RE: Chodan Kahani शौहरत का काला सच
उधर मन्त्री का चमचा ऊपर आ गया था और मन्त्री की सचिव ज़ेबा को इशारे से उसने अपने पीछे आने को कहा।
दोनों का खूब याराना था तो जब भी मौका मिले अपने नंगे बदन भिड़ा बैठते थे।
ज़ेबा भी बिना कुछ बोले उसके पीछे आ गई, दोनों शीबा के कमरे में चले गये।
ज़ेबा- क्या हुआ? यहाँ क्यों बुलाया है मुझे? मिस शीबा आ के पास जा तू…
चमचा- अरे मेरी छम्मक छल्लो… इतनी जल्दी मन्त्री जी थोड़े ही उसे आज़ाद कर देंगे… आज तो बड़ी प्यारी बुलबुल पकड़ में आई है… मन्त्री जी पूरा मज़ा लेने के बाद की उसको जाने देंगे… तब तक इस कमरे में थोड़ा गुटर-गूँ हम भी कर लेते हैं।
ज़ेबा- आजकल कुछ ज़्यादा ही बदमाश हो गये हो, जब देखो गंदी बातें करने लगते हो? जाओ मुझे नहीं करना कुछ भी…
चमचा- ओये बहन की लौड़ी… नखरे मत दिखा। तुझे मन्त्री जी की पी ए मैंने ही बनाया है और साली, मन्त्री जी को तो कभी ना नहीं कहती… जब देखो उनकी गोद में बैठी रहती हो?
ज़ेबा- वो तो मेरे अन्नदाता है, उनको कैसे ना कह सकती हूँ मैं…
चमचा- अन्नदाता नहीं लण्डदाता बोल… मेरी ज़ेबा चल अब टाईम मत खराब कर…
इतना बोलकर चमचा ज़ेबा के बदन से चिपक गया उसके चूतड़ दबाने लगा।
उधर अब जरा मन्त्री जी और शीबा खान का हाल चाल भी देख लें-
अब वो धीरे धीरे आगे बढ़े और अपना होंठ शीबा के होठों के पास ले जाने लगे।
शीबा की तेज होती गरम सांसें उनको अपने चेहरे पर महसूस हो रही थी।
बस इतना कहते ही उसने शीबा के उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना उन्होंने अपना हाथ उसके सर के पीछे करके शीबा के सर को पकड़ लिया और उसके होठों को चूमने लगे, उसके होठों के मीठे रस को पीने लगे।
अब धीरे धीरे शीबा भी उत्तेजित हो रही थी, आखिर वो भी तो इंसान थी, इस हालत में कब तक अपने जज्ब्बात काबू में रख पाती।
अब शीबा भी साथ देने लगी थी।
मन्त्रीजी अब भी उसके होंठ चूस रहे थे, लेकिन अब उनके हाथ भी गहराइयों को टटोलने लगे थे।
उनके हाथ अब उसके उरेजों पर था और वो प्यार से धीरे धीरे उसे दबा रहे थे।
मन्त्री जी बोले- ऐ बेपनाह हुस्न की मलिका, अब तो अपने हुस्न का दीदार करा दो, ऐसे अपना मुखड़ा ना छुपाओ… देखने दो मुझे इस चमकते हुए चेहरे को… निहारने दो मुझे इन रस से भरे चूचों को… मेरी आँखों कैद कर लेने दो इस सुलगते जिस्म को… आज मेरा रोम रोम तेरे क़ातिल हुस्न में रम जाने दो… दीवाना बना हूँ, कब से बेक़रार हूँ इस हुस्न को पाने को।
बस मन्त्री के हाथ उसकी पीठ के नीचे गये और पीछे से उसके ब्लाऊज़ के हुक खोलने लगा, सत्तर के दशक में साड़ी के साथ ब्लाऊज़ में पीछे के हुक लगाने का फ़ैशन था।
शीबा ने भी करवट ली और अब उसकी पीठ मन्त्री के सामने थी।
अब मन्त्री जी के हाथ उसके ब्लाउज के हुक पर तेजी से घूम रहे थे और हर पल एक हुक खुलता जा रहा था।
कुछ देर में उसकी ब्लाउज खुल चुकी थी तो शीबा सीधी हो गई, अब अंदर की काली ब्रा नजर आ रही थी, जो उरोजों को छुपा तो नहीं पा रही थी बल्कि आमंत्रण दे रही थी।
मन्त्री जी ने अब अपना हाथ पीछे करके उसकी ब्रा का हुक खोला और उसे उतार दिया।
क्या खूबसूरत दूधिया दो कबूतर थे। मन्त्री तो बस उस लाजवाब हुस्न को देखता रह गया।
मन्त्री जी ने शीबा के सुडौल वक्षों को हाथों में दबोच लिया और आराम से धीरे धीरे सहलाने लगे।
कुछ देर तक वैसे ही सहलाते रहे फिर एक को अपने मुंह में लेकर धीरे धीरे प्यार से चूसने लगे।
शीबा की आँखें बंद थी और वो रह रह कर सिहर रही थी।
मन्त्री जी उसके निप्प्ल्स को चुटकी में दबा कर गोल गोल घुमा रहे थे।
शीबा का बदन अकड़ रहा था, वो उत्तेजित हो रही थी, अब उसके मुंह से मादक सीत्कार निकल रही थी।
अब तो मन्त्री जी के हाथ पूरी हरकत में आ गए, वो शीबा के बूब्स को बुरी तरह से मसलने लगे।
शीबा मन ही मन सोच रही थी- कमीना ऐसे कर रहा है जैसे कभी कोई लड़की नहीं चोदी।
चूमाचाटी का यह सिलसिला जब रुका तो मन्त्री के साथ साथ शीबा भी गर्म हो चुकी थी, दोनों की साँसें तेज हो गई थी।
धीरे धीरे उनके हाथ शीबा के बदन पर फिसल रहे थे, तेजी से निचे आ रहे थे, जैसे जैसे हाथ नीचे आ रहे थे, शीबा की सांसे तेज हो रही थी।
अब हाथ पेट पर पहुँच चुका था, और उन्होंने अपनी ऊँगली शीबा की नाभि में डाल दिया।
शीबा का बदन अकड़ रहा था।
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