RE: Nanad ki training--ननद की ट्रैनिंग
मैंने अजय को तौलिया दिया सुखाने को तो वो बोला- “दीदी, जिसकी गलती है वही सुखाये, सिर्फ सारी बोलने से नहीं होता…”
गुड्डी- “एकदम भाभी, लाइये तौलिया मुझे दीजिये अभी एकदम रगड़कर सुखाती हूं…”
और उस दुष्ट ने तौलिया मुझसे ले के, उसके ना सिर्फ गीले पाजामें पे रगड़ा, बल्कि कस-कसकर उसके उभरे टेंट पोल को भी। और उसके तने खूंटे को अपने मेंहदी लगे हाथों से हल्के से दबा भी दिया। इस छेड़छाड़ के बीच वो दोनों खाना खतम ही करने वाले थे की राजीव आ गये।
अजय को देखकर वो बोले- “हे साले जी, कब आये तुम? अकेले माल उड़ा रहे हो…”
मैंने पूछा- “हे अभी मैंने भी आपके इ्ताजार में खाना नहीं खाया है। आप बैठ जाइये मैं खाना लगा देती हूं…”
“नहीं मैं बहुत थका हूं, ऐसा करना कि तुम एक थाली लगाकरके ऊपर ले आना, साथ-साथ खा लेंगें…”
और अजय से बोले- “अरे जिसकी बहना अंदर उसका भाई सिकंदर, सारा माल तो तुम्हारा ही है…” और ऊपर जाने लगे।
गुड्डी- “भैया, आपके लिये एक खुश खबरी। अल्पना, आपकी साली नरसों आ रही है। और उसी दिन उसके पैरंटस कहीं बाहर जा रहे हैं तो वो दो-तीन दिन हम लोगों के पास ही रहेगी…” गुड्डी बोली।
“अरे ये तो बहुत अच्छी खबर सुनाई तूने बहुत दिन हो गये उससे मिले। और जल्दी आना…” मुझसे बालते हुए वो ऊपर चले गये।
अजय ने अब और कसकर गुड्डी को अपनी ओर खींच लिया और कसकर खुल के, अपनी बांहों में भरकर बोला- “देख अब तेरे भाई ने भी कह दिया की सारा माल मेरा है, तो ये माल भी मेरा ही है…” और कसकर उसकी चूची दबा दी।
बजाय बिदकने के गुड्डी और उसकी बांहों में सिमट गयी।
खाने के बाद मैं और गुड्डी टेबल समेटने में लग गये। गुड्डी ने मुझे चिढ़ाया- “भाभी जल्दी ऊपर जाइये, भूखा शेर मिलेगा। बेचारा दो दिन का भूखा है…”
“लगता है चीते ने नाखून लगा दिये हैं, खाने के पहले ही…” उसके उरोजों के खुले हिस्से पे अजय के नाखूनों के निशान पर उँगली फेरते हुए मैं बोली।
वो बेचारी शर्मा गयी।
“हे नाइटी पहनकर आ ना, अपनी। क्या यही पहनकर सोओगी…” और मैं दूध बनाने लगी।
जब वह लौट के आई तो गुलाबी बेबी डाल में बहुत उत्तेजक लग रही थी। उससे मैंने कहा की ये दूध तुम्हारे और अजय के लिये है। तब तक हम दोनों उसके कमरे में पहुँच गये थे।
गुड्डी बोली- “क्या भाभी, आपके भैया अभी तक दूध पीते बच्चे हैं जो दूध पीते हैं…”
“अगर कोई तुम सा दूधारू मिल जाय दूध पीने के लिये तो, जरूर…” अजय क्यों चुप रहता।
“अरे दूध देने लायक तो ये पूरी हो गयी है अगर आज रात तुम मेहनत कर दो तो। थोड़ा कस-कसकर दुहना…”हँसकर उसकी कड़ी-कड़ी चूचियां दबाकर मैं बोली।
“अरे हमारे गांव में जो गाय दूध दुहाने में थोड़ी भी ना निकुर करती है ना तो उनके पैर छान के मैं दुहता हूं…” वो भी अब खुलकर बोल रहा था।
