RE: Train Sex Stories रेल यात्रा
अगले स्टेशन पर डिब्बे में और जनता घुश आई और लाख कोशिश करने पर भी कविता
अपने चारों और लफ़ंगे लोगों को सटकर खड़ा होने से न रोक सकी।
उसका दम सा घुटने लगा। एक आदमी ने शायद उसकी गांड में कुछ चुभा दिया। वह
उछल पड़ी। - "क्या कर रहे हो? दिखता नहीं क्या?"
"ऐ मैडम। ज्यास्ती बकवास नहीं मारने का। ठंडी हवा का इतना इच शौक पल
रैल्ली है। तो अपनी गाड़ी में बैठ के जाने को मांगता था। " आदमी भड़क कर
बोला और ऐसे ही खड़ा रहा।
कविता एकदम दुबक सी गयी। वो तो बस आशीष जैसों पर ही डाट मार सकती थी।
कविता को मुशटंडे लोगों की भीड़ में आशीष ही थोडा शरीफ लगा। वो रानी समेत
आशीष के साथ चिपक कर खड़ी हो गई जैसे कहना चाहती हो, "तुम ही सही हो, इनसे
तो भगवन बचाए!"
आशीष भी जैसे उनके चिपकने का मतलब समझ गया। उसने पलट कर अपना मुंह उनकी
ही ओर कर लिया और अपनी लम्बी मजबूत बाजू उनके चारों और बैरियर की तरह लगा
दी।
कविता ने आशीष को देखा। आशीष थोड़ी हिचक के साथ बोला- "जी उधर से दबाव पड़
रहा है। आपको परेशानी ना हो इसीलिए अपने हाथ बर्थ (सीट) से लगा लें। "
कविता जैसे उसका मतलब समझी ही ना हो। उसने आशीष के बोलना बंद करते ही
अपनी नजरें हटा ली। अब आशीष उसकी चुचियों को अन्दर तक और रानी की चूचियों
को बहार से देखने का आनंद ले रहा था। कविता ने अब कोशिश भी नहीं की उनको
आशीष की नजरों से बचाने की।
"कहाँ जा रहे हो?..." कविता ने लोगों से उसको बचने के लिए जैसे धन्यवाद्
देने की खातिर पूछ लिया।
"मुंबई " आशीष उसकी बदली आवाज पर काफी हैरान था- "और तुम?"
"भैया जा तो हम भी मुंबई ही रहे हैं। पर लगता नहीं की पहुँच पायेंगे
मुंबई तक!" कविता अब मीठी आवाज में बात कर रही थी।।
"क्यूँ?" आशीष ने बात बढ़ा दी!
"अब इतनी भीड़ में क्या भरोसा! मैंने कहा तो है बापू को की जयपुर से
तत्काल करा लो। पर वो बूढ़ाऊ माने तब न!"
"भाभी! बापू को ऐसे क्यूँ बोलती हो?" रानी की आवाज उसके चिकने गालों जैसी
ही मीठी थी।
आशीष ने एक बार फिर कविता की चूचियों को अन्दर तक देखा। उसके लड में तनाव
आने लगा। और शायद वो तनाव रानी अपनी गांड की दरार में महसूस करने लगी।
रानी बार बार अपनी गांड को लंड की सीधी टक्कर से बचने के लिए इधर उधर
मटकाने लगी। और उसका ऐसा करना ही उसकी गोल मटोल गांड के लिए नुक्सान देह
साबित होने लगा।।
लंड गांड से सहलाया जाता हुआ और अधिक सख्त होने लगा। और अधिक खड़ा होने लगा।
पर रानी के पास ज्यादा विकल्प नहीं थे। वो दाई गोलाई को बचाती तो लड
बायीं पर ठोकर मारता और अगर बायीं को बचाती तो दाई पर उसको लंड चुभता हुआ
महसूस होता।
उसको एक ही तरीका अच्छा लगा। रानी ने दोनों चुतरों को बचा लिया। वो सीधी
खड़ी हो गयी। पर इससे उसकी मुसीबत और भयंकर हो गयी। लंड उसकी गांड की
दरारों के बीचों बीच फंस गया। बिलकुल खड़ा होकर। वो शर्मा कर इधर उधर
देखने लगी। पर बोली कुछ नहीं।
आशीष ने मन ही मन एक योजना बना ली। अब वो इन के साथ ज्यादा से ज्यादा
रहना चाहता था।
"मैं आपके बापू से बात करू। मेरे पास आरक्षण के चार टिकेट हैं। मेरे और
दोस्त भी आने वाले थे पर आ नहीं पाए! मैं भी जयपुर से उसी में जाऊँगा। कल
रात को करीब 10 बजे वो जयपुर पहुंचेगी। तुम चाहो तो मुझे साधारण किराया
दे देना आगे का!" आशीष को डर था कि किराया न मांगने पर कहीं वो और कुछ न
समझ बैठे। उसका लंड रानी कि गांड में घुसपैठ करता ही जा रहा था। लम्बा हो
हो होकर!
"बापू!" जरा इधर कू आना! कविता ने जैसे गुस्से में आवाज लगायी।
"अरे मुश्किल से तो यहाँ दोनों पैर टिकाये हैं! अब इस जगह को भी खो दूं
क्या?" बुढ़े ने सर निकाल कर कहा।
रानी ने हाथ से पकड़ कर अन्दर फंसे लंड को बहार निकालने की कोशिश की। पर
उसके मुलायम हाथों के स्पर्श से ही लंड फुफकारा। कसमसा कर रानी ने अपना
हाथ वापस खींच लिया। अब उसकी हालत खराब होने लगी थी। आशीष को लग रहा था
जैसे रानी लंड पर टंगी हुयी है। उसने अपनी एडियों को ऊँचा उठा लिया ताकि
उसके कहर से बच सके पर लंड को तो ऊपर ही उठना था। आशीष की तबियत खुश हो
गयी।!
रानी आगे होने की भी कोशिश कर रही थी पर आगे तो दोनों की चूचियां पहले ही
एक दुसरे से टकरा कर मसली जा रही थी।
अब एड़ियों पर कब तक खड़ी रहती बेचारी रानी। वो जैसे ही नीचे हुयी, लंड
और आगे बढ़कर उसकी चूत की चुम्मी लेने लगा।
रानी की सिसकी निकाल गयी- "आह्हह्ह्ह!"
"क्या हुआ रानी?" कविता ने उसको देखकर पूछा।
"कुछ नहीं भाभी!" तुम बापू से कहो न आरक्षण वाला टिकेट लेने के लिए भैया से!"
आशीष को भैया कहना अच्छा नहीं लगा। आखिर भैया ऐसे गांड में लंड थोड़ा ही फंसाते हैं।
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