Nanad ki training--ननद की ट्रैनिंग
11-07-2017, 12:01 PM,
#84
RE: Nanad ki training--ननद की ट्रैनिंग
देर तक, खूब देर तक वो बरसता रहा, वो भीगती रही और जैसे बहुत कड़ी गरमी के बाद बारिश हो रही हो। खुशी की वो हालत गुड्डी के चेहरे की थी, जैसे ताल तलैये भर जाने के बाद पानी बाहर निकलकर अगल-बगल के खेतों को भी डुबो देता है उसी तरह उसकी चूत से गाढ़े सफेद वीर्य की धार निकलकर उसकी गोरी मखमली जांघों पे बह रही थी। दोनों एक दूसरे की बाहों में उसी तरह बहुत देर तक पड़े रहे। उसका लण्ड भी उसकी चूत में गड़ा घुसा था। थोड़ी देर बाद वो उठकर उसकी बगल में लेट गया। कुछ देर में उठकर उसने उसकी ओर देखा। वो अभी भी थकी पस्त पड़ी थी। तकिये के पास टूटी लाल चूड़ियां, उसके कड़े रस भरे यौवन कलश पे नाखून और दांत के निशान और गोरी-गोरी थकी जांघों पे गाढ़े गाढ़े वीर्य के थक्के। 

“हे ज्यादा दर्द तो नहीं हुआ?” उसने पूछा। 

गुड्डी- “हे पहले तो जान निकाल ली और अब…” थकी-थकी मुश्कान के साथ वो बोली। 

उसने झुक के उसे चूम लिया और गुड्डी ने भी अपनी बाहों में भरकर उसे हल्के से चूमकर जवाब दिया। 

उसे प्यार से पकड़कर उसने उठा लिया और गोद में बैठा लिया और कहा- “मैं क्या करता, तुमने इंतजार इत्ता करवाया…” वो शिकायत के अंदाज में बोला। 

गुड्डी- “झूठे, एक हफ्ते के अंदर दूसरी बार और कितनी बार? और फिर…” 

“अरे यार, ये दिल मांगे मोर। तू इत्ती मस्त-मस्त है कि बस मन करता है की तुझे छोडूं ही नहीं…” उसके जोबन सहलाते हुये वो बोला। 

(तब तक हवा के एक तेज झोंके से खिड़की पूरी तरह खुल गयी। मस्त चांदनी अब उनके देह को नहला रही थी और अब मैं खुलकर सब कुछ देख और सुन रही थी।) 

गुड्डी- “अच्छा जी… बेइमान, झूठे। अगर ये बात थी तो मुझे छोड़कर गांव क्यों जा रहे हो? वहां भी कोई बैठी है क्या देने वाली? मैं मना थोड़े ही करती हूँ। जब चाहे तब ले लो, तुम्हारा ही है पर तुम खुद ही…” उसको हल्के से किस करती हुई बड़ी अदा से वो बोली। 

“अरे मजबूरी है यार, मेरी बहन चंदा की कल सगाई है। तुम्हारे बराबर ही या तुमसे थोड़ी ही बड़ी होगी। हम लोगों को उसके ससुराल जाना है। यहां से निकलकर मैं सीधे बस पकड़कर गांव ही जाऊँगा…” उसकी चूत में हल्के से उँगली करते हुए वो बोला। 

गुड्डी- “अच्छा… तो ये क्यों नहीं कहते की अपनी बहना के लिये ‘हथियार’ का पक्का इंतजाम करने जा रहे हो…”उसके खड़े होते लण्ड को हल्के से पकड़कर मरोड़कर वो उसे चिढ़ाते हुये बोली।

“हे क्या बोल रही है तू?” वो बोला। 

गुड्डी- “अरे मेरे राजा, नाराज क्यों होता है, जो तू मेरे साथ करता है ना, तो उस रिश्ते से तो वो मेरी ननद हुई ना… तो फिर उसके साथ मजाक क्या, मैं जम के उसे गाली भी दे सकती हूं…” उसके लण्ड को अब कसकर मुठियाते हुए उसने सुपाड़ा पूरी तरह खोल दिया था। उसकी इस बात से मैं बहुत खुश हुई। अब मेरी ननद पक्की तरह से ट्रेन्ड लग रही थी।

तब तक गुड्डी का ध्यान मेज पे रखी बखीर की ओर गया। उसे लाने के लिये वो उठते हुये बोली- “हे पर जरा चेक कर लेना अपने जीजू का लण्ड की चंदा के लायक है की नहीं…” उठते हुए उसने उसे फिर छेड़ा। 

