RE: Train Sex Stories रेल यात्रा
धीरे धीरे रानी का बदन भी बहकने सा लगा। आशीष का लंड अब ठीक उसकी चूत के
मुहाने पर टिका हुआ था। चूत के दाने पर।
"बापू " कविता चिल्लाई।
"बापू " ने अपना मुंह इस तरफ निकाला, एक बार आशीष को घूरा इस तरह खड़े
होने के लिए और फिर भीड देखकर समझ गया की आशीष तो उनको उल्टा बचा ही रहा
है- "क्या है बेटी?"
कविता ने घूंघट निकल लिया था- "इनके पास आरक्षण की टिकेट हैं जयपुर से
आगे के लिए। इनके काम की नहीं हैं। कह रहे हैं सामान्य किराया लेकर दे
देंगे!"
उसके बापू ने आशीष को ऊपर से नीचे तक देखा। संतुष्ट होकर बोला- "अ ये तो
बड़ा ही उपकार होगा। भैया हम गरीबों पर! किराया सामान्य का ही लोगे न!"
आशीष ने खुश होकर कहा- "ताऊ जी मेरे किस काम की हैं। मुझे तो जो मिल
जायेगा। फायदे का ही होगा।" कहते हुए वो दुआ कर रहा था की ताऊ को पता न
हो की टिकेट वापस भी हो जाती हैं।
"ठीक है भैया। जयपुर उतर जायेंगे। बड़ी मेहरबानी!" कहकर भीड़ में उसका
मुंह गायब हो गया।
आशीष का ध्यान रानी पर गया वो धीरे धीरे आगे पीछे हो रही थी। उसको मजा आ रहा था।
कुछ देर ऐसे ही होते रहने के बाद उसकी आँखें बंद हो गयी। और उसने कविता
को जोर से पकड़ लिया।
"क्या हुआ रानी?"
सँभलते हुए वह बोली। "कुछ नहीं भाभी चक्कर सा आ गया था।
अब तक आशीष समझ चूका था कि रानी मुफ्त में ही मजे ले गयी चुदाई जैसे।
उसका तो अब भी ऐसे ही खड़ा था।
एक बार आशीष के मन में आई कि टाइलेट में जाकर मुठ मार आये। पर उसके बाद
ये ख़ास जगह खोने का डर था।
अचानक किसी ने लाइट के आगे कुछ लटका दिया जिससे आसपास अँधेरा सा हो गया।
लंड वैसे ही अकड़ा खड़ा था रानी कि गांड में। जैसे कह रहा हो। अन्दर घुसे
बिना नहीं मानूंगा मेरी रानी!
लंड के धक्को और अपनी चूचियों के कविता भाभी की चूचियों से रगड़ खाते
खाते वो जल्दी ही फिर लाल हो गयी।
इस बार आशीष से रहा नही गया। कुछ तो रोशनी कम होने का फायदा। कुछ ये
विश्वास की रानी मजे ले रही है। उसने थोडा सा पीछे हटकर अपने पेन्ट की
जिप खोल कर अपने घोड़े को खुला छोड़ दिया। रानी की गांड की घटी में खुला
चरने के लिए के लिए!
रानी को इस बार ज्यादा गर्मी का अहसास हुआ। उसने अपना हाथ नीचे लगा कर
देखा की कहीं गीली तो नहीं हो गयी नीचे से। और जब मोटे लंड की मुंड पर
हाथ लगा तो वो उचक गयी। अपना हाथ हटा लिया। और एक बार पीछे देखा।
आशीष ने महसूस किया, उसकी आँखों में गुस्सा नहीं था। अलबत्ता थोडा डर
जरुर था। भाभी का और दूसरी सवारियों के देख लेने का।
थोड़ी देर बाद उसने धीरे-2 करके अपनी कमीज पीछे से निकाल दिया।
अब लंड और चूत के बीच में दो दीवारें थी। एक तो उसकी सलवार और दूसरा उसकी कच्छी.
आशीष ने हिम्मत करके उसकी गांड में अपनी उंगली डाल दी और धीरे धीरे सलवार
को कुरेदने लगा। उसमें से रास्ता बनाने के लिए।
योजना रानी को भा गयी। उसने खुद ही सूट ठीक करने के बहाने अपनी सलवार में
हाथ डालकर नीचे से थोड़ी सी सिलाई उधेड़ दी। लेकिन आशीष को ये बात तब पता
चली। जब कुरेदते कुरेदते एक दम से उसकी अंगुली सलवार के अन्दर दाखिल हो
गयी।
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