Holi sex stories-होली की सेक्सी कहानियाँ
11-01-2017, 12:12 PM,
#82
RE: Holi sex stories-होली की सेक्सी कहानियाँ
ससुराल की पहली होली-1

"ओह भाभी प्लीज,…"

" क्या कह रही है तू ,…स्क्विज ,…ओ के " और ये कह के मैंने उसके टॉप फाड़ते किशोर उभारो को और जोर से दबा दिया। उसके खड़े निपल्स को भी मैंने पुल करना शुरू कर दिया।

" नहीं भाभी , छोड़िये न ," बड़ी शोख अदा और नाज से छुड़ाने की कोशिश करते उस किशोरी ने कहा।
और मैंने दूसरे जोबन को भी दबाना शुरू कर दिया और उसे चिढ़ाते हुए छेड़ने लगी ,

" अरी , अभी तो ऊपर से दबा रही हूँ। कल होली के दिन तो खोल के रगुंगी , रगड़ूंगी , मसलूँगी और अगर तुम्हारा मन करे न तो तुम्हारे उसे ' दिन में भैया और रात में सैयां ' वाले भाई से भी दबवा , मसलवा दूंगी। "

लाज से उसके गाल टेसू हो गए।



और जैसे ही मैंने उसे छोड़ा , एक पड़ोसन चालु हो गयीं ,
" अरे ननद रानी ये जवानी के हॉर्न , दबाने के लिए ही तो हैं। "

ये होली के पहले कि शाम थी , और हम लोग अपनी ननद मीता को छेड़ रहे थे।


वह ग्यारहवें में पढ़ती थी और उम्र का अंदाजा आप लगा लें। खूब लम्बी , सुरु के पेड़ कि तरह छरहरी , उभरते हुए टेनिस के गेंद कि साइज के उभार , और मचलते , छलकते , बलखाते नितम्ब , चोटियां लम्बी सीधे नितम्ब के दरारों तक पहुंचती … खूब गोरी , दूध में दो चार बूँद गुलाबी रंग के डाल दें बस वैसा रंग , भरे हुए गाल ,…

लेकिन शर्मीली कुछ ज्यादा ही थी।

ननद भाभियो में जो गालियां चलती हैं , बस वो चिढ जाती थी यहाँ तक की जीजा साली के खुले मजाक में भी। पिछली होली में उसके जीजा ने रंग लगाने के बहाने जब उसके जीजा ने फ्राक के अंदर हाथ दाल के उसके बड़े टिकोरे ऐसे जोबन दबा दिए , तो वो एकदम उछल गयी।


लेकिन मैंने तय कर लिया था की इस होली में इसकी सारी लाज शरम उतार के उसे होली का असली मजा दिलवाउंगी। आखिर एकलौती भाभी हूँ उसकी।

शादी के बाद ये मेरी दूसरी होली थी लेकिन ससुराल में पहली।

पिछली होली तो मेरे मायके में हुयी जब ये आये थे और क्या नहीं हुआ था वहाँ। रंग के साथ मेरी बहन रीमा को 'इन्होने ' अपनी मोटी पिचकारी का स्वाद भी चखाया। और सिर्फ रीमा ही नहीं , उसकी सहेलियों को भी। कोई नहीं बचीं। यहाँ तक की मेरी भाभी भी , अपनी सलहज को तो उन्होंने आगे और पीछे दोनों ओर का मजा दिया। और भाभी ने भी उनकी जबरदस्त रगड़ाई की थी।

लेकिन ये होली पूरी तरह मेरी होनी थी ससुराल में देवर ननदों के साथ रंग खेलने की , मजे लेने की।


और ननद के नाम पे यही मीता थी , इनकी ममेरी बहन , लेकिन सगी से भी ज्यादा नजदीक।


और देवर के नाम पे मीता का एक भाई रवी।

मेरी जिठानी , नीरा मुझसे दो चार साल ही बड़ी थी और हर मजाक में मेरा हाथ बटाती। और इस बार होली में साथ देने के लिए उनके गाँव की जो बनारस में ही था , वहाँ से उनकी भाभी भी आयी थी , चमेली भाभी। बिना गाली वाले मजाक के तो वो बोल नहीं सकती। कसी हुयी देह , खूब भरी भरे नितम्ब और गद्दर जोबन। ।और जब गारी गातीं तो किसी की भी पैंट , शलवार उतार देतीं।

