RE: Desi Sex Kahani पापा के दोस्तो ने जम के पेला
अब हयदेराबाद करीब आरहा था इसलिए वसीम ने मुझे छोड़ दिया और उसने नहा कर अपने कपड़े पहन लिए. मैं अभी तक नंगी बँधी हुई नीचे पड़ी होई थी. मैं रोते हो उस से बोली, प्लीज़ अब तो मेरे हाथ पावं खोल दो और प्लीज़ मेरा बेग मुझे वापिस करदो अभी मेरे जिस्म पर कपड़ों के नाम पर ऐक धज्जी भी नही है मैं घर किस तरहा जाउ गी. वसीम मेरी बात सुनकर हँसने लगा और बोला, वाह क्या अछा सीन होगा जब तुम नंगी ट्रेन से उतरॉगी. वो सीन तो देखने वाला होगा फिर देखना किस तरहा लोग तुम पर टूटते हैं मुझे तो अभी से ये सोच कर माज़ा आरहा है जब ऐक हजूम तुम्हे चोदने के लिए बेताब होरहा होगा. वसीम की बात सुनकर मैं बुरी तरहा से डर गई और उसकी मिन्नताईं करने लगी और गिड गिदाने लगी. मेरे रोने और गिड गिदाने पर वसीम हंसता हुआ कॉमपार्टमेंट से बाहर चला गया . मैं सोचने लगी के अगर वसीम वापिस नही आया तो मेरा क्या हाल करेंगे लोग. मुझे तो लेने के लिए अब्बू आएँगे मैं किस तरहा सामना करूँगी उनका इस हालत मे. मैं अभी इन्ही सोचो मे गुम थी के कॉमपार्टमेंट का दरवाज़ा खुला और वसीम मेरा बेग लिए अंदर दाखिल होवा. उसने मेरा बेग पता नही कहा जाकर रखा था मगर ये मेरे सोचने की बात नही थी मैं इस बात पर शूकर गुज़ार थी के मुझे अब पहनने के लिए कपड़े मिल जाएँगे. वसीम ने फिर मेरे हाथ पैर भी खोल दिए और बोला, पता नही क्यूँ मुझे तुम पर रहम आगया है. मैं चाहता तो ऐसे ही चला जाता और फिर तुम्हारा जो भी हाल होता उसके बारे मे तुम सोच भी नही सकती. मैं दिल का बुरा नही हूँ इसलिए तुम्हे खोल कर जा रहा हूँ मेरा ये एहसान है तुम्हारे उपर जो तुमने सारी ज़िंदगी याद रखना है. ये कह कर वसीम चला गया . वाकई ये वसीम का मुझ पर एहसान था के उसने मुझे मेरा बेग दे दिया अगर ना देता तो मैं उसका किया बिगाड़ लेती. नंगी हालत मे तो मैं अब्बू का सामना कभी भी नही कर पाती. अब ट्रेन आहिस्ता होनी शुरू हो गई थी यानी स्टेशन आगेया था. मैं उठी तो मुझे से खड़ा नही होया गया . मेरी टाँगों से जान निकली जा रही थी और मेरे जिस्म का जोड़ जोड़ दुख रहा था. मैं हिम्मत कर के खड़ी होगआई फिर जब मैं ने अपनी चूत को देखा तो मेरी आँखों मे आँसू आगाये. मेरी चूत सूज कर डबल रोटी की तरहा फूल गई थी मेरी चूत के सुराख के चारों तरफ ज़ख़्म भी होरहे थे काफ़ी जगहों से चूत कट चुक्की थी जिस से खून रस रहा था. मैं ने अपनी चूत पर हाथ रखा तो तकलीफ़ की वजा से मेरी सिसकारी निकल गई. मैं ने अपने बेग से कपड़े निकाले और्र बड़ी मुश्किल से चलते हुई वॉशरूम मे चली गई. मैं जेसे तेसे कर के नहाई और कपड़े पहन कर बाहर आगाई. मैं ने सोच लिया था के मैं अपने रेप के बारे मे किसी को नही बताउ गी क्यूँ के इस मैं मेरी ही बदनामी थी. मैं ट्रेन से उतर कर अब्बू को ढूँढने लगी, मेरी हालत बोहत बुरी थी पर मैं ने खुद पर कंट्रोल किया हुआ था, थोड़ी देर बाद अब्बू मुझे किसी से बाते करते हो नज़र आ गये. जिस आदमी से अब्बू बाते कर रहे थे उसकी मेरी तरफ पीठ थी. फिर जब अब्बू ने मुझे देख कर खुशी से पूछा "सोनिया बेटी केसी हो केसा रहा तुम्हारा सफ़र?" तो उस आदमी ने पलट कर मेरी तरफ देखा. फिर जो शकल मुझे नज़र आई मैं सदमे और हेरात से पागल होगई क्यूँ के वो शक्स कोई और नही वसीम था. अब्बू ने मेरी बिगड़ती हुई केफियत को नोट नही किया और वो मुझे बोले, अछा सोनिया इन से मिलो ये हैं मेरे बोहत अच्छे दोस्त वसीम, ये अपने किसी काम के सिलसिले मे हयदेराबाद आए हैं और जब तक ये यहा हैं हमारे घर ही ठहरेंगे
क्रमशः.................................
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