कुछ उसकी बातों का असर, कुछ उसके नरम मुलायम चूतड़ की रगड़ाई और कुछ मेंहदी लगे हाथों की गरमी, उसके यार का टेंटपोल फिर खड़ा हो गया था। सुपाड़ा तो उसने शरारत में खोल ही दिया था। चूतड़ मटकाते बड़ी अदा से वो बढ़ी और फिर मुड़कर उसके लण्ड को देखते बोली- “और वैसे अगर तुम्हारे जैसा मूसल होगा तो, फिर तो चंदा रानी के मजे ही मजे हैं…” 

चांदी के कटोरे में रखी बखीर को लेकर वो आ गयी और अबकी खुद उसकी गोद में बैठकर बजाय चम्मच के अपनी लंबी नरम उंगलियों से ही उसे खिलाने लगी। 

“अरे ये तो बखीर है एकदम असली, ईख के रस में गुड़ में पगी ये तुमने कहां से सीखा? और तुम्हें मालूम है इसका असर? गौने की दुल्हन को ये खिलाया जाता है और वो रात भर रगड़ के चुदवाती है…” वो खुशी से बोला। 

गुड्डी- “अरे इत्ती कस-कसकर तुमने चोदा है, अभी कोई कसर बाकी है क्या? वैसे ये बताओ मेरे राजा कि इसके पहले तुमने किसको चोदा है?” मुंह में बखीर देते-देते शरारत से उसने थोड़ा उसके गाल पे भी लगा दिया और फिर चाट-चाट के साफ किया। 

उसका यार भी उसे क्यों छोड़ता। उसे खिलाते हुये उसने भी थोड़ा उसके उभारों पे पोत दिया और फिर चाट चूट के साफ किया। गुड्डी उसे एक हाथ से खिला रही थी और दूसरे हाथ से कस-कसकर उसको मोटे खड़े लण्ड को रगड़ रही थी। और वो भी… उसकी भी एक उँगली उसकी चूत में और अंगूठा क्लिट पे था। 

गुड्डी- “बता न, किसको चोदा है सबसे पहले तूने? मेरी कसम, सच में मैं एकदम बुरा नहीं मानूंगी। वैसे भी मेरी भाभी कहती हैं ‘अनाड़ी चुदवैया बुर की खराबी’ बता ना प्लीज, तुझे मेरी कसम…” बड़ी अदा से अपने जोबन उसकी छाती से रगड़ती कसकर के उसका एक चुम्मा लेकर उसने पूछा। 

“अच्छा बताता हूं। इसी पिछली होली में गांव में। मेरी एक रिश्ते की भाभी हैं उमर में मुझसे 4-5 साल बड़ी होंगी। उनके पती शादी के बाद ही कमाने के लिये दुबई चले गये। साल में एक बार ही आ पाते हैं। बच्चे कोई हैं नहीं। तुम्हें तो मालूम है कि होली में गांव में कितना खुल्लम-खुल्ला और वो भी देवर भाभी में। दिन में होली खेलते-खेलते उन्होंने मेरे पाजामें में हाथ डालकर खूब कसकर मेरे लण्ड में रंग लगाया। और फिर मैं क्यों छोड़ता… मैंने भी उनकी चोली के अंदर कस के उनकी बड़ी-बड़ी चूचियां रगड़ी। उन्होंने मुझे चैलेंज किया की अगर असली मर्द हो तो शाम को आना होली खेलने। शाम को जब मैं पहुँचा तो पहले तो भांग पिला के उन्होंने मुझे एकदम नशे में कर दिया और फिर…” 

गुड्डी- “और फिर तुमने चोदा उनको…” गुड्डी बोल पड़ी। 

“अरे नहीं यार मैंने नहीं। उन्होंने ही, मुझे लिटा के मेरे ऊपर चढ़ गयी और जम के चोदा मुझे। हां नीचे से चूतड़ उठाकर धक्के मैं भी लगा रहा था और उनकी मस्त चूचियों का भी दबा-दबा के चूस-चूस के रस ले रहा था, पर चुदाई उन्होंने ही की। जब मैं घर लौटा तो मेरी भाभी ने, उन्हें सब कुछ पता चल जाता है, आँख नचाके पूछा- क्यों लाला, खा आये तुम भी सदाव्रत में। तब मुझे पता चला की उस भाभी ने गांव के किसी भी लड़के को नहीं छोड़ा है…” 

