RE: Desi Sex Kahani पापा के दोस्तो ने जम के पेला
मेरी हालत पर वसीम हँसने लगा और बोला, तुम जितना मेरा साथ दोगि उतना ही तुम्हारे लिए अछा है और इस तरहा ये बात हम दोनो तक रहे गी और अगर तुमने शोर मचाया तो फिर मैं ये बात हर किसी को बता दूँगा. वसीम ने मुझे धक्का दे कर बिस्तर पर गिरा दिया फिर उनसे मेरी कमीज़ उठा कर मेरी शलवार का आज़ारबंद खोलना चाहा तो मैं ने उसका हाथ पकड़ लिया. वसीम मेरी तरफ देख कर बोला, तुम मेरा साथ दोगि या तुम अपने मा बाप की बदनामी चाहती हो. वसीम की बात सुनकर मैं ने उसका हाथ छोड़ दिया. वसीम ने मुस्करा कर मेरी शलवार का अज़रबंद खोल कर मेरी शलवार खींच कर उतार दी. नीचे मेरी अंडरवेर थी वसीम ने उसे भी खींच कर उतार दिया. फ्री वसीम ने मेरी चूत को सहला कर अपनी पैंट और अंडरवेर उतार दी. मैं ने देखा के उसका 9 इंच लंबा और 2 इंच लंबा लंड फुल आकड़ा हुआ था. मैं ने वसीम से मिन्नत करना चाही पर उसने मुझे बोलने का मोका ही नही दिया और अपना पूरा लंड ऐक ही झटके मे मेरी चूत मे डाल दिया. मेरे हलाक़ से ऐक हल्की से चीख निकल गई. मेरी चूत रास्ते भर की चुदाई से पहले ही सोजी होई थी और अब जो वसीम ने ऐक झटके से अपना लंड मेरी चूत मे डाला तो तकलीफ़ के मारे मेरी आँखों मे आँसू आ गये. वसीम तेज़ी के साथ झटके मार रहा था और मैं दर्द के मारे मरी जा रही थी. वसीम ने पूरे 30 मिनिट तक तेज़ी के साथ मेरी चुदाई करी. चोदने के बाद वो मुस्करा कर मुझ से कहने लगा, मेरी जान अभी मेरी प्यास नही भुजी है मगर फिर भी मैं तुम्हे छोड़ रहा हूँ मगर रात मे तुम्हारे मा बाप के सोने के बाद मैं तुम्हारे कमरे मे आओंगा तुम बीच का दरवाज़ा खोला रखना और याद रहे तुम ने मेरी हर बात पर अमल करना है वरना बाद के नतीजे की तुम खुद ज़िमेदार होगी. ये कह कर वो मुझ पर से उतार गया . मैं कुछ नही बोली और चुप चाप उठ गई. मेरी टाँगों से जान निकल रही थी इस लिए मैं लड़खड़ाती हुई अपने कमरे मे आगाई और बिस्तर पर गिर कर रोने लगी. मेरी हालत बोहत खराब होरही थी इस लिए मैं रात का खाना खाने के लिए भी नीचे नही गई. शार्फ़ो बाबा मुझे बुलाने भी आए मगर मैं ने उन्हे भी मना कर दिया. मैं ने सोच लिया था के रात मे वसीम को चोदने नही दूँगी इसलिए मैं ने बीच का दरवाज़ा अपनी तरफ से लॉक कर दिया. मैं ने सोच लिया था के मैं अब वसीम से नही चुदवाउंगी चाहे कुछ होजाय. मैं अपने कमरे मे लेटी रही और अपने और वसीम के बारे मे सोचती रही यहा तक के रात के 12 बज गये. थोड़ी देर बाद मुझे बीच के दरवाज़े का हॅंडल घूमता हुआ महसूस हुआ फिर हल्के से दरवाज़े पर दस्तक भी होई मगर मे लेटी रही. थोड़ी दायर तक दरवाज़े पर दस्तक होती रही फिर बंद हो गई. मैं ने थोड़ी देर इंतेज़ार किया मगर फिर दस्तक नही होई. मैं सोने की कोशिश कर रही थी मगर मुझे नींद नही आरहि