RE: Muslim Sex Kahani अम्मी और खाला को चोदा
जब राशिद पूरी तरह छूट गया और उसने ने अपना लंड अम्मी की चूत से बाहर निकाला तो अम्मी फ़रश से अपनी सलवार उठा कर पहनने लगी राशिद भी अपनी पतलून उठा कर बाथरूम में घुस गया। मैं खामोशी से उठा और वहीं से घर के गेट से बाहर निकल गया।
वहाँ से निकल कर मैं सड़कों पर आवारागर्दी करता रहा। एक बार फिर मैं शदीद ज़हनी उलझन का शिकार था। इस दफ़ा तो मामला अम्बरीन खाला वाले वाकये से भी ज्यादा परेशान-कुन था। अम्मी और राशिद के ताल्लुकात का इल्म होने के बाद मेरी समझ में नहीं आ रहा था के मुझे क्या करना चाहिये। क्या अब्बू से अम्मी की इस हरकत के बारे में बात करूँ? क्या अम्मी को बता दूँ के मैंने उन्हें राशिद से चुदवाते हुए देख लिया है? क्या अम्बरीन खाला के इल्म में लाऊँ कि उनका बेटा अपनी खाला यानी उनकी सग़ी बहन को चोद रहा है? क्या राशिद का गिरेबान पकड के पूछूँ कि वो मेरी अम्मी को क्यों चोद रहा था? मेरे पास फिलहाल किसी सवाल का जवाब नहीं था।
मुझे अम्मी को राशिद के साथ देख कर दुख हुआ था बल्कि सख़्त गुस्सा भी आया हुआ था। लेकिन इस से भी ज्यादा हसद की भड़कती हुई आग में जल रहा था। आख़िर राशिद में ऐसी क्या बात थी के मेरी अम्मी जैसी हसीन और शानदार औरत जो उसकी सगी खाला भी थी उसे अपनी चूत देने को रज़ामंद हो गयी थी। वो एक आम सा लड़का था जिसमें कोई ख़ास बात नहीं थी। लेकिन इस के बावजूद वो किस अंदाज़ में अम्मी से गुफ्तगू कर रहा था। लग रहा था जैसे अम्मी पूरी तरह उस के कंट्रोल में हों। मैं उनका बेटा होते हुए भी उन से बहुत ज्यादा फ्री नहीं था। हम तीनो बहन-भाई अब्बू से ज्यादा अम्मी के गुस्से से घबराते थे। मगर राशिद का तो उनके साथ कोई और ही रिश्ता बन गया था और यही बात मेरी बर्दाश्त से बाहर थी।
मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मेरी कोई बहुत क़ीमती चीज़ किसी ने छीन ली हो। आख़िर ये सब कुछ कैसे हुआ? अम्मी को राशिद में क्या नज़र आया था? अम्मी और अब्बू के ताल्लुकात भी अच्छे ही थे। उनका आपस में कोई लड़ाई झगड़ा भी नहीं था और वो एक खुश-ओ-खुर्रम ज़िंदगी गुज़ार रहे थे। फिर अम्मी ने अपने भांजे के साथ जिस्मानी ताल्लुकात क्यों कायम किये? ये सब बातें सोच कर मेरा दिमाग फटने लगा। मैं घर वापस आया लेकिन अम्मी पर ये ज़ाहिर नहीं होने दिया के में उनका राज़ जान चुका हूँ। मगर फिर चंद घंटों के अंदर ही मेरे ज़हन पर छा जाने वाली धुंध छंटने लगी और मैंने फ़ैसला कर लिया के मुझे इन हालात में क्या करना है।
मैंने फ़ैसला किया था कि मुझे खुद ही इन सारे मामलात को सुलझाना होगा। किसी को ये बताना कि राशिद मेरी अम्मी की चूत मार रहा था पूरे खानदान के लिये तबाही का मंज़र बनता। अगर मैं राशिद से इंतकाम लेता तो अम्मी भी ज़रूर उस की ज़द में आतीं और मुझे अपने तमामतर गुस्से के बावजूद ये मंज़ूर नहीं था। मुझे अम्मी से बहुत प्यार था और उनकी बद-किरदारी के बावजूद मेरे दिल में उनके लिये नफ़रत पैदा नहीं हो सकी थी। हाँ ये ज़रूर था के रद्दे-ए-अमल के तौर पर अब मैं अम्मी की चूत पर अपना हक जायज़ समझने लगा था।
