RE: Holi sex stories-होली की सेक्सी कहानियाँ
तभी मेरे लण्ड ने खड़े होकर हुंकार सी भरी...और मेरे पेट से सट गया....जैसे मुझे उलाहना दे रहा था.....
मैंने अपने लण्ड को प्यार से थपथपाया....'सब्र करो छोटू...बहुत जल्दी तुम हर्षा की चूत की सैर करोगे'
लेकिन कैसे....? ये सवाल मेरे सामने मुह बाए खड़ा था. हर्षा...जो मेरे सामने पैदा हुई थी...मेरी गोद में नंगी खेली थी...मेरे खास दोस्त की बिटिया...मैंने कभी आज तक उसके बारे में ऐसा सोचा भी नहीं था....लेकिन आज जो खेल उसकी अमराई में देखा...हर्षा ने अपनी चूत अपने हाथों से खोल रखी थी...उसकी चूत के भीतर वो तरबूज जैसा लाल और भीगा भीगा सा द्वार. वो उसकी छोटी अंगुली की पोर जैसा उसकी चूत का दाना (Clit)
अनचाहे ही मै हर्षा की चूत का स्मरण करता हुआ मुठ मारने लगा. मेरे लण्ड से जब लावा निकल गया तब कुछ चैन मिला.
अब मेरा मन...हर्षा की रियल चुदाई करने के ताने बाने बुनने लगा..
अगली सुबह मै जल्दी उठ गया और घूमने के बहाने हर्षा की अमराई में जा पहुंचा. मै झाड़ियों में डिल्डो की तलाश करने लगा...वो मुझे वैसा ही कपडे में लिपटा मिल गया. मैंने डिल्डो को कपडे से बाहर निकल कर देखा, बड़ा मस्त डिल्डो था...उस में से लड़कियों की चूत के रस की गंध अभी भी आ रही थी...मैंने उसे अपनी नाक से लगा कर एक गहरी सांस ली....और डिल्डो अपनी जेब में रख लिया.
इतना तो मै समझ ही गया था की हर्षा एक सेक्सी लड़की है और लण्ड लेने की चाहत उसे भी होगी. आखिर अब वो भरपूर जवान हो चुकी थी. मुझे अपनी राह आसान नज़र आने लगी.
मैंने कुछ कुछ सोच लिया था की मुझे क्या करना है. उसी दिन मैं हर्षा के घर जा पहुंचा, इत्तफाक से हर्षा से अकेले में बात करने का मौका मिल ही गया...
'हर्षा, कैसी हो तुम...तुम्हारी पढ़ाई लिखाई कैसी चल रही है' मैंने पूछा
'ठीक चल रही है अंकल जी, मै दिन भर मन लगा के पड़ती हूँ' हर्षा बोली
'ठीक है हर्षा, खूब मन लगा के पढो तुम्हे ज़िन्दगी में बहुत आगे बढ़ना है' मैंने कहा
'जी अंकल' वो बोली
'वैसे हर्षा, कल मैंने तुम्हे तुम्हारी अमराई में सहेलियों के साथ पढ़ते देखा था' मैंने कह दिया
यह सुन कर हर्षा सकपका गयी और उसका चेहरा फक पढ़ गया. उसके मुंह से बोल ना फूटा. फिर मैंने वो डिल्डो निकाल कर हर्षा को दिखाया...
'ये तुम्हारा ही है ना?' मैंने पूछा
'अंकल जी, वो वो.....' इसके आगे हर्षा कुछ ना बोल सकी
'हर्षा, ये आदतें अच्छी नहीं...मुझे तुम्हारे पिताजी से बात करनी पड़ेगी इस बारे में' मैंने कहा
'नहीं अंकल जी, आप पिताजी से कुछ मत कहना इस बारे में...मैं आपके पांव पड़ती हूँ' वो बोली
'हर्षा, तुम उन गन्दी लड़कियों के साथ ये सब गंदे गंदे काम करती हो...मुझे तुम्हारे पिताजी को ये सब बताना ही पड़ेगा' मैंने अपनी बात पर जोर देकर कहा.
'नहीं, अंकल जी, प्लीज....आप पिताजी से कुछ मत कहना...अब मैं कभी भी वैसा नहीं करुँगी' हर्षा रुआंसे स्वर में बोली और मेरे पैरों पर झुक गयी...मेरा तीर एकदम सही जगह लगा था..
'देखो, हर्षा मैं तुमसे इस बारे और बात करना चाहता हूँ.....तुम कल दोपहर को मुझे अपनी अमराई में मिलना' मैंने उससे कहा
'अंकल जी, अब क्या बात करनी है आपको...' वो बोली
'हर्षा, तुम कल मुझे वही पे मिलना....अब तुम छोटी बच्ची तो हो नहीं.....अपने आप समझ जाओ' मैंने उसकी आँखों में आँखे डाल कर कहा..
कुछ देर वो चुप रही.....फिर धीरे से बोली...'ठीक है अंकल जी, मै कल दोपहर को आ जाउंगी वही पर, लेकिन आप पिता जी से कुछ मत कहना'
'ठीक है, नहीं कहूँगा....लेकिन तुम समझ गयीं ना मेरी बात को ठीक से' ?
'जी, अंकल....मै तैयार हू' वो बड़ी मुश्किल से बोली...यह सुन कर मैंने हर्षा को अपनी बहो में भर लिया और उसका गाल चूम लिया. वो थोड़ी कसमसाई लेकिन कुछ नहीं बोली फिर मैंने धीरे से उसकी चुचिओं पर हाथ फिराया और उसकी जांघो के बीच में हाथ ले जाकर उसकी चूत अपनी मुट्ठी में भर ली...हर्षा के मुह से एक सिसकारी निकली
'हर्षा...अपनी इसे भी चिकनी कर के आना' मै उसकी चूत पर हाथ फिरते हुए बोला. हर्षा ने अपना सर झुका लिया, बोली कुछ नहीं.
मै फिर अपने घर लौट आया....अब मुझे कल का इंतज़ार था.
अगले दिन मै नहा धोकर तैयार हुआ, खूब रगड़ रगड़ के मल मल के नहाया और फिर अपने लण्ड पर चमेली के तेल की मालिश की,सुपाडे पर खूब सारा तेल चुपड़ लिया....आखिर हर्षा की चूत की सील तोड़ने जा रहा था मेरा छोटू. मैं हर्षा की अमराई में लगभग एक बजे ही पहुँच गया. चारों तरफ सुनसान था, चिलचिलाती धूप पड रही थी और गरम हवाएं चल रही थी.
करीब आधे घंटे बाद मुझे हर्षा आती दिखाई दी, उसने अपने सर पर दुपट्टा ढँक रखा था, गुलाबी रंग के सलवार सूट में ताजा खिला गुलाब सी लग रही थी. 'आओ हर्षा...तुमने तो मुझे बहुत इंतजार करवाया, मैं कब से यहाँ अकेला बैठा हू' मैंने कहा.
'अंकल जी, वो तैयार होने में देर लग गयी' वो धीरे से बोली. हर्षा की कातिल जवानी गजब ढहा रही थी, खूब सज संवर के आई थी वो.
मैंने उसे अपनी बाँहों में खींच लिया, उसकी कड़क कठोर चूचिया मेरे सीने से आ लगीं, उसके तन की तपिश मुझे दीवाना बनाने लगी.
'अंकल जी, कोई देख लेगा' वो बोली और मुझसे छूटने की कोशिश करने लगी. 'अरे, यहाँ तो कोई भी नहीं है...तुम बेकार डर रही हो' मैंने उसे समझाया
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