेर ने उसकी गालों पर हाथ लगाकर उसका चेहरा उपर उठा दिया, दिशा की आँखें बंद हो गयी," तुमने आज तक मुझे अपना नाम नही बताया है जो मैं पहले दिन से पूच्छ रहा हूँ"
दिशा ने कप कपाते अधरों से कहा," ज.जी... दिशा"
शमशेर ने उसको छ्चोड़ दिया," दिशा को उसका सब कुच्छ टूट-ता सा लगा. वो जाने लगितो शमशेर ने उसको टोका," सुनो दिशा"
वा पलट गयी, एक बार और जी भर कर देख लेना चाहती थी; बाकी रात यही चेहरा तो याद रखना था," जी सर"
" मैं तुमसे नाराज़ नही हूँ! तुम बहुत...अच्च्ची हो!" शमशेर सुंदर कहना चाहता था पर निकल ही नही पाया.
दिशा सुनकर नीचे भाग गयी.
दिशा जब नीचे गयी तो वहाँ एक अलग ही कोहराम मचा हुआ था, वाणी रो रही थी!
दिशा ने जाते ही पूचछा," क्या हुआ छ्होटी." जब वह उसके लाड लड़ाती थी, तो च्छुटकी ही बुलाती थी.
निर्मला: हुआ क्या है. बेवजह की ज़िद लगा रही है; कह रही है सर के पास जाकर सोएगी
दिशा सुन्न रह गयी. दिन में उसको कितना समझाया था. अकल की दुश्मन! घर वाले अब शायद शमशेर को यहाँ रहने ही दें.
" तू पागल है क्या वाणी. यहाँ मेरे पास सोना. चल उठ जा!
वाणी और ज़ोर से रोने लगी. सर के बिना तो अब वा रहना ही नही चाहती थी. शमशेर कभी भी किसी चीज़ को मेरा या हमारा नही बोलता था. हर चीज़ में वह सबको शामिल करता था. हर चीज़ को अपना कहता था. शमशेर के उसी 'अपनेपन' को वाणी ने मेरा मॅन लिया था.
दिशा को लगा सब ख़तम हो जाएगा. मुश्किल से आज सर खुश हुए थे. अगर आज घर वालों ने कुच्छ कह दिया तो फिर कभी बात ही नही करेंगे.
निर्मला: अरे सोच बेटी! किराया देते हैं वो, फिर उन्हे काम भी बहुत रहता है. क्या सोचेंगे. कहेंगे इस्सको और साथ बाँध दिया. परेशान हो जाएँगे. आख़िर उनकी भी तो अपनी जिंदगी है. हर पल तुझे कैसे सहन करेंगे वहाँ. और फिर 2 दिन पहले क्या हमारे पास ए.सी. था. तब भी तो सोती थी नीचे ही. मान जा बेटा, नही तो वो नाराज़ होकेर चले जाएँगे."
दिशा को लगा; मामला उतना गंभीर नही है. यहाँ तो सर के परेशान होने की बात चल रही है.
" अच्च्छा तू सर से पूच्छ ले, वो मान जाए तो चली जाना, बस!" दिशा को विस्वास था वो तो मान ही जाएँगे. कहकर वो मामा मामी की और देखने लगी की क्या रिएक्शन होता है. वाणी झट से उठ खड़ी हुई," मैं पूच्छ कर आती हूँ"
दयाचंद : ठहर वाणी!
वाणी और दिशा दोनो ने मायूस होकर पापा की और देखा.
दया चंद: हम बात करके आते हैं; अगर हमें लगा की सर को तुम्हे साथ रखने में कोई दिक्कत नही है तो हम तुम दोनो को उपर भेज देंगे. अब तो खुश हो ना!
"दोनो को" दिशा को लगा वो सपना देख रही है! उसको सच में विस्वास नही हो रहा था, कि उसके रूढ़िवादी मामा उसको तो दूर; वाणी को भी उपर भेज सकते हैं.
वाणी खुश हो गयी. वा पापा की उंगली पकड़कर तैयार हो गयी.
"नही अभी तुम नही मैं और तुम्हारी मम्मी जाएँगे."
और वो दोनो उपर चले गये शमशेर के पास.
उनके जाते ही दिशा वाणी को घूर्ने लगी, फिर उसको पकड़कर अपनी छति से लगा लिया. उसीकि हिम्मत से यह सब संभव हो सका था. उसने वाणी के गालों को चुंबनों से भर दिया. वाणी अपना बॅग तैयार करने लगी. जैसे अब उसको कभी वापस आना ही ना हो," दीदी, एक ड्रेस भी ले लूँ"
दिशा ने उसको एक प्यार भारी चपत लगाई फिर दोनो हँसने लगी.
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