RE: Nanad ki training--ननद की ट्रैनिंग
थोड़ी देर में ही मैं झड़ने के कगार पे थी। बिना रुके, उसनी मेरी टांगें मोड़कर मुझे दोहरा कर दिया, और एक ही धक्के में हचाक से अपना लण्ड इतना कसकर पेला की मेरी बच्चेदानी तक कांप गयी और मैं तेजी से झड़ने लगी, और मेरे हाथ ऐसे कांपें की सारी प्लेटें, क्राकरी टेबल के बाहर खनखनाती हुई नीचे। पर हम लोग अभी इन चीजों पे ध्यान देने की हालत में नहीं थे। उसका लण्ड कचकचा के मुझे हचक-हचक के चोद रहा था। उसके हाथ, मेरी बड़ी-बड़ी क्रीम में लिपटी चूचियों को कसकर मसल रहे थे, और थोड़ी देर में मैं भी अपने चूतड़ कस-कसकर उछाल रही थी, अपनी चूत सिकोड़ के उसके मोटे मूसल को अपने अंदर भींच रही थी। उसका हर धक्का सीधे मेरी बच्चेदानी पे लग रहा था और लण्ड का बेस मेरी क्लिट को रगड़ रहा था।
मेरी चूची को कसकर रगड़ते हुए उसने कहा- “हे, तेरी ननद अब बड़ी चुदवासी हो गयी है, लगता है अब हर समय लण्ड के लिये प्यासी रहती है…”
“मेरी ननद या तेरी प्यारी बहन?” हँसकर अपनी टांगों से उसे अपनी ओर खींचकर मैं बोली।
“जो भी कहो…” और लण्ड को सुपाड़े तक बाहर निकालकर एक धक्के में अंदर तक ठेल दिया।
“अरे जब तक ये असली लण्ड तेरी बहना को नहीं मिलता ना, उसकी छिनाल चूत की प्यास नहीं बुझेगी…” मैंने कसकर चूत में उसके लण्ड को स्क्वीज किया।
“तो दिलवा दे ना… उसकी मस्त चूचियां और चूतड़ देखकर ही ये फनफना जाता है…” वो बोले।
“तो चोद दे ना साली को इंतजार किस बात का? परसों से तो मेरे ‘वो दिन’ शुरू हो जायेंगें तब तो तुम्हें उसे ही चोदना पड़ेगा। वो भी तो तुमसे चुदवाने के लिये बेताब है…”
फिर तो उन पे वो जोश चढ़ा की सटासट मुझे चोदने लगे, फुल स्पीड से, और तब तक चोदते रहे जब तक मैं और वो दोनों एक साथ झड़ नहीं गये। और जब उन्होंने लण्ड बाहर निकाला तो मेरे होंठों ने उसे गप्प कर लिया। वीर्य से सना मोटा लण्ड, साथ में मेरी चूत के रस के साथ में चूत में बची फ्रूट क्रीम का एक अजब स्वाद मिल रहा था मुझे उनका लण्ड चूसने में आज। और थोड़ी देर में वो भी मेरे चूत का रस।
वहीं फर्श पर ही हम दोनों सिक्स्टी-नाइन का मजा लूट रहे थे। थोड़ी देर चूसने चाटने का मजा लेने के बाद उन्होंने अपना लण्ड मेरे मुँह से बाहर निकाला। बुरी तरह फनफना रहा था वह। एक कुर्सी के सहारे मुझे झुका के उन्होंने फिर कसकर चोदना शुरू कर दिया। मैं भी चूतड़ मटका के पीछे से धक्के लगाके उनकी चुदाई का जवाब दे रही थी। रात की पूरी कसर निकाल रहे थे वो। दो बार कसकर और चोदकर ही छोड़ा उन्होंने। और फिर नहाना धोना भी हम लोगों ने साथ-साथ किया, जिसमें ‘सब कुछ’ शामिल था। वो मेरी चूत कसकर चूस रहे थे और मैं उनके मुँह पे बैठी थी।
तभी मुझ ‘लगी’ तो मैंने उनसे कहा- “हे हटो जरा, मुझे उठने दो। जरा मैं करके आती हूँ, बड़ी जोर से लगी है…”
“अरे तो यहीं कर लो ना, पहले कभी किया नहीं है क्या?” मेरे मूत्र छिद्र को छेड़ते वो बोले।
“हे नहीं प्लीज, यहां ठीक नहीं। अपने घर की बात और थी। तब तो रोज पिलाती थी…” मैंने हठ किया।
“अरे भूल गयी, अपने मायके में बिना नागा। चल…”
और अबकी जब उन्होंने वहां छेड़ा तो मैं रूक नहीं पायी, और शुरू हो गयी और कहा- “हे जब वो हमारे यहां चलेगी ना तो जब उसे तेरी रखैल बनाऊँगी, तो उसे भी पिलायेंगें खारा शरबत…” मैंने अपने मन की बात कही।
