RE: Nanad ki training--ननद की ट्रैनिंग
अगले दिन वैसे ही हुआ. मैं और राजीव सुबह ही रिसार्ट के लिए चल दिए. चलने के पहले मैने गुड्डी के गाल पे कस के पिंच करके बेस्ट आफ लक बोल दिया. उसके लिए मैने एक पेस्तल कलर की टी शर्ट और लो हिप हागिंग जींस निकाल के रख दी थी और 'सब कुछ' समझा भी दिया.
जब शाम को हम लोग लौटे तो तब तक वो घर नही लौटी थी. वो कुछ देर बाद आई तो मैने राजीव को सुनाते हुए कहा, हे दिया के यहाँ से आ रही है.
" भाभी, आप को कैसे पता चला कि मैं दिया के यहाँ से आ रही हू" मुझ से धीरे से वो बोली.
" अरे .वो तो मैने ऐसे ही तेरे भैया को सुनाने के लिए कह दिया था. क्या कहती . कि किससे चुदवा के आ रही है..अच्छा चल किचन मे चल के बाते करते है. ये कहानी आप राजशर्मा स्टॉरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं आज मैं बाजार से काफ़ी कुछ पैक करवा के ले आई हू. तेरे भैया भूखे होंगे." और हम दोनों किचन मे पहुँच गये. चिकेन टिक्का और कबाब ओवेन मे रख दिए गरम होने को...और मैं मटन दो प्याजा का पॅकेट खोल रही थी, कि उसने कहा,
" भाभी पहले आप बताइए आप और भैया ने कैसे मज़ा लिया, स्वापिंग का. और हाँ मैं दिया के यहाँ से ही आ रही थी."
" अच्छा चल, बताती हू. अंजलि, मेरी सहेली, उस के हज़्बेंड को मैने देखा नही था पहले. उस की शादी मेरे शादी के एक साल के बाद हुई और हम लोग जा नही पाए थे. हाँ अंजलि ने बताया ज़रूर था उसके बारे मे. और जब मैने देखा तो...खूब गोरा चिट्टा.. लेकिन थोड़ा लड़कियों जैसा, एकदम नमकीन..चिकना, दुबला पतला. और उसे देख के एक बार तो वो चौंके ,लेकिन जैसे पुरानी पहचान हो, खुश हो के बोले, " अरे भोन्सडी के...तू..साले..इतने दिनों के बाद..कहाँ मरा रहा था इतने
दिनों से और मेरी साली को फाँस लिया...साले." और उसे कस के बाहों मे भर लिया.
" भाभी...भैया..ऐसे बोलते है वो भी पब्लिकलि.." गुड्डी चकित होके बोली.
" अरे यार तूने मर्दों को सुना नही कैसे कैसे बोलते है आपस मे. हम लोगों से भी खुल के." मैने बात आगे बढ़ाई. " सुन तो टोक मत..और वो धीरे से उनके कान मे बोला, " लेकिन गुरु, तूने भी बड़ा मस्त माल फँसा है..पटाखा है..एकदम ..आगे पीछे दोनों ओर क्या उभार है, एल. पी है क्या..दोनों ओर. मिला ना भाभी से.."
" एकदम..एल पी है और वो भी 90 मिनट वाली. दोनों ओर चलती है." और मेरी ओर मूड के बोले,
" हे ये सुनील है. मेरा बचपन का दोस्त और ये तेरी भाभी."
मेरा माथा तो पहले से ही ठनका था, लेकिन नाम सुनके पक्का हो गया कि ये वही है.
" कौन भाभी" गुड्डी ने पूछा.
" अरे वही मैने बताया ना था तुझे, जिसके साथ उनकी चलती थी. सबसे पहले जब वो 8 मे पढ़ते थे, उसकी गान्ड मारी थी और फिर 4 साल तक...उसी से मेरी सहेली अंजलि की शादी हो गयी थी."
" अरे भाभी जी कहाँ खो गयी, ये देवर कब से बेचैन था आपसे मिलने के लिए. एकदम पास आ के वो हंस के बोला.
" अरे आप से तो दोहरा रिश्ता है. देवर का भी और मेरी प्यारी सहेली के पति के नाते, जीजा का भी." मैने उसे कस के पकड़ के कहा.
" तब तो मैं दोनों ओर से लूँगा." मेरे नितंबो को कसी शलवार के उपर से सहलाता धीरे से वो बोला.
" एकदम...और देवर का तो अर्थ ही होता है, द्वितीयो वर..इसलिए तो मैं आई हू. हाँ और देवर का एक और अर्थ होता है, जो भाभी से बार बार माँगे, दे बुर, दे बुर."
" तो...दो ना.." वो अपने सीने से मेरे जोबन कस के दबा के बोला.
" अरे इसी लिए तो आई हू , लो ना जी भर के कोई कसर मत छोड़ना." जींस के उपर से उसके बुर्ज को दबा के,खुल के सहलाते. मैं मुस्करा के बोली.
" हे बहनचोद.. भोन्सडी के. कहाँ छिपा के रखा है मेरी साली को." राजीव ने बेताब होके उससे पूछा.
" अरे आ गयी मैं..जीजू." और अंजलि ने आ के सीधे उन्हे अपनी गोरी बाहों मे कस के भर लिया.
गोरी चिट्टि, बॉब कट बाल, टॉप से छलकते उसके मस्त बड़े बड़े मम्मे, कसे कसे त्राउजर को फाडते चूतड़...एकदम पक्की पंजाबी कुड़ी लग रही थी.
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