Train Sex Stories रेल यात्रा
11-05-2017, 01:23 PM,
#16
RE: Train Sex Stories रेल यात्रा
आशीष भले ही शीतल की जाँघों की वजह से उसकी मछली का आकर न देख पानरहा हो,
पर राजपूत तो उसके सामने लेटा था। बिलकुल उसकी टांगों की सीध में। वो तो
एक बार शीतल की जांघें और उनके बीच में पैंटी के नीचे छिपी बैठी चिकनी
मोटी चूत को देखकर हाथों से ही अपने लंड को दुलार-पुचकार और हिला-हिला कर
चुप करा चुका था। पर लंड तो जैसे अकड़ा बैठा था की चूत में घुसे बगैर
सोऊंगा ही नहीं, खड़ा ही रहूँगा। जब राजपूत ने शीतल को अपनी पैंटी में
अपना हाथ घुसाते देखा तो उसका ये कण्ट्रोल जवाब दे गया। वह आगे सरका और
शीतल की टांग पकड़ ली। उसका लंड उसके हाथ में ही था।
शीतल के पैर पर मर्द का गरम हाथ लगते ही वो उचक कर बैठ गयी। उसने देखा।
राजपूत उसकी जाँघों के बीच गीली हो चुकी पैंटी को देख रहा है। शीतल ने
घबराकर अपना हाथ बहार निकल लिया!
उसकी नजर आशीष पर पड़ी। वो उस वक़्त रानी की टाँगे उठा रहा था उसमें लंड
घुसाने के लिए।
चारों ओर लंड ही लंड। चारों ओर वासना ही वासना। शीतल का धैर्य जवाब दे
गया। उसने तिरछी नजर से एक बार राजपूत की ओर देखा और सीट से उतर कर
गुसलखाने की ओर चली गई।
राजपूत कच्चा खिलाडी नहीं था। वो उन तिरछी नजरों का मतलब जानता था। वह
उतरा और उसके पीछे-पीछे सरक लिया।

उधर रानी में डूबे आशीष को पता ही न चला की कब दो जवान पंछी उड़ गए। मिलन
के लिए। नहीं तो वह रानी को अधूरा ही छोड़ देता!

राजपूत ने जाकर देखा, शीतल गुसल के बहार खड़ी जैसे उसका ही इन्तजार कर
रही थी। राजपूत के उसको टोकने से पहले ही शीतल ने नखरे दिखाने शुरू कर
दिए- "क्या है?"

राजपूत- "क्या है क्या! मूतने आया हूँ।" उसने जानबूझ कर अशलील भाषा का
प्रयोग किया। वह बरमूडे (उसने पैंट नहीं पहन रखी थी ) के ऊपर से अपने तने
हुए लंड पर खुजाते हुए कहा।
शीतल- मेरे पीछे क्यूँ आये हो!

राजपूत- तेरी गांड मारने साली। मैं क्या तेरी पूँछ हूँ जो तेरे पीछे आया
हूँ। तू ही मेरे आगे आ गयी बस!

शीतल- तो कर लो जो करना है। जल्दी। मैं बाद में जाउंगी।
राजपूत- सच में कर लूं क्या?
शीतल- "अरे वो मू....पेशाब करो और चलते बनो।" उसकी आवाज मारे कामुकता के
बहक रही थी पर उसकी अकड़ कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी।

राजपूत में भी स्वाभिमान कूट-कूट कर भरा हुआ था। उसने शीतल के आगे बाहर
ही अपना लंड निकाल लिया और हिलाता हुआ अन्दर घुस गया।
शीतल की आँखें कभी शर्म के मारे नीचे और कभी उत्तेजना के मारे उसके मोटे
लंड को देख रही थी।

राजपूत मूत कर बाहर आ गया और बाहर आकर ही उसने अपना लंड अन्दर किया।-
"जाओ जल्दी अन्दर...तुम्हारा निकलने वाला होगा।
शीतल- पहले तुम यहाँ से फूट लो। मैं अपने आप चली जाउंगी।
राजपूत- नहीं जाता। बोल क्या कर लेगी।
शीतल- तो मैं भी नहीं जाती। तुम क्या कर लोगे?
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RE: Train Sex Stories रेल यात्रा - by sexstories - 11-05-2017, 01:23 PM

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