RE: Nanad ki training--ननद की ट्रैनिंग
“मोरे भैया, अजय भैया, आंगन में आये।
आने को आदर, बैठन को कुर्सी,
खाने को खाना, पीने को पानी और
और सोवन को, संग सोवन को,
मजा देने को, टांग उठाने को। अरे,
हमरी ननदी रानी राजी रे, संग सोवन को,
अरे रात चुदावन को गुड्डी रानी राजी,
अरे हमरे भैया से, अजय भैया से चुदावन को
गुड्डी ननदी राजी रे।
“अरे, थैंक यू, तुम राजी हो। तो खुद ही कह देती ना दीदी से कहलवाने की क्या जरूरत थी?” अजय ने उसे छेड़ा।
गुड्डी- “धत्त भाभी, आप भी। ये तो पूरी बेइमानी है। मैंने आपसे इस साल्ले को गाली सुनाने के लिये कहा था, उलटे आपने मुझे ही गाली सुना दी। ये नहीं चलेगा। कम से कम आप एक और गाली सुनाइये…” मुँह फुलाकर वो बोली।
“तो ये क्यों नहीं कहती कि तुम्हें अजय का नाम लगाकरके और गाली सुनने का मन है लेकिन इसके बाद तुझे सुनाना पड़ेगा…” मैंने उसे चिढ़ाया।
“अरे भाभी ये क्या सुनायेगी, इसे कुछ आता भी है बेचारी शहर वाली, हां एम टीवी के गाने कहिये तो जरूर… या रिमिक्स पे नाच देगी…” अजय ने उसे फिर छेड़ा।
गुड्डी- “अरे बड़े आये हो तुम… अभी देखना ऐसी सुनाऊँगी ना कि तुम दोनों भाई-बहन पनपनाते फिरोगे। पर पहले भाभी। लेकिन ये अजय के नाम से नहीं शुरू होनी चाहिये की…”
“अच्छा चल, अजय के नाम से नहीं तेरे नाम से शुरू करती हूं सुन…”
डलवाय लो गुड्डी आई बाहर, डलवाय लो,
डलिहें भैया हमार, डलिहे अजय तोर यार, डलिहें भैया तोहार,
डलवाय लो अरे गुड्डी आई बाहर, चुदवाय लो,
डलिहें तेलवा लगाई, नहीं तनिको दुखाई,
मजा तोहें खूब आई, देइहें नोट चुदवाई,
डलवाय लो, अरे गुड्डी आई बाहर, चुदवाय लो,
चोदिहें चूचियां दबाई, चोदिहें टंगिया फैलाई, डलवाय लो,
पड़ी चूतड़े पे थाप, मजा आई दिन रात, चुदवाय लो।
“चल अब तेरा नंबर है…” मैंने गुड्डी से कहा।
“ठीक है भाभी…” और वो मुश्कुराकर शुरू हो गई-
अजय की बहना बिकाय, कोई लै लो,
अरे हमरी भाभी बिकाय कोई लै लो,
अठन्नी में लै लो, चवन्नी में लै लो,
अरे दिल जर जाय मुफत में लै लो, अजय की बहना।
“अरे ये कौन सी गाली हुई, मैं कह रहा था ना दीदी की आपकी इस ननद को कुछ नहीं आता, हां थोड़े बहुत फिल्मी गाने और रिमिक्स पे कमर मटका लेती हैं बस…” अजय ने उसको चिढ़ाया।
“अच्छा साले। कान खोलकर रख सुनाती हूं तुझे…” और गुड्डी फिर से चालू हो गयी-
“अरिया अरिया साल्ले सब बैठे, बीच में बैठा अजय साल्ला जी।
अरे उनकी बहिना, हमरी भाभी चलीं फुलवां चुनने, गिरी पड़ीं बिछलाई जी।
खुलि गई साड़ी, फटि गई चोली, अरे बुरिया में, अरे भोंसड़ी में घुस गई लकड़िया जी।
दौड़ा दौड़ा अजय भय्या, अरे दौड़ा दौड़ा अजय साल्ला, मुंहवा से खींचा लकड़िया जी,
अरे आवा आवा अजय भंड़ुए, होंठवा से खींचा लकड़िया जी।
अरिया अरिया साल्ले सब बैठे, बीच में बैठा अजय साल्ला जी,
अरे बहना तुम्हारी, अरे भाभी छिनरौ, एक पग चलली, दूसर पग चललीं,
अरे गिरी पड़ीं भहराई जी, अरे उनकी गंड़ियां में घुस गयी लकड़िया जी।
दौड़ा दौड़ा अजय भय्या, अरे दौड़ा दौड़ा अजय साल्ला, मुंहवा से खींचा लकड़िया जी।
और इन रसीली गालियों के साथ और छेड़-छाड़ भी चल रही थी। मैंने अजय से कहा की ये डिश गुड्डी ने बनाई है इसे जरूर टेस्ट कर लेना।
तो उसने बोला- “नहीं दीदी, मुझे स्वाद खराब नहीं करना है…”
गुड्डी भी कम नहीं थी। उसने अपने हाथों में लेकर उसे खिलाया और जैसे ही उसने मुँह खोला, सब उसके गालों पे लपेट दिया और हँसकर बोली- “अब अपनी बहना से चाट के साफ करा। उनके होंठों के स्वाद के साथ ये बहुत मीठा लगेगा…”
पर अजय भी उसे ऐसे थोड़े ही छोड़ने वाला था। उसने कसकर उसका सर पकड़ा और अपने गाल कस-कसकर उसके होंठों पे रगड़ दिये और बोला- “जरा तेरे होंठों का स्वाद तो चख लूं…”
दुबारा जब गुड्डी ने उसे अपने हाथों से खिलाया तो उसने कसकर उसकी उंगलियां काट लीं।
वो बेचारी बड़ी जोर से चीखी- “देखो भाभी, इस साल्ले ने कितने जोर से काट लिया। मना करिये अपने भैया को…”
“अरे मेरे मना करने से क्या होगा? अभी तो देख वो आगे क्या-क्या काटता है…” मैं क्यों चुप रहती।
दोनों एक दूसरे को लालच भरी निगाह से देख रहे थे, वो उसकी मस्त चूचियों को बेशरमी से खुलकर घूर रहा था और उधर वो भी उसकी मसल्स, तगड़ी गठी देह को ललचाई नजर से देख रही थी। उसके उँगली काटने का जवाब गुड्डी ने अपने ढंग से दिया। उसके ग्लास में पानी डालते हुए, उसने ढेर सारा पानी उसके पाजामें पे गिरा दिया। जाड़े की रात… वो बिचारा अच्छी तरह भीग गया।
ऊपर से बड़े भोलेपन से उसने सारी बोल दिया।
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