RE: Bhabhi Sex Stories कुछ नहीं होगा भाभी !
तीनों बिना कपड़ों के थे, रात को सुनील की नींद खुली तो वो सुनीता को फिर
चोदने की तैयारी में था, सुनीता भी इसके लिए जैसे तैयार थी, पलंग हिलने
से मेरी नींद खुली तो मैंने कहा- सुनील क्या बात है, काफी मर्दानगी आ रही
है?
सुनील- क्या करूँ भाभी ! आप दो दो हसीनाओं के बीच होने के बाद भी
मर्दानगी जोश नहीं मारेगी तो कब मारेगी ! और फिर सुनीता की सुन्दरता मुझे
पागल कर रही है, मैं आपको तो फिर भी कभी भी रगड़ लूँगा पर इनको चोदने का
मौका कब मिलने वाला है पता नहीं और यह कभी मेरे साथ सेक्स का हाँ भरे या
नहीं?
सुनीता- क्या बात करते हैं? सुनील जी आपके साथ जो मजा आया है शायद कभी
ऐसा मजा नहीं आया था और आज से मैं आपकी गुलाम हूँ, आप जब भी आदेश करेंगे,
मैं आपके नीचे बिछने के लिए तैयार हूँ, बस आप चोदते रहे, कभी आपका लंड
मेरे अन्दर से बाहर ना निकले, ऐसा मन करता है।
मुझे कुछ नहीं सूझा, मैं अपने हाथ से अपनी चूत सहलाने लगी तो सुनीता ने
मुझे इशारा करके अपने पास बुला कर मेरी चूत अपनी जुबान से रगड़ने लगी,
मुझे मजा आने लगा।
इधर सुनील के धक्के तेज हो रहे थे, उसके धक्के से सुनीता की जुबान भी तेज
चल रही थी और हम दोनों सुनीता और मैं साथ साथ झड़ गए। सुनील ने सुनीता की
चूत से बाहर निकाल कर लण्ड मेरी चूत में डाल दिया और तेज तेज प्रहार करने
लगा।
थोड़ी देर में मैं फिर झड़ गई। सुनील ने फिर अपना लंड बाहर निकाल कर सुनीता
की चूत में डाल दिया और उसकी सेवा करने लगा। थोड़ी देर में सुनीता की चूत
में ही सुनील झड़ गया तो मैं उससे लड़ते हुए बोली- मुँह में क्यों नहीं
दिया?
और मैं सुनीता की चूत चाटने लग गई। दोनों के रस का स्वाद और भी मजेदार
था। मैंने थोड़ा सा रस मुँह में लेकर सुनीता को भी चखाया, सुनीता को भी
मजा आ गया, बोली- वाह सुरभि ! मजा आ गया ! तुम्हारी वजह से मेरा जीवन
धन्य हो गया ! सुनील जी, थैंक्स !
सुनील- आप जैसे खूबबसूरत औरत पाकर मैं धन्य हो गया, कल सुशील मैं आप और
भाभी सभी मिल कर और ज्यादा मजा करेंगे।
मैंने बीच में कहा- तुम दोनों के लिए एक और सरप्राइज है, वो कल ही पता
लगेगा और इतना मजा आएगा कि बस...
दोनों आश्चर्य से मेरी ओर देखने लगे और पूछने लगे तो मैंने कहा- यह तो कल
ही पता चलेगा।
सुनील और सुनीता बस पूछते रहे पर मैंने नहीं बताया।
खैर रात को हम सो गए, अगले दिन तो सुनीता अकड़ गई थी, उसकी इतनी ज्यादा
चुदाई पहली बार हुई थी।
शाम को सुशील का फोन आया- भाभी, मैं आ गया हूँ, क्या आदेश है मेरे लिए?
क्या करूँ क्या नहीं?
मैं- अरे सुशील, आ जाओ ना ! मैं कब से इन्तजार कर रही हूँ तुम्हारा !
सुशील- और रवि को..?
मैं- जरूर लेकर आओ ! और तुम्हारे लिए एक तोहफा भी है, शायद तुमको अच्छा
लगे, सब काम से निपट कर आना, बार बार जाने का काम मत रखना।
रात करीब आठ बजे सुशील आ गया। उस समय सुनील टीवी देख रहा था, उसने आते ही
सुनील से नमस्ते किया, सुनीता मेरे साथ रसोई में थी।
वो सीधा मेरे पास आया- भाभी, मैं आ गया !
ऐसा कहता हुआ आ ही रहा था कि सुनीता को देख कर ठिठक गया और नमस्ते भाभी
नमस्ते दीदी !
उसको लगा कि कोई मेरी ननद वगैरह कोई होगी।
सुशील- अच्छा भाभी, मैं यह कहने आया था कि कोई काम हो तो बोल देना, मैं आ
गया हूँ, और मैं अब चलता हूँ।
मैं- अरे सुशील, कहाँ जा रहे हो? रुको ! यह सुनीता है, मेरी सहेली ! और
तुम रवि को लेन वाले थे? क्या हुआ उसका?
सुशील- वो अब आएगा भाभी ! मैं उसको फोन करूँगा तब !
खाना बन चुका था, मैंने कहा- रवि को भी बुला लो, वो भी साथ खाना खा लेगा।
|