RE: Nanad ki training--ननद की ट्रैनिंग
ननद की ट्रैनिंग – भाग 5
(लेखिका - रानी कॉर)
अगले दिन सुबह ही गुड्डी हमारे घर आ गयी। मेरे जेठ जेठानी और सभी लोग पन्द्रह दिन के लिये, विदाई वाले दिन की शाम को ही बाहर चले गये थे। सिर्फ मैं और राजीव बचे थे, इसलिये मैंने रिक्वेस्ट किया कि मुझे अकेलापन लगेगा तो गुड्डी कुछ दिन मेरे साथ रह ले। उसका स्कूल भी हमारे घर के पास था। सब लोग मान गये और अगले दिन सुबह ही वो आ गयी। उसका कमरा मैंने नीचे गेस्टरूम में सेट किया, जिसका एक दरवाजा सीधे बाहर खुलता था। राजीव को भी आज आफिस के काम से बाहर जाना था और हमीं दोनों घर में थे।
उसने मुझसे मुश्कुराकर आँख नचाकर कहा- “भाभी, 12 से 3 भूली तो नहीं…”
“कैसे भूल सकती हूं, पिया मिलन को जाना… चल नहा के आ, फिर मैं तुझे तैयार करती हूं…” उसके गाल पे कसकर चिकोटी काटकर मैं बोली।
जब वह नहा के लौटी तो आज रोज से भी गोरी लग रही थी। लगता था, खूब मल-मल के नहाया है। मैंने उसके लिये जींस और गुलाबी टी-शर्ट निकालकर रखी थी। पर पहले मैंने उसे लेसी थांग पहनाया, जो उसके चूतड़ों के बीच में फँसी थी और फिर एक लेसी पुश-अप फ्रांट ओपेन, हाफ कप ब्रा। जींस एकदम हिप हगिंग और टाइट थी। उसके रसीले चूतड़ साफ-साफ दिख रहे थे। टी-शर्ट भी मैंने उससे कहा की जींस के अंदर टक करके पहने। कसी टी-शर्ट और टाईट हो गयी और उसके उभार खुलकर छ्लक रहे थे।
“भाभी बड़ी टाईट है…” वो बोली।
“क्यों चिंता करती हो वो ढीला कर देगा…” पर मैंने शर्ट की ऊपर की दो बटन खोल दीं। ढीली तो ज्यादा नहीं हुई, पर उसके गोरे मदमाते जोबन की झलक साफ-साफ दिखने लगी और गहराई भी। फिर मैंने उसके बाल भी खींचकर बन की तरह बांध दिये, जिससे उसकी गोरी सुराहीदार लंबी गरदन भी साफ-साफ दिख रही थी। उसके गुलाबी होंठों पे गुलाबी लिपिस्टक, हल्की सी क्रीम, बड़ी-बड़ी आंखों में हल्का सा काजल और आई शैडो, और सबसे आखिर में एक एरोटिक इंपोर्टेड परफ्यूम थोड़ा सा लगाया और उसके जोबन की गहराई के बीच भी हल्का सा लगा दिया।
“तुझे देखकर खड़ा हो जायेगा उसका…” उसके निपल्स को कसकर पिंच करते हुए मैंने बोला।
जब हम लोग पहुंचे तो वो खड़ा था, पिक्चर ऐसी थी की जैसा मैंने सोचा था। पिक्चर हाल में सन्नाटा था- “हे टिकट कहां मिलेगा? लाईन में लगना पड़ेगा, कोई परिचित होता तो…” मैं बनकर बोली।
“भाभी, ये हैं अंशू, मेरे मुहल्ले के ही हैं…” गुड्डी ने उसकी ओर इशारा किया।
“अरे तो फिर क्या, प्लीज जरा बाल्कनी के…” कहकर मैंने पैसे उसकी ओर बढ़ाये।
“पर ये तो ज्यादा हैं, दो टिकट के तो…”
“अरे तो क्या तुम्हें पिक्चर नहीं देखनी है, तीन टिकट ले लेना, और कोने का मिले तो और अच्छा…”
मैंने देखा की वो बात तो मुझसे कर रहा था, पर उसकी निगाहें मेरी ननद के चेहरे पर गड़ी थीं और बार-बार फिसलकर उसकी शर्ट से छलकते उभारों पे आ जा रही थीं। और वो बड़ी मुश्किल से अपनी मुश्कान दबा पा रही थी। हम लोग अंदर पहुंचे तो हाल खाली था। मैं जाकर पीछे वाली लाइन में सबसे कोने वाली कुर्सी पे बैठ गयी। मेरे बगल में गुड्डी और उसकी बगल में वो बैठा। बालकनी पूरी खाली थी। पिक्चर शुरू होने के बाद एक दो लोग आये और वो लोग आगे की ओर बैठ गये।
पर्दे पे पिक्चर चालू हो गयी थी, पर मैं तो हाल में हो रही पिक्चर में इंट्रेस्टेड थी और वो भी थोड़ी देर में शुरू हो गयी। सीट के हत्थे पे गुड्डी ने हाथ रखा था, उसपर उसने भी हाथ रख दिया। जैसा मैंने समझाया था, गुड्डी ने कुछ देर में अपना हाथ हटा लिया। सामने एक रोमांटिक सीन चल रहा था। कुछ देर बाद जब फिर गुड्डी ने हत्थे पे वापस हाथ रखा, तो कुछ देर बाद जैसे अनजाने में उसका हाथ पड़ गया हो, उसने हाथ रख दिया। जब अबकी गुड्डी ने हाथ नहीं हटाया तो थोड़ी देर में वह उसकी उंगलियां सहलाने लगा। हम तीनों बड़े ध्यान से सामने पर्दे पे देख रहे थे, जैसे कुछ ना हो रहा हो।
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