“एकदम और मैं भी। तेरी गुड़िया रहेगी जो चाहे खिलाना पिलाना…”
नहाने के बाद खाना खाकर वो अपने एक दोस्त के यहां चल दिये और मैं गुड्डी का इंतजार करने लगी। कुछ ही देर में वो आई, चहकती, खुश, जैसे बादल पे चल रही हो और उसी बार डांसर वाली ड्रेस में। क्या मस्त माल लग रही थी। गहरी कटी कसी चोली में उसकी गोलाइयों का कसाव, गहराई, पूरी अंदर तक दिख रही थ। पतली कमर, कूल्हों तक बंधी साड़ी, खुली पीठ, गोरे कंधों से सरकता बरबस आंचल। उसके हाथ में एक गिफ्ट रैप्ड पैकेट था।
“हे आज चिड़िया कुछ ज्यादा ही चहक रही है। और ये पैकेट, किसने दिया, क्या है?” मैंने उसके मस्त मटकते चूतड़ों को, दबोच के मुश्कुराकर पूछा।
गुड्डी- “नीरज मिला था, भाभी। इंतेजार कर रहा था बिचारा, स्कूल के गेट पे। सारी सहेलियां जल गयीं। सईदा ने तो ये भी कहा है की, सुबह छोड़ने कोई और, और लेने कोई और, तुम तो सबका नंबर डका गयी। बात ये है, भाभी कि कितनी लड़कियां खुद उसका इंतजार करती हैं और यहां वो मेरा इंतजार कर रहा था। उसी की बाइक पे आई हूं, इत्ता ख़ूबसूरत डैशिंग लग रहा था। झांटें सुलग रही थीं सालियों की। उसके पैरेंटस आज ही गये हैं और आज ही वो स्कूल के गेट पे। बेचारा बहुत सीधा है। कह रहा था कि बस थोड़ी देर के लिये मेरे घर पे आ जाओ। शाम को तो उसको दुकान पे बैठना होता है ना। उसी ने दिया है ये पैकेट, चाकलेट हैं। इम्पोर्टेड…”
हम दोनों ने मिलकर पैकेट खोला। उसमें वास्तव में इम्पोर्टेड लिकर चाकलेट थे, रम भरा। एक उसने अपने मुँह में गड़प किया और एक मैंने।
“हे पर इस ड्रेस में, तुम्हारी सहेलियों को तुम्हारी रात की दास्तान का अंदाज़ तो नहीं लगा?” उसके उरोजों पे लगी खरोंचों और निशान पे उँगली सहलाते हुये मैंने पूछा।
गुड्डी- “अरे भाभी, हमाम में सभी नंगे। वहां किसकी साबूत बची है, सभी तो चुदवाती फिरती हैं, फँसी हैं किसी ना किसी से। हां देख सब रही थीं पर इसका फायदा भी हुआ। जो जज करने बाहर से आयीं थीं ना, सबने जम के तारीफ की मेरी। एक तो कह रही थीं, कितने परफेक्ट निशान हैं, एकदम लगता है रात भर कहीं ‘बैठ के’ आई है और मेरे ठुमके की तो सब दीवानी हो गयीं। भाभी, सब कह रही थीं की हमारा प्ले तो फर्स्ट आयेगा ही, बेस्ट ऐक्ट्रेस मेरा पक्का है…”
और होता भी क्यों ना, मुज़रा से लेकर शकीरा तक, सबकी अदायें तो मैंने उसे सिखायीं ही थी और ऊपर से झुक के, अदा से, गहराई दिखाना, उचका के जोबन की झलक, चूतड़ ग्राइंडिंग। सब कुछ।
“पर तू ये ड्रेस क्यों पहनकर आई, ऐसी खुली-खुली। तेरी यूनीफार्म?” मैंने अचरज से पूछा।
गुड्डी- “भाभी, अरे वो साली सईदा और दिया। सईदा देखने में तो चुहिया जैसी, सीधी। पर पहले उन सबका प्रोग्राम खतम हो गया और फिर जब हम लोग चेंज करके स्टेज पे गये तो उन दुष्टों ने हमारी यूनीफार्म छिपा दी और कहा की यही पहनकर जाओ। हम भी बोले- अरे डरते हैं क्या? और ठसके से चल दिये…”
“अच्छा, तू चलकर नहा धो। सुबह ऐसे ही चली गयी थी। ठीक से नहाना। नीरज पे अच्छा इम्प्रेशन पड़ना चाहिए। मैं तब तक खाना लगाती हूं और तेरे लिये ड्रेस निकालती हूं।
गुड्डी- “ठीक है भाभी…” कहकर मचलकर वो नहाने चल दी।
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