जैसे मीता , मेरी नन्द शर्मीली थी वैसे ही मेरा देवर रवी। हम लोग तो कहते भी थे "

"तेरा पैंट खोल के चेक करना पड़ेगा देवर है कि ननद। … "

खूब गोरा , एकदम नमकीन और बात बात पे शर्माता , मीता से दो साल बड़ा था , उन्नीस का ,अभी बी एस सी में था।

उपफ मैंने अपने बारे में तो बताया नहीं। 

जब मेरी शादी हुयी थी आज से डेढ़ दो साल पहले तो मैं रवी की उम्र कि थी , उन्नीस लगा ही था।

मैं छरहरी तो हूँ लेकिन दुबली पतली न हूँ न रही हूँ खास तौर पे खास जगहो पे।
मैं नवी दसवी में थी तभी , जब मेरे सहेलियों के टिकोरे थे मेरे उभार पूरे स्कूल में ,…

गोरी , भरे भरे गाल , रूप ऐसा जो दर्पण में ना समाये और जोबन ऐसा जो चोली में न समाये

और पतली कमर पे ३५ साइज के हिप्स भी खूब भरे भरे लगते ,

और राजीव तो मेरे उभारो के दीवाने , सबके सामने भी हिप्स पिंच कर लेते

" थोड़ी सी पेट पूजा कहीं भी कभी भी " वाले ख्याल के थे वो , और मैं कौन होती उनको मना करने वाली।

२० दिन के हनीमून में उन्होंने पूरी सेंचुरी लगायी थी , मुख मिलन छोड़ के , और उनका ये जोश अभी भी जारी थी।


उपफ मैं भी न बजाय कहानी सुनाने के अपनी ही ले बैठी। चलिए तो तो अब ससुराल में अपनी पहली होली कि बात आगे बढ़ाती हूँ।

जैसा मैं बता रही थी होली के पहले वाले शाम की बात ,

मेरी ननद मीता आयी थी और थोड़ी देर बाद रवी भी आ गया मेरा छोटा देवर।

मैं , मेरी जेठानी नीरा भाभी , और उनकी भाभी , चमेली भाभी गुझिया बना रहे थे।

रवी , एकदम चिकना , नमकीन , मुस्करा के मैंने अपनी जेठानी से कहा ,
" दीदी , कच्ची कली "
" कच्ची कली या कच्ची कला " अपनी हंसी रोकते हुए वो बोलीं।

लेकिन चमेली भाभी को तो रोकना मुश्किल था , वो बोलीं ,
" अरे ई गाँव में होते न तो रोज सुबह शाम कबहुँ गन्ने के खेत में कबहुँ अरहर के खेत में , लौंडेबाज , निहुरा के इसकी गांड बिना मारे छोड़ते नहीं। "

होली का असर तो मुझ पे भी था मैं बोली ,

' अरे भाभी , गाँव शहर में कौन फरक , कल होली में तो ई पकड़ में आएगा न बस सारी कसर पूरी कर देंगे। मार लेंगे इसकी हम तीनो मिल के। "
" एकदम कल इसकी गांड बचनी नहीं चाहिए " चमेली भाभी बोली और अबकी खुल के मेरी जेठानी ने भी उनका साथ दिया।

रवि , मेरे देवर की किस्मत वो हम लोगो की ओर आ गया और मुझसे पूछ बैठा ,

" भाभी कल होली के लिए कितना रंग लाऊं "
और चमेली भाभी ने छूटते ही जवाब दिया ,

" आधा किलो तो तुम्हारी बहन मीता के भोंसड़े में चला जाएगा और उतना ही तुम्हारी गांड में "

शर्मा के बिचारा गुलाबी हो गया।

दूसरा हमला मैंने किया , इक वेसिलीन कि बड़ी सी शीशी उसे पकड़ाई और समझाया ,

" देवर जी ये अपनी बहन को दे दीजियेगा , बोलियेगा ठीक से अंदर तक लगा लेगी और बाकी आप लगा लेना , पिछवाड़े। फिर डलवाने में दर्द कल होली में थोडा कम होगा "

