RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल'स स्कूल --4
दिशा ने तुरंत वहाँ से नज़र हटा ली. काश वो उसके "सर" ना होते. वो उसको अपना दिल दे देती. उस्स पागल को क्या पता था दिल कोई सोचकर थोड़े ही दिया जाता है. दिल तो वो दे चुकी थी.....है ना फ्रेंड्स!
वो चुप चाप टेबल के पास गयी और चाय रखकर नीचे आ गयी. नीचे जाते ही उसने वाणी को कहा," वाणी! जाओ, सर को जगा दो, वे सो रहे हैं."
निर्मला: तुम ना जगा देती पगली
दिशा: मुझसे नही जगाया गया मामी जी.
वाणी ने अपनी कापिया बॅग मैं डाली और दौड़ कर उपर गयी.
जाकर उसने सर का हाथ पकड़ कर हिलाया. लेकिन उसने कोई हलचल नही की. वाणी शरारती थी और शमशेर से घुलमिल भी गयी थी. उसने शमशेर की छाती पर अपना दबाव डाला. उसकी चुचियाँ शमशेर के मुँह के सामने थी. वो नही उठा. वाणी ने ज़ोर से उसके कान में बोला," सर जी" और शमशेर उठ बैठा. उसने चौंकने की आक्टिंग की" क्या हुआ वाणी?"
"सर जी आपकी चाय" टेबल की और इशारा करते शमशेर से कहा.
ओह, थॅंक्स वाणी!!
"थॅंक्स मेरा नही दीदी का बोलिए"
"कहाँ है वो?"
"है नही थी" चाय रखकर चली गयी. मैने आपको इतना हिलाया पर आप उठे ही नही. आपके कान में शोर करना पड़ा मुझे, सॉरी" वाणी ने हंसते हुई कहा.
" पता है वाणी, जब तक कोई मुझे नाम से ना बुलाए, चाहे कुच्छ भी कर ले. मेरी नींद नही खुलती. पता नही कोई बीमारी है शायद." शमशेर का प्लान सही जा रहा था.
" सर, कुंभकारण की नींद भी तो ऐसी थी ना"
"अच्च्छा मुझे कुंभकारण कह रही है. शमशेर ने उसके गाल उमेठ दिए"
"उई मा!" छ्चोड़ देने पर वो हँसने लगी. शमशेर ने महसूस किया, जैसे उसने उसकी चूत पर हाथ रख दिया और वो कह रही है"उई मा". फिर वाणी वहाँ से चली गयी.
नीचे जाते ही वाणी ने मम्मी को कहा," मम्मी, सर जी तो कुंभकारण हैं" मा ने बेटी की बातों पर ध्यान नही दिया. लेकिन दिशा के तो 'सर' सुनते ही कान खड़े हो जाते थे. वो अंदर पढ़ रही थी. उसने वाणी को अंदर बुलाया. वाणी उसके पास आकर बैठ गयी. कुच्छ देर बाद दिशा ने पूचछा
"चाय पी ली थी क्या सर ने"
"हां पी ली होगी. मैने तो उनको उठा दिया था दीदी.
"तू क्या कह रही थी सर के बारे में"
"क्या कह रही थी दीदी?"
"वही....कुंभकारण...."
"नही बतावुँगी दीदी! आप स्कूल में बता दोगे तो बच्चे उनका नाम निकाल देंगे!"
"मैं पागल हूँ क्या... चल बता ना प्लीज़"
वाणी जैसे कोई राज बता रही हो, इश्स तरह से बोली,"पता है दीदी, सर अगर एक बार सो जायें, तो उन्हे उतने का एक ही तरीका है. उन्हे कितना ही हिला लो वो नही उठेंगे. उन्हे उठाने के लिए उनके कान में ज़ोर से उनका नाम लेना पड़ता है."
"चल झूठी" दिशा को विस्वास नही हुआ.
"सच दीदी"" मैं तो उनकी छाती पर जाकर बैठ गयी थी, फिर भी वो नही उठे. फिर मैने उनके कान में ज़ोर से कहा"सर जी" तब जाकर उनकी नींद खुली"
"मोटी तुझे शरम नही आई उनकी छाती पर चढ़ते हुए." दिशा के मॅन में प्लान तैयार हो रहा था.
वाणी ने उसकी टीस और बढ़ा दी," सर बहुत अच्च्चे हैं ना दीदी!"
"चल भाग! मुझे काम करने दे!" दिशा ने उसको वहाँ से भगा दिया.
शमशेर भी इतना ही बैचैन था दिशा की जवानी से खेलने के लिए. अगर वो भी हमारी तरह कहानी लिख कर पढ़ रहा होता तो आँख बंद करके 5 मिनिट में ही उसकी चूत का दरवाजा पूरा खोल देता यारो! पर उसको थोड़े ही पता है की ये कहानी है. ये तो या तो मैं जानता हूँ या आप.... बेचारा शमशेर! खैर शमशेर टकटकी लगाए खिड़की से बाहर देखता रहा की कम से कम उस्स परी की गांद के दर्शन ही हो जायें. करीब 15 मिनिट बाद दिशा बाहर आई. उसके हाथ में टॉवेल था. शायद वो नहाने जा रही थी. गाड़ी के पास जाकर वो रुकी और उस्स पर प्यार से हाथ फेरने लगी. फिर उसने उपर की और देखा. शमशेर को अपनी और देखता पाकर वो जल्दी से अंदर चली गयी. बाथरूम का दरवाजा बंद करके उसने कपड़े उतारने शुरू किए. शमशेर का प्यारा चेहरा और उसकी पॅंट का उभर उसके दिमाग़ से निकल ही नही रहे थे. उसने अपना कमीज़ उतार दिया और अपने उभारों कोगौर से देखने लगी. उसको पता था भगवान ने उसको इन 2 नगिनो के रूप में क्या दिया है. उसकी छातियाँ ही उसकी जान की दुश्मन बनी हुई थी. उसे पता था की इनमें ऐसा कुच्छ ज़रूर है जिसने गाँव के सारे लड़कों को इनका दीवाना बना दिया है. कोई इन्हें पहाड़ की चोटी कहता, कोई सेब तो कोई अनार. क्या सर जी को भी ये अच्छे लगते होंगे. काश कि लगते हों. वा उनपर हाथ फेर कर देखने लगी, इनमें ऐसा क्या है जो लड़कों को पसंद आता है. ये तो सब लड़कियों के होती हैं. कायओ की तो बहुत बड़ी होती हैं, फिर तो वो ज़्यादा अच्च्ची लगनी चाहिए. सोचते सोचते ही उसने अपनी सलवार उतारी. और शीशे में घूम घूम कर अपना बदन देखने लगी, उसको नही मालूम था की हीरे की परख तो जौहरी ही कर सकता है. उसकी गोल गांद और तनी हुई छातियो की कद्रतो वो ही रसिया करेंगे ना जिनको इनकी तड़प है. आज से पहले उसने अपने जिस्म को इतनी गौर से नही देखा था. आज भी शायद अपने प्यारे सर के लिए.
नाहकार वा बाहर निकली तो चौक गयी. सर सामने ही बैठे थे. शायद मामी ने उन्हे खाने के लिए बुलाया होगा. उसको अहसास हुआ की जैसे सर के बारे में सोचते हुए वो रंगे हाथ पकड़ी गयी. वा भागकर अंदर वाले कमरे में चली गयी.
"बेटी, सर के लिए खाना लगा दे. इनको जाना है कही."
अच्च्छा मामी जी, कहकर दिशा किचन में चली गयी.
वाणी सर के पास ही बैठी थी. वाणी का शरीर जवान हो गया था पर शायद मॅन नही. वो ज़्यादातर हरकतें बच्चों जैसी करती थी. अब भी वो शमशेर के साथ अपना पिच्छवाड़ा सटा कर बैठी थी. कोई बड़ी लड़की होती तो अश्लील हरकत समझा जाता.
"मास्टर जी"निर्मला बोली" आपने दिशा को बचा कर जो उपकर किया है, उसका बदला हम नही चुका सकते, पर अब जब तक तुम इस्स स्कूल में हो, हम तुम्हे हमारे घर से नही जाने देंगे"
"मम्मी, हमारा घर नही; अपना घर. है ना सर जी." वाणी चाहक कर बोली.
"हां वाणी!" शमशेर ने उसके गाल पर थपकी देकर ताल में ताल मिलाई.
"मम्मी गाड़ी भी सर की नही है, अपनी है; हैं ना सर जी.
" मस्टेरज़ी, हमारी लड़की बड़ी शैतान है, कभी इसकी ग़लती पर हमसे नाराज़ मत होना.
शमशेर ने मौका देखकर कहा, ये भी कोई कहने की बात है आंटिजी! ये तो यहाँ मुझे सबसे प्यारी लगती है.
दिशा ने इश्स बात पर घूमकर शमशेर को देखा, और प्यार से जलाने के लिए वाणी को बोली," हूंम्म, सबसे प्यारी!"
वाणी ने अपनी सुलगती दीदी को जीभ निकालकर चिडा दिया. दिशा उसे मारने को दौड़ी, पर उसका असली मकसद तो सर के पास जाना था जैसे ही वो वाणी के पास आई, वाणी शमशेर के पीछे छिप गयी. अब शमशेर और दिशा आमने सामने थे. दिशा के तन पर चुननी ना होने की वजह से उसकी दोनों चुचियाँ शमशेर की आँखो के सामने थी. जल्द ही उसको अपने नंगेपन का अहसास हुआ और वो शर्मकार वापस चली गयी.
"इसमें तो है ना बस गुस्से की हद है." निर्मला ने कहा.
शमशेर: हां, वो तो है.
उसके बाद वो खाना खाने लगे.
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