RE: Train Sex Stories रेल यात्रा
आशीष ने देखा। पटरी के साथ में एक खाली डिब्बा खड़ा है। साइड वाले
अतिरिक्त पटरी पर। आशीष काँटों से होता हुआ उस रेलगाड़ी के डिब्बे की और
जाने लगा।
"ये तुम जा कहाँ रहे हो?, आशीष!"
" आना है तो आ जाओ। वरना भाड़ में जाओ। ज्यादा सवाल मत करो!"
वो चुपचाप चलती गयी। उसके पास कोई विकल्प ही नहीं था।
आशीष इधर उधर देखकर डिब्बे में चढ़ गया। रानी न चढ़ी। वो खतरे को भांप
चुकी थी- "प्लीज मुझे मेरे बापू के पास ले चलो। "
वो डरकर रोने लगी। उसकी सुबकियाँ अँधेरे में साफ़ साफ़ सुनाई दे रही थी।
"देखो रानी! डरो मत। मैं वही करूँगा बस जो मैंने ट्रेन में किया था। फिर
तुम्हे बापू के पास ले जाऊँगा! अगर तुम नहीं करोगी तो मैं यहीं से भाग
जाऊँगा। फिर कोई तुम्हे उठाकर ले जाएगा और चोद चाद कर रंडी मार्केट में
बेच देगा। फिर चुदवाती रहना सारी उम्र। " आशीष ने उसको डराने की कोशिश की
और उसकी तरकीब काम कर गयी।।
रानी को सारी उम्र चुदवाने से एक बार की छेड़छाड़ करवाने में ज्यादा फायदा
नजर आया। वो डिब्बे में चढ़ गयी।
डिब्बे में चढ़ते ही आशीष ने उसको लपक लिया। वह पागलों की तरह उसके मैले
कपड़ों के ऊपर से ही उसको चूमने लगा।
रानी को अच्छा नहीं लग रहा था। वो तो बस अपने बापू के पास जाना चाहती
थी।- "अब जल्दी कर लो न। ये क्या कर रहे हो?"
आशीष भी देरी के मूड में नहीं था। उसने रानी के कमीज को उठाया और उसी छेद
से अपनी ऊँगली रानी के पिछवाड़े से उसकी चूत में डालने की कोशिश करने
लगा। जल्द ही उसको अपनी बेवकूफी का अहसास हुआ। वासना में अँधा वह ये तो
भूल ही गया था की अब तो वो दोनों अकेले हैं।
उसने रानी की सलवार का नाडा खोलने की कोशिश की।
रानी सहम सी गयी। "छेद में से ही डाल लो न।!"
"ज्यादा मत बोल। अब तुने अगर किसी भी बात को "न " कहा तो मैं तभी भाग
जाऊँगा यहीं छोड़ कर। समझी!" आशीष की धमकी काम कर गयी। अब वो बिलकुल चुप
हो गयी
आशीष ने सलवार के साथ ही उसके कालू के रस में भीगी कच्छी को उतार कर फैंक
दिया। कच्छी नीचे गिर गयी। डिब्बे से!
रानी बिलकुल नंगी हो चुकी थी। नीचे से!
आशीष ने उसको हाथ ऊपर करने को कहा और उसका कमीज और ब्रा भी उतार दी। रानी रोने लगी।
"चुप करती है या जाऊ मैं!"
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