RE: Holi sex stories-होली की सेक्सी कहानियाँ
मां ने दादा को अपनी बांहो और जांघो मे कस कर बांधा और फिर कहा,
मां ने दादा को अपनी बांहो और जांघो मे कस कर बांधा और फिर कहा,
“आज जितना चोदना है , चोद लो, फिर अगली होली का इंतजार करना पडेगा मेरी नंगी जवानी का दर्शन करने के लिये.”
मां की बात सुनकर मै आशचर्य था कि होली के दिन कोई भी उसे चोद सकता था..लेकिन यह जान कद मै भी खुश हो गया. कोई भी मे तो मै भी आता हूं. आज जैसे भी हो , मां को चोदुंगा ही. ये सोच कर मै खुश था और उधर दादाजी ने मां की चूत मे पिचकारी मांर दी. बुर से मलाई जैसा गाढा दादाजी का रस बाहर नीकल रहा था और दादाजी खुब प्यार से मां को चुम रहे थे.
क़ुछ देर बाद दोनो उठ गये .
“कैसी रही होली...” मां ने पुछा. “ आप पहले होली पर हमांरे साथ क्यो नही रहे. मैने 12 साल पहले होली के दिन सबके लिये अपना खजाना खोल दिया था. “
मां ने दादा के लौडा को सहलाया और कहा, “ अभी भी लौडे मे बहुत दम है, किसी कुमांरी छोकडी का भी चूत एक धक्के मे फाड सकता है.”
मां ने झुक कर लौडे को चुमां और फिर कहा, “अब आप बाहर जाईये और एक घंटे के बाद आईयेगा. मै नही चाहती कि विनोद या उसके बाप को पता चले कि मै आप से चुद्वाई हूं. “
मां वहीं नंगी खडी रही और दादाजी को कपडे पहनते देखती रही. धोती और कुर्ता पहनने के बाद दादा ने फिर मां को बांहो मे कसकर दबाया और गालो और होंठो को चुमां. कुछ चुम्मा चाटी के बाद मां ने दादा को अलग किया और कहा ,
“अभी बाहर जाओ, बाद मे मौका मिलेगा तो फिर से चोद लेना लेकिन आज ही, कल से मै आप्की वही पुरानी बहु रहुंगी.”
दादा ने चुची दबाते हुये मां को दुबारा चुमां और बाहर चले गये. मै सोचने लगा कि क्य करु.? मै छत पर चला गया और वहा से देखा दादा घर से दूर जा रहे थे और आस पास मेरे पिताजी का कोई नामो निशान नही था. मैने लौडा को पैंट के अन्दर किया और धीरे धीरे नीचे आया. मां बरामदे मे नही थी. मै बिना कोइ आवाज किये अपने कमरे मे चला गया और वहा से झांका. इधर उधर देखने के बाद मुझे लगा की मां किचन मे हैं. मैने हाथ मे रंग लिया और चुपके से किचन मे घुसा. मां को देखकर दिल बाग बाग हो गया. वो अभी भी नंग धरंग खडी थी. वो मेरी तरफ पीठ करके पुआ बेल रही थी. मां की सुदौल और भरी भरी मांसल चुत्तर को देख कर मेरा लौदा पैंट फाड कर बाहर निकलना चाहता था.
कोई मौका दिये बिना मैने दोनो हाथो को मां कि बांहो से नीचे आगे बढा कर उनकी गालो पर खुब जोर जोर से रंग लगाते हुये कहा,
“मां , होली है.” और फिर दोनो हाथो को एक साथ नीचे लाकर मां कि गुदाज और बडे बडे चुचिओ को मसलने लगा.
“ओह्ह....तु कब आया....दरवाजा तो बन्द है....छोड ना बेटा...क्या कर रहा है... मां के साथ ऐसे होली नही खेलते......ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह...इतना जोर जोर से मत मसल....अह्ह्ह्ह्ह...छोड दे .....अब हो गया...”
लेकिन मै ऐसा मौका कहां छोडने बाला था. मै मां की चुत्तडों को अपने पेरु से खुब दबा कर रख्हा और चूची को मसलता रहा...मां बार बार मुझे हटने के लिये बोल रही थी और बीच बीच मे सिसकारी भी मांर रही थी..खास कर जुब मै घूंडी को जोरो से मसलता था. मेरा लंड बहुत टाइट हो गया था. मै लंड को पैंट से बाहर नीकालना चाहता था. मै कस कर एक हाथ से चुची को दबाये रख्हा और दूसरा हाथ पीछे लाकर पैंट का बटन खोला और नीचे गीरा दिया. मेरा लौडा पूरा टन टना गया था. मैने एक हाथ से लंड को मां के चुत्तर के बीच दबाया और दूसरा हाथ बढा कर चूत को मसलने लगा.
“नही बेटा, बूर को मत छुओ...ये पाप है....”
लौडा को चुत्तर के बीच मे दबाये रख्खा और आगे से बूर मे बीच बाली अंगुली घुशेर दी. करीब 15-20 मिनट पहले दादा चोद कर गये थे और चूत गीली थी. मेरा मन गन –गना गया था, मां की नंगी जवानी को छु कर. मुझे लगा कि इसी तरह अगर मै मां को रगडता रहा तो बिना चोदे ही झड जाउंगा और फिर मां मुझे कभी चोदने नही देगी. यही सोच कर मैने चूत से अंगुली बाहर निकाली और पीछे से ही कमर से पकर कर मां को उथा लिया.
“ओह्ह...क्या मस्त मांल है....चल रंडी , अब तुझे जम कर चोदुंगा ...बहुत मजा आयेगा मेरी रानी तुझे चोदने मे. “
ये कहते हुये मै मां को दोनो हाथो से उठा कर बेड पर पटक दिया और उसकी दोनो पैरो को फैला कर मैने लौडा बूर के छेद पर रख्खा और खुब जोर से धक्का मांरा.
“आउच..जरा धीरे .....” मां ने हौले से कहा.
मैने जोर का धक्का लगाया और कहा ,
“ओह्ह्ह्ह....मां , तु नही जानती , आज मै कितना खुश हुं. ..” मै धक्का लगाता रहा और खुब प्यार से मां की रस से भरी ऑंठो को चूमां.
“मां, जब से मेरा लौडा खडा होना शुरु हुआ चार साल पहले तो तबसे बस सिर्फ तुम्हे ही चोदने का मन करता है. हजारों बार तेरी चूत और चुची का ध्यान कर मैने लौडा हिलाया है और पानी गिराया है..हर रात सपने मे तुम्हे चोदता हुं. ..ले रानी आज पूरा मजा मांरने दे...”
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