गुड्डी- “तो फिर तुमने सबसे पहले किसको…” आज वो बिना जाने नहीं छोड़ने वाली थी। 

“रजपतिया को। मेरे घर में काम करती थी, उसी की लड़की। चमाइन थी पर लगती नहीं थी। लोग कहते हैं की उसकी मां भी किसी ब्राहमण से फँसी थी और ये उसी की बेटी थी, गेंहुआ रंग, गुदाज गदरायी देह, चूचियां चोली फाड़ती रहतीं, उतान होकर चलती थी, कुछ दिन में ही गौना होने वाला था। किसी को हाथ नहीं रखने देती थी ना किसी के यहां जाती थी, पर उसकी मां चूंकी मेरे घर काम करती थीं इसलिये वो मेरे घर आती जाती थी बचपन से। मेरी आँख उस पे बहुत दिन से गड़ी थी, पर हिम्मत नहीं पड़ती थी। लेकिन होली में भाभी के साथ चुदाई के बाद मैं थोड़ा और बेधड़क हो गया था। इसलिये होली के दो चार दिन के बाद ही भूसे वाले घर में वह भूसा निकाल रही थी। मैंने उसे धर दबोचा…” 

वो मटक के बोली- “बाबू, अपने खेत का गन्ना खिलवाओ ना…” 

मेरे खेत में फारम का लाल गन्ना लग था। खूब मोटा और लंबा। सब उसके दीवाने, पर हम लोग उसकी जम के रखवाली भी करते थे। मैं हँसकर बोला- “एकदम… जब कहो और आजकल खेत में रखवाली भी तो मैं ही करता हूं…” पर मैंने देखा की वो मेरे पाजामें में तने तम्बू को देख रही थी और मैं समझ गया की वो किस गन्ने की बात कर रही है। 

हँसकर वो बोली- “बाबू, शहर जाके बड़े हो गये हो…” और निकलते हुए उसने मेरे तने लण्ड को पाजामे के ऊपर से दबा दिया। 

मैं क्यों पीछे रहता, मैंने भी चोली के ऊपर से उसकी चूची कसकर दबाके, बोला- “और तू भी तो बड़ी हो गयी है…” 

उसी दिन रात में खलिहान में मैं सोया था, आखिरी पहर होगा रात का, गन्ने के खेत में सरसराहट सुनायी दी। उठकर मैं चुपचाप खेत के अंदर घुसा, दबे पांव। काफी अंदर एक औरत हंसिये से गन्ना काट रही थी। मैंने पीछे से हचाक से जाके दबोच लिया और जिस कलाई में हंसिया थी उसे पहले पकड़ा की कहीं वार ही न कर दे पलट के। और दूसरे से उसकी भरी-भरी छाती। जब मुड़कर उसने देखा तो रजपतिया ही थी। 

मैंने पूछा- “हे मेरे ही खेत से गन्ने की चोरी…” 

“चोरी नहीं बाबू सीना जोरी। चोरी तो अब करूंगी…” और एक झटके में उसने मेरे पाजामें में हाथ डालकर मेरा लण्ड पकड़ लिया और उसका हाथ लगते ही वो मोटे गन्ने की ही तरह खड़ा हो गया। 

उसकी छाती दबाते-दबाते मैंने भी उसका ब्लाउज खोल दिया- “चल खिलाता हूं तुझे आज गन्ना…” और ये बोल के उसे वहीं पटक दिया और चढ़ गया उसके ऊपर। साड़ी उसकी कमर तक करके टांगें फैला दीं। काली घुंघराली झांटें थीं उसकी। चूत फैलाकर पेल दिया कस के, चूची मसलते मसलते। 

गुड्डी बोली- “मैंने तो सुना है कि गांव में खूब छुआ-छूत चलता है…”

“अरे अब नहीं, पहले था। लेकिन सब साल्ला फ्राड है, छुआ पानी नहीं पियेंगें लेकिन चुम्मा चाटी के लिये छुछियायेंगें। मैं वैसे भी ये सब नहीं मानता…” ये बातें सुनते ही गुड्डी गरम हो गयी। वो कसकर मुठठी में लण्ड दबाकर मुठिया रही थी, और उधर उसने भी चुदाई की बात सुनाते-सुनाते अब उसकी बुर में दो उँगली एक साथ डालकर तेजी से अंदर-बाहर करने लगा, जैसे उसका लण्ड अंदर-बाहर हो रहा हो और गुड्डी की रसीली बुर भी अब अच्छी तरह पनिया गयी थी। 
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