RE: Nanad ki training--ननद की ट्रैनिंग
“ठीक है दीदी, अगर आप इतना कहती हैं तो रुक जाता हूं…” मुश्कुराकर वो बोला।
“झूठे, मेरे कहने से या अपनी… इसके कहने से…”
अब गुड्डी के झेंपने की बारी थी लेकिन गुड्डी ने पलट वार किया- “अच्छा, तो ये दीदी भैया की मिली भगत है। मेरे भैया कल से नहीं है तो आज रात बिताने के लिये आपने अपने भाई को बुलवा लिया। क्यों भाभी एक दिन में ही इतनी खुजली मच गयी…”
“अच्छा मैं मान लेती हूं की तुम्हारी बात सही है लेकिन तुम्हें मेरी एक बात मंजूर करनी पड़ेगी, बोल?”
गुड्डी- “एकदम मंजूर, भाभी आपको तो मालूम ही है की मैं आपकी बात टालती नहीं…”
“पक्का?”
गुड्डी- “एकदम पक्का भाभी…”
“तो ठीक है अगर तुम्हारे भैया आ गये तो, जो काम वो मेरे साथ रात भर करेंगें वो तुम्हें भी मेरे भैया के साथ करना पड़ेगा। अरे यार, मैं रोज तुम्हारे भैया के साथ तो एक दिन तुम भी मेरे भैया के साथ… और अजय ये वादा कर चुकी है तुम्हारे सामने तो अगर ये जरा भी ना-नुकुर करे ना तो उसके साथ जोर जबर्दस्ती करने का तुम्हारा एकदम पूरा हक बनता है…”
“एकदम दीदी…” और ये कहकर उसने कसकर उसे अपनी मजबूत बांहों में पकड़ लिया और दबाने लगा।
“देखिये भाभी, ये साल्ला… दबा रहा है कस के, कितनी ताकत है तुममें, दंगल लड़ते हो क्या?” वो चीख के बोली।
“अरे तुम लोग दबाओ, दबवाओ, पकड़ो, पकड़वाओ। मैं चली किचेन में…” किचेन में उनके हँसने खिलखिलाने की आवाजें आ रहीं थीं। मैं खाना बनाने में लगी थी।
तभी हँसती मुश्कुराती, गुड्डी मेरी हेल्प करने किचन में आई।
मैंने मुश्कुराकर पूछा- “हे क्या हो रहा था? बड़ी हँसी आ रही है…”
गुड्डी- “अरे आपके भैया, बड़े वो हैं…” मुश्कुराकर वो बोली।
“अरे जानती है हँसी तो फँसी। मालूम है, तेरा वो पुराना दीवाना है…” मैंने कहा।
गुड्डी- “मालूम है, भाभी…” फिर से हँसकर वो बोली।
“और बहुत तगड़ा भी है…” मैंने और कहा।
गुड्डी- “ये भी मालूम है, भाभी…” सलाद काटते हुये मुश्कुराकर वो बोली।
“तो दे दे ना बिचारे को इत्ता क्यों तड़पाती है? तेरा कौन सा घिस जायेगा…”
गुड्डी- “ना ना भाभी कल रात भर जगी हूं मैं, अब तक टांगों में दर्द हो रहा है…”
“अरे तो कोई जरूरी है रात भर दो। एक बार भी दे दो तो उसका तो… और फिर तेरा यार तो 5 दिन के लिये गांव गया है। तो वैसे भी तेरी 5 दिन तक छुट्टी है तो फिर? और ये कौन सा रोज-रोज आता है…”
गुड्डी- “वो बात तो आपकी सही है भाभी, लेकिन…”
“अरे अब लेकिन वेकिन कुछ नहीं बस दे दो बिचारे को, खुश हो जायेगा…”
गुड्डी- “देखूंगी, चलिये भाभी आपका भाई भी क्या याद करेगा किसी दिलदार से पाला पड़ा था…” और वो बड़ी अदा से टेबल पे प्लेटें लगानें चूतड़ मटकाते चल दी।
मैंने उससे कहा की वो खाने में अजय का साथ दे दे। फिर अगर राजीव लेट आयें तो मैं उनके साथ खा लूंगी। खाना शुरू करते ही मेरी ननद को कुछ याद आया और वो रुक कर बोली- “भाभी, जब मेरे भैया खाते हैं तो आप जम के गालियां सुनाती हैं तो आज चुप क्यों हैं?”
“अरे, तुम्हारे भैया को मैं सुनाती हूं तो मेरे भैया को तू सुना, वो भी अच्छी वाली, जबर्दस्त…”
गुड्डी- “नहीं भाभी पहले आप, फिर मैं सुनाऊँगी पक्का, इस साल्ले को तो वैसे भी मुझे जमकर गालियां सुनानी हैं…”
“अच्छा चल तू इत्ता कह रही है तो मैं सुना देती हूं पर उसके बाद तुम…” और मैं शुरू हो गयी-
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