RE: Train Sex Stories रेल यात्रा
ठीक 9:00 बजे राजधानी एक्सप्रेस स्टेशन पर आई। जब आशीष ने उनको एक डिब्बा
दिखाया तो बूढ़ा भाग कर उसमें चढ़ने की कोशिश करने लगा और उसके पीछे ही वो
दोनों भी भाग ली। उनको लगा जैसे पीछे रह गए तो सीट नहीं मिलेगी। तभी बूढ़ा
खड़ा होकर हंसने लगा- "अरे आरक्षण में भी कोई भाग कर चढ़ता है। यहाँ तो सीट
मिलनी ही मिलनी है, चाहे सबसे बाद में चढो!
आशीष हंसने लगा।
चारों ट्रेन में चढ़े। आशीष अपनी सीट देखकर ऊपर जा बैठा। तो पीछे-पीछे ही
वो भी उसी बर्थ पर चढ़ गए।
आशीष- क्या हो गया ताऊ? अपनी सीट पर जाओ न नीचे!
ताऊ- तो ये अपनी सीट नहीं है क्या?
आशीष उनकी बात समझ गया!- "ताऊ, सबकी अलग अलग सीट हैं। ये चारों सीटें अपनी ही हैं।
ताऊ- अच्छा बेटा, मैं तो आरक्षण में कभी बैठा ही नहीं हूँ। गलती हो गयी!
कहकर ताऊ नीचे उतर गया। रानी भी। और कविता सामने वाली बर्थ पर ऊपर जा
बैठी। बूढ़ा आशीष के ठीक नीचे था! और रानी नीचे के सामने वाले सीट पर।
उनको इस तरह करते हुए देख एक नकचढ़ी लड़की बोली- "कभी बैठे नहीं हो क्या
ट्रेन में?" कहकर वो हंसने लगी। बड़ी घमंडी सी मालूम होती थी और बड़े घर
की भी।
आशीष ने उस पर गौर किया। 22-23 साल की गोरी सी लड़की थी कोई। आशीष को
सिर्फ उसका चेहरा दिखाई दिया। वो लेटी हुयी थी।
उसकी बात सुनकर कविता तुनक कर लड़ाई के मूड में आ गयी- "तुमको क्या है? हम
जहाँ चाहेंगे वहां बैठेंगे। चारो सीटें हमारी हैं। बड़ी आई है!"
इस बात पर उस लड़की को भी गुस्सा आ गया- "हे स्टुपिड विलेजर। जस्ट बी इन
लिमिट। डोन्ट ट्राई टू मैस विद मी!
कविता- अरे क्या बक बक कर रही है तू। तेरी माँ होगी स्टूपिड! कविता को बस
स्टूपिड ही समझ में आया था और उसको पता था ये एक गली होती है।
उस लड़की ने बात बिगड़ते देख आशीष को कहा- "ए मिस्टर! जस्ट शट उप यूर पेट्स
और इ विल...
आशीष- सॉरी म़ा 'म मैं।
"इ 'ऍम नोट a म़ा 'म, यू नो! माय नेम इज मिस शीतल! "
आशीष- सॉरी मिस शीतल! माई नेम इज आशीष!
शीतल- आई हव नो एनी बिज़नस विद योर नेम एंड फेम। जस्ट स्टॉप दा बास्टर्ड(हरामी)!
आशीष को लगा बड़ी तीखी है साली। पर उसने कविता को शांत कर दिया।
इतने में ही एक भाई साहब जो उसके बराबर वाली सीट पर बैठे थे, उन्होंने सर
निकाल कर कहा।- "भैया! खुली हुयी गधी के पीछे नहीं जाते। लात मार देती
है।"
उस शीतल को उसकी कहावत समझ नहीं आई पर आशीष उसकी बात सुनकर जोर-जोर से हंसने लगा।
इससे शीतल की समझ में आ गया की उसने उसी को गधी कहा है और वो उसी से उलझ
पड़ी।- "हाउ डेयर यू टू कॉल। "
पर उस आदमी की हिम्मत गजब की थी। उसने शीतल को बीच में ही रोक कर अपनी
सुनानी शुरू कर दी- "ए! आई डोन्ट केयर! फ़किंग द गर्ल्स इज माई बिज़नेस।
O.k. माई नेम इज संजय राजपूत। अरे गाँव वाले बेचारे क्या इन्सान नहीं
होते। तुझे शर्म नहीं आई उन पर हँसते हुए। यु आर इवेन मोर इलिट्रेट दैन
दे आर। डर्टी बिच!"
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