“अब ये बछिया तुम्हारे हवाले है, जो करना है करो…” और फिर अजय के कान में मैं बोली- “कल ये टांगें छितरा के ही चले, ऐसा रगड़ के…”
“हां दीदी, बहुत नखड़ा करती थी, कल सुबह देखना इसकी क्या हालत होगी…” वो भी धीमे से बोला।
“अभी 10:00 बज रहे है, मिलते हैं कल सुबह 7:00 बजे। पूरे 9:00 घंटे हैं तुम लोगों के पास। और तुम्हारा समय शुरू होता है अब…” ये कहके मैंने दरवाजे की कुंडी बाहर से लगा दी।
जब मैं थाली में खाना लेकर ऊपर पहुँची तो वो इतने बेताब थे की खाना तो बाद में, उन्होंने मेरा भोजन पहले शुरू कर दिया। और फिर खाना भी हम लोगों ने चुदाई करते हुए ही खाया। 4 घंटे तक रगड़ के 3 बार चोदने के बाद 2-3 बजे के करीब उनकी नींद लगी।
लेकिन मेरी आंखों में नींद कहां, मैं तो बस ये सोच रही थी की मेरी ननद के साथ क्या हो रहा होगा? दबे पांवों से मैं नीचे आई और बगल के कमरे से जहां कल रात भर चुदाई देखी थी, पीप-होल से देखने लगी। गुड्डी बिस्तर के सहारे झुकी हुई थी, उसकी आधी देह बिस्तर पे थी और चूतड़ हवा में थे, दोनों टांगें बहुत ज्यादा लगभग अप्राकृतिक ढंग से फैली हुई थीं या अजय ने जबरदस्ती फैलवा दी थीं, और वह उसको कुतिया की स्टाइल में चोद रहा था, वह उसके बीच में था।
तभी मुझे वहां पड़ा अपना हैंडीकैम दिख गया। कल रात जो मैंने उसकी चुदाई की रिकार्डिंग के लिये रखी थी। मैंने उसे लेकर फिर से रिकार्ड करना शुरू कर दिया। अजय का लण्ड पूरी तरह अंदर पैबस्त था और वो बहुत बेरहमी से उसकी चूचियां कुचल मसल रहा था। उसकी चूत गाढ़े सफेद वीर्य से लथफथ थी और उसकी धार बहकर उसकी गोरी दूधिया जांघों और चूतड़ों पे पड़ रही थी। उसके चेहरे पे दर्द और मस्ती दोनों साफ झलक रही थी। उसके होंठों से रह-रह के सिसकियां निकल रही थीं।
और जब अजय ने अपना लण्ड बाहर निकाला तो मैं सिहर गयी। बीयर कैन ऐसा चौडा, मोटा था उसका लण्ड। अब मैं समझ गयी की उसने उसकी टांग इतनी कसकर क्यों फैलवा रखी थीं। इसके बिना तो इत्ता मोटा लण्ड वो उसकी किशोर कसी चूत में घुसेड़ ही नहीं सकता था। वह 5-6 धक्के धीरे-धीरे मारता जो चूत को रगड़ते अंदर जाते और फिर 2-3 धक्के पूरी ताकत से कस-कसकर कमर पकड़कर मारता, जो मैं श्योर थी कि सीधे उसकी बच्चेदानी पे लग रहे होंगें। गुड्डी पत्ते की तरह कांप जाती और कसकर पलंग पे रखा तकिया भींच लेती। दर्द रोकने के लिये वो बार-बार अपने होंठ दांत से काट लेती।
मुझे लग रहा था की जिस तरह से उसने उसकी टागें फैलावा रखी थीं उससे, उसकी चूत को थोड़ा आराम जरूर मिल रहा होगा। पर टांगें और जांघें दर्द से चूर हो रही होंगी। थोड़ी देर तक इस तरह कस-कसकर चोदने के बाद उसने अपना लण्ड पूरी तरह अंदर घुसेड़कर, उसकी टांगें सटवा दीं। वो इतने पे ही नहीं रुका, उसने उससे जबरदस्ती किया की वो अपनी टांगें कैंची की तरह एक दूसरे में फंसा ले।