बिचारे रवी ने थोड़ी हिम्मत की और जवाब देने की कोशिश की

" भाभी डालूंगा तो मैं , डलवाने का काम तो आप लोगों का है "

और अबकी जवाब मेरी जेठानी ने दिया ,
" लाला , वो तो कल ही पता चलेगा , कौन डलवाता है और कौन डालता है। "

मैंने उसके गोरे चिकने गालों पे जोर से चिकोटी काटी और बोली ,
" देवर जी , कल सुबह ठीक आठ बजे , अगर तुम चाहते हो मेरे इन सलोने चिकने गालों पे सबसे पहले तुम्हारा हाथ पड़े "

" एकदम भाभी बल्कि उसके पहले ही आपका देवर हाजिर हो जाएगा। "

वो गया और हम देर तक खिलखिलाती रहीं।

राजीव ,"मेरे वो "रात को सोने जल्दी चले गए।

होली के पहले की रात , बहुत काम था।

गुझिया , समोसे , दहीबड़े ( ये कहने की बात नहीं की आधे से ज्यादा भांग से लैस थे ) और ज्यादातर खाना भी। अगला दिन तो होली के हुडदंग में ही निकलना था।

नीरा भाभी , मेरी जिठानी और चमेली भाभी ने कड़ाही की कालिख अपने दोनों हाथों में पोत ली , अच्छी तरह रगड़ के और दबे पाँव राजीव के कमरे में गयी. वो अंटागफिल गहरी नींद में सो रहे थे ।

आराम से उनकी दोनों भाभियों ने उनके गाल पे कड़ाही की कालिख अच्छी तरह रगड़ी। नीरा भाभी ने फिर अपने माथे से अपनी बड़ी सी लाल बिंदी निकाली और राजीव के माथे पे लगा दी। वो चुटकी भर सिंदूर भी लायी थीं और उससे उन्होंने अपने देवर की मांग भी अच्छी तरह भर दी। चमेली भाभी तो उनसे भी दो हाथ आगे थीं , उन्होंने राजीव का शार्ट थोडा सरकाया और उनके उस थोड़े सोये थोड़े जागे कामदेव के तीर पे , रंग पोत दिया। मैं पीछे खड़ी मुस्करा रही थी।


और जब वो दोनों बाहर गयीं तो मेरा मौका था।

पहले तो मैंने अपने कपडे उतारे।

राजीव ने तो सिर्फ शार्ट पहन रखा था। मैंने उसे भी सरका के अलग कर दिया। और अब मेरे। रसीले होंठ सीधे उनके लिंग पे थे। थोड़े ही देर चूसने के बाद लिंग एकदम तन्ना गया। मेरी जुबान उनके कड़े चर्मदंड पे फिसल रही थी. कितना कड़ा था।

मेरे रसीले गुलाबी होंठ उनके खूब बड़े पहाड़ी आलू ऐसे मोटे कड़े सुपाड़े को चाट रहे थे , चूम रहे थे चूस रहे थे। बीच बीच में मेरी जीभ की नोक उनके सुपाड़े के पी होल के छेद में सुरसुरी कर देती थी। अब वो पूरी तरह जग गए थे।

मैंने उन्हें जबरदस्त आँख मारी और मेरा एक हाथ अब मेरे पति के बॉल्स को मादक ढंग से सहला रहा था दबा रहा था। यही नहीं , मेरी तर्जनी का नेल पालिश लगा लम्बा नाख़ून , बॉल्स से उनके पिछवाड़े के छेद तक स्क्रैच कर रहा था। और जब मैंने नाख़ून राजीव के पिछवाड़े के छेद पे लगाया , तो बस उनकी हालत खराब हो गयी।

वो मचल रहे थे , उछल रहे थे अपने हिप्स जोर जोर से पटक रहे थे। और हिप्स उठा उठा के अपना बित्ते भर लम्बा , मोटा मूसल , मेरे संकरे गले में ठूंस रहे थे।
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