RE: Train Sex Stories रेल यात्रा
आशीष के बोलने का अंदाज और उसके चेहरे के भाव पढ़ कर कविता गुस्से से बाहर
निकली- "ए राजू। ये क्या है रे। सारे कमरे को पान की पीकों से भर रखा है,
चल। मिनट से पहले इसको धो दे! " कह कर वापस कविता अन्दर आई और बोली-
"चिंता मत करो। अभी सब ठीक हो जायेगा। पर अब बोलो। रानी को साथ रख लोगे?"
आशीष ने घूम कर बाहर खड़ी रानी को देखा। रानी आँखों ही आँखों में खुद को
उससे दूर न करने की प्रार्थना करती हुयी लग रही थी- "हम्म...रख लूँगा।!"
"ठीक है। रानी! तुम राजू के साथ मिलकर इस कमरे की सफाई करवा दो। तुम मेरे
साथ आओ आशीष। तब तक मैं तुम्हे यहाँ लड़कियों से मिलवाती हूँ! " कहकर
कविता आशीष का हाथ पकड़ कर बाहर ले गयी।
आशीष उस घर की एक एक लड़की से मिला। सभी भूखी प्यासी सी नजरों से उसको देख
कर मुस्कुरा रही थी। भूख उनके पते की थी या शरीर की। ये आशीष समझ नहीं
पाया। कहने को सभी एक से एक सुन्दर और जवान थी। पर ये सुन्दरता और जवानी
उनके शरीर तक ही सीमित थी। किसी की आँखों में अपनी जवानी और सौंदर्य को
लेकर गर्व की भंगिमाएं नहीं थी। उनको देख कर आशीष को लगा जैसे यह चार दिन
की जवानी ही उनका सहारा है और यह जवानी ही उनकी दुश्मन!..
"इसमें कोई नहीं है क्या?" कविता चलते हुए जब एक कमरे को छोड़ कर आगे जाने
लगी तो आशीष ने यूँही पूछ लिया।
"है। पर तुम्हारे मतलब की नहीं। साली नखरैल है। " कहकर कविता वापस मुड़ी
और कमरे का लकड़ी के फत्ते का दरवाजा खोल दिया!- "वैसे क़यामत है। पता नहीं
किस दिन तैयार होगी। "
आशीष ने अन्दर झाँका तो अचरज से देखता ही रह गया। अन्दर अपनी आँखें बंद
किये लेटी लड़की का रंग थोडा सांवला था। पर नयन नक्स इतने कटीले और सुंदर
थे की आशीष का मुंह खुला का खुला रह गया। उस लड़की का चेहरा सोने की तरह
अजीब सी आभा लिए हुए था। गालों पर एक अन्छुयी सी कशिश थी। होंठ गुलाब की
पंखुड़ियों के माफिक थे। एक दम रसीले! ! आशीष को उसी पल में उसको बाहों
में समेट कर प्यार करने का ख्याल आया!- "इसको मैंने बाहर तो नहीं देखा।?"
"हम्म्म। बताया तो तुम्हे की बड़ी नखरैल है साली। ये बाहर नहीं निकलती।
देखते हैं कब तक भूख के आगे इसके नखरे टिकते हैं। आओ!" कविता ने दरवाजा
बंद कर दिया।
"क्या मतलब?" आशीष की आँखों के सामने अब भी वही प्यारा सा चेहरा घूम रहा था!
"कुछ नहीं। आओ। तुम्हारा कमरा तैयार हो गया होगा। "कविता ने कहा और वापस
चल पड़ी!- "थोडा आराम कर लो। थके हुए आये हो। मैं भी लेट लेती हूँ थोड़ी
देर।!"
आशीष वापस अपने कमरे में गया तो दंग रह गया। बिस्तर पर बैठी रानी उसका
इन्तजार कर रही थी। आशीष को देखते ही मुस्कुराने लगी- "ठीक हो गया न।
अपना कमरा?"
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