RE: Holi sex stories-होली की सेक्सी कहानियाँ
मैंने मुड़ के देखा। सच में सीढ़ी से छत का दरवाजा बोल्ट था , और छत पे आने का यही रास्ता था। नीचे आँगन से होली के उधम की जोरदार आवाजें आ रही थीं / कालोनी के औरतों लड़कियों की टोली आ गयी थी और आधे घंटे से ज्यादा ही धमाल होना था।
राजीव भी एलवल गए थे , मीता के यहाँ होली खेलने। उन्हें भी एकघंटे तो लगना ही था।
फिर मैंने जान की बालकनी की और देखा , इतना आसान भी नहीं था। देवर ने बड़ी हिम्मत दिखायी थी फगुए का नेग बनता ही था।
मैं मुस्करा दी।
बस इससे बड़ा ग्रीन सिग्नल और क्या हो सकता था।
जान के ताकतवार हाथो का प्रेशर मेरे ब्लाउज से छलकते बूब्स पे दूना हो गया।
और होली चालू हो गयी।
मेरा ब्लाउन वैसे ही बहुत टाइट लो कट था , उपर के दो बटन मैंने खोल रखे थे , मेरी बड़ी बड़ी चूंचियों को उसमे समाने के लिए।
एक बटन रवि से होली खेलने के समय टूट गया और अब सिर्फ नीचे के दो बटनो के सहारे मेरे गद्दर जोबन थोडा बहुत ढंके थे।
और वैसे भी मेरी ब्रा और पेटीकोट दोनों नीचे ननदो से होली खेलते समय ही उतर गए थे।
अब मैंने सिर्फ साडी ब्लाउज में थी और दोनों देह से चिपके रंगो से भीगे।
जान की मरदाना , तगड़ी उंगली मेरे भीगे उरोजो से चिपकी हुयी थी , उसे दबोच रही थी दबा रही थी
और साथ ही उसका मोटा खूंटा , शार्ट फाड़ता , मेरी गीली बड़े बड़े चूतड़ों से चिपकी साडी के बीच गांड की दरार में धक्के मार रहा था।
नीचे मेरी ननदों ने जो भांग पिला दी थी , कुछ उस का असर और कुछ जो सड़क पे हुरियारे गालियां दे रहे थे उनका असर ,
मैं भी सीधे गालियों पे उतर आयी।
जान का एक हाथ अब ब्लाउज के अंदर था , वो मेरी चूंची दबा रहा था , मसल रहा था , निपल पिंच कर रहा था।
अपना मोटा लंड मेर्री गांड पे रगड़ते उस ने पूछा , " क्यों भाभी डाल दूँ " और मैं चालु हो गयी।
" अरे साल्ले , हरामी के जने , छिनार के , भोंसड़ी के , होली में भौजाई के वो तो वैसे नहीं डालेगा , तो क्या अपनी, … मेरी सास ननद की बुर में डालेगा , भँड़वे , वो तो वैसे ही रोज शाम को कालीनगंज ( रेड लाइट ऐरिया मेरी ससुराल का ) वहाँ जोबन की दूकान लगा के बैठती हैं "
इसका नतीजा वही हुआ जो मैंने सोचा था , अगले झटके में ब्लाउज के बाकी दोनों बटन खुले और ब्लाउज छत पे था।
और जान के हाथों पे लगा गाढ़ा लाल रंग जोर जोर से मेरी चूंचियो पे
अब तक सुबह से दरजन भर से ज्यादा देवर मेरी चूंची मर्दन कर चुके थे , लेकिन जो जबदस्त रगड़ाई ये कर रहा था , दोनों हाथो से , लग रहा था जैसे कोई चक्की चल रही हो जो मेरे उभारों को कुचल के रख दे ,
ताकत के साथ तरीके का का भी अद्भुत मिश्रण था ,
होली में मैं मैं क्यों पीछे रहती , और रंग भरे गुब्बारे तो रखे ही थे ,
मैंने झुक के एक उठाया , पीछे हाथ कर के जान की शार्ट सरकाई और सीधे लाल रंग का गुब्बारा उसके 'खूंटे ' पे फोड़ दिया।
लाल भभूका, और शार्ट पैरों पे। देवर भाभी की होली हो और देवर का काम दंड कैद रहे यह कोई भाभी कैसे देख सकती है।
लेकिन जान भी तो मेरे देवर था उसने साडी उठा के बस मेरे कमर में छल्ले की तरह फंसा दिया और अब एक हाथ मेरे फेवरट देवर का मेरी चूंची रगड़ रहा था और दूसरा मेरा चूतड़।
असल में मेरे सारे देवर मेरी चूंचियों के साथ मेरे भरे भरे चूतड़ों के भी दीवाने थे और इसे तो मैंने ललचाने , चिढ़ाने के लिए अक्सर इसे दिखा के अपने नितम्ब मटका देती थी।
एक गुब्बारे से तो मेरे देवर का काम चलता नहीं , इसलिए झुकी हुयी मैंने दूसरा बैंगनी रंग का गुब्बारा उठाया और फिर उसके लंड पे सीधे दबा के और अबकी जो रंग बहा तो वो हाथो में पॉट के मैंने देवर के लंड को मुठियाना शुरू कर दिया।
कित्ती मुश्किल से मेरी मुट्ठी में आ पाया वो।
आज होली में जोनाप जोख की थी मैंने , उसमें मेरे इस देवर का साइज २० नहीं बैठता था। बल्कि पूरा २२ था।
रंग लगाते हुए एक झटके में मैंने सुपाड़ा खीच के खोल दिया , मोटा , पहाड़ी आलू ऐसा , एकदम कड़ा।
मैंने छज्जे पे झुकी थी ही , जान ने टाँगे फैलायीं और सीधे सुपाड़ा मेरी चूत के मुंह पे .
