RE: Holi sex stories-होली की सेक्सी कहानियाँ
होली का असली मजा--3
जब मेरी ननद दरवाजा खटखटा रही थी. उस समय तक रात भर के बाद उनका लंड पत्थर की तरह सख्त हो चुका था. झुका के कुतिया की तरह कर के पहले तो उन्होंने अपना लंड मेरी गांड़ में...
खूब अच्छी तरह फैला के, कस के पेल दिया. फिर जब वो जड़ तक अंदर तक घुस गया तो मेरे दोनों पैर सिकोड़ के, अच्छी तरह चिपका के, खचाखच.. खचाखच पेलना शुरू कर दिया.
पहले मेरे दोनों पैर फैले थे, उसके बीच में उनका पैर, और अब उन्होंने जबरन कस के अपने पैरों के बीच में मेरे पैर सिकोड़ रखे थे. मेरी कसी गांड़ और संकरी हो गई थी. मुक्के की तरह मोटा उनका लंड गांड़ में ...
जब मेरी ननद ने दरवाजा खटखटाया, वो एकदम झड़ने के कगार पे थे और मैं भी. उनकी तीन उंगलियां मेरी बुर में और अंगूठा क्लिट पे रगड़ रहा था.
लेकिन खट-खट की आवाज के साथ उन्होंने मेरी बुर के रस में सनी अपनी उंगलियां निकाल के कस के मेरे मुँह में ठूंस दी. दूसरे हाथ से मेरी कमर उठा के सीधे मेरी गांड़ में झड़ने लगे.
उधर ननद बार-बार दरवाजा खटखटा रही थी और इधर ‘ये’ मेरी गांड़ में झड़ते जा रहे थे. मेरी गीली प्यासी चूत भी... बार-बार फुदक रही थी.
जब उन्होंने गांड़ से लंड निकाला तो गाढ़े थक्केदार वीर्य की धार, मेरे चूतड़ों से होते हुए मेरे जांघ पर भी..
पर इसकी परवाह किये बिना मैंने जल्दी से सिर्फ ब्लाउज पहना, साड़ी लपेटी और दरवाजा खोल दिया.
बाहर सारे लोग मेरी जेठानी, सास और दोनों ननदें... होली की तैयारी के साथ.
“अरे भाभी, ये आप सुबह-सुबह क्या कर... मेरा मतलब करवा रही थी? देखिये आपकी सास तैयार हैं.” बड़ी ननद बोली.
(मुझे कल हीं बता दिया गया था कि नई बहु की होली की शुरुआत सास के साथ होली खेल के होती है और इसमें शराफ़त की कोई जगह नहीं होती, दोनों खुल के खेलते हैं).
जेठानी ने मुझे रंग पकड़ाया. झुक के मैंने आदर से पहले उनके पैरों में रंग लगाने के लिये झुकी तो जेठानी जी बोलीं,
“अरे आज पैरों में नहीं, पैरों के बीच में रंग लगाने का दिन है.”
और यही नहीं उन्होंने सासू जी का साड़ी साया भी मेरी सहायता के लिये उठा दिया. मैं क्यों चूकती? मुझे मालूम था कि सासू जी को गुदगुदी लगती है. मैंने हल्के से गुदगुदी की तो उनके पैर पूरी तरह फ़ैल गए.
फिर क्या था? मेरे रंग लगे हाथ सीधे उनकी जांघ पे.
इस उम्र में भी (और उम्र भी क्या? 40 से कम की हीं रही होंगी), उनकी जांघें थोड़ी स्थूल तो थी लेकिन एकदम कड़ी और चिकनी. अब मेरा हाथ सीधे जांघों के बीच में...
मैं एक पल सहमी, लेकिन तब तक जेठानी जी ने चढ़ाया,
“अरे जरा अपने पति के जन्म-भूमि का तो स्पर्श कर लो.”
उंगलियां तब तक घुंघराली रेशमी झाँटों को छू चुकी थी. (ससुराल में कोई भी पैंटी नहीं पहनता था, यहाँ तक कि मैंने भी पहनना छोड़ दिया.). मुझे लगा कि कहीं मेरी सास बुरा ना मान जाये लेकिन वो तो और... खुद बोलीं,
“अरे स्पर्श क्या, दर्शन कर लो बहु.”
और पता नहीं उन्होंने कैसे खींचा कि मेरा सिर सीधे उनकी जांघों के बीच. मेरी नाक एक तेज तीखी गंध से भर गई. जैसे वो अभी-अभी ... कर के आयी हों और उन्होंने... जब तक मैं सिर निकालने का प्रयास करती कस के पहले तो हाथों से पकड़ के फिर अपनी भारी-भारी जांघों से कस के दबोच लिया.
उनकी पकड़ उनके लड़के की पकड़ से कम नही थी. मेरे नथुनों में एक तेज महक भर गई और अब वो उसे मेरी नाक और होंठों से हल्के से रगड़ रही थीं.
हल्के से झुक के वो बोलीं, “दर्शन तो बाद में कराउंगी पर तब तक तुम स्वाद तो ले लो थोड़ा.”
जब मैं किसी तरह वहाँ से अपना सिर निकाल पाई तो वो तीखी गंध... अब एकदम मतवाली सी तेज, मेरा सिर घूम-सा रहा था. एक तो सारी रात जिस तरह उन्होंने तड़पाया था, बिना एक बार भी झड़ने दिये...
और ऊपर से ये. मेरा सिर बाहर निकलते हीं मेरी ननद ने मेरे होंठों पे एक चांदी का ग्लास लगा दिया... लबालब भरा, कुछ पीला-सा और होंठ लगते हीं एक तेज भभका सा मेरे नाक में भर गया.
“अरे पी ले, ये होली का खास शर्बत है तेरी सास का.... होली की सुबह का पहला प्रसाद...” ननद ने उसे ढकेलते हुए कहा. सास ने भी उसे पकड़ रखा था.
मेरे दिमाग में कल गुझिया बनाते समय होने वाली बातें आ गईं.
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