थी अजीब से बेचेनी हो रही थी. मैं बिस्तर पर कर्वते बदल रही थी के घड़ी ने 1 बजने का एलान किया. मैं ने चोंक कर दरवाज़े की तरफ देखा और वसीम के बारे मे सोचने लगी के वो सो गया होगा या जाग कर मेरा इंतेज़ार कर रहा होगा. मैं काफ़ी देर से वसीम के बारे मे सोच रही थी और मुझे उसके बारे मे सोचना अछा लग रहा था. दिन भर तो मैं वसीम से नफ़रत करती रही मगर अब मुझे उस से नफ़रत महसूस नही होरही थी. मैं खुद हेरान थी के मुझे क्या होरहा है. मेरी निगाहों मे बार बार उसका लंबा मोटा लंड आरहा था और मुझे अपनी चूत मे अजीब से खुजली सी महसूस होरही थी. मुझे अपने जिस्म पर कपड़े बुरे लगने लगे थे इस लिए मैं ने उठ कर अपने तमाम कपड़े उतार कर फेंक दिए और पूरी नंगी होगई. मैं शीशे के सामने खड़े होकर अपने आप को देखने लगी. मेरा जिस्म बोहत खूबसूरत और सेक्सी है. मेरी 27 की कमर पर 36 के मम्मे अजीब बहार दिखा रहे थे. मैं ने सोचा मैं इतनी खूबसूरत और सेक्सी जिस्म की मालिक हूँ और अगर वसीम मुझे चोदने के लिए पागल होरहा है तो इस मे उसका कोई कसूर नही है, और अगर मैं किसी और को भी कही अकेले मिलू तो वो भी मुझे चोदने से गुरीज़ नही करे गा क्यूँ के मेरा जिस्म ही ऐसा है. मैं ने अपने दिल और दिमाग़ से लड़ते हुए जब अपनी सूजी हुई चूत पर हाथ फेरा तो मेरी ऐक सिसकारी निकल गई. मुझे अछा लगा तो मैं अपनी चूत को दबाने लगी. मेरी चूत मे दर्द था मगर इस दर्द मे ऐक अजीब सा नशा था. मैं ने गोर से अपनी चूत को देखा तो मुझे अपनी चूत अधूरी अधूरी सी और प्यासी सी लगी मेरी चूत वसीम के लंड को पुकार रही थी. मैं ने वसीम के लंड का ख़याल किया तो मैं बेकरार सी होगई और मैं उसके पास जाने के लिए तैयार होगई. ऐक दम से मेरे दिमाग़ ने मुझे झंझोड़ा और कहा के ये मैं क्या करने जा रही हूँ अभी थोड़ी देर पहले तक तो वसीम मेरी नज़रों मे दुनिया का सब से नीच और ज़लील इंसान था अब मैं उसके पास जाने के लिए ही बेकरार हो रही हूँ. मेरा दिल मुझ से बोला, छोड़ो सब पुरानी बाते ये सब बेकार की बाते है, देखो अपनी चूत की तरफ देखो किया ये वसीम के लंड के बगैर अधूरी नही है क्या तेरी चूत को वसीम के लंड की प्यास नही है? मैं ने अपनी चूत पर हाथ फेरा और वो मुझे वसीम का नाम लेती हुई महसूस हुई, अभी दिल और दिमाग़ की जंग जारी थी और फिर दिमाग़ हार गया और दिल जीत गया, मैं सब कुछ भुला कर ऐक दम से दरवाज़े की तरफ बढ़ी, ऐक बार फिर मेरे दिमाग़ ने मुझे समझाया पर जब मैं ने अपने दिल पर हाथ रखा तो वाहा से सिर्फ़ वसीम वसीम ही निकलता हुआ महसूस हुआ., अब मेरे दिल मे वसीम के लिए कोई नफ़रत नही थी बलके मेरे दिल मे उसके लिए प्यार आरहा था और मैं ने सोच लिया के जो कुछ भी वसीम ने मेरे साथ किया उस मे वसीम का कोई कसूर नही था.
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