RE: Train Sex Stories रेल यात्रा
राजपूत ने उसके चेहरे की और देखा। वो तो खेल शुरू करने से पहले ही आउट हो
गयी। टाइम आउट। उसने अपना स्कर्ट उठाया पहनने के लिए। राजपूत ने स्कर्ट
उससे पहले ही उठा लिया।
शीतल- क्या है।?
राजपूत का पारा फिर गरम होने लगा- "क्या है क्या? गेम पूरा करना है "
पर जैसे शीतल के दिमाग की गर्मी उसकी चूत के ठंडे होते ही निकल गई-
"प्लीज मुझे जाने दो। मेरी स्कर्ट और पैंटी दे दो "
राजपूत- वाह भाई वाह। तू तो बहुत सयानी है। अपना काम निकाल कर जा रही है।
मैं तुझे ऐसे नहीं छोडूंगा "
शीतल समझौते के मूड में थी- "तो कैसे छोड़ोगे?"
राजपूत- छोडूंगा नहीं चोदुंगा!
शीतल- प्लीज एक बार स्कर्ट दे दो। ठोड़ी देर में कर लेना!
राजपूत- नहीं नहीं। चल ठीक है। तू अपना टॉप उतर कर अपनी चूचियां दिखा दे।
फिर जाने दूंगा।!
शीतल- प्रामिस!
राजपूत- अरे ये संजय राजपूत की जुबान है।! राजपूत कुछ भी कर सकता है,
अपनी जुबान से नहीं फिर सकता। समझी!
शीतल ने अपना टॉप और समीज ऊपर उठा दिए- "लो देख लो!"
राजपूत उसके चिकने पत्ते और उसकी कटोरी जैसी सफ़ेद चूचियीं को देखता रह
गया। शीतल ने अपना टॉप नीचे कर दिया।
राजपूत को ऐसा लगा जैसे ब्लू फिल्म देखते हुए जब निकलने वाला हो तो लाइट
चली जाये- "ये क्या है।! बात तो निकालने की हुई थी!"
शीतल- प्लीस जाने दो न, मुझे नींद आ रही है!
राजपूत- अच्छा साली! मेरी नींद उड़ा कर तू सोने जाएगी!
शीतल ने टॉप और समीज पूरा उतार दिया और मादरजात नंगी हो गयी। जैसे आई थी
इस दुनिया में!
राजपूत तो इस माल को देखते ही बावला सा हो गया। शीतल को उलट पलट कर देखा।
कोई कमी नहीं थी, गांड चुचियों से बढ़कर और चूचियां गांड से बढ़कर!
"अब दे दो मेरा स्कर्ट!" शीतल ने राजपूत से कहा।
राजपूत ने उल्टा उससे टॉप भी छीन लिया।
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