RE: Train Sex Stories रेल यात्रा
आशीष की पैंट में हाथ डालकर कच्छे के ऊपर से ही उसको सहलाने लगी। आशीष का
ध्यान उसी लड़की पर था। उसके लंड ने अंगडाई ली और तैयार हो गया।
आशीष का कच्छा उसके आनंद में बांधा लगने लगा। वह उठा और बाथरूम जाकर
कच्छा निकला और पैंट की जीप में रखकर वापस आ गया।
चैन पहले से ही खुली थी। कविता ने पैंट से हथियार निकल लिया। और उस खड़े
लंड को ऊपर नीचे करने लगी।
तभी शीतल ने करवट बदल ली और कविता को आशीष के साथ कम्बल में बैठे देख कर
चौंक सी गयी। कविता किसी भी हाल में आशीष की पत्नी तो लगती नहीं थी।
उसने आँखें बंद कर ली। पर आशीष और कविता को कोई परवाह नहीं थी। जब मियां
बीवी राज़ी तो क्या करेगा काजी। हाँ बार बार वो नीचे देखने का नाटक जरूर
कर रही थी। कहीं बापू जाग न जाये।
आशीष ने अपना हाथ उसकी जाँघों के बीच रखा और उसकी सलवार और पैंटी के ऊपर
से ही करीब एक इंच उंगली उसकी चूत में घुसा दी। कविता 'आह ' कर बैठी।
शीतल ने आँखें खोल कर देखा और फिर से बंद कर ली।
कविता ने अपनी सलवार का नाडा खोलकर उसको नीचे सरका दिया और आशीष का हाथ
पकड़ कर अपनी पैंटी की साइड में से अन्दर डाल दिया।
आशीष को शीतल का बार बार आँखें खोल कर देखना और बंद कर लेना। कुछ
सकरात्मक लग रहा था की बात बन सकती है।
उसने कविता की चूत में हाथ डाल कर जोर-जोर से अन्दर बाहर करनी शुरू कर
दी। कविता सिसकने लगी और उसकी सिसकियाँ बढती गयी।
शीतल की बेचैनी बढती गयी। उसके चेहरे पर रखे हाथ नीचे चले गए। शायद उसकी चूत पर!
आशीष ने उसको थोड़ा और तड़पाने की सोची। उसने कविता का सिर पकड़ा और चादर के
अन्दर अपने लंड पर झुका दिया।
अब चादर के ऊपर से बार-बार कविता का सर ऊपर नीचे हो रहा था। शीतल की हालत
नाजुक होती जा रही थी।
शीतल के बारे में सोच-सोच कर आशीष इतना गरम हो गया था की 5 मिनट में ही
उसने कविता का मुंह अपने लंड के रस से भर दिया। ऐसा करते हुए उसने कविता
का सर जोर से नीचे दबाया हुआ था और 'आहें ' भर रहा था।
शीतल आँखें खोल कर ये सीन देख रही थी। पर आशीष ने जैसे ही उसकी और देखा।
उसने मुंह फेर लिया।
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