RE: Train Sex Stories रेल यात्रा
मोटी जांघों वाली को उसने पतली टांगों वाली के मुंह के ऊपर बैठा दिया।
पतली टांगों वाली की छातियों के पास घुटने रखवाकर! कविता के पैर रानी के
पैरों तले दबकर वही जम गए। उसके चूतड़ ऊपर उठे हुए थे। चूत को पूरा खोले
हुए। रानी की मांसल जांघें कविता के चेहरे के दोनों तरफ थी। और रानी की
चूत कविता के मुंह के ऊपर!।.....आशीष एक पल को देखता रहा। उसकी कलाकारी
में कहाँ कमी रह गयी और फिर मोटी फ़ांको वाली चूत का जूस निकलने लगा! अपनी
जीभ से। सीधा कर्रेंट कविता के दिमाग तक गया। वो मचल उठी और रानी की छोटी
सी चूत से बदला लेने लगी। उसकी जीभ कविता की चूत में आग लगा रही थी और
कविता की जीभ रानी को चोदने योग्य बना रही थी।
रानी में तूफ़ान सा आ गया और वो भी बदला लेने लगी। कविता की चूचियों को मसल मसल कर।
अब आशीष ने कविता की चूत को अपने लंड से खोदने लगा। खोदना इसीलिए कह रहा
हूँ क्यूंकि वो खोद ही रहा था। ऊपर से नीचे। चूत का मुंह ऊपर जो था।
जितना अधिक मजा कविता को आता गया उतना ही मजा वो रानी को देती गयी। अपनी
जीभ से चोद कर।
अब रानी आशीष के सर को पकड़ कर अपने पास लायी और अपनी जीभ आशीष के मुंह में दे दी।
आशीष कविता को खोद रहा था। कविता रानी को चोद रही थी...(जीभ से ) और रानी
आशीष को चूस रही थी! सबका सब कुछ व्यस्त था। कुछ भी शांत नहीं था।
आशीष ने खोदते-खोदते अपना खोदना उसकी चूत से निकाल और खड़ा होकर रानी के
मुंह में फंसा दिया। अब रानी के दो छेद व्यस्त थे।
ऐसे ही तीन चार बार निकाला-चूसाया फ़िर आशीष ने कविता की गांड के छेद पर
थूका और उसमें अपना लंड फंसने लगा। 1...2...3....4... आशीष धक्के मारता
गया। लंड हर बार थोडा थोडा सरकता गया और आखिर में आशीष के गोलों ने कविता
के चुताड़ों पर दस्तक दी। कुछ देर बर्दास्त करने के बाद अब कविता को भी
दिक्कत नहीं हो रही थी। आशीष ने
रानी को कविता की चूत पर झुका दिया। वो जीभ से उसकी चूत के आस पास चाटने
लगी। अब सबको मजा आ रहा था।
अचानक रानी की चूत ने रस छोड़ दिया। कविता के मुंह पर। ज्यादातर कविता के
मुंह में ही गया। और कविता की चूत भी तर हो गयी।
अब रानी की बारी थी। वो तैयार भी थी दर्द सहन करने को। आशीष ने सबका आसन
बदल दिया। अब कविता की जगह रानी थी और रानी की जगह कविता!
आशीष ने रानी की चूत पर गौर किया। वो सच में ही छोटी थी। उसके लंड के
लिए। पर एक न एक दिन तो इसको बड़ा होना ही है। तो आज ही क्यूँ नहीं!
आशीष ने पहले से ही गीली रानी की चूत पर थोडा थूक लगाया और उसपर अपना लंड
रखकर धीरे धीरे बैठने लगा। जैसे कविता की गांड में बैठा था।
1...2...3...4.. और दर्द में बिलखती रानी ने कविता की चूत को काट खाया।
कविता की चूत से काटने की वजह से खून बहने लगा और रानी की चूत से झिल्ली
फटने से खून बहने लगा। दोनों दर्द से दोहरी होती गयी।!
झटके लगते रहे। फिर मजा आने लगा और जैसे ही रानी का मजा दोबारा पूरा हुआ।
आशीष ने उसकी चूत के रस को वापस ही भेज दिया। अन्दर। अपने लंड से पिचकारी
मारकर। योनी रस की!
तीनों बेड पर अलग अलग बिखर गए। रानी भी औरत बन गयी।
ऐसा करके आशीष को एक बात तो पक्का हो गयी। जब कविता की चूचियों में दूध
नहीं है। तो वो माँ नहीं हो सकती एक साल के बच्चे की!
उधर बुढ़े ने कमरे का एक-एक कोना छान मारा। पर उसे उन पैसों का कोई सुराग
नहीं मिला। जिनके बारे में आशीष बार- बार कह रहा था कि पैसे बहुत हैं। थक
हार कर मन मसोस कर वो बिस्टर पर लेट गया और आशीष के बहार आने का इंतज़ार
करने लगा।
आशीष को याद आया उसको आरक्षण भी कराना है। तीन और टिकटों का।
वह बहार निकाल गया। रेलवे स्टेशन पर।
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