RE: Train Sex Stories रेल यात्रा
ज्यों-ज्यों रात गहराती जा रही थी। यात्री खड़े खड़े ही ऊँघने से लगे थे।
आशीष ने देखा। कविता भी झटके खा रही है खड़ी खड़ी। आशीष ने भी किसी सज्जन
पुरुष की तरह उसकी गर्दन के साथ अपना हाथ सटा दिया। कविता ने एक बार आशीष
को देखा फिर आँखें बंद कर ली।
अब आशीष और खुल कर खतरा उठा सकता था। उसने अपने लंड को उसकी गांड की दरार
में से निकाल कर सीध में दबा दिया और रानी के बनाये रस्ते में से उंगली
घुसा दी। अंगुली अन्दर जाकर उसकी कच्छी से जा टकराई!
आशीष को अब रानी का डर नहीं था। उसने एक तरीका निकला। रानी की सलवार को
ठोडा ऊपर उठाया उसको कच्छी समेत पकड़ कर सलवार नीचे खीच दी। कच्छी थोड़ी
नीचे आ गयी और सलवार अपनी जगह पर। ऐसा करते हुए आशीष खुद के दिमाग की दाद
दे रहा था। हींग लगे न फिटकरी और रंग चौखा।
रानी ने कुछ देर ये तरीका समझा और फिर आगे का काम खुद संभल लिया। जल्द ही
उसकी कच्छी उसकी जांघो से नीचे आ गयी। अब तो बस हमला करने की देर थी।
आशीष ने उसकी गुदाज जांघो को सलवार के ऊपर से सहलाया। बड़ी मस्त और चिकनी
थी। उसने अपने लंड को रानी की साइड से बहार निकल कर उसके हाथ में पकड़ा
दिया। रानी उसको सहलाने लगी।
आशीष ने अपनी उंगली इतनी मेहनत से बनाये रास्तों से गुजार कर उसकी चूत के
मुंहाने तक पहुंचा दी। रानी सिसक पड़ी।
अब उसका हाथ आशीष के मोटे लंड पर जरा तेज़ी से चलने लगा। उत्तेजित होकर
उसने रानी को आगे से पीछे दबाया और अपनी ऊगली गीली हो चुकी चूत के अन्दर
घुसा दी। रानी चिल्लाते-चिल्लाते रुक गयी। आशीष निहाल हो गया। धीरे धीरे
करते-करते उसने जितनी खड़े-खड़े जा सकती थी उतनी उंगली घुसाकर अन्दर बहार
करनी शुरू कर दी। रानी के हाठों की जकड़न बढ़ते ही आशीष समझ गया की उसकी
अब बस छोड़ने ही वाली है। उसने लंड अपने हाथ में पकड़ लिया और जोर जोर से
हिलाने लगा। दोनों ही छलक उठे एक साथ। रानी ने अपना दबाव पीछे की और बड़ा
दिया ताकि भाभी पर उनके झटकों का असर कम से कम हो और अनजाने में ही वह एक
अनजान लड़के की उंगली से चुदवा बैठी। पर यात्रा अभी बहुत बाकी थी। उसने
पहली बार आशीष की तरफ देखा और मुस्कुरा दी!
अचानक आशीष को धक्का लगा और वो हडबडा कर परे हट गया। आशीष ने देखा उसकी
जगह करीब 45-46 साल के एक काले कलूटे आदमी ने ले ली। आशीष उसको उठाकर
फैंकने ही वाला था की उस आदमी ने धीरे से रानी के कान में बोला- "चुप कर
के खड़ी रहना साली। मैंने तुझे इस लम्बू से मजे लेते देखा है। ज्यादा
हीली तो सबको बता दूंगा। सारा डिब्बा तेरी गांड फाड़ डालेगा कमसिन जवानी
में!" वो डर गयी उसने आशीष की और देखा। आशीष पंगा नहीं लेना चाहता था। और
दूर हटकर खड़ा हो गया।
उस आदमी का जायजा अलग था। उस ने हिम्मत दिखाते हुए रानी की कमीज में हाथ
डाल दिया। आगे। रानी पूरा जोर लगा कर पीछे हट गयी। कहीं भाभी न जाग जाये।
उसकी गांड उस कालू के खड़े होते हुए लंड को और ज्यादा महसूस करने लगी।
रानी का बुरा हाल था। कालू उसकी चूचियां को बुरी तरह उमेठ रहा था। उसने
निप्पलों पर नाखून गड़ा दिए। रानी विरोध नहीं कर सकती थी।
एकाएक उस काले ने हाथ नीचे ले जाकर उसकी सलवार में डाल दिया। ज्यों ही
उसका हाथ रानी की चूत के मुहाने पर पहुंचा। रानी सिसक पड़ी। उसने अपना
मुंह फेरे खड़े आशीष को देखा। रानी को मजा तो बहुत आ रहा था पर आशीष जैसे
सुन्दर छोकरे के हाथ लगने के बाद उस कबाड़ की छेड़-छाड़ बुरी लग रही थी।
अचानक कालू ने रानी को पीछे खींच लिया। उसकी चूत पर दबाव बनाकर। कालू का
लंड उसकी सलवार के ऊपर से ही रानी की चूत पर टक्कर मारने लगा। रानी गरम
होती जा रही थी।
अब तो कालू ने हद कर दी। रानी की सलवार को ऊपर उठाकर उसके फटे हुए छेद को
तलाशा और उसमें अपना लंड घुसा कर रानी की चूत तक पहुंचा दिया। रानी ने
कालू को कसकर पकड़ लिया। अब उसको सब कुछ अच्छा लगने लगा था। आगे से अपने
हाथ से उसने रानी की कमसिन चूत की फाँकों को खोला और अच्छी तरह अपना लंड
सेट कर दिया। लगता था जैसे सभी लोग उन्ही को देख रहे हैं। रानी की आँखें
शर्म से झुक गयी पर वो कुछ न बोल पाई।
कहते हैं जबरदस्ती में रोमांस ज्यादा होता है। इसको रानी का सौभाग्य कहें
या कालू का दुर्भाग्य। गोला अन्दर फैकने से पहले ही फट गया। कालू का सारा
माल बहार ही निकल गया। रानी की सलवार और उसकी चिकनी मोटी जाँघों पर! कालू
जल्द ही भीड़ में गुम हो गया। रानी का बुरा हाल था। उसको अपनी चूत में
खालीपन सा लगा। लंड का। ऊपर से वो सारी चिपचिपी सी हो गयी। कालू के रस
में।
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