सुबह से चूत में आग लगी थी।
एक तो मैंने राजीव को रात में एक बार मुंह से झाड़ दिया था और उसके बाद सुबह से पहले तो रवी के साथ मस्ती , फिर रेहन और देवर नन्द , लेकिन चूत की खुजली बढती ही जा रही थी। कितने देवरों ननदों ने उंगली की लेकिन झड़ने के पहले ही,…
मस्ती से मेरी आँखे बंद थी , चूंचियां पत्थर हो रही थीं , निपल भी एकदम कड़े हो गए थे ,… और मैंने अपनी चूत उस के सुपाड़े पे रगड़ना शुरू कर दिया।
जान भी न , बजाय आग बुझाने के और आग भड़काने में लगा था , एक हाथ जोर जोर से चूंची मसल रहे थे , दूसरा क्लिट रगड़ रहा था।
मैंने फिर गालिया बरसानी शुरू कि ,
" अरे डालो न क्या मेरी ननदो के लिए बचा रखा है "
और एक झटके में मेरे देवर ने मूसल पेल दिया , पूरा सुपाड़ा अंदर और मैं बड़ी जोर से चिल्लाई
" साल्ले अपनी, .... भोंसड़ा समझ रखा है क्या , जरा आराम से कर न "
जिस तरह से लंड रगड़ता , दरेरता , घिसटता मेरी बुर में घुसा , दर्द से जान निकल गयी लेकिन मजा भी खूब आया।
जान ने सुपाड़े तक लंड निकाला और फिर गदराये चूतड़ों को पकड़ के ऐसा हचक के धक्का मारा की फिर जान निकल गयी।
मेरे निपल्स उमेठते उसने छेड़ा ,
" अरे भौजी होली में जब तक भाभी क बुर भोंसड़ा न बन जाय तब तक चुदाई का कौन मजा "
जिस तरह से लंड रगड़ता , दरेरता , घिसटता मेरी बुर में घुसा , दर्द से जान निकल गयी लेकिन मजा भी खूब आया।
जान ने सुपाड़े तक लंड निकाला और फिर गदराये चूतड़ों को पकड़ के ऐसा हचक के धक्का मारा की फिर जान निकल गयी।
मैं छज्जे को खूब जोर से पकड़ के झुकी थी।
मेरी साडी बस एक पतले से छल्ले की तरह मेरे कमर में फँसी , अटकी थी। ब्लाउज तो कब का साथ छोड़ चूका था मेरे दोनों मस्त कड़े कड़े रंगों से रँगे , पुते उरोज भी झुके थे और मेरा पडोसी देवर , एक के बाद एक धक्के पे धक्के मारे जा रहा था। और थोड़ी ही देर में सुपाड़ा सीधे मेरी बच्चेदानी पे ठोकर मार रहा था। हर ठोकर के साथ मैं गिनगिना उठती।
मैं चीख रही थी , सिसक रही थी , सिहर रही थी , अपने देवर के पूरे खानदान को एक से के गालियाँ दे रही थी।
लेकिन उससे और जोश में आके उसके चोदने की रफ्तार दुगुनी हो रही थी।
मेरे दोनों हाथ तो छज्जे को पकडे हुए थे , उसे जोर से भींच रहे थे , लेकिन , मैं ,कभी चूतड़ से धक्के का जवाब धक्के से , और कभी कसी संकरी बुर में उसके मोटे मूसल को निचोड़ के , जवाब दे रही थी।
चुदाई की रफ्तार खूब तेज हो गयी थी और तभी , उसने मेरे क्लिट को जोर से पकड़ के रगड़ दिया , और मैं पत्ते की तरह कांपने लगी।
मैं तेजी से झड रही थी। जैसे कोई खूब बड़ी सी पिचकारी में रंग भर के एक झटके में छोड़ दे ,…छ्र्र्र्र्र छ्र्र्छ्र्र्र्र,… बस उसी तरह
और उपर से मेरे दुष्ट देवर ने आग में धौंकनी चला दी। झुक के वो मेरे निपल्स जोर ज्जोर से चूसने लगा , हलके से बाइट कर दिया ,
मस्ती से मेरी आँखे मुंदी जा रही थी बिना रुके मैं बार बार झड़ रही थी।
धीरे धीरे उसने फिर से धक्के की रफ्तार बढ़ायी , मेरी थकान कम हुयी और मैं फिर पूरे जोश में चुदाई का मजा ले रही थी , उसी तरह छज्जे पे झुके डागी पोज में
तब तक सड़क पे फिर कुछ हुरियारों का शोर सुनायी पड़ा और लंड अंदर घुसेड़े , मुझे उठा के वो छज्जे से दूर छत पे ले गया और मुझे दुहरा कर के फिर चुदाई शुरू कर दी.
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