मेरा तो दिल दहल गया। मैं समझ गयी की वो कौन सा आसन इश्तेमाल करने जा रहा है। इस तरीके से चोदने से तो दो बच्चों की मां को भी पशीना आ जाता है और एकदम कुंवारी कच्ची चूत की तरह चुदती है वो। अगर ऐसे, किसी भोंसडीवाली को भी चोदें तो उसे सुहागरात का मजा आ जाता है और ये बिचारी तो वैसे ही किशोर कच्ची कली है और ऊपर से अजय का लण्ड भी।
अब अजय ने अपनी टांगें चौड़ी करके, उसके बीच में उसकी टांगें कसकर दबोच लीं। वो बिचारी अब अपनी टांग एक इंच भी नहीं फैला सकती थी। अजय ने अब कस-कसकर उसकी चूचियां बिस्तर पे ही रगड़ना शुरू कर दिया, पूरी ताकत से। दर्द के मारे वो चीख उठती थी। अजय ने एक हाथ आगे बढ़ाकर उसकी जांघ के बीच में करकर, लगता है कसकर उसकी क्लिट को मसल दिया, क्योंकी मस्ती के मारे जोर से उसकी सिसकी निकल गयी। अब वह कभी बेरहमी से उसकी चूचियां कसकर बिस्तर पे रगड़-रगड़ के उसकी चीख निकाल देता, तो कभी क्लिट को रगड़ के सिसकी।
लगता है वो इस चक्कर में, अपनी कसी चूत में फंसे लण्ड को भूल चुकी थी।
तभी अजय ने उसके चूतड़ पकड़कर अपना लण्ड धीरे-धीरे बाहर किया।
जैसे कुतिया की चूत में कुत्ते के लण्ड की गांठ बन जाती है एकदम वही हाल गुड्डी की हो रही थी। उसने उसकी टांगें चिपका के अपनी टांगों से ऐसे बांध रखी थीं की उसे सचमुच कुतिया का ही मजा मिल रहा होगा। और फिर जब उसने वापस अपना लण्ड अंदर किया तो उसका मोटा हलब्बी लण्ड, उसकी कसी चूत की दीवाल को रगड़ता, घिसता, छीलता अंदर बड़ी मुश्किल से जा रहा था। लेकिन वो भी पूरी ताकत से ठेल रहा था और उधर गुड्डी बेचारी… चीख-चीख के उसकी बुरी हालत हो रही थी। एक आँसू का कतरा उसकी हिरणी सी आँख से सरक के उसके गोरे गुलाबी गाल पे आ गया।
बेरहम ने चूमकर वो आँसू साफ कर दिया। लेकिन साथ ही कचकचा के जिस तरह से उसका गाल काटा, वो दाग दो-तीन दिन तक तो जाने वाला नहीं। धीरे-धीरे उसका आधा लण्ड हचक के, चूत में फंसा-फंसा जाने लगा। अब उसने उसकी गोरी पीठ पे छितराये फैले खूबसूरत काले बालों को लपेट के चोटी सी बनाई और एक हाथ से पकड़कर इस तरह खींचा की जैसे कोई खूबसूरत अरबी घोड़ी की लगाम पकड़कर खींचें।
जैसे ही दर्द से उसका मुँह खुला, उसने अपनी एक उँगली उसके मुँह में घुसेड़ दी, और जोर से बोला- “चोप, जरा भी आवाज बाहर निकली तो… चूस मेरी उँगली… जरा दर्द का मजा लेना सीख। इस दर्द में ही तो असली मजा है। दर्द को सिर्फ बर्दाश्त ना करो उसे मजे की तरह लो। आखिर दर्द और मजे में कोई अंतर नहीं है सिर्फ तुम्हारा मन उसे किस तरह लेता है। अगर तुम उसको भी मजे की तरह लेना शुरू करोगी ना तो नये-नये तरह-तरह के मजे तुम्हें मिलने शुरू हो जायेंगें। तेरी चूत, चूची, चूतड़ सब मजे देने के लिये हैं। अब एकदम आवाज बंद और कसकर चूस मेरी उँगली। जितना कसकर इसे चूसेगी उतना ही तुझे आसानी होगी…”
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