RE: Holi sex stories-होली की सेक्सी कहानियाँ
ससुराल की पहली होली-4
झांटें बस आना शुरू ही हुयी थीं। मैंने थोड़ी देर तक तो उस कच्ची कली की मक्खन सी चूत को सहलाया फिर एक झटके में उंगली अंदर पेल दी।
लेकिन तब तक खूब जोर का शोर हुआ , और मैंने देखा की चमेली भाभी के यहाँ बाजी पलट चुकी थी। ५-६ ननदें एक साथ , और अब चमेली भाभी नीचे थीं।
एक शलवार वाली उनकी खुली जांघो के बीच धीमे धीमे एक पूरी लाल रंग कि बाल्टी उड़ेल रही थी। " भाभी अब तोहार चूत की गरमी कुछ शांत होई।
एक शादी शुदा ननद , अपनी बुर उनके मुंह में रगड़ रही थी और दो चार कम उम्र कि ननदे भाभी की चूंचियों पे रंग लगा रहै थी।
और मेरी भी खूब दूरगत हुयी , आखिर नयकी भौजी जो थी।
लेकिन मुझे मजा भी बहुत आया। कोई ननद नहीं बची होगी , ज्सिकी चूत में मैंने उंगली न की हो। और कोई ननद नहीं होगी जिसने मेरी चूंचियों पे रंग नहीं लगाया और चूत नहीं मसली।
लेकिन तबक तक कालोनी से भाभियों की एक टोली आयी और फिर बाजी पलट गयी।
और भाभियों की टोली में एक ग्रूप , ' इन्हे ' ढूंढते हुए , मेरे कमरे में पहुंचा।
बिचारे निर्वस्त्र घेर लिए गए। बस मेरी ब्रा पैटी थी उसी में उन्हें पहना कर भाभियाँ उनके हाथ पैर पकड़ के , घर के पीछे बने एक चहबच्चे में ले जा के डाल दिया। वहाँ पहले से ही रंग कीचड़ सब भरा था।
चार पांच भाभियाँ उसी में उतर गयी और उनकी वो रगडयाइ हुयी कि पूछिए मत। बड़ी देर के बाद जब वो निकल पाये , और मुश्किल से नीरा भाभी ने उन्हें कपडे दिए और साथ में रंग की एक बड़ी सी ट्यूब।
" भौजाइयों के साथ बहुत होली खेल लिए अब जरा अपनी बहन के साथ भी अपनी पिचकारी की ताकत जा के दिखाओ और हाँ ये पेंट की ट्यूब ले जाओ उस मीता छीनार की चूंचियों पे जम के लगाना और बोलना शाम को जरूर आये। "
उनकी जान बची और वो भागे।
मैं भी छत पे ऊपर चली गयी।
करीब बारह बज रहा था और चार घंटे से लगातार , होली चल रही थी। थोड़ी देर के अल्प विराम के लिए मैं छत पे चली गयी
और छत पहुँच के घर के बाहर का होली का हंगामा देखने को मिला।
क्या नजारा था।
बगल कालोनी लड़कियों औरतो की होली चल रही थी। रंग से सराबोर कपडे , देह से चिपके , सारे कटाव उभार दिखातीं , ललचाती।
जो कभी जरा सा दुपट्टे के सरकने पे परेशान हो जाती थीं , वो आज जवानी के सारे मंजर दिखा रही थीं। उभरती चूंचिया , भरे भरे चूतड़ , सब कुछ शलवार , साडी से चिपक के जान मार रहा था। लेकिन एक तेज शोर ने मेरा ध्यान सड़क की खींचा।
ढेर सारे हुरियारे , एक ठेले पे माइक लगाए शोर मचाते , टीन , कनस्तर , ढोल बजाते , कबीर गाते , गन्दी गन्दी गालियां , और वो भी मोहल्ले की औरतों का नाम ले ले के , और बीच बीच में जोर जोर से नारे लगाते ,
ये भी बुर में जायेंगे लौंडे का धक्का खायँगे
होलिका रानी ज़र गयीं , बुर चोदा , ई कह गयीं।
और सबसे मजेदार था एक आदमी जो सबसे आगे था और गधे पे बैठा था और जोर जोर से गालियां दे रहा था।
कुछ औरतें घर की छतों पर से उन पर बाल्टी , पिचकारी से रंग फ़ेंक रही थी और उन औरतों का नाम ले ले के वो एक से एक गन्दी गालियां दे रहे लेकिन वो सब मजे ले रही थीं
अचानक की उस हुजूम ने मुझे उन्हें देखते हुए देख लिया। फिर तो तुफान मच गया।
ले गाली ले गाली ,
अरे कोमल भौजी , खोला केवाड़ी , उठावा तू साडी ,
तोहरी बुर में चलायब हम गाडी
और फिर कबीर,…
चना करे चुरमुरुर , चिवड़ा मचामच अरे चिवड़ा मचामच ,
अरे कोमल भौजी टांग उठावा , अरे चोदब घचागच , अरे चोदब गचागच।
हो कबीरा सारर साररर , खूब चली जा हो खूब चली जा
एक पल के लिए मैंने सोच हट जाऊं , लेकिन होली की मस्ती मुझे भी पागल कर दे रही थी।
जैसे ही वो गधे वाला मेरी छत के सामने से निकला , मैंने रंग भरे गुब्बारे एक के बाद एक उन सबो पे मारे और उधर से भी पिचकारी की बौछार सीधे मेरी चोली पे ,
जाते जाते वो बोला , " अरे भौजी , तानी चोली का गुब्बारा दा न
औ दो गुबारे भीगे देह से एकदम चिपके ब्लाउज से रगड़े और उस के पिछवाड़े दे मारा
" हे भौजी , तनी चोली क गुब्बरवा हमहुँ के दे देती न " पीछे से जोरदार बाहों ने सीधे मेरे कहा।
मुड़ कर देखा तो और कौन, मेरा फेवरिट देवर जान
स्ट्रांग , मैनली , मस्क्युलर , जिम टोंड सिक्स पैक्स ,
जोर से उसने अपनी बांहो के नागपाश में भींच लिया और मेरे गालो पे चुम्बन के गुलाब खिलाता बोला ,
मैंने सोचा आज तो पास से हैप्पी होली बोल दूँ।
कुछ नाराजगी , कुछ मुस्कान के साथ मैंने उसे मुड़ के देखा।
सिर्फ एक टी शर्ट और छोटे से बाक्सर शार्ट में वो ,
" हे कोई देख लेगा तो और आये कैसे "
' अरे भौजी घबड़ाओ मत , छत का दरवाजा मैंने बंद कर दिया है , और वैसे भी नीचे आँगन में जो उधम है आधे एक घंटे तक किसी को आपको सध लेने की फुरसत नहीं होगी। और जहाँ तक आने का सवाल है , सिम्पल छत लांघ के "
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