हैरत की बात ये थी के मुझे ऐसा सोचते हुए कोई एहसास-ए-गुनाह नहीं था। मैंने पहले भी ज़िक्र किया है कि बाज़ हौलनाक वक़्यात इंसान को बहुत कम वक़्त में बहुत कुछ सिखा देते हैं। मेरे साथ तो ऐसे दो वक़्यात हुए थे जिन्होंने मुझे एक बिल्कुल मुख्तलीफ़ इंसान बना दिया था। अम्बरीन खाला का नज़ीर के हाथों चुद जाना और राशिद का मेरी अम्मी की चूत लेना। दोनों ने मेरी ज़िंदगी को बदल कर रख दिया था। इसीलिये शायद मुझे अब अम्मी की चूत लेने में कोई बुराई नज़र नहीं आ रही थी। मेरी कमीनगी अपनी जगह लेकिन अम्मी को चोदने की इस ख्वाहिश में हालात का सितम भी शामिल था। मामलात को संभालने के लिये ये बहुत ज़रूरी था के में कुछ ऐसा करूँ कि राशिद और अम्मी का ताल्लुक हमेशा के लिये ख़तम हो जाये। इस का बेहतरीन तरीक़ा यह था कि मैं अम्मी की ज़िंदगी में राशिद की जगह ले लूँ। मुझे यक़ीन था के मैं ऐसा करने में कामयाब हो जाऊँगा।
ये बात तो साफ़ थी के राशिद अम्मी को चोद कर यक़ीनन उनकी जिस्मानी ज़रूरत पूरी कर रहा था वरना अम्मी अपने शौहर के होते हुए अपने बेटे की उम्र के भांजे से अपनी चूत क्यों मरवा रही थीं? उनकी ये ज़रूरत अब मैं पूरी करना चाहता था। मैं फिर कहुँगा के बिला-शुबहा इस फ़ैसले में मेरे अपने ज़हन की कमीनगी भी शामिल थी। मैं अपनी दिलकश खाला को नहीं चोद पाया तो अब अपनी अम्मी को ही चोदना चाहता था। मगर ये भी तो सही था के राशिद से चुदवा कर अम्मी ने मेरे दिल से गुनाह के एहसास को मिटा दिया था। अगर वो राशिद से अपनी चूत मरवा सकती थीं तो मुझसे चुदवाने में उन्हें क्या मसला हो सकता था? इस तरह राशिद भी उनकी ज़िंदगी से निकल जायेगा और में भी उन्हें चोद पाऊँगा।
मैंने ये भी सोच लिया था के अब मेरे लिये अम्बरीन खाला की चूत लेना लाज़मी था। आख़िर हरामी राशिद ने मेरी अम्मी को चोदा था तो मैं उस की अम्मी को क्यों छोड़ूँ? अम्बरीन खाला को इस सारे मामले में लाये बगैर वैसे भी हालात ठीक नहीं हो सकते थे। वो ना सिर्फ राशिद को रोक सकती थीं बल्कि इस बात को भी यक़ीनी बना सकती थीं के ये राज़ हमेशा राज़ ही रहे। लेकिन अम्मी को चोदना सूरत-ए-हाल में एक मुश्किल काम था। मेरे मोबाइल में उनकी और राशिद की तस्वीरें मौजूद थीं मगर मैं उन्हें ब्लॅकमेल कर के उनकी चूत हासिल नहीं करना चाहता था। मेरी ख्वाहिश थी के वो खुशी से मुझे अपनी चूत दे दें। इस के लिये ज़रूरी था कि मैं उनके और ज्यादा क़रीब होने की कोशिश करूँ।
मैंने उस दिन से अम्मी को बहलाना फुसलाना शुरू कर दिया। मैं हर रोज़ किसी ना किसी वजह से उनकी तारीफ करता जिससे सुन कर वो बहुत खुश होती थीं। पता नहीं उन्होंने मेरे बदले हुए रवय्ये को महसूस किया या नहीं पर अब मैं अम्मी को उसी नज़र से देखने लगा था जिस नज़र से अम्बरीन खाला को देखता था। पहले मैं अम्बरीन खाला का तसव्वुर करके मुठ मारता था लेकिन अब मुठ मारते वक़्त अम्मी मेरे ख्यालों में होती थीं। रात को मैं अम्मी की ब्रा, पैंटी और ऊँची हील वाली सैंडल छुपा कर अपने कमरे में ले आता और फिर उन्हें सूँघता, चूमता और अपने लंड पर रगड़ कर मुठ मारता।
फिर सालाना इम्तिहानात से पहले तैयारी के लिये स्कूल की दो हफ्ते के लिये छुट्टियाँ हो गयीं और मैं ज्यादा वक़्त घर में गुज़ारने लगा। मुझे खुशी थी कि कम-अज़-कम इन छुट्टियों में राशिद का हमारे घर आना जाना भी बिल्कुल ख़तम हो जायेगा और वो अम्मी को नहीं चोद सकेगा।
एक दिन मेरे दोनों बहन-भाई नानाजान के घर गये हुए थे और घर में सिर्फ अम्मी और मैं ही थे। उस दिन मैं घर पे आने इम्तिहान के लिये पढ़ाई कर रहा था और अम्मी कुछ खरीददारी करने कार से ड्राइवर के साथ बाज़ार गयी हुई थीं। दोपहर साढ़े तीन बजे के क़रीब अम्मी घर आयीं तो काफी थकी हुई थीं। वो ड्राईंग रूम में ही सोफे पर बैठ गयीं और मैंने उन्हें पानी पिलाया। मैंने कहा कि आज तो वो बहुत थकी हुई लग रही हैं तो मैं उनका जिस्म दबा देता हूँ। वो फौरन मान गयीं। इस में कोई नई बात नहीं थी क्योंकि मैं बचपन से ही अम्मी का जिस्म दबाया करता था। हम बेडरूम में आ गये और वो बेड पर बैठ गयीं। उन्होंने पहले अपने सैंडल उतारे और फिर अपना दुपट्टा उतारा और बेड पर उल्टी हो कर लेट गयीं। लेट कर उन्होंने अपने चूतड़ों के ऊपर अपनी क़मीज़ को ठीक किया। इस के लिये उन्होंने अपने चूतड़ों को ऊपर उठाया और फिर हाथ पीछे ले जा कर उन्हें क़मीज़ के दामन से ढक दिया। अम्मी के गुदाज़ चूतड़ों की हरकत ने मेरा खून गरमा दिया। मैंने सोचा के आज अम्मी को चोदने की कोशिश कर ही लेनी चाहिये।
अम्मी के लेटने के बाद मैंने आहिस्ता-आहिस्ता उनकी कमर को दबाना शुरू कर दिया। मेरे हाथों के नीचे अम्मी की कमर का गोश्त बड़ा गुदाज़ महसूस हो रहा था। मेरी हथेलियों ने अम्मी की सफ़ेद ब्रा के स्ट्रैप को महसूस किया जो उनकी क़मीज़ में से झाँक रहा था। मेरा लंड खड़ा होने लगा। मैंने अम्मी के गोल कंधों को दोनों हाथों में पकड़ लिया और उन्हें होले-होले दबाने लगा। कंधों के थोड़ा ही नीचे उनके मोटे-मोटे मम्मे उनके जिस्म के वज़न तले दबे हुए थे। मैं अपनी उंगलियों को अम्मी के कंधों से कुछ नीचे ले गया और उनके मम्मों का बाहरी नरम-नरम हिस्सा मेरी उंगलियों से टकराया। उनको अब सरूर आने लगा था और वो आँखें बंद किये अपना जिस्म दबवा रही थीं। कमर से नीचे आते हुए मैंने बिल्कुल गैर-महसूस अंदाज़ में अम्मी के सुडौल और मोटे चूतड़ों पर हाथ रख कर उन्हें दबाया और जल्दी से उनकी गोरी पिंडलियों की तरफ आ गया। मैंने पहली दफ़ा अम्मी के चूतडों को हाथ लगाया था। मेरे जिस्म में सनसनाहट सी होने लगी। मुझे अपने लंड पर क़ाबू रखना मुश्